इश्क़े अली में अंधे को मिली आँखें!!!!!!
इश्क़े अली में अंधे को मिली आँखें!!!!!!
बिहारु अनवार में उमैद से रिवायत हैं कि मैं ने मदीने में एक हबश की दासी को देखा। जो अंधी थी। और अपने कंधे पर मश्कीज़ा (पानी भरने की एक चीज़) उठा कर पानी पिला रही थी। और कह रही थी। कि लोगों महोब्बते अली (अ) में पानी पियों।
मैं हज पर मक्के चला गया। वहां जाकर देखा तो हज के ज़माने में वही दासी अंधी नहीं थी। और पानी पिला रही थी। और कह रही थी। कि आओ उस के नाम पर पानी पियों जिसने हमें आखें दी है।
मैं उसके पास गया। और पूछा कि अभी कुछ दिन पहले मदीने में तो तू अंधी थी। और अली की महोब्बत में पानी पिला रही थी। आज तुम अंधी नहीं हो। और कह रही है। कि जिसने मुझें आखें दी हैं। मैं उसके नाम पर पानी पियो।
यह कौन हैं?
दासी ने कहा एक दिन जब मैं पानी पिला कर शाम को घर गई तो एक व्यक्ति आया उसने पानी पिया और मुझ से पूछा कि क्या सच्चे ह्रदय से अली (अ) से मोहब्बत करती हो?
मैनें कहा। अगर ह्रदय चीर कर दिखाने की वस्तु होती तो मैं तुझे दिखाती मेरे दिल में अली (अ) के सिवा किसी की मोहब्बत पैदा नहीं हुई। उसने प्रार्थना की। और कहा हे ईश्वर अगर यह औरत अपनी बात में सच्ची है। तो इसको आखों में रोशनी दे। और मेरी उसी समय आखों में रौशनी हो गई। वह व्यक्ति मेरे सामने खड़ा था। मैं ने पूछा कि आप कौन हैं?
उसने कहा मैं ख़िज़्र हूँ और अली का शिया हूँ।
( दमअतुस साकेबा पेज 382)
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