वहाबियत और मुसलमानों का जनसंहार

वहाबियत और मुसलमानों का जनसंहार

शायद ही कोई ऐसा दिन होता हो जिस दिन इराक़, सीरिया, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान या किसी अन्य मुसल्मि देश से बम विस्फोट या आत्मघाती कार्यवाही का समाचार न मिलता हो। वर्तमान समय में इराक़ और सीरिया, आतंकवादी गुटों की आतंकी और विध्वंसकारी कार्यवाहियों की सूचि में सर्वोपरि हैं। इन आतंकवादी कार्यवाहियों का मुख्य लक्ष्य, आम लोग हैं जिनमें बूढ़े, बच्चे और महिलाएं आदि सभी सम्मिलित हैं। आतंकवादियों ने अभी हाल ही में सीरिया में लगभग साढ़े चार सौ लोगों का जघन्य जनसंहार किया जिनमें १२० बच्चे थे।  इन लोगों में महिलाएं और बूढ़े लोग भी सम्मिलित थे।  वहाबी आतंकवादियों के हाथों सीरिया के लगभग साढ़े चार सौ लोगों के नरसंहार की घटना के सार्वजनिक होने के साथ ही इंटरनेट पर बहुत ही हृदयविदारक चित्र भी सामने आए। इनमें से एक वीडियो में दिखाया गया था कि वहाबी अतिवादियों के गुट अन्नुसरह के सदस्य, तीन पुरूषों पर ज्वलंत पदार्थ डाल रहे हैं। वहाबी अतिवादी गुट अन्नुसरह के सदस्यों ने इन तीनों पुरूषों को ज़िंदा जला दिया जो संभवतः सीरिया के सैनिक थे। हालिया एक वर्ष के दौरान सीरिया में इस प्रकार की बहुत सी हृदयविदारक और दुखदाई घटनाएं घटी हैं। विश्व जनमत अभी सीरिया में २७ जूलाई को हुए उस जनसंहार की घटना को भुला भी नहीं पाया है जिसमें हलब नगर के ख़ानल असल के ५१ आम लोगों को अलक़ाएदा के आतंकवादियों ने मार डाला था। इस घटना के थोड़े से अंतराल पर वहाबी आतंकवादियों ने लगभग साढे चार सौ अन्य सीरिया वासियों के जनसंहार की जघन्य घटना को अंजाम दिया। हालिया कुछ सप्ताहों के दौरान इराक़ में भी आतंकवादी गुटों की ओर से हिंसक घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हुई है। इराक़ में घटने वाली आतंकवादी घटनाएं किसी भी स्थिति में, सीरिया की आतंकवादी घटनाओं से असंबन्धित नहीं हैं। सीरिया की वैध एवं लोकतांत्रिक सरकार को गिराने के लिए कुछ क्षेत्रीय और अन्य देशों को मिलने वाली विफलता के पश्चात अब इराक़ को अस्थिर करने के लिए प्रयास तेज़ कर दिये गए हैं।

वर्ष २००३ में इराक़ के अतिग्रहण के बाद से हालिया कुछ सप्ताहों के दौरान इस देश में हिंसक एवं विध्वंसकारी घटनाओं में बहुत वृद्धि हुई है। जूलाई के आरंभ से ८०० से अधिक इराक़ी, इस देश के विभिन्न क्षेत्रों में की जाने वाली हिंसक कार्यवाहियों के दौरान काल के गाल में समा चुके हैं। जूलाई महीने को इराक़ में सर्वाधिक रक्तरंजित महीना बताया गया है। बग़दाद, करकूक, मूसिल तथा कुछ अन्य नगरों में होने वाले आक्रमणों में शीया और सुन्नी दोनों मुसलमानों को ही लक्ष्य बनाया गया है। आतंकवादियों द्वारा की जाने वाली आतंकवादी कार्यवाहियों का मुख्य उद्देश्य, इराक़ी जनता के बीच मतभेद उत्पन्न करना है। इन जनसंहारों के संबन्ध में महत्वपूर्ण बिंदु, मानवताप्रेम का दावा करने वाले पश्चिमी देशों की प्रतिक्रियाए हैं जो सीरिया तथा इराक़ में आतंकवादी कार्यवाहियां करने वाले गुटों के घटक व अभिभावक हैं। इन घटनाओं के संदर्भ में पश्चिम ने मौन धारण कर रखा है और वह अब भी सीरिया में सक्रिय आतंकवादियों को शस्त्रों की आपूर्ति कर रहा है। अभी हाल ही में सीरिया के गृहमंत्री ने कहा था कि अस्सी से अधिक देशों के आतंकवादियों को सीरिया में विध्वंसक कार्यवाहियां करने के लिए भेजा जा रहा है।

सीरिया में घटने वाली समस्त आतंकवादी घटनाएं और इराक़, पाकिस्तान तथा अन्य देशों में मुसलमानों के जनसंहार का मुख्य कारक, तकफ़ीरी या वहाबी हैं जो यह विध्वंसकारी कार्यवाहियां, अलक़ाएदा जैसे आतंकवादी संगठनों की आड़ में कर रहे हैं।  अलक़ाएदा ही वह आतंकवादी संगठन है जिसे अमरीका ने ग्यारह सितंबर की घटना का आरोपी बताया है। मध्यपूर्व में अमरीकी सैनिकों को भेजने का लक्ष्य भी अलक़ाएदा के विरुद्ध संघर्ष बताया गया था किंतु विडंबना यह है कि आज वहीं आतंकवादी संगठन, अमरीकी नीतियों को आगे बढ़ाने के मुख्य कारक में परिवर्तित हो चुका है। वर्तमान समय में पश्चिमी सरकारें, वहाबियों विशेषकर अलक़ाएदा संगठन को दो प्रकार से प्रयोग कर रही हैं। एक ओर तो वे इनके माध्यम से न्यायप्रेमी एवं शांति प्रेमी धर्म इस्लाम की छवि बिगाड़ने के भरसक प्रयास कर रहे हैं और दूसरी ओर वे वहाबियों की आतंकवादी और हिंसक कार्यवाहियों पर मौन धारण करके मध्यपूर्व में अपने दीर्घकालीन हितों की पूर्ति कर रहे हैं।  इस प्रकार से इस्लामी जगत को भीतर से तकफ़ीरी अर्थात वहाबी प्रक्रिया का सामना है जो इस्लामी शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करके मुस्लिम जगत में मतभेद फैला रहे हैं। अपने अनुचित कार्यो का औचित्य दर्शाने के लिए वहाबी जो प्रमाण प्रस्तुत करते हैं वे बहुत ही निम्न स्तर के होते हैं और वे वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं। अतिवादी वहाबियों ने न्याय के प्रतीक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम की शिक्षाओं को तो छोड़ दिया है और वे एसी बातों को पैग़म्बर से जोड़ते हैं जिनका इस्लामी शिक्षाओं से कोई संबन्ध ही नहीं है। यह एसी स्थिति में है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) संकीर्ण विचारधारा के मुखर विरोधी थे। हमारे पास चरमपंथी वहाबियों की विचारधारा के मूल सिद्धांतों की समीक्षा करने के लिए तो समय नहीं है किंतु इतना अवश्य बताना चाहते हैं कि वहाबियों का मानना है कि वे मुसलमान काफ़िर हैं जो उनके दृष्टिकोणों का अनुसरण नहीं करते और उनकी हत्या करना हलाल अर्थात वैध है। तकफ़ीरी वहाबियों की यह विचारधारा, पश्चिमी सरकारों और ज़ायोनी शासन के हित में है। इस्लामी जगत को वहाबियों के पश्चात दूसरा ख़तरा, पश्चिमी सरकारों की उस नीति से है जिसका उद्देश्य मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाना और मध्यपूर्व के देशों को खंडित करना है।

मध्यपूर्व में इस्लामी जागरूकता के विस्तार से अतिवादी वहाबियों की गतिविधियों में भी तेज़ी आई है। हालांकि जागरूकता और वहाबियों की संकीर्ण विचारधारा के बीच खुला विरोधाभास पाया जाता है। एसा लगता है कि जिन देशों मे इस्लामी जागरूकता आ रही है उन देशों में अतिवादी वहाबियों के अति सक्रिय होने का उद्देश्य, इस्लामी जागरूकता को ही क्षति पहुंचाना है। अतिवादी वहाबियों को सक्रिय करने में सऊदी अरब और क़तर जैसे देश अमरीका, ब्रिटेन तथा ज़ायोनी शासन की गुप्तचर एजेन्सियों की सहकारिता से केन्द्रीय भूमिका निभा रहे हैं। खेद की बात है कि हर उस इस्लामी देश में जहां पर वहाबियों की सक्रियता पाई जाती है वहां पर मारधाड़, हिंसा और आतंकवादी कार्यवाहियों सहित जातीय एवं धार्मिक मतभेदों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। वहाबी आतंकवादियों की गतिविधियों के परिणाम स्वरूप अबतक हज़ारों निर्दोष मुसलमान अपनी जानें गवां चुके हैं। 

अलक़ाएदा, तालेबान और इसी प्रकार के वहाबियों के अन्य गुट इराक़, यमन, मिस्र, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान सीरिया तथा कई अन्य इस्लामी देशों में अमरीकी मोहरे में परिवर्तित हो चुके हैं। वे अपनी संकीर्ण विचारधारा से विश्व जनमत में इस्लाम की छवि को बिगाड़ रहे हैं। दूसरी ओर अमरीका और उसके योरोपीय घटक भी अपनी इस्लाम विरोधी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए सलफ़ियों अर्थात वहाबियों की हिंसक कार्यवाहियों को इस्लामी कार्यवाही दर्शाकर विश्व जनमत को यह समझाने के प्रयास कर रहे है कि इस्लाम, अहिंसा प्रेमी धर्म नहीं है। वर्ष २००३ से अमरीका द्वारा इराक़ का अतिग्रहण कर लेने के पश्चात वहाबियों ने अमरीकी सैनिकों के स्थान पर इराक़ के शीया मुसलमानों की हत्या करनी आरंभ कर दी है।  सऊदी अरब के आले सऊद शासक भी, जिनका क्षेत्र में प्रभाव दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है, इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि सलफ़ियों की आर्थिक एवं सैन्य सहायता करके इराक़ में एक स्थिर सरकार को कमज़ोर कर दिया जाए तथा वे इराक़ को साम्प्रदायिक हिंसा में झोक देना चाहते हैं। 

अमरीकी सरकार भी, जो इराक़ में अपने लक्ष्य प्राप्त करने में विफल रही है, इराक़ सरकार पर दबाव डालने के उद्देश्य से इस देश में वहाबियों की अतिवादी एवं आतंकवादी कार्यवाहियों को हथकण्डे के रूप में प्रयोग करते हुए वाहट हाउस के लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा में है।

आतंकवादी वहाबी, सीरिया में एसे मुसलमानों की निर्मम हत्या कर रहे हैं जो उनके साथ सहयोग नहीं करते। एसे में उनके निकट महिलाओं, पुरूषों और बच्चों के बीच कोई अंतर नहीं है। कुछ अवसरों पर वहाबियों ने सीरिया में प्रतिशोध के लिए छोटे-छोटे बच्चों के सिर तक काटे हैं।  इस संदर्भ में फ़ारेन पालिसी नामक अमरीकी पत्रिका ने लिखा है कि इस समय बहुत से टीकाकार और विशेषज्ञ, सलफ़ीवाद को एसी विचारधारा बता रहे हैं जो क्षेत्र की नीतियों को पुनः लिख रही है। ब्रोकिंग इन्सीटीट्यूट के विशेषज्ञ Geneive Abdo अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि सुन्नियों और शीयों के बीच मतभेद अब पश्चिम तथा मुसलमानों के बीच व्यापक टकराव का स्थाल ले रहे हैं और संभवः यह अरबों के बीच राजनैतिक एकता के महत्वपूर्ण विषय अर्थात फ़िलिस्तीन समस्या का स्थाल लेले।  

यह समीक्षा दर्शाती है कि इस्लाम का दावा करने वाले अतिवादी वहाबी, अपनी आतंकवादी कृत्यों से क्षेत्र में किस राजनैतिक प्रक्रिया या विचारधारा की सेवा कर रहे हैं?

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