फ़िदक कैसे छीना गया?
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया है कि फ़िदक पैग़म्बर (स) का विशेष माल था और आपने उसे ईश्वर के आदेश से फ़ातेमा (स) के हवाले किया था और आपने पैग़म्बर (स) के जीवनकाल में ही उसका प्रयोग किया था।
अब प्रश्न यह है कि ऐसा क्या हुआ कि फ़िदक फ़ातमा ज़हरा (स) के हाथों से निकल गया?
हैसमी अपनी पुस्तक मजमउज़्ज़वाएद की जिल्द 9 पेज 40 पर लिखता हैः फ़िदक को फ़ातेमा (स) से लेने से पहले दूसरे ख़लीफ़ा (हज़रत उमर) अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली(अ) के पास जाते हैं और आपसे पैग़म्बर (स) की पैतृक सम्पत्ति के बारे में प्रश्न करते हैं अली (अ) उत्तर देते हैं कि यह सम्पत्ति पैग़म्बर (स) के अहलेबैत (अ) हैं की सम्पत्ति है।
तब दूसरे ख़लीफ़ा अमीरुल मोमिनीन (अ) के उत्तर में कहते हैं: ऐसा नहीं हो सकता है मगर यह कि हमारी गर्दनों को कैची से काट दिया जाए।
यानी हम पैग़म्बर (स) की पैतृक सम्पत्ति को अहलेबैत (अ) के हाथों में रहने नहीं देंगे।
और ऐसा ही किया गया, लेकिन इतिहास में कोई उनपर आपत्ती ना करे इसलिए हर प्रकार से यह प्रयत्न किया गया कि फ़िदक को बिना किसी विरोध के हथिया लें लेकिन अहलेबैत (अ) ने इसका विरोध किया और ऐसा नहीं करने दिया।
फ़िदक हज़रते ज़हरा (स) के हाथों से किस प्रकार निकल गया इसके बारे में इबने हजर हैसमी अपनी पुस्तक सवाएक़े मोहरक़ा के पेज 31 पर लिखता हैः
ان ابا بکر انتزع من فاطمة فدکا
अबूबक़्र ने फ़ातेमा (स) से फ़िदक ले लिया।
शहरिस्तानी अपनी पुस्तक मिलल वल नहल की जिल्द 1, पेज 13 पर लिखता हैः
الخلاف السادس: فی أمر فدک و التوارث عن النبی علیه الصلاة و السلام، و دعوى فاطمة علیها السلام وراثة تارة، و تملیکا أخرى
शहरिस्तानी कहता है कि हज़रते ज़हरा (स) ने एक बार फ़िदक को पैग़म्बर (स) का दिया हुआ उपहार कहकर वापस मांगा और एक बार मीरास कहकर वापस मांगा।
हज़रते ज़हरा (स) ने एक बार उपहार कहकर मांगा कि यह फ़िदक पैग़म्बर (स) ने मुझे उपहार स्वरूप दिया था और मैंने उसको स्वीकार किया था तो अब किसी को यह हक़ नहीं प्राप्त है कि वह इसे मुझसे छीने। और इसके लिए आपने बहुत से साक्ष्य प्रस्तुत किए जिनमें से किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया। इन साक्ष्यों के बारे में हम किसी दूसरे लेख में बहस सकेंगे।
जब हज़रते ज़हरा (स) ने देखा कि यह लोग फ़िदक को पैग़म्बर (स) का उपहार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है तो आपने कहा अच्छा कम से कम तुम लोग यह तो मानते हो ना कि फ़िदक पैग़म्बर (स) की सम्पत्ति थी, तो अब उनके बाद यह मेरी मीरास हुई।
अगर हम सही बुख़ारी को देखें तो वहां कई स्थानों पर हमको यह मिलेगा कि फ़ातेमा (स) ने फ़िदक को अपनी मीरास कहकर वापस मांगा। लेकिन इसके मुक़ाबले में पहले ख़लीफ़ा ने वह जाली हदीस गढ़ी कि «نحن معاشر الأنبیاء لا نورث ما ترکناه صدقة» हम नबी मीरास नहीं छोड़ते हैं हम जो कुछ छोड़ते हैं वह सदक़ा है।
इन दोनों किताबों के इन लेखों से यह पता चलता है कि फ़िदक पहले फ़ातेमा (स) के हाथों में था लेकिन बाद में उनसे छीना गया जिसने आपको नाराज़ किया,
लेकिन आपने अपना हक़ नहीं छोड़ और सदैव अपने हक़ को वापस मांगती रहीं यहां तक की आपकी शहादत हो गई, लेकिन आपकी शहादत के बाद भी अहलेबैत (अ) ने पहले और दूसरे ख़लीफ़ा और उनके बाद इस हक़ को मांगा और उसकी वापसी की मांग को दोहराते रहे।
तफ़ताज़ानी अपनी शरहे मक़ासिद की जिल्द 5, पेज 279 पर लिखता हैः
ثمّ ردّها عمر بن عبدالعزيز أيّام خلافته إلى ما كانت عليه
(उमर बिन अब्दुल अज़ील के युग में) उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने अपनी ख़िलाफ़त के ज़माने में उसे वापस पहलटा दिया फ़ातेमा ज़हरा (स) की औलाद की तरफ़ (इसी बात को मोजमुल बुलदान जिल्द4, पेज 240 पर भी लिखा गया है)
अब जैसा कि हमने पहली ही कहा है कि फ़िदक की लड़ाई एक ज़मीन के टुकड़े की लड़ाई नहीं थी बल्कि यह लड़ाई थी ख़िलाफ़त की, अगर इस बात में हक़ फ़ातेमा (स) के साथ है तो क्या फ़ातेमा पर ज़ुल्म किया गया? और क्या एक ज़ालिम पैग़म्बर का ख़लीफ़ा हो सकता है?
इबने अबिल हदीद शरहे नहजुल बलाग़ा जिल्द 16 पेज 232 और जौहरी अपनी पुस्तक में 161 पर दो महान शाएर सैय्यद हिमयरी और कुमैत की बातचीत के बारे में लिखते हैः
انی احب امیر المومنین ولا ارضی بسب ابی بکر و عمرا ولا اقول اذا لم یعطیا فدکا بنت النبی ولا میراثها کفر الله یعلم ملذا یعطیان به یوم القیامة من عذراذ اعتذر
मैं अमीरुल मोमिनीन (अ) से मोहब्बत करता हूँ और अबूबक्र और अमर को बुरा भला करने से राज़ी नहीं हूं, और मैं नहीं कहता हूं कि जब इन लोगों ने नबी की बेटी को फ़िदक नहीं दिया और ना ही उनकी मीरास तो वह काफ़िर हो गए, अल्लाह जानता है कि क़यामत के दिन यह दोनों उसके सामने कौन सा बहाना पेश करेंगे।
वह तमाम रिवायतें जो हमने पहले के लेखों में बयान की उनसे पता चलता है कि पैग़म्बर (स) ने फ़ातेमा (स) को फ़िदक दिया था या उपहार स्वरूप या फिर मीरास में मिला था।
और आज के लेख में या बाद में जो हम बुख़ारी की रिवायत पेश करेंगे उससे पता चलता है कि वह फ़िदक जो फ़ातेमा (स) के हाथों में था उसे पहले ख़लीफ़ा अबूबक्र ने फ़ातेमा (स) से ले लिया।
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