विश्व का सबसे प्रसन्न इंसान
विश्व का सबसे प्रसन्न इंसान
हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि सबसे अधिक प्रसन्नचित व्यक्ति वह है जिसका आचरण शिष्ट हो।
शिष्ट आचरण तभी होता है जब मनुष्य की मानसिक व हार्दिक स्थिति शांत हो। यूं तो हर मनुष्य यह चाहता है कि उसका जीवन और जिस स्थान पर वह जीवन व्यतीत कर रहा है उसका वातावरण शांत एवं आनंदमय हो परन्तु कुछ लोगों की मानसिकता एसी होती है जो उनके व्यवहार को प्रभावित करके स्वयं उनके तथा अन्य लोगों के लिए वातावरण को अनुचित बना देती है।
ग़लत मानसिकता और ग़लत सोच उत्पन्न करने वाली एक भावना ईर्ष्या है। ईर्ष्या, एक एसी मानसिक उथल-पुथल या मानसिक प्रक्रिया का नाम है जो लगभग दो वर्ष की आयु से आरंभ होती है और यह समय के साथ-साथ बढ़ती रहती है। संभव है कि यह आगे चलकर विभिन्न रूपों में सामने आए। ईर्ष्या के कारक का संबन्ध, प्रत्येक व्यक्ति में उसकी स्थिति और स्थान, उसके वातावरण तथा सामाजिक संपर्क से होता है। यही कारण है कि ईर्ष्या के कारक को स्वयं व्यक्ति विशेष के भीतर ही ढूंढा जाए। कभी-कभी एसा होता है कि एक बच्चा अपने सभी भाई-बहनों से प्रतिस्पर्धा करता है। यह बात ईर्ष्या के लिए उचित भूमिका तैयार करती है। जबकि यह भी देखने में आता है कि अनेक परिवारों में माता-पिता, विभिन्न कारकों से जैसे बच्चे के अच्छे व्यवहार, सुन्दरता, पढ़ाई में बहुत अच्छा होना या शारीरिक अपंगता के कारण किसी एक बच्चे पर विशेष ध्यान देते हैं जिससे दूसरे बच्चों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है। ईर्ष्या का एक चिन्ह क्रोध होता है। ईर्ष्या करने वाला, जिससे ईर्ष्या करता है उसपर क्रोध प्रकट करके ईर्ष्या की भावना को प्रकट करता है। जैसे अपमान करना, दुख देने वाली बातें कहना आदि। यह स्थिति बच्चों से अधिक बड़ों में दिखाई देती है।
ईर्ष्या की भावना वास्तव में एक ख़तरनाक बीमारी से कम नहीं होती अतः इसका उपचार आवश्यक होना चाहिए। यह बीमारी ईर्ष्या करने वाले की शारीरिक और मानसिक दोनो प्रकार की स्थितियों को क्षति पहुंचाती है।
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