ईरान की इस्लामिक क्रांति

ईरान की इस्लामिक क्रांति

ईरान की इस्लामिक क्रांति (फ़ारसी: इन्क़लाब-ए-इस्लामी) सन् 1979 में हुई थी जिसके फलस्वरूप ईरान को एक इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया गया था। इस क्रांति को फ्रांस की राज्यक्रांति और बोल्शेविक क्रांति के बाद विश्व की सबसे महान क्रांति कहा जाता है। इसके कारण पहलवी वंश का अंत हो गया था और अयातोल्लाह ख़ोमैनी ईरान के प्रमुख बने थे। ईरान का नया शासन एक धर्मतन्त्र है जहाँ सर्वोच्च नेता धार्मिक इमाम (अयतुल्लाह) होता है पर शासन एक निव्राचित राष्ट्रपति चलाता है। ग़ौरतलब है कि ईरान एक शिया बहुल देश है।

इस क्रांति के प्रमुख कारणों में ईरान के पहलवी शासकों का पश्चिमी देशों के अनुकरण तथा अनुगमन करने की नीति तथा सरकार के असफल आर्थिक प्रबंध थे। इसके तुरत बाद इराक़ के नए शासक सद्दाम हुसैन ने अपने देश में ईरान समर्थित शिया आन्दोलन भड़कने के डर से ईरान पर आक्रमण कर दिया था जो 8 साल तक चला और अनिर्णीत समाप्त हुआ।

रुहुल्ला ख़ुमैनी

ख़ोमैनी का जन्म सन् 1902 में ख़ुमैन (इस्फ़हान और तेहरान के बीच एक छोटा शहर) में हुआ था । वो सैय्यदों के परिवार से थे जो पैग़म्बर के वंशज माने जाते हैं। उनके बाल्यकाल में ही माता-पिता का वियोग हो गया था और उनकी शिक्षा क़ोम में हुई थी। इसके फ़लस्वरूप उनके मन में उलेमा के प्रति आदर-भाव था जो कि शाह के शासनकाल में कम होता जा रहा था। सन् 1963-64 में वे मोसद्दिक़ के साथ शाह की मुख़ालिफ़त (विरोध) करने वाले प्रमुख नेताओं में से एक हो गए।

क्रांति

क्रांति की शुरुआत से पहले ईरान पर शाह रज़ा पहलवी की हुकूमत थी. सत्ता उनके क़रीबी रिश्तेदारों और दोस्तों तक ही सीमित थी. सत्तर के दशक में ईरान में अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई अपनी चरमसीमा पर पहुँच गई. शाह की आर्थिक नीतियों से लोगों का अविश्वास बढ़ने लगा और शाही तौर-तरीक़ों से लोगों की नाराज़गी ने आग में घी का काम किया. विरोध करने वाले दल पैरिस में निर्वासन का जीवन बिता रहे शिया धार्मिक नेता आयतुल्लाह ख़ुमैनी के इर्द-गिर्द जमा होने लगे. सामाजिक और आर्थिक सुधारों का वायदा करते हुए आयतुल्लाह ने पारंपरिक इस्लामी मूल्यों को भी अपनाए जाने की बात कही जो आम ईरानी के दिल की ही आवाज़ थी।

सत्तर के दशक के अंत तक पूरे ईरान में बड़े पैमाने पर हिंसा से भरपूर शाह-विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत हो गई. आम हड़तालों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि देश भर में अस्थिरता की स्थिति पैदा हो गई और ईरान की अर्थव्यवस्था एक तरह से ठप हो गई. जनवरी 1979 में शाह एक 'लंबी छुट्टी' पर ईरान से बाहर चले गए. ईरान से पलायन से तुरंत पहले शाह ने एक काम यह किया कि प्रधानमंत्री शाहपुर बख़्तियार को अपनी ग़ैरमौजूदगी में देश का संचालन करने के लिए रीजेंसी काउंसिल का अध्यक्ष बना दिया. बख़्तियार ने लगातार बढ़ रहे विरोध का मुक़ाबला करने की ठानी। उन्होंने आयतुल्लाह ख़ुमैनी के एक नई सरकार का गठन करने के इरादे पर रोक लगा दी, वह फिर नहीं लौटे। ईरान भर में ख़ुमैनी के समर्थकों ने शाह की प्रतिमाओं को नेस्तनाबूद कर दिया।

पहली फ़रवरी, 1979 को आयतुल्लाह ख़ुमैनी नाटकीय रूप से निर्वासन से वापस लौट आए। तब तक राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता बढ़ चुकी थी। ख़ुमैनी-समर्थक प्रदर्शनकारियों, साम्राज्यवाद के हिमायतियों और पुलिस के बीच गलियों और सड़कों पर मुठभेड़ें एक आम बात हो गई. ग्यारह फ़रवरी को तेहरान की सड़कों पर टैंक नज़र आने लगे और सैन्य तख़्ता पलट की अफ़वाहें तेज़ हो गईं। लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ा यह साफ़ हो गया कि सेना का सत्ता पर क़ब्ज़ा करने का कोई इरादा नहीं है. क्रांतिकारियों ने तेहरान के मुख्य रेडियो स्टेशन पर धावा बोल दिया और ऐलान किया, "यह ईरानी जनता की क्रांति की आवाज़ है". प्रधानमंत्री बख़्तियार ने इस्तीफ़ा दिया।

दो महीने के बाद आयतुल्लाह ख़ुमैनी ने राष्ट्रीय रायशुमारी में भारी कामयाबी हासिल की. उन्होंने एक इस्लामी गणतंत्र का ऐलान कर दिया और उन्हें ज़िंदगी भर के लिए ईरान का राजनीतिक और धार्मिक नेता नियुक्त कर दिया गया

1 फरवरी 1979 को खुमैनी एयर फ्रांस के यात्री विमान से तेहरान पहुँचे जहाँ उनका ज़ोरदार स्वागत किया गया।

(विकीपीडिया से लिया गया)

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