सृष्टि के बारे में चिंतन-मनन का महत्व
सृष्टि के बारे में चिंतन-मनन का महत्व
प्रकृति के आंचल में, चांदनी रात में सितारों से भरे आकाश को देखिए और अथाह सृष्टि के इस सौंदर्य के बारे में सोचिए। कभी एकान्त में नहरों की गुनगुनाहट, बुलबुल और दूसरे परिन्दों के मनोहर गीत को सुनिए और उनकी स्थिति व व्यवहार के बारे में सोचिए। अपने आश्चर्यजनक अस्तित्व पर ध्यान दीजिए कि किस प्रकार ईश्वर ने जिसने परम दक्षता से आपके शरीर के एक एक अंग को बनाया है। अनन्य ईश्वर ने मनुष्य को बनाने के बाद गर्व करते हुए सूरे मोमिनून की आयत क्रमांक 14 में कहा, धन्य है वह ईश्वर जो सर्वश्रेष्ठ रचयता है।
पवित्र क़ुरआन में उन लोगों को विद्वान व बुद्धिमान कहा गया है जो सृष्टि और अपने अस्तित्व के बारे में चिंतन मनन करते हैं। धार्मिक शिक्षाओं में बुद्धिमान वे हैं जो संसार के एक एक कण के अस्तित्व का स्रोत ईश्वर को मानते हैं और इस बारे में सोचते हैं। जैसा कि सूरे अनआम की आयत संख्या 59 में ऐसे लोगों के बारे में आया है, वे विश्वास रखते हैं कि पेड़ से एक पत्ता भी ईश्वर की इच्छा के बिना नहीं गिरता। इसलिए बुद्धिमान अनन्य ईश्वर की शक्ति व महानता के सामने स्वयं के तुच्छ होने का आभास करते हुए उसकी उपासना में नत्मस्तक होते हैं।
सूरे आले इमरान की आयत संख्या 190 और 191 में आया है, इस बात में संदेह नहीं कि ज़मीन व आकाशों के बनाने और दिन रात के परिवर्तन में बुद्धिमान लोगों के लिए स्पष्ट निशानी है। वे ईश्वर को उठने-बैठने यहां तक कि सोने की हालत में याद करते हैं। सृष्टि के रहस्यों के बारे में सोचते हैं और कहते हैं, प्रभुवर! तूने इस महासृष्टि को निरर्थक पैदा नहीं किया। पवित्र है तू, हमे नरक की आग से सुरक्षित रख।
प्रसिद्ध आत्मज्ञानी आयतुल्लाह क़ाज़ी के एक शिष्य आयतुल्लाह नजाबत की जीवनी में मिलता है, अकसर ऐसा होता था कि जब आसमान में बादल छा जाते और वर्षा के रूप में ईश्वरीय कृपा उतरती थी तो आयतुल्लाह नजाबत खुले सर मैदान में निकल जाते थे। उनके एक शिष्य ने जब उनसे यह पूछा कि श्रीमान जब वर्षा होती है तो लोग अपने घर की ओर जाते हैं और किसी सायबान के नीचे शरण लेते हैं, किन्तु आप मैदान की ओर क्यों निकल जाते हैं? उन्होंने कहा, ईश्वर की सौगंद जब तक उसकी कृपा मुझे स्पर्श करती है, मैं ऐसे आनंद का आभास करता हूं कि सिंहासन पर बैठा राजा भी ऐसे आनंद का आभास नहीं करता।
जी हां बुद्धिमान व्यक्ति सृष्टि के अंगों व भागों के बारे में चिंतन-मनन द्वारा अपने परिज्ञान में वृद्धि करते हैं। यह परिज्ञान उनके लिए उस ताज़ा हवा की भांति है जिससे वह आनंदित होता है और उस सूर्य की भांति है जो धीरे-धीरे उसके हृदय को प्रकाशमय बनाता है। बुद्धिमान व्यक्ति हर स्थिति में ईश्वर को देखता है। जिस समय वसंत ऋतु की हवा से पेड़-पौधों के पत्ते हिलते हैं और यह मनुष्य के मन को आशावान बनाती है तो बुद्धिमान व्यक्ति इस प्राकृतिक प्रक्रिया में सौंदर्य व आश्चर्यचकित करने वाली व्यवस्था के सिवा कुछ और नहीं देखता कि इसका रचयता ईश्वर है।
परिज्ञानियों के हवाले से बड़ी सुंदर बात मौजूद है। परिज्ञानियों का कहना है कि मुर्ग़ी को दाना डाल कर अपनी ओर खींचा जा सकता है, ईश्वर ने भी सृष्टि में सौंदर्य व वैभव का जलवा बिखेरा ताकि बुद्धिमान व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करे और आध्यात्मिक परिपूर्णतः तक पहुंचने के द्वार को उनके लिए खोल दे।
आत्म सुधार और परिपूर्णतः तक पहुंचना मनुष्य के पैदा होने के उद्देश्य में है और ईश्वर ने अपने दूतों को इसलिए नियुक्त किया ताकि मनुष्य को दुनिया के झमेलों से मुक्ति और ईश्वर का सामिप्य दिलाएं। पवित्र क़ुरआन के सूरे ज़ारयात की आयत संख्या 56 में ईश्वर कहता है, मैंने जिन्नात और मनुष्य को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी उपासना के लिए पैदा किया है। केवल गहन चिंता करने वाले, बंदगी के मार्ग पर बढ़ते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम कहते है, ईश्वर ने बंदों को बुद्धि से अधिक मूल्यवान चीज़ नहीं दी। इस प्रकार बुद्धिमान का सोना मूर्ख के जागने से बेहतर है, बुद्धिमान का ठहरा रहना मूर्ख के चलने से बेहतर है। किसी भी बंदे ने ईश्वर के आदेशों का सही ढंग से पालन नहीं किया जब तक उसे समझा नहीं। पैग़म्बरे इस्लाम के नाति इमाम हसन अलैहिस्सलाम का कथन है, बुद्धि ईश्वर की ओर से बंदे को बेहतरीन उपहार है, क्योंकि उसके द्वारा दुनिया की समस्याओं से मुक्ति पाता है और नरक की पीड़ा से सुरक्षित रहेगा।
पवित्र क़ुरआन के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति बहुत कम होते हैं। पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में आया है कि बुद्धिमान, चिंतन मनन करने वाले तथा पाठ लेने वाले बहुत कम हैं और अधिकांश व्यक्ति न तो पाठ लेते हैं और न ही चिंतन मनन करते हैं इसलिए वे सत्य को स्वीकार नहीं करते। जैसा कि सूरे अंबिया की आयत क्रमांक 24 में ईश्वर कह रहा है, उनमें से अधिकांश सत्य को नहीं जानते और इस प्रकार उससे भागते हैं।
महापुरुष घमन्ड को ईश्वर से दूरी का आरंभिक बिन्दु बताते हैं। जिस प्रकार इब्लीस ने ईश्वर की महानता व ज्ञान को जानते हुए भी घमंड के कारण उसके आदेश का पालन नहीं किया और अपनी 6000 वर्ष की उपासना को बर्बाद कर दिया और इस प्रकार वह अपने विशेष उच्च स्थान से नीचे गिर गया। जैसा कि आपको भी मिस्र के शासक फ़िरऔन के बारे में यह पता होगा कि वह स्वयं को भगवान कहलवाता था। इसी बात का पवित्र क़ुरआन के सूरे नाज़ेआत की आयत क्रमांक 24 में उल्लेख है कि जिसका अनुवाद है, मैं तुम्हारा सबसे बड़ा पालनहार हूं। फ़िरऔन का अंजाम क्या हुआ। वह नील नदी में डूब कर मरा।
नैतिक शास्त्र के बड़े शिक्षकों की नज़र में घमंड का एलाज आश्चर्यचकित करने वाली सृष्टि विशेष रूप से अपने अस्तित्व के बारे में चिंतन-मनन में है। अनगिनत प्रकार की मछलियों व जलचरों, आसमान में एक दूसरे से बहुत दूरी पर स्थित सितारों की झिलमिलाहट, अपने शरीर के अंगों और उनके सटीक क्रियाकलापों पर चिंतन मनन से क्या ईश्वर की शक्ति और अपनी अयोग्यता के सिवा कुछ और समझेगा? क्या कोई व्यक्ति है जो यकृत जैसे छोटे से अंग को पैदा कर सके कि जिसके बारे में चिकित्सकों का कहना है कि यह अंग दिखने में छोटा है किन्तु अपने आप में एक व्यापक कारख़ाना है। कौन बुद्धिमान व्यक्ति होगा जो सृष्टि के संबंध में गहन विचार कर ईश्वर का इंकार करे कि जिसकी शक्ति असीम है और सृष्टि में मौजूद बहुत सटीक व्यवस्था के पीछे अपने ईश्वर को न देखे? यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में चिंतन-मनन का स्थान सबसे ऊंचा है। पैग़म्बरे इस्लाम के विशेष कथन हदीसे क़ुद्सी में आया है, एक घंटे का चिंतन मनन, हज़ार वर्ष की उपासना से बेहतर है। विचारक इस बात को समझते हैं कि ईश्वर ने कि जिसके काम तत्वदर्शिता से ख़ाली नहीं हैं, मनुष्य को अमर बनाने के लिए पैदा किया है न कि मिटने के लिए। बुद्धिमान व विचारक यह समझते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा जब हमें पुनः जीवित किया जाएगा जिसमें बुरे लोगों को भले लोगों से अलग किया जाएगा और उस दिन भलाई व बुरायी का बदला दिया जाएगा।
बुद्धिमान लोग अपने चिंतन-मनन से ईश्वर के निकट होते हैं और उसकी बंदगी का मुकुट अपने सिर पर रखते हैं और उनके मन में ईश्वर की याद की ज्योति हर दम जलती रहती है। वे उन लोगों से बहुत भिन्न होते हैं जो सृष्टि को देखते हैं किन्तु अपने रचयता को नहीं देखते। कितना अच्छा हो यदि हम भी बुद्धिमानों की भांति अपने विचारों व दृष्टिकोणों में परिवर्तन लाएं। सतही सोच से दूर हों और सृष्टि में ईश्वर की महानता को समझें। सृष्टि के संबंध में थोड़ा सा चिंतन-मनन हमें वास्तविकता की ऊंचायी पर ले जाएगा और हमें एक दूसरा इंसान बना देगा। जैसाकि सूरे बक़रह की आयत संख्या 269 में ईश्वर बुद्धिमानों व चिंतन-मनन करने वालों को विशेष स्थान देते हुए कहता है, ईश्वर जिसे चाहता है तत्वदर्शिता देता है और जिसे तत्वदर्शिता दी गयी उसके साथ बड़ी भलाई की गयी और बुद्धिमानों के सिवा कोई पाठ नहीं लेता। इसी प्रकार सूरए ज़ुमर की आयत क्रमांक 9 में ईश्वर कहता है, हे पैग़म्बर आप कह दीजिए कि क्या जानने वाले और न जानने वाले एक समान हैं? केवल बुद्धिमान लोग ईश्वर को याद करते हैं।
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