इमामे ज़माना द्वार जहरे असवद की स्थापना

इमामे ज़माना द्वार जहरे असवद की स्थापना

जन्नत से ख़ास कर उतारे गये दो अहम पत्थर हजरे असवद और मक़ामे इब्राहीम,  अहदे आदम (अ) और दौरे इब्राहीमी से अब तक मौजूद हैं।

अल्लामा अरबी लिखते हैं कि ज़मानए नियाबत में बाद हुसैन बिन रौह अबुल क़ासिम, क़ौलाया हज के इरादे से बग़दाद गये और वह मक्के मोअज़्जमा पहुँच कर हज करने का फ़ैसला किये हुए थे। लेकिन वह बग़दाद पहुँच कर सख़्त बीमार हो गये इसी दौरान में आपने सुना कि क़रामता (एक धर्म का नाम है) ने हजरे असवद को निकाल लिया है और वह उसे कूछ दुरुस्त करके अय्यामे हज में फिर लगाएंगे।

किताबों में चूँकि पढ़ चुके थे कि हजरे असवद सिर्फ़ ज़माना का इमाम ही स्थापित कर सकता है। जैसा कि पहले हज़रत मुहम्मद (स0) ने स्थापित किया था। फिर ज़माना-ए-हज में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) ने स्थापित किया था।

इसी बिना पर उन्होंने अपने एक दोस्त “इब्ने हश्शाम” के ज़रिये से एक ख़त भेजा और उसे कह दिया की जो हजरे असवद स्थापित करे उसे यह ख़त दे देना। लोग हजरे असवद को स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे थे लेकिन वह अपने स्थान पर रुक नहीं रहा था

कि इतने में एक ख़ूब सूरत नौजवान एक तरफ़ से सामने आया और उसने उसे स्थापित कर दिया और वह हजरे असवद अपने स्थान पर स्थापित हो गया। जब वह वहां से रवाना हुआ तो इब्ने हश्शाम उनके पीछे हो लिये। रास्ते में उन्होंने पलट कर कहा ऐ इब्ने हश्शाम, तू जाफ़र बिन मुहम्मद का  ख़त मुझे दे देदो। देखो उस में उसने मुझे से सवाल किया है कि वह कब तक ज़िन्दा रहेगा। यह कह कर वह नज़रों से ग़ाएब हो गये।

इब्ने हश्शाम ने सारा वाक़ेया बग़दाद पहुँच कर हुसैन बिन रौह को यह बात बताई। ग़र्ज़ कि वह तीस साल के बाद वफ़ात पा गये।
(कशफ़ुल ग़ुम्मा, सफ़ा 133)

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