सूरा बक़रा की सूक्षम्ताएं
सूरा बक़रा की सूक्षम्ताएं
ईश्वर ने जब इस संसार में अपने दूतों और नबियों को इन्सानों के मार्गदर्शन के लिए भेजा तो उनको आपनी तरफ़ से होने को प्रमाणित करने के लिए मोजिज़े या चमत्कार दिए।
और उसने नबियों को जो चमत्कार दिए वह दो प्रकार के थे
एक तो वह चमत्कार जो स्वंय उसी नबी से सम्बंधित थे जैसे हज़रत मूसा (अ) के असे का मोजिज़ा दिया, या हज़रत ईसा को मृत्कों को जीवित करने का चमत्कार दिया या..... यानी यह वह चमत्कार थे कि जब तब वह नबी जीतिव था यह मोजिज़े भी जीवित थे लेकिन जब वह नबी ईश्वर के पास चला गया तो यह चमत्कार भी समाप्त हो गए, अब उनके बारे में हम केवल पुस्तकों में पढ़ते हैं।
लेकिन एक दूसरे प्रकार का मोजिज़ा है जिसे ईश्वर ने अपने नबियों को दिया है और वह है अध्यात्मिक और ज्ञानिक मोजिज़ा, यह वह चमत्कार है जो नबी के जाने के बाद भी जीवित रहता है और जो चाहे वह उससे लाभ उठा सकता है उसके चमत्कार को देख सकता है उससे सही मार्ग पर आ सकता है और वह मोजिज़ा है क़ुरआन जिसके ईश्वर ने अपने नबी को दिया, अगरचे तौरैत और इन्जील भी इसी चमत्कार में से हैं लेकिन चूंकि उसके मानने वालों ने इनमें फेर बदल कर दिया इसलिए अब वह ईश्वरीय चमत्कार नहीं रह गई हैं।
हमारे हाथों में आज जो क़ुरआन है उसमें अलहम्द के बाद सबसे पहला जो सूरा है वह है सूरा बक़रा, यानी यही वह पहला सूरा है जिसके माध्यम से ईश्वर इन्सानों से बात कर रहा है, इस संसार के सारे लोगों से, क्या आपने कभी सोंचा है कि इस संसार में ईश्वर की पैदा की हुआ ना जाने कितनी चीज़ें हैं उसकी पूरी स्रष्टि हैं, उसने इन्सानों को पैदा किया है, फ़रिश्तों तो जीवन दिया है, जानवर उसके बनाए हैं, पूरा संसार उसका हैं और इस संसार की सारी चीज़ों में से सबसे पहले जिस चीज़ का नाम क़ुरआन में आता है वह है गाय का नाम।
क्या आपने कभी सोंचा है कि ख़ुदा इस सूरे में क्यों गाय के बारे में बात कर रहा है? गाय का इन्सानों से क्या सम्बंध है? ऐसा इस सूरे में क्या है जो आज इन्सानों विशेषकर मुसलमानों के लिए मार्गदर्शन करने वाला है?
क्योंकि यह क़ुरआन मार्गदर्शन की पुस्तक है, तो आख़िर इस सूरे में मार्गदर्शन के ऐसे कौन से नुक्ते हैं, और यह गाय की कहानी लोगों के मार्गदर्शन में क्या प्रभाव रखती है?
सूक्षम्ताएं
1. पवित्र क़ुरआन का अधिकतर भाग कहानियों पर आधारित हैं, लेकिन यह स्वष्ट रहे कि इसकी कहानियां तौरैत और इन्जील की भाति केवल कहानियां नहीं हैं, बल्कि यह कहानियां इन्सान के मार्गदर्शन के लिए बयान की गई हैं और यही कारण है कि कुछ कहानियां जो क़ुरआन में बयान की गई हैं वह पूर्ण नहीं हैं बल्कि केवल उसी भाग को बयान किया गया है जो इन्सानी मार्गदर्शन में रोल अदा करती है।
और यह कहानियां जो क़ुरआन में बयान की गई है उनमें से अधिकतर कहानियां बनी इस्राईल से सम्बंधित हैं, यानी यहूदियों से सम्बंधित हैं, एक ऐसा सम्प्रदाय जो संख्या एक लिहाज़ से सबसे कम है, और दूसरे धर्म जिनके मानने वाले संख्या के लिहाज़ से इनसे कहीं अधिक हैं उनके बारे में कहानियां नहीं है जैसे हिन्दुओं के बारे में कोई कहानी बयान नहीं की गई है जब्कि वह भी बहुत पुराना धर्म है।
तो आख़िर इसका कारण क्या है, जो अधिकतर कहानियां यहूदियों के बारे में हैं?
शायद इसका कारण मुसमलानों को होशियार करना हो और उनको यह बताना हो कि तुम भी इन बनी इस्राईल की भाति ना हो जाना।
बनी इस्राईल की विशेषता
1. बनी इस्राईल वह लोग हैं जो हज़रत मूसा को अपना नबी मानते हैं, लेकिन उन्होंने मूसा के ज़माने में जब वह कुछ समय के लिए तूर के पहाड़ पर चले गए तो उन्होंने कहा कि मूसा मर गए हैं। और अब कोई नहीं आने वाला है।
और यह मुसलमानों को होशियार कर रहा है कि हे मुसलमानों अगर तुम्हारा नबी यह कहे कि मेरे बाद मेरे बारह जानशीन होंगे और उनमें से कोई एक बहुत दिनों तक तुम्हारे सामने ना हो वह ग़ैबत में हो तो तुम भी बनी इस्राईल की भाति उसका इन्कार ना कर देना बल्कि याद रखना कि अगर नबी ने कहा है तो सच कहा है और एक समय आएगा जब वह प्रकट होगा।
2. बनी इस्राईल का दीन बदल गया मूसा के जानशीन हारून को किनारे कर गिया गया और सामरी जो कि मूसा का शत्रु था उसको मूसा का जानशीन बना दिया गया, और जब एक नबी का शत्रु उसका जानशीन बन गया तो दीन बदल गया धर्म में परिवर्तन हो गया वह ईश्वर जो अब तक (लन तरानी) दिखाई ना देने वाला था अब उसको शरीर दे दिया गया।
तो अगर मूसा का जानशीन बदल जाए तो ख़ुदा बदल जाया करता है तो हे मुसलमानों होशियार रहों और देखों कि पैग़म्बर का जानशीन कौन है अगर जानशीन सही ना होगा तो धर्म परिवर्तित हो जाएगा।
3. बनी इस्राईल की एक विशेषता यह थी कि उनको जितना भी चमत्कार दिखाया गया फिर भी उन्होंने वास्तविक्ता को स्वीकार नहीं किया, और इसका कारण यह था कि मूसा ने उनको सूचना दी थी कि बनी इस्माईल में सरदारी जाएगी और तुमको उनका अनुसरण करना होगा इसलिए उन्होंने नस्लवाद दिखाते हुए जो वास्तविक्ता थी उसको भी स्वीकार करने से इन्कार कर दिया
4. उन्होंने अपने बाद आने वाले नबियों के बारे में मूसा की बशारत को स्वीकार नहीं किया।
5. ईश्वरीय वलियों को क़त्ल किया।
6. हज़रत ईसा (अ) को स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनको पता था कि अगर ईसा जो कि बनी इस्राईल ही के है स्वीकार किया तो बाद में बनी इस्माईल की सरदारी और नबूवत को भी स्वीकार करना पड़ेगा।
7. उन्होंने पैग़म्बरों के बारे में हज़रत मूसा (अ) की बशारतों को स्वीकार नहीं किया, तौरैत में आयत है जिसमें बशारत दी गई है कि एक गुट आएगा और एक नबी होगा जिसके बारह जानशीन होंगे और यह केवल मुसलमानों और शियों पर सही बैठता है क्योंकि मुसलमानों में केवल शिया ही वह हैं जिन्होंने बारह इमामों को स्वीकार किया है
अगर ग़ौर से देखा जाए तो सूरा बक़रा में जो कहानी बयान की गई है वह पूरी तरह से एक मुर्दे के जीवित होने के बारे में है और यह बनी इस्राईले के लिए हुज्जत को तमाम करता है, और इसमें मुसलमानों के लिए भी सबक़ है कि जो ईश्वर बनी इस्राईल की गाय में इतनी शक्ति डाल सकता है कि अगर उसके गोश्त को किसी मुर्दे पर मारा जाए तो वह जीवित हो जाए, तो अगर यही ईश्वर किसी नबी या वली को यह शक्ति दे दे तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
लेकिन इस हुज्जत के तमाम होने के बावजूद भी बनी इस्राईल ने स्वीकार नहीं किया ثُمَّ قَسَتْ قُلُوبُكُم"" लेकिन उनके दिल पत्थर हो गए उनको वास्तविक्त दिखाई नहीं दे रही थी।
बनी इस्राईल का यह वाक़ेआ शियों के एक अक़ीदे की बहुत बड़ी दलील और प्रमाणिक्ता है, शिया लोग रजअत यानी मुर्दों के इसी संसार में दोबारा जीवित होने का विश्वार रखते हैं, और इस कहानी में भी एक मुर्दा जीवित हुआ है जिसने बताया है कि यह विश्वास सही है, स्वंय हज़रत ईसा का सबसे बड़ा चमत्कार मुर्दों को जीवित करना था, जो स्वंय एक दलील है रजअत के सही होने की, शिया यह मानते हैं कि जब इमामे जमाना (अ) का ज़ोहूर होगा तो कुछ लोगों को इसी संसार में दोबारा जीवित किया जाएगा ताकि वह उनकी सहायता कर सकें, जैसा कि रिवायत में है कि जो व्यक्ति चालीस दिन तक सुबह के समय दुआ ए अहद पढ़े तो अगर वह ज़ोहूर से पहले मर जाए तो ईश्वर उसको दोबारा जीवित करेगा ताकि वह अपने इमाम की ज़ियारत और उनकी सहायता कर सके।
अब जो लोग इस अक़ीदे को नहीं मानते हैं उसके विरुद्ध बोलते हैं वह ना केवल इतिहासिक वास्तविक्ताओं को झुठलाते हैं बल्कि क़ुरआन का भी इन्कार करते हैं।
हम आपके सामने संक्षेप में केवल सूरा बक़रा से उन आयतों को बयान कर रहे हैं जो शियों को अक़ीदे रजअत को प्रमाणित करती हैं।
1. وَ ِذْ قُلْتُمْ یا مُوسی لَنْ نُؤْمِنَ لَکَ حَتَّی نَرَی اللَّه جَهرَةً فَأَخَذَتْکُمُ الصَّاعِقَةُ وَ أَنْتُمْ تَنْظُرُونَ(55) ثُمَّ بَعَثْناکُمْ مِنْ بَعْدِ مَوْتِکُمْ لَعَلَّکُمْ تَشْکُرُونَ (56)
और उस समय को याद करो जब तुमने मूसा से कहा कि हम उस समय तक ईमान नहीं लाएंगे जब तक ईश्वर के देख ना लें जिसके बाद बिजली ने तुमको मार दिया और तुम देखते ही रह गए (55) और फिर हमने मौत के बाद तुम्हें जीवित कर दिया कि शायद अब शुक्र करो।
2. فَقُلْنا اضْرِبُوه بِبَعْضِها کَذلِکَ یُحْیِ اللَّه الْمَوْتی وَ یُریکُمْ آیاتِه لَعَلَّکُمْ تَعْقِلُونَ (73)
तो हमने कहा कि उस पर गाय का टुकड़ा मारो ईश्वर इसी प्रकार मुर्दों को जीवित कर ता है और तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है कि शायद तुम्हें अक़्ल आ जाए।
3. أَ لَمْ تَرَ ِلَی الَّذینَ خَرَجُوا مِنْ دِیارِهمْ وَ همْ أُلُوف حَذَرَ الْمَوْتِ فَقالَ لَهمُ اللَّه مُوتُوا ثُمَّ أَحْیاهمْ ِنَّ اللَّه لَذُو فَضْلٍ عَلَی النَّاسِ وَ لکِنَّ أَکْثَرَ النَّاسِ لا یَشْکُرُونَ (243)
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो हज़ारों की संख्या में अपने घरों से निकल पड़े मौत के ख़ौफ़ से और ख़ुदा ने मौत का आदेश दे दिया और फिर जीवित कर दिया कि ईश्वर लोगों पर बहुत कृपा करने वाला है लेकिन अधिकतर लोग शुक्र अदा नहीं करते हैं।
4. أَوْ کَالَّذی مَرَّ عَلی قَرْیَةٍ وَ هیَ خاوِیَة عَلی عُرُوشِها قالَ أَنَّی یُحْیی هذِه اللَّه بَعْدَ مَوْتِها فَأَماتَه اللَّه مِائَةَ عامٍ ثُمَّ بَعَثَه قالَ کَمْ لَبِثْتَ قالَ لَبِثْتُ یَوْماً أَوْ بَعْضَ یَوْمٍ قالَ بَلْ لَبِثْتَ مِائَةَ عامٍ فَانْظُرْ ِلی طَعامِکَ وَ شَرابِکَ لَمْ یَتَسَنَّه وَ انْظُرْ ِلی حِمارِکَ وَ لِنَجْعَلَکَ آیَةً لِلنَّاسِ وَ انْظُرْ ِلَی الْعِظامِ کَیْفَ نُنْشِزُها ثُمَّ نَکْسُوها لَحْماً فَلَمَّا تَبَیَّنَ لَه قالَ أَعْلَمُ أَنَّ اللَّه عَلی کُلِّ شَیْء ٍ قَدیر (259)
या उस बंदे की मिसाल जिसका गुज़र एक आबादी से हुआ जिसके सारे अर्श व फ़र्श गिर चुके थे तो उस बंदे ने कहा हे ईश्वर इन सबको मौत के बाद कैसे जीवित करेगा तो ईश्वर ने उस बंदे को सौ साल के लिए मौत दे दी और फिर जीवित किया और पूछा कि कितनी देर पड़े रहे तो उसने कहा एक दिन या कुछ कम। कहा नहीं, सौ साल ज़रा अपने खाने पानी की तरफ़ देखों कि ख़राब तक नहीं हुआ और अपने गधे को देखो (कि सड़ गल गया है) और हम इसी प्रकार तुम्हें लोगों के लिए निशानी बनाना चाहते हैं और फिन उन हड्डियों को देखो कि हम किस प्रकार जोड़कर उनपर गोश्त चढ़ाते हैं। फिर जब उनपर यह बात स्पष्ट हो गई तो कहा मुझे मालूम है कि ईश्वर हर चीज़ पर शक्ति रखता है।
5. وَ ِذْ قالَ ِبْراهیمُ رَبِّ أَرِنی کَیْفَ تُحْیِ الْمَوْتی قالَ أَ وَ لَمْ تُؤْمِنْ قالَ بَلی وَ لکِنْ لِیَطْمَئِنَّ قَلْبی قالَ فَخُذْ أَرْبَعَةً مِنَ الطَّیْرِ فَصُرْهنَّ ِلَیْکَ ثُمَّ اجْعَلْ عَلی کُلِّ جَبَلٍ مِنْهنَّ جُزْء اً ثُمَّ ادْعُهنَّ یَأْتینَکَ سَعْیاً وَ اعْلَمْ أَنَّ اللَّه عَزیز حَکیم (260)
और जब इब्राहीम ने आवाज़ दी कि हे ईश्वर मुझे यह दिखा दे कि तू मुर्दों को कैसे जीवित करेगा, कहा क्या तुमको ईमान नहीं है, कहा है, लेकिन दिली सुकून चाहता हूं, कहा चार पंक्षियों को पकड़ लो और उन्हें अपने से मानूस बनाओ फिर टुकड़े टुकड़े कर के हर पहाड़ पर एक भाग रख दो और फिर पुकारों वह दौड़ते हुए आ जाएंगे और याद रखों की ईश्वर सम्मान भी रखता है और हिकमत भी।
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