इमाम अली (अ) की दुआ शेरों में (मुनाजाते मनज़ूमा)

इमाम अली (अ) की दुआ शेरों में (मुनाजाते मनज़ूमा)

بِسْمِ اﷲِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ

आरम्भ करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और कृपालु है।

لَک الْحَمْدُیَاذَاالْجُودِوَالْمَجْدِوَالْعُلَیٰ

تَبارَکْتَ تُعْطِی مَنْ تَشَائُ وَتَمْنَعُ

तेरे लिए प्रशंसा है हे उदारता, श्रेष्ठता और बुलंदी वाले

तू बरकत वाला है (जिसे चाहे) देता है जिसे चाहे नहीं देता है

अगर किसी के पास संसारिक सुख है जो वह भी उसकी ख़ुदा का दिया हुआ है और अगर कोई इस संसार में मुश्किलों में घिरा हुआ है तो वह भी खुदा की कोई मसलेहत है, अगर मेरे पास घर नहीं है गाड़ी नहीं है तो यह इसलिए नहीं है कि ख़ुदा ने मुझे नहीं दिया है अगर किसी दूसरे के पास यह सब कुछ है तो वह ख़ुदा ने चाहा है तो उसे दिया है इसमें किसी प्रकार का हसद और जलन वाली बात नही है

إلھِی وَخَلاَّقِی وَحِرْزِی وَمَوْئِلِی

إلَیْکَ لَدَی الْاِعْسَارِ وَالْیُسْرِ ٲَفْزَعُ

हे मेरे ईश्वर और मुझे पैदा करने वाले (यहां पर दुआ में मुबालेग़ा के सेग़े का प्रयोग हुआ है यानी जो बहुत अधिक पैदा करने वाला है और यह शब्द बताता है कि ईश्वर ने हमको पैदा करने के बाद छोड़ नहीं दिया है बल्कि हम हर हर क्षण और लमहे में पैदा हो रहे हैं अगर वह एक समय के लिए भी अपनी निगाह को हमसे फिरा ले तो हमारा अस्तित्व बाक़ी ना रह जाएगा) मेरी पनाह और मेरी रक्षा करने वाले

मैं ग़रीबी और संपन्नता में तेरे ही दरबार में फ़रियाद करता हूँ (यानी मेरा हर कार्य तेरे लिए है, ऐसा ना हो कि जब हम पर कठिनाई पड़े, जब हम समस्याओं में गिरफ़्तार हो जाए तो ख़ुदा को पुकारे और जैसे ही वह हमको मुश्किलों और कठिनाइयों से निकाल दे हर फ़िर पलट जाए। नहीं। बल्कि हम हर समय केवल उसी ख़ुदा के पुकारें और बस)

إلھِی لَئِنْ جَلَّتْ وَجَمَّتْ خَطِیئَتِی

فَعَفْوُکَ عَنْ ذَنْبِی ٲَجَلُّ وَٲَوْسَعُ

हे मेरे ईश्वर अगर मेरी ग़ल्तियां बड़ी है और बहुत हैं

तो तेरी क्षमा मेरे पापों से भी बड़ी और अधिक है।

إلھِی لَئِنْ ٲَعْطَیْتُ نَفْسِیَ سُؤْلَہا

فَھَا ٲَنَا فِی رَوْضِ النَّدَامَۃِ ٲَرْتَعُ

हे मेरे ईश्वर अगरचे मैंने अपने नफ़्स की बुरी इच्छाओं को पूरा किया है

अब मैं लज्जा के रेगिस्तान में भटक रहा हूँ

إلھِی تَریٰ حَالِی وَفَقْرِی وَفاقَتِی

وَٲَنْتَ مُنَاجاتِی الْخَفِیَّۃَ تَسْمَعُ

हे मेरे ईश्वर तू मेरी फ़क़ीरी और फ़ाक़े की हालत को जानता है

और तू ही मेरे छिपी हुई गुज़ारिशों और हालतों को सुनता है।

إلھِی فَلا تَقْطَعْ رَجَائِی وَلا تُزِغْ

فُؤُادِی فَلِی فِی سَیْبِ جُودِکَ مَطْمَعُ

हे मेरे ईश्वर, मेरे आशा को ना तोड़ और ना ही टेढ़ा कर

मेरे दिल को कि मैं तेरी उदारता और सख़ावत की लालच रखता हूँ

إلھِی لَئِنْ خَیَّبْتَنِی ٲَوْ طَرَدْتَنِی

فَمَنْ ذَاالَّذِی ٲَرْجُو وَمَنْ ذَا ٲُشَفِّعُ؟

हे मेरे ईश्वर अगर तूने मुझे निराश कर दिया और अपने दरबार से दूर कर दिया

फिर कौन है जिससे मैं आशा रखूं और किसे अपना हिमायती बनाऊं

إلھِی ٲَجِرْنِی مِنْ عَذَابِکَ إنَّنِی

ٲَسِیرٌ ذَلِیلٌ خَائِفٌ لَکَ ٲَخْضَعُ

हे मेरे ईश्वर मुझे अपने अज़ाब से नजात दे कि निःसंदेह

मैं क़ैदी, (हे ईश्वर मैं तेरा बंदा था लेकिन तेरे शत्रु शैतान ने मुझे अपना क़ैदी बना लिया है, क्या तेरी इज़्ज़त इस बात की अनुमति देती है कि मैं तेरे शत्रु का क़ैदी रहूँ?) ज़लील, भयभीत और तेरे सामने सर झुकाए हूं

إلھِی فَآنِسْنِی بِتَلْقِینِ حُجَّتِی

إذَا کَانَ لِی فِی الْقَبْرِمَثْوَیً وَمَضْجَعُ

हे मेरे ईश्वर मुझे दलील और हुज्जत तलक़ीन कर मेरा साथी बन

उस समय जब क़ब्र मेंरा स्थान और ठिकाना हो

إلھِی لَئِنْ عَذَّبْتَنِی ٲَلْفَ حجَّۃٍ

فَحَبْلُ رَجَائِی مِنْکَ لاَ یَتَقَطَّعُ

हे मेरे ईश्वर अगर तू मुझ पर हज़ार साल तक अज़ाब करे

तो भी तुझ से मेरी आशा की रस्सी नहीं टूटेगी।

إلھِی ٲَذِقْنِی طَعْمَ عَفْوِکَ یَوْمَ لاَ

بَنُونَ وَلاَ مالٌ ھُنَالِکَ یَنْفَعُ

हे मेरे ईश्वर मुझे अपनी क्षमा का स्वाद चखा उस दिन कि

जिसमें माल और औलाद कुछ लाभ नहीं देंगी।

إلھِی لَئِنْ لَمْ تَرْعَنِی کُنْتُ ضَائِعاً

وَ إنْ کُنْتَ تَرْعَانِی فَلَسْتُ ٲُضَیَّعُ

हे मेरे ईश्वर अगर तूने मेरा हाथ ना थामा तो मैं तबाह हो जाउंगा

और अगर तू मेरा हाथ थाम ले तो मैं तबाह नहीं हो सकता

إلھِی إذَا لَمْ تَعْفُ عَنْ غَیْرِ مُحْسِنٍ

فَمَنْ لِمُسِیئٍ بِالْھَوَیٰ یَتَمَتَّعُ

हे मेरे ईश्वर जब तू पापी को क्षमा नहीं करेगा

तो फिर कौन चाहत से पाप करने वाले का भला करेगा

إلھِی لَئِنْ فَرَّطْتُ فِی طَلَبِ التُّقَیٰ

فَھَا ٲَنَا إثْرَ الْعَفْوِ ٲَقْفُو وَٲَتْبَعُ

हे मेरे ईश्वर अगर मैंने बुराई से बचने में कोताही की है

तो अब मैं साफ़ दिल से क्षमा के पीछे चल रहा हूँ

إلھِی لَئِنْ ٲَخْطَٲْتُ جَھْلاً فَطَالَمَا

رَجَوْتُکَ حَتَّی قِیلَ ما ھُوَ یَجْزَعُ

हे मेरे ईश्वर अगर मैंने जानकारी ना होने के कारण ग़ल्ती की है तो अब तुझ से

ऐसी आशा रखता हूँ कि कहा जाए इसे कोई बेचैनी नहीं है

إلھِی ذُنُوبِی بَذَّتِ الطَّوْدَ وَاعْتَلَتْ

وَصَفْحُکَ عَنْ ذَنْبِی ٲَجَلُّ وَٲَرْفَعُ

हे मेरे ईश्वर मेरे पाप पहाड़ से बड़े और ऊँचे हैं

और तेरी क्षमा मेरे पापों की तुलना में बड़ी और बुलंद है।

إلھِی یُنَجِّی ذِکْرُ طَوْلِکَ لَوْعَتِی

وَذِکْرُ الْخَطَایَا الْعَیْنَ مِنِّی یُدَمِّعُ

हे मेरे ईश्वर तेरी कृपा और करम की याद मेरे दिल को ठंडक पहुंचाती है

और मेरे पापों की याद मेरी आँखों में आँसू ले आती है।

إلھِی ٲَقِلْنِی عَثْرَتِی وَامْحُ حَوْبَتِي

فَ إنِّی مُقِرٌّ خَائِفٌ مُتَضَرِّعُ

हे मेरे ईश्वर मेरी ग़ल्तियों को क्षमा कर और मेरे पाप मिटा दे

क्योंकि मैं पाप स्वीकार करता हूं और उनपर रोता हूँ

إلھِی ٲَنِلْنِی مِنْکَ رَوْحاً وَرَاحَۃً

فَلَسْتُ سِویٰ ٲَبْوَابِ فَضْلِکَ ٲَقْرَعُ

हे मेरे ईश्वर मुझे अपनी तरफ़ से प्रसन्नता और सुकून दे दे

कि मैं तेरी कृपा के द्वार के अतिरिक्त कोई द्वार नहीं खटखटाता

إلھِی لَئِنْ ٲَقْصَیْتَنِی ٲَوْ ٲَھَنْتَنِی

فَمَا حِیلَتِی یَا رَبِّ ٲَمْ کَیْفَ ٲَصْنَعُ؟

हे मेरे ईश्वर अगर तूने मुझे दूर किया या मुझे लज्जित कर दिया

तो हे मेरे ख़ुदा मेरे पास क्या चारा है और मैं क्या करूंगा?

إلھِی حَلِیفُ الْحُبِّ فِی اللَّیْلِ سَاھِرُ

یُناجِی وَیَدْعُو وَالْمُغَفَّلُ یَھْجَعُ

हे मेरे ईश्वर तुझ से मोहब्बत करने वाला रात को जागता है

तुझे याद करता और प्रार्थना करता है, और तुझे भूलने वाला सो रहा है।

إلھِی وَھَذَا الْخَلْقُ مَا بَیْنَ نَائِمٍ

وَمُنْتَبِہٍ فِی لَیْلِہِ یَتَضَرَّعُ

हे मेरे ईश्वर यह मख़लूक़ है, जिनमें कुछ सोए हुए

और कुछ जाग रहे हैं जो रात में रो और गिड़गिड़ा रहे हैं।

وَکُلُّھُمُ یَرْجُو نَوَالَکَ رَاجِیاً

لِرَحْمَتِکَ الْعُظْمیٰ وَفِی الْخُلْدِ یَطْمَعُ

अगर यह सब के सब तेरी कृपा की आशा रखते हैं

कि तेरी महान कृपा और स्वर्ग की लालच रखते हैं।

إلھِی یُمَنِّینِی رَجَائِی سَلامَۃً

وَقُبْحُ خَطِیئاتِی عَلَیَّ یُشَنِّعُ

हे मेरे ईश्वर मेरी आशा ने मुझे सलामती की आशा दिलाई है

और मेरे पापों की बुराई मुझ पर लानत और ताने कर रही है।

إلھِی فَإنْ تَعْفُو فَعَفْوُکَ مُنْقِذِی

وَ إلاَّ فَبِالذَّنْبِ الْمُدَمِّرِ ٲُصْرَعُ

हे मेरे ईश्वर तो अगर तू क्षमा कर दे तो यह क्षमा मुझे छुड़ा देने वाली है

और अगर ऐसा ना हुआ तो मैं तबाह करने वाले पापों में पड़ा रहूंगा।

إلھِی بِحَقِّ الْھَاشِمِیِّ مُحَمَّدٍ

وَحُرْمَۃِ ٲَطْہارٍ ھُمُ لَکَ خُضَّعُ

हे मेरे ईश्वर तुझे वास्ता है पैग़म्बर मोहम्म (स) के हक़ का

और उन पवित्र हस्तियों का जो तेरे सामने सर झुकाए हैं।

إلھِی بِحَقِّ الْمُصْطَفی وَابْنِ عَمِّہ

وَحُرْمَۃِ ٲَبْرارٍ ھُمُ لَکَ خُشَّعُ

हे मेरे ईश्वर तुझे वास्ता है मुस्तफ़ा (स) और उनके इबने अम (अली) का

और उन नेक कार्य करने वालों का जो तेरे सामने झुके हैं।

إلھِی فَٲَنْشِرْنِی عَلَی دِینِ ٲَحْمَدٍ

مُنِیباً تَقِیّاً قَانِتاً لَکَ ٲَخْضَعُ

हे मेरे ईश्वर मुझे अहमद (स) के दीन पर उठा

इस हाल में कि मैं तौबा किया हुआ, मुत्तक़ी तेरी आज्ञा का पालन करने वाला और इताअत करने वाला हूं।

وَلاَ تَحْرِمَنِّی یا إلھِی وَسَیِّدِی

شَفاعَتَہُ الْکُبْریٰ فَذاکَ الْمُشَفَّعُ

मुझे वंचित ना करना हे मेरे ईश्वर और सरदार

(मुस्तफ़ा (स)) की महान शिफ़ाअत से कि उनकी शिफ़ाअत स्वीकार्य है।

وَصَلِّ عَلَیْھِمْ مَا دَعَاکَ مُوَحِّدٌ

وَنَاجَاکَ ٲَخْیارٌ بِبَابِکَ رُکَّعُ

और रहमत फ़रमा उन पर जब तक एकेश्वरवादी तुझे पुकारे

और नेक कार्य करने वाले लोग तुझे चुपके से पुकारें जो तेरे सामने झुकते हैं।

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