दो मिनट में अहकाम सीख़ें 2

वह मौक़े जब नमाज़ समाप्त करने के बाद भी नमाज़ की अवस्था को समाप्त नहीं करना चाहिए

नमाज़ का सलाम पढ़ते ही नमाज़ समाप्त हो जाती है और इसके लिए गर्द को दाएं या बाएं मोड़ना आवश्यक नहीं है, लेकिन कुछ स्थान ऐसे है जहां पर नमाज़ समाप्त होने के बाद भी इन्सान को क़िबले की तरफ़ से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।

1. जिस पर सजदा ए सहव वाजिब हो, ऐसे व्यक्ति को नमाज़ के तुरन्त बाद सजदा ए सहव करना चाहिए।

2. जिस पर वाजिब है कि वह भूले हुए तशह्हुद की क़ज़ा करे, ऐसे व्यक्ति को सलाम पढ़ने के तुरन्त बाद तशह्हुद की क़ज़ा करनी चाहिए और उसके बाद दो सजदा ए सहव करने चाहिएं।

3. जिस पर नमाज़े एहतियात वाजिब हो, जैसे अगर कोई तीन और चार रकअत के बारे में शक करे तो वह उसको चौथी रकअत माने और सलाम पढ़ने के बाद तुरन्त एक रकअत नमाज़े एहतियात खड़े हो कर या दो रकअत बैठ कर पढ़े।

क़ज़ा नमाजो़ं के अहकाम

कज़ा नमाज़ के बारे में पांच चीज़ें

1. हर ना पढ़ी गई या ग़लत पढ़ी गई नमाज़ जिसका समय निकल चुका हो उसकी क़ज़ा करनी चाहिए।

2. हर क़ज़ा नमाज़ को जमाअत के साथ पढ़ा जा सकता है और यह भी ज़रूरी नहीं है कि मामूम की नमाज़ इमाम की तरह ही हो यानी इन्सान अपनी सुबह की क़ज़ा नमाज़ को इमाम जमाअत की ज़ोहर की नमाज़ के पीछे जमाअत से पढ़ सकता है।

3. क़ज़ा नमाज़ को किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, जैसै मग़रिब और इशा की क़ज़ा नमाज़ को दिन में पढ़ा जा सकता है।

4. क़ज़ा नमाज़ें अदा नमाज़ों की ही भाति हैं यानि जैसे कि अगर चार रकअती नमाज़ क़ज़ा हुई हो तो चार रकअती नमाज़ पढ़नी होगी और अगर वह जहरी (बुलंद आवाज़ में पढ़ना) थी तो जहरी पढ़ना होगी और अगर इख़फ़ाती (धीमी आवाज़ में पढ़ना) थी तो इख़फ़ाती पढ़नी होगी।

5. वह यात्रा जिसमें इन्सान की नमाज़ क़स्र है उसमें चार रकअती क़ज़ा नमाज़ें पूरी यानी चार रकअत ही पढ़ी जाएंगी और वह क़स्र नहीं होगी।

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