रसूले इस्लाम की ईमानदारी आयतुल्लाह ख़ामेनाई की दृष्टि में
रसूले इस्लाम की ईमानदारी आयतुल्लाह ख़ामेनाई की दृष्टि में
हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई फ़रमाते हैं कि
रसूले अकरम (स.अ.) की अमानतदारी व ईमानदारी इस तरह से मशहूर थी कि इस्लाम से पहले उनका उपनाम ही ‘अमीन’ पड़ गया। लोग अपने कीमती सामान बहुत संतुष्ट होकर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सुपुर्द कर दिया करते थे।
और पूरा यक़ीन रखते थे कि वह अमानत हर हालत में उन्हें सही और सुरक्षित वापस मिल जाएगी। यहाँ तक कि जब आप (स.अ) ने लोगों को इस्लाम की तरफ़ दावत देनी शुरू की और आपके प्रति कुरैश की दुश्मनी अपने चरम पर पहुंच गईं तब भी वही दुश्मन जब अपनी कोई कीमती चीज़ सुरक्षित जगह रखना चाहते थे तो रसूले अकरम (स.) के दरवाज़े पर दस्तक देते थे।
यही वजह है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ) ने मदीने की तरफ़ हिजरत करनी चाही तो अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम को इस बात पर तैनात किया कि वह मक्के में रहकर सभी अमानतों को उनके मालिकों के सुपुर्द कर दें। इस से यह स्पष्ट होता है कि उस समय भी आप कुरैश के काफ़िरों की अमानतों के अमानतदार थे।
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