दो मिनट में अहकाम सीख़ें
दो मिनट में अहकाम सीख़ें
बाप की क़ज़ा नमाज़ें बड़े बेटे पर
1. जब तक इन्सान जीवित है, अगरचे नमाज़ और रोज़ा ना कर सकता हो लेकिन फिर भी दूसरा व्यक्ति उसके स्थान पर नमाज़ या रोज़ा नहीं रख सकता है।
2. बड़े बेटे पर वाजिब है कि, बाप की मृत्यु के बाद उसकी नमाज़ों और रोज़ों की क़ज़ा करे।
3. वह नमाज़ और रोज़े जो स्वंय मरने वाले पर वाजिब थे, वहीं उसके बड़े बेटे पर वाजिब होंगे, लेकिन वह नमाज़ और रोज़े जो इजारे के कारण बाप पर वाजिब हुए हों उनकी क़ज़ा बड़े बेटे पर वाजिब नहीं है।
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वह स्थान जहां पर सजदा सहव वाजिब है
1. नमाज़ के बीच भूले से बोल दे।
2. एक सजदा भूल जाए और दूसरी रकअत के में या उसके बाद याद आए।
3. चार रक्आती नमाज़ों में दूसरे सजदे के बाद शक करे कि चार रक्अत पढ़ी हैं या पाँच, या क़याम (खड़े होने) की स्तिथि में शक हो कि पाँच रकअत पढ़ी हैं या छः।
4. बे मौक़ा सलाम पढ़ दे, जैसे चार रक्अती नमाज़ की तीसरी रक्अत में भूले से सलाम पढ़ दे।
5. तशह्हुद भूल जाए।
नोटः कुछ फक़ीहों का कहना है कि नमाज़ में हर प्रकार की कमी और अधिकता पर सजदा सहव आवश्यक है।
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वह स्थान जहां इन्सान नमाज़ के बीच में नियत बदल सकत है।
1. कुछ फक़ीहों के फ़तवे के अनुसार आवश्यकता के समय इन्सान जमात से फ़ुरादा की नियत कर सकता है।
2. अदा नमाज़ से क़ज़ा की तरफ़ नियत बदल सकता है।
3. अस्र की नमाज़ से ज़ोहर की नमाज़ की तरफ़ नियत बदल सकता है।
4. इशा की नमाज़ से मग़रिब की तरफ़ नियत पलटा सकता है।
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इन स्थानों पर नियत का बदलना सही नहीं है।
1. ज़ोहर की नमाज़ से नियत को अस्र की नमाज़ की तरफ़ बदलना।
2. मग़रिब से इशा की नमाज़ की तरफ़ नियत पलटाना।
3. कज़ा से अदा नमाज़ की तरफ़ नियत बदलना।
4. फ़ोरादा (एकेले पढ़ी जाने वाली नमाज़) से जमाअत की तरफ़ नियत बदलना।
5. वाजिब नमाज़ से मुस्तहेब की तरफ़ नियत बदलना (मगर यह कि यह कार्य जमाअत की नमाज़ को प्राप्त करने के लिए हो)
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अज़ान और अक़ामत
1. नमाज़ी के लिए मुस्तहेब है कि रोज़ाना की नमाज़ों से पहले, अज़ान और अक़ामत कहे।
2. अज़ान और अक़ामत नमाज़ के समय कही जाए, और अगर समय से पहले कही जाए तो वह सही नहीं है।
3. अक़ामत अज़ान के बाद कहीं जाए, और अगर अज़ान से पहले कह दी जाए तो वह सही नहीं है।
4. अज़ान और अक़ामत के वाक्यों के बीच बहुत अधिक फ़ासेला ना हो, और अगर वाक्यों के बीच अधिक फ़ासेला कर दे तो दोबारा अरम्भ से अज़ान या अक़ामत कहे।
5. अगर नमाज़े जमाअत के लिए अज़ान और अक़ामत कही गई हो, तो जो व्यक्ति उस जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ रहा है उसको अपनी नमाज़ के लिए अज़ान और अक़ामत नहीं कहना चाहिए।
6. मुस्तहेब है कि अज़ान देने वाला व्यक्ति (1) आदिल (2) समय की जानकारी रखने वाला (3) और उसकी आवाज़ ऊँची हो।
7. जिस दिन बच्चे का जन्म हो तब मुस्तहेब है कि उसके दाहिने कान में अज़ान और बाएं कान में अक़ामत कही जाए।
8. रोज़ाना की नमाज़ों के अतिरिक्त किसी भी वाजिब या मुस्तहेब नमाज़ के लिए अज़ान या अक़ामत नहीं है।
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तकबीरतुल एहराम
1. तकबीरतुल एहराम रुक्न है और अगर इसमें कमी या अधिकता कर दी जाए तो नमाज़ सही नहीं है, लेकिन नमाज़ की दूसरी तकबीरें मुस्तहेब हैं।
2. तकबीरतुल एहराम, शरीर से स्थिर होने के बाद कही जाए, लेकिन अगर नमाज़ की दूसरी तकबीरें केवल ज़िक्र की नियत से हिलते हुए भी कहीं जाएं तो भी सही है।
3. तकबीरतुल एहराम खड़े होने की स्थिति में कही जाए, (केवल विशेष परिस्थितियों में बैठ या लेट कर कही जा सकती है) लेकिन रोज़ाना की नमाज़ों की दूसरी तकबीरों के लिए यह शर्त नहीं है।
मसअलाः वाजिब है कि तकबीरुल एहराम कहने से कुछ पहले और कुछ बाद में खड़ा रहे ताकि विश्वास हो जाए कि उसने तकबीर को खड़े रहने की हालत में कहा है।
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नमाज़ की ताक़ीबें (नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली दुआए)
1. दुआ पढ़ना, क़ुरआन पढ़ना, ईश्वर के बारे में चिंतन करना आदि।
2. बेहतर यह है कि नमाज़ की ताक़ीबें बिना किसी फ़ासले के हों, और कोई दूसरा कार्य ना करे और वह भी क़िबले की तरफ़ मुह और तहारत के साथ किया जाए।
3. नमाज़ के बाद की पहली ताक़ीब तीन बार अल्लाहो अकबर कहना है और फिर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की तस्बीह, और पैग़म्बर और अहलेबैत पर सलवात और वह दुआएं जो किताबों में बयान की गई हैं।
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