संसार इमाम अली (अ) की निगाह में

संसार इमाम अली (अ) की निगाह में

मैं तुम्हें दुनिया से डराता हूं इस लिये यह बज़ाहिर (प्रत्यक्ष में) शीरीं व ख़ुशगवार (मधुखरोचक), तरोताज़ा व शादाब (हरी भरी) है। नफ़्सानी ख़्वाहिशात (कामेच्छायें) उस के गिर्द घेरा डाले हुए हैं। वह अपनी जल्द मुयस्सर आ जाने वाली नेमतों की वजह से लोगों को महबूब (प्रिय) होती है, और अपनी थोड़ी से आराइशों (सजावटों) से मुशताक़ (प्रेमी) बना लेती है। वह झूटी उम्मीदों से सजी हुई और धोके और फ़रेब से बनी संवरी, हुई है।

न उस की मसर्रतें (खुशियां) देरपा (दीर्घायु) हैं, और न उस की नागहानी मुसीबतों (आकस्मिक आपत्तियों) से मुत्मइन (संतुष्ट) रहा जा सकता है। वह धोकेबाज़, नुक़सान रसां (हानिकारक) अदलने बदलने वाली (परिवर्तनशील) और फ़ना होने वाली (नाशवान) है। ख़त्म होने वाली और मिट जाने वाली है। ख़ा जाने और हलाक (आहत) कर देने वाली है। जब यह अपनी तरफ़ माइल (अनुरक्त) होने वालोम और ख़ुश होने वालों की इन्तिहाई आर्ज़ुओं (अंतिम आकांछाओं) तक पहुंच जाती है, तो बस वही होता है जो अल्लाह सुब्हानहू ने बयान किया है। इस दुनियावी ज़िन्दगी (सांसारिक जीवन) की मिसाल ऐसी है, जैसे वह पानी जिसे हम ने आस्मान से उतारा तो ज़मीन का सबज़ा (पृथ्वी की हरियाली) उस से घुल मिल गया और अच्छी तरह फूला फ़ला, फिर सूख कर तिंका तिंका हो गया जिसे हवायें इधर से उधर उड़ाए फिरती हैं, और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।

जो शख़्स (व्यक्ति) इस दुनिया का ऐशो आराम पाता है तो उस के बाद उस के आंसू भी बहते हैं, वह मुसीबतों में धकेल कर उस को अपनी बेरुखी भी दिखाती है और जिस शख्स पर राहतो आराम की बारिश के हल्के हल्के छींटे पड़ते हैं उस पर मुसीबतो बला की धुआंधार बारिशें भी होती हैं। यह दुनिया ही के मुनासिबे हाल है कि सुब्ह को किसी की दोस्त बन कर उस का दुश्मन से बदला चुकाए और शाम को यूं हो जाए कि जैसे कोई जान पहचान ही न थी। अगर उस का एक जंबा (पक्ष) शीरीं व ख़ुशगवार (मधुर व रोचक) है तो दूसरा हिस्सा (भाग) तल्ख़ (कडुवा) और बला अंगेज़।

जो शख़्स भी दुनिया की तरो ताज़गी से अपनी कोई तमन्ना पूरी करता है तो वह उस पर मुसीबतों की मशक़्क़तें भी लाद देती है। जिसे अम्र व सलामती के परोबाल पर शाम होती है, तो उसे सुब्ह ख़ौफ़ के परों पर होती है। वह धोके बाज़ है और उस की हर चीज़ धोका है। वह ख़ुदा की फ़ना (नष्ट) हो जाने वाली है और उस में रहने वाला भी फ़ानी (नाशवान) है। उस के किसी ज़ात में सिवा ज़ाते तक़वा के भलाई नहीं है। जो शख़्स कम हिस्सा लेता है वह अपने लिये राहत का सामना बढ़ा लेता है, और जो दुनिया को ज़ियादा समेटता है वह अपने लिये तबाह कुन (नाशकारक) चीज़ों का इज़ाफ़ा (बढ़ौत्तरी) कर लेता है। हालांकि उसे अपने मालो मताअ से भी जल्द अलग होना है।

कितने ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने दुनिया पर भरोसा किया और उस ने उन्हें मुसीबतों में डाल दिया, और कितने ही उस पर इत्मीनान किये बैठे थे जिन्हें उस ने पछाड़ दिया। और कितने ही रोबो तनतना (धाक व शान) वाले थे, जिन्हें ज़लील कर के छोड़ा। उस की बादशाही दस्त बदस्त मुन्तक़िल (हाथों हाथ स्थानान्तरित) होने वाली चीज़, उस का सर चश्मा गंदला, उस का खुशगवार (स्वादिष्ट) पानी खारी, उस की हलावतें (मिठासें) ईलवा के समान (मानिन्द) तल्ख़ (कड़वी) हैं। उस के खाने ज़हरे हलाहल (घातक विष), और उस के अस्बाबो ज़राए के सिलसिले बोदे हैं।

ज़िन्दा रहने वाला मअरिज़े हालकत (मरणावस्था) में है और तन्दुरुस्त (स्वस्थ) को बीमारियों का सामना है। उस की सल्तनत (राज्य) छिन जाने वाला, मालदार बदबख़्तियों (दुर्भाग्यों) का सताया हुआ और हमसाया (पड़ोसी) लुटा लुटाया हुआ है। क्या तुम उन्हीं साबिक़ा लोगों (भूतपूर्व लोगों) के घरों में नहीं बसते जो लम्बी उम्रों (आयु) वाले, पायदार निशानियों (दृढ़ चिन्हों) वाले, बड़ी बड़ी उम्मीदें बांधने वाले, ज़ियादा गिन्ती व शुमार (अधिक गणना) वाले, और बड़े लाव लश्कर वाले थे ? वह दुनिया की किस किस तरह परस्तिश (पूजा) करते रहे और उसे आख़िरत (परलोक) पर कैसी कैसी तर्जीह (प्राथमिकता) देते रहे। फिर बग़ैर किसी ज़ात व राहिला के जो उन्हें रास्ता तय कर के मंज़िल तक पहुंचाता, चल दिये। क्या तुम्हें कभी यह ख़बर पहुंची है कि दुनिया ने उन के बदलने में किसी फ़िद्या (बदल) की पेशकश की हो या उन्हें कोई मदद पहुंचाई हो या अच्छी तरह उन के साथ रही सही हो ? बल्कि उस ने तो उन पर मुसीबतों के पहाड़ तोड़े, आफ़तों से उन्हें आजिज़ व दरमांदा क दिया और लौट कर आने वाली ज़हमतों (कष्टों) से उन्हें झिंझोड़ कर रख दिया और नाक के बल उन्हें खाक पर पछा़ड दिया, और अपने खुरोंसे कुचल डाला, और उन के खिलाफ़ (विरुद्ध) ज़माने के हवादिस का हाथ बटाया।

तुम ने तो देखा है कि जो ज़रा दुनिया की तरफ़ झुका और उसे इखतियार किया और उस से लिपटा, तो उस ने अपने तेवर बदल कर उन से कैसी अजनबीयत इख़तियार कर ली। यहां तक कि वह हमेशा हमेशा के लिये उस से जुदा होकर चल दिये और उस ने उन्हें भूक से सिवा ज़ादे राह न दिया, और एक तंग जगह के सिवा कोई ठहरने के सामान न किया. और सिवा घुप अंधेरे के कोई रौशनी न दी और निदामत (लज्जा) के सिवा कोई नतीजा न दिया। तो क्या तुम इसी दुनिया को तर्जीह (प्रधानता) देते हो, या इसी पर मुत्मइन हो गए हो, या इसी पर मरे जा रहे हो ? तो दुनिया पर बे एतिमाद न रहे और उस में बे ख़ौफ़ो ख़तर (निर्भीक) हो कर रहे उस के लिये यह बहुत बुरा घर है। जान लो, और हक़ीक़त में तुम जानते ही हो कि एक न एक दिन तुम्हें दुनिया को छोड़ना है और यहां से कूच (प्रस्थान) करना है।

उन लोगों से इबरत (शिक्षा) हासिल करो जो कहा करते थे कि हम से ज़ियादा क़ुव्वत व ताक़त में कौन है ? उन्हें लाद कर क़ब्रों तक पहुंचाया गया। मगर इस तरह नहीं कि उन्हें सवार समझा जाए, उन्हें क़ब्रों में उतार दिया गया, मगर वह मेहमान नहीं कहलाते। पत्थरों से उन की क़ब्रें चुन दी गईं, और ख़ाक के कफ़न उन पर डाल दिये गए, और सड़ी गली हड्डियों को उनका हमसाया (पड़ोसी) बना दिया गया। वह ऐसे हमसाए (पड़ोसी) हैं कि जो पुकारने वालों को जवाब नहीं देते और न ज़ियादतियों को रोक सकते हैं, और न रोने धोने वालों की पर्वाह करते हैं। अगर बादल उन पर झूम कर उन पर बरसें तो खुश नहीं होते, और क़हत (अकाल) आए तो उन पर मायूसी (निराशा) नहीं छा जाती। वह एक जगह हैंमगर अलग अलग। वह आपस में (परस्पर) हमसाए (पड़ोसी) हैं मगर दूर दूर। पास पास हैं मगर मेल मुलाक़ात नहीं।

क़रीब क़रीब हैं मगर एक दूसरे के पास नहीं फटकते। वह बुर्दबार बने हुए बेख़बर पड़े हुए हैं। उन के बुग़्ज़ो इनाद (ईर्ष्या व वैमनस्यता) ख़त्म हो गए और कीने मिट गए। न उन से किसी ज़रर का अन्देशा (क्षति का भय) है, न किसी तकलीफ़ के दूर करने की तवक्को (अपेक्षा) है। उन्हों ने ज़मीन के ऊपर का हिस्सा अन्दर के हिस्से से, और कुशादगी और वुसअत (विस्तार एवं फैलाव) तंगी से, और घर बार पर्दे से और रौशनी अंधेरे से बदल ली है। और जिस तरह नंगे पैर और नंगे बदन पैदा हुए थे, वैसे ही ज़मीन में, पैवन्दे ख़ाक़, हो गए। और इस दुनिया से सिर्फ़ अमल (केवल कर्म) ले कर हमेशा की ज़िन्दगी और सदा रहने वाले घर की तरफ़ कूच (प्रस्थान) कर गए। जैसा कि अल्लाह सुब्हनहू ने फ़रमाया है :--

“जिस तरह हमने मख़लूक़ात (प्राणियों) को पहली दफ़्आ पैदा किया था उसी तरह दोबारा पेदा करेंगे। इस वअदे का पूरा करना हमारे ज़िम्मे है और हम उसे ज़रूर पूरा कर के रहेंगे।”

(नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा-109)

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