पैग़म्बर की नवासी हज़रत ज़ैनब (स) का शुभ जन्मदिवस

पैग़म्बर की नवासी हज़रत ज़ैनब (स) का शुभ जन्मदिवस

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम की नवासी हज़रत जैनब का शुभ जन्मदिवस आने ही वाला है। ऐसी महान महिला का शुभ जन्मदिवस जिसने स्पष्ट विशेषताओं और अपने उत्कृष्ट व्यक्तित्व से इस्लाम के इतिहास के पृष्ठों को सुन्दरता प्रदान की। हज़रत जैनब का नाम इस्लाम के वैभवशाली इतिहास के महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव के साथ जुड़ा रहा है। इस महान महिला के शुभ जन्मदिवस पर आप सबकी सेवा में बधाई प्रस्तुत करते हुए उनके जीवन के कुछ आयामों से आपको अवगत करवाने जा रहे हैं।

आज से एक हज़ार चार सौ चौबीस वर्ष पूर्व आज ही के दिन अर्थात पांच जमादिल अव्वल वर्ष ६ हिजरी क़मरी को मदीना नगर में हज़रत जैनब का जन्म हुआ था। जिस समय हज़रत ज़ैनब का जन्म हुआ उस समय हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम यात्रा पर गए हुए थे अतः हज़रत जैनब की माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्ला अलैहा ने हज़रत अली से अनुरोध किया कि वे अपनी पुत्री का नाम रखें किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस कार्य को पैग़ंबरे इस्लाम पर छोड़ दिया। जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम यात्रा से वापस हुए उन्होंने इस बच्ची के जन्म पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा, ईश्वर कहता है कि इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखा जाए जिसका अर्थ होता है पिता की सज्जा। रसूले ख़ुदा ने हज़रत जैनब को गोद में लिया, उन्हें प्यार किया और कहा कि मैं सबसे यह अनुरोध करता हूं कि वे इस लड़की का सम्मान करें क्योंकि वह भी ख़दीजा के ही समान है। इतिहास साक्षी है कि हज़रत ज़ैनब ने भी इस्लाम के गौरव और उसकी प्रतिष्ठा के मार्ग में हज़रत ख़दीजा की ही भांति अनेक कठिनाइयां सहन कीं। उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और त्याग से इस महान धर्म की प्रगति की भूमिका प्रशस्त की।

हज़रत ज़ैनब ने ऐसे घर में अपना जीवन आरंभ किया जो आध्यात्म तथा श्रेष्ठता का केन्द्र था। इसका कारण यह है कि उनका परिवार हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा, हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा जैसे महान व्यक्तित्वों से सुसज्जित था। ये वे महान लोग थे जिन्होंने पवित्र जीवन व्यतीत किया और वे मानवीय विशेषताओं के संस्थापक थे। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के भीतर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ईश्वरीय पहचान से परिपूर्ण आत्मा थी। हज़रत ज़ैनब ने अपने बचपन में ही अपनी माता के उस एतिहासिक ख़ुत्बे अर्थात भाषण को कंठस्त कर लिया था जो इस्लामी शिक्षाओं से परिपूर्ण था। उन्होंने ने ही इस ख़ुत्बे अर्थात भाषण को लोगों तक पहुंचाया। अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण बड़े होने पर वे अक़ीला की उपाधि से प्रसिद्ध हुईं। अक़ीला का अर्थ होता है बुद्धिमान और सूझ-बूझ वाली महिला।

घटनाओं की तीव्र आंधियां बहुत जल्द की हज़रत ज़ैनब की ओर बढ़ीं। अपने बचपन में ही उनके नाना हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का स्वर्गवास हो गया और उसके कुछ ही समय के पश्चात वे अपनी माता से भी हाथ धो बैठीं। इसके पश्चात उनके प्रशिक्षण का दायित्व केवल उनके पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कंधे पर आ गया। वे अली की छत्रछाया में ज्ञान और नैतिकता की विशेषताओं की स्वामी बनीं। एसे काल में कि जब अधिकांश महिलाएं अशिक्षित और ज्ञान से कोसों दूर थीं हज़रत ज़ैनब ने प्रशिक्षण और इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार किया तथा उनके ज्ञान और ईश्वरीय पहचान की ख्याति हर ओर पंहुची। बहुत सी महिलाएं इस प्रयास में थीं कि वे हज़रत ज़ैनब के माध्यम से की जाने वाली क़ुरआन की व्याख्या के कक्षाओं में भाग लें। उन्होंने पवित्र नगर मदीना और बाद में कूफा नगर में अपने प्रवास के दौरान जनता को अपने ज्ञान से लाभान्वित करवाया।

जब वे विवाह के योग्य हो गईं तो उनका विवाह अब्दुल्लाह बिन जाफ़र से हुआ। अब्दुल्लाह बिन जाफ़र हज़रत ज़ैनब के चाचा के पुत्र थे जो अरब के एक धनाढय व्यक्ति थे। उन्होंने कभी भी भौतिक जीवन से मन नहीं लगाया। वे उच्च विचारधारा की स्वामी थीं अतः उन्होंने स्वयं को कभी भी भौतिकवादी जीवन से विशेष नहीं किया। उन्होंने यह सीखा था कि कभी भी और किसी भी स्थिति में वास्तविकता के रत्नों को अत्याचारियों की लालच की बलि नहीं चढ़ने देना चाहिए। इसी आधार पर उन्होंने निर्णय लिया कि धर्म को पुनर्जीवित करने और मानवता को उच्च शिखर पर पहुंचाने हेतु सामज सुधार के लिए मदीना से निकलने वाले अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साथ दें। हज़रत ज़ैनब ने अब्दुल्लाह बिन जाफ़र के साथ विवाह के समय यह शर्त रखी थी कि जीवन के प्रत्येक चरण में वे अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ रहेंगी। हज़रत अब्दुल्लाह ने भी इस शर्त को सहर्ष स्वीकार किय था। यही कारण था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मदीना से करबला की यात्रा में हज़रत ज़ैनब अपने भाई के साथ रहीं और वे करबला की अमर घटना में यज़ीद नामक अत्याचारी उमवी शासक के मुक़ाबले में आ खड़ी हुईं।

हज़रत ज़ैनब के महान व्यक्तित्व को भलि-भांति समझने के लिए आशूरा की घटना और करबला में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के बंदी बनाए जाने की घटना का अध्धयन आवश्यक है। इस्लामी इतिहास के उस संवेदनशील कालखण्ड में हज़रत ज़ैनब की आत्मिक महानता का प्रदर्शन देखने को मिलता है। इस महान महिला का अद्वितीय व्यक्तित्व, ईश्वरीय पहचान के उच्च शिखर को दर्शाता है। हज़रत ज़ैनब को ईश्वर की उपासना के प्रति विशेष लगाव था। ईश्वर की याद और नमाज़ से उन्हें शांति प्राप्त होती थी। उनके मन में ईश्वरीय प्रकाश इस प्रकार से प्रज्वलित था कि उनकी दृष्टि में विश्व की समस्सत कठिनाइयां महत्वहीन हो गई थीं। मनोविज्ञान में यह बात स्पष्ट हो गई है कि क्रोध और संवेदनाओं के भड़कने की स्थिति में मानव, हर उस बात को प्रकट कर देता है जो उसके अंतरमन में छिपी होती है। संभवतः यही कारण था कि अपने भाई और परिजनों की शहादत के पश्चात कठिनाइयों के शीर्ष समय पर हज़रत ज़ैनब ने निर्भीक होकर बात की और उनका धैर्य, साहस तथा ईश्वर पर विश्वास प्रकट हो गया तथा उन्होंने उसे बहुत ही उच्च ढंग से प्रदर्शित किया। वे रक्तपिपासू और तानाशाह उमवी शासकों के मुक़ाबले में डट खड़ी हुईं तथा उन्होंने बड़ी ही निर्भीकता से इन शासकों की भर्त्सना की। हज़रत ज़ैनब ने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की सच्चाई को सिद्ध किया तथा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों को सत्य व असत्य के युद्ध का विजेता बताया। अत्याचारी शासक यज़ीद के दरबार में हज़रत जैनब के भाषणों ने एसा प्रभाव डाला कि लोगों के दिलों में उनके पिता हज़रत अली याद जाग उठी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा, पवित्र क़ुरआन की आयतों के आधार पर तार्किक और अटल बातें करती थीं। वास्तिवकता को बयान करने में हज़रत जैनब इतनी अधिक सक्षम थीं कि इब्ने कसीर नामक एक व्यक्ति, जिनकी गणना अरब साहित्यकारों में होती थी, उनके भाषण से बहुत प्रभावित हुए। हज़रत ज़ैनब के भाषण को सुनकर इब्ने कसीर बहुत रोए और उन्होंने ऊंची आवाज़ में कहा कि मेरे माता और पिता आप पर न्योछावर हो जाएं कि आपके वंश के वृद्ध बेहतरीन वृद्ध, बच्चे बेहतरीन बच्चे और आपकी महिलाएं बेहतरीन महिलाएं हैं। आपकी नस्ल प्रत्येक जाति से उत्तम है और आप लोग कभी भी पराजित नहीं होंगे।

हज़रत ज़ैनब ने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सुना था कि जब तक मनुष्य तीन विशेषताओं का स्वामी न हो उस समय तक वह ईमान की वास्तविकता को समझ नहीं सकता। धर्म की जानकारी, समस्याओं के समय धैर्य और जीवनयापन के लिए अच्छी योजनाबंदी। इस महान महिला ने कठिन दायित्वों को स्वीकार किया और धैर्य ने हीरे की भांति उनकी आत्मा को सुन्दरता प्रदान की। हज़रत ज़ैनब के मतानुसार वास्तविकता के मार्ग में प्रतिरोध और ईश्वर के मार्ग में अपने प्रांण न्योछावर करना सुन्दर है और यह सुन्दरता सदा ही मानवता की ओर से प्रशंसनीय रही है। यही कारण है कि करबला की घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने अत्याचारियों को संबोधित करते हुए कहा था कि मुझको सुन्दरता के अतिरिकत कुछ भी नहीं दिखाई देता।

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