इस्लामी अक़ीदे भाग 2

इस्लामी अक़ीदे भाग 2

هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُمْ مَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا * ثُمَّ اسْتَوَىٰ إِلَى السَّمَاءِ فَسَوَّاهُنَّ سَبْعَ. سَمَاوَاتٍ

जैसा कि हमने बताया कि हम इन लेखों में शियों के अक़ीदों के बारे में बात करेंगे और उनको संक्षित्प रूप में बयान करेंगे।

उन्ही अक़ीदों में से एक जिस पर शिया विश्वास रखते हैं और यह एक बहुत ही आधारभूत विश्वास है वह ईश्वर के बारे में है

बिस्मिल्लाहिर्र रहमानिर्रहीम

अल्लाह जो कि रहमान है और कृपालु

हमारा विश्वास यह है कि ख़ुदा एक ऐसी ज़ात है जो सदैव से थी और सदैव रहेगी यानी वह अज़ली है और अबदी भी,  संभव यह कि इस हमेशा से हमेशा तक रहना एक ऐसी व्याख़्या हो जो हम जैसे इन्सान जो ना सदैव से हैं और ना सदैव रहेंगे के लिए समझना कठिन हो।

एक शब्दकोश में मैं अज़ल और अदब का अर्थ देख रहा था वहां लिखा थाः अज़ल और अबद ऐस ऐसी चीज़ है कि जब इन्सान उसको समझ ले तो उसका पूरा शरीर डर से कांप जाता है।

यानी आप जितना भी पीछे जाए फिर भी ख़ुदा मिलेगा, ईश्वर ही अव्वल और पहला और ईश्वर ही अन्तिम और आख़िर है, ईश्वर का अस्तित्व किसी दूसरे चीज़ का मोहताज नहीं है, ईश्वर को किसी चीज़ ने पैदा नहीं किया है।

बेहतर है कि हम इस गहरे और चिंतन से भरे सूरे को अपने निगाहों के सामने रखें।

बिस्मिल्लाहिर्ररहमानिर्रहीम

आरम्भ करता हूँ उस ईश्वर के नाम से जो रहमान है और सबसे बड़ा कृपालु

वह ईश्वर जो ख़ुदा, हर वह नेक गुण जिसके बारे में हम और आप सोंच सकते हैं वह उसके पास हैं, लेकिन यह संभव है कि हम अपनी छोटी सोंच के अनुसान किसी गुण को ईश्वर के लिए मानें लेकिन वह ईश्वर के लिए ना हो क्योंकि हमारी सोंच कम है इसलिए हम नहीं समझ सकते हैं कि ईश्वर के लिए क्या होना चाहिए और क्या नहीं।

जैसा कि रिवायत में आया है

संभव है कि एक चींटी यह सोंचने लगे कि ख़ुदा की भी दो सींघें हैं, क्यों? क्योंकि चीटीं सीघों को अपने लिए गुण समझती है इसलिए वह सोंचती है कि जब यह गुण मेरे अंदर है तो यह ख़ुदा के अंदर भी होना चाहिए। अगर उसके पास यह गुण ना हो तो उसके अंदर एक कमी होंगी। इसलिए आवश्यक है कि उसके पास सीघें हों।

फिर यह रिवायत आगे फ़रमाती है

ھذا حال العقلاء

इस संसार के ज्ञानियों का हाल भी इसी प्रकार है।

वह सोंचते हैं कि जो उन्होंने सोंचा है वही सही है। लेकिन इस संसार में ऐसा कौन हैं जो ईश्वर की व्याख्या कर सकता है।

जब हज़रत आदम (अ) को ख़ुदा पैदा कर रहा था तो फ़रिश्तों ने स्वीकार किया कि हे ईश्वर तू क्यों ज़मीन पर आदम को अपना प्रतिनिधि बनाना चाहता है

نَحْنُ نُسَبِّحُ بِحَمْدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَ

फ़रिश्तें एक ऐतेराफ़ करते हैं वह कहते हैं कि हे ख़ुदा हम जो तेरी तसबीह और तक़दीस कर रहे हैं ।

फ़रिश्तों ने यह कयों नहीं कहा कि हम तेरी तौसीफ़ और व्याख्या कर रहे हैं? ऐसा इसलिए कि ईश्वर की तौसीफ़ कोई कर ही नही सकता है।

फ़रिश्ता नूर होने के बावजूद इस हद तक नहीं पहुंच सका कि ख़ुदा की तौसीफ़ कर सके, फ़रिश्ता केवल ख़ुदा की तस्बीह करता है।

ख़ुदा महदूद और सीमित नहीं है, ईश्वर के अंदर जिहालत नहीं है वह कमज़ोर नहीं है।

अगर यह कहा जाए कि ईश्वर शक्तिशाली है तो हमारे और आपके दिमाग़ में शक्तिशाली होने के लिए एक तस्वीर है, हम और आप ज्ञान के बारे में एक सोंच रखते हैं लेकिन ख़ुदा हमारी और आपकी सोंच से ऊपर हैं

इसलिए हम दूसरी तरफ़ से कहते हैं कि ख़ुदा जाहिल नहीं है, ख़ुदा कमज़ोर नहीं है, ख़ुदा सीमित नहीं है, ख़ुदा फ़क़ीर नही हैं, फ़रिश्तों ने स्वीकार किया।

और क़ुरआन में ख़ुदा फ़रमाता हैः

سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ. إِلاَّ عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ

फ़रिश्तें ख़ुदा को मुनज़्ज़ह करते हैं लेकिन ईश्वर के बारे में व्याख्या, जिस प्रकार वह है, फ़रिश्ते नहीं कर सके, कौन लोग इसकी योग्यता रखते हैं कि वह ईश्वर की व्याख्या कर सकें,

यह चीज़ इन्सान की आत्मा और उसके ज़मीर में रखी गई है علم الادم ख़ुदा ने आदम को शिक्षा दी ईश्वरीय नामों की, जो नाम ईश्वर की व्याख्या करते हैं।

और यह अहलेतैत (अ) का वजूद है जो ख़ुदा के मुख़लिस और विशेष बंदे हैं जो ईश्वर को उस प्रकार कि जैसा वह है व्याख्या करते है।

और नहजुल बलाग़ा में इमाम अली (अ) ख़ुदा से इस प्रकार बात करते हैं कि ऐसा लगता है कि जब ख़ुदा ने इस संसार को बनाया तो अली उसको देख रहे थे, ख़ुदा ने किस प्रकार इस स्रष्टि की रचना की और इमाम अली (अ) इसको बयान करते हैं।

लेकिन ईश्वर के बारे में इस आयत पर ग़ौर करें

بسم اللہ الرحمان الرحیم

वह अल्लाह जो रहमान है जो रहीम है

ख़ुदा रहीम इसका मतलब यह है कि इस संसार की हर चीज़ जिसकी सबसे पहली चीज़ हो है वह उसका वजूद है, और उसका यह वजूद, उसका अपना नहीं है बल्कि यह उसे ख़ुदा ने दिया है।

केवल ईश्वर का वजूद है जो उसका अपना है उसके अतिरिक्त इस संसार की हर चीज़ का वजूद और उसका अस्तित्व ख़ुदा से हैं।

इसी वजह से ख़ुदा की सिफ़तों में से एक उसका क़य्यूम होना है

क़य्यूम का अर्थ यह है कि जिसका वजूद अपने अस्तित्व में आने के लिए किसी दूसरी चीज़ का मोहताज नहीं है, और जब ईश्वर का वजूद उसका अपना हो गया तो यह वजूद अज़ली होगा यानी यह वजूद हमेशा से उसके साथ था। यानी अब हम जितना भी पीछे चले जाएं वहां ख़ुदा है।

अव्वल हो तो ख़ुदा आख़िर हो तो ख़ुदा ज़ाहिर (प्रतय्क्ष) हो तो ख़ुदा बातिन (अप्रतय्क्ष) हो तो ख़ुदा।

हमारा अक़ीदा यह है कि ख़ुदा अज़ली है अबदी है और जो चीज अज़ली और अबदी हो वह सरमदी होगी।

हम इन्सान अज़ली नहीं हैं लेकिन अबदी अवश्य हैं।

ईमानी अक़ीदा यह है कि इन्सान जब पैदा कर दिया गया तो अब समाप्त नहीं होगा यानी वह अबदी रहेगा।

उसका तर्क यह है कि जिस ईश्वर ने कृपा की और जिसको वजूद दे दिया तो अब यह वजूद समाप्त होने वाला नहीं है क्यों कि  دَائِمَ الْفَضْلِ عَلَى الْبَرِيَّةِ (दाएमल फ़ज़्ले अलल बरीया)

इसीलिए ख़ुदा के बारे में हमारा अक़ीदा यह है कि उसकी सिफ़ात उसके नाम उसका वजूद ज़ाती यानी उसके अपना हैं, इस संसार का कोई भी दूसरा वजूद जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) भी है उसका अपना नहीं है बल्कि यह ख़ुदा का दिया हुआ है।

यह और बात है कि ख़ुदा ने पैग़म्बर इस्लाम (स) और अहलेबैत (अ) को जो कुछ भी दिया जा सकता था दे दिया है। संसार की हर चीज़ पर इनका कंट्रोल है, जैसे मुझे अपने हाथों पर कंट्रोल है जब चाहूँ लिहाऊं जब चाहूँ रोक लूँ,

इसी प्रकार रसूले इस्लाम (स) और अहलेबैत (अ) के लिए यह संसार एक शरीर की भाति है यानी वह जब चाहें जो चाहें कर सकते हैं और यही कारण हैं कि जब पैग़म्बर से कहा जाता है कि अगर आप ख़ुदा की तरफ़ से हैं तो चाँद के दो टुकड़े कर दीजिए और आप कर देते हैं क्योंकि उनका पूरे संसार पर कंट्रोल है।

और यह बातें ग़ुलू (किसी चीज़ को उसकी सीमा से अधिक बढ़ा कर पेश करना) नहीं है। क्यों?  क्योंकि ख़ुदा ने इस प्रकार की एक चीज़ के पैदा किया है जो यह सब कर सकती है

इसीलिए पैग़म्बर फ़रमाते हैं

الفقر فخری

फ़क़ीरी मेरा फ़ख़्र है।

हम सब फ़क़ीर हैं लेकिन हमारी फ़क़ीरी और पैग़म्बर की फ़क़ीरी में अंतर यह है कि वह इस सारी चीज़ों की वास्तविक्ता को पूर्णता जानते हैं वह वास्तविक मालदार को भी जानते हैं और फ़क़ीर को भी, और हम ना वास्तविक मालदार को जनते हैं और ना स्वंय को फ़क़ीर समझते हैं और समझते हैं कि हम भी कुछ हैं।

यहीं ग़ुलू और तौहीद एवं एकेश्वरवाद की सीमा यही है,  कि अहलेबैत और पैग़म्बर के पास सब कुछ है लेकिन दिया हुआ ख़ुदा का है।

ज़ात क्या है?

शायद हमारा कोई भाई पूछे कि ज़ाती का क्या अर्थ हैं?

उत्तरः आप कभी नमकीन खाना खाते हैं और कभी नमक खाते हैं, खाने की नमकीनी नमक के कारण है लेकिन ख़ुद नमक की नमकीनी उसकी अपनी है।

इसी प्रकार ख़ुदा का अस्तित्व उसका अपना है लेकिन दूसरी चीज़ों का अस्तित्व ख़ुदा के कारण है। और हर चीज़ जो भी गुण रखती है वह उसके वजूद और अस्तित्व के बाद है अगर किसी चीज़ का अस्तित्व ना हो तो उसके पास गुण भी नहीं होंगे उसके लिए यह नहीं कहा जा सकता कि अच्छा है या बुरा, अगर बुरे इन्सान का कोई वजूद ना हो तो उसको बुरा नहीं कहा जाएगा।

यह आधार हैं एकेश्वरवाद का, यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि अक़ीदों के उसूल की पहली बहस यानी ख़ुदा के बारे में बहस सबसे मुश्किल बहसों में से एक है क्योंकि वहां पर एक इन्सान जो कि ख़ुद कुछ नहीं है उस ख़ुदा के बारे में बात करता है जो अज़ली और अबदी है। वह इन्सान जो सीमित है उसके बारे में बात करता है जिसकी कोई सीमा नहीं है।

الرحمان الرحیم

ख़ुदा रहमान है वह रहीम है।

قل ھو اللہ احد

ख़ुदा एक है.।

खदा हु हैं (जिसके लिए गाएब की ज़मीर का प्रयोग किया जाता है) यानी यह सारी बाते जो उसके लिए की गई हैं उसके बाद भी ख़ुदा हमारे लिए एक अद्रश्य मौजूद की तरह हैं ना केवल तरह है बल्कि वासत्विक्ता यही है।

यह बात याद रखिए कि इस संसार में सबसे ग़रीब और अनजान हम ख़ुद हैं, मैं आपसे प्रश्न करता हूँ क्या आप ख़ुद को पहचानते हैं? हम अपनी आत्मा तो दूर की बात वह शरीर जो दिखाई देता है उसको तक नहीं पहचानते हैं। यही आत्मा देखती है सुनती है क्या हम जानते हैं कि यह आत्मा क्या है? रूह एक वास्तविक्ता है जो देखती है और सुनती है और समझती है कभी सोती नहीं है सदैव जीवित है हमारा जीवन उससे है थकती नहीं है,

इसलिए हमारी रिवायतों में आया है कि अगर खु़दा को पहचानना चाहते हो तो अपनी आत्मा को पहचानों।

من عرف نفسہ فقد عرف ربہ

कुछ उलेमा ने कहा है कि जिस प्रकार आत्मा को पहचानना संभव नहीं है उसी प्रकार ईश्वर को पहचानना भी संभव नहीं है

اللہ الصمد

यह ख़ुदा बेनियाज़ है

उसने अपनी ज़रीरत के लिए हमको पैदा नहीं किया उसने अपनी आवश्यकता के लिए हमको इबादत का आदेश नहीं दिया है।

لم یلد و لم یولد

इस नुक्ते पर गौर करें

ईसाई कहते है कि ख़ुदा ने चीज़ों को पैदा कि अदम (ना होने) से इसी कारण आज चर्च कहता है कि ख़ुदा ने चीज़ों को ख़ुद से पैदा किया है क्यों कि उनको पता चला कि अदम तो कुछ है ही नहीं कि ख़ुदा उससे चीज़ों को पैदा करे। यह भी ग़लत है।

अहलेबैत ने केवल एक बात कही कि जो अपने आप को पहचान ले वह ख़ुदा को पहचान लेगा, ख़ुदा किस प्रकार पैदा करता है? 

ख़ुदा ने पैदा किए जाने का एक नमूना हमकों दिया है। जिस प्रकार हम अपने दिमाग़ में तस्वीरों को बनाते हैं जैसे हम कहते हैं सेब, तो यह सेब अपने दिमाग़ में हम और आप पैदा करते हैं किसने इसको पैदा किया? हमारी आत्मा ने। हमारी आत्मा ने किस प्रकार इसको पैदा किया? अदम से? नही।  ख़ुद से पैदा किया? नहीं

उसने क्या किया?  उसने चीज़ को ईजाद किया। इसी प्रकार ख़ुदा चीज़ों को ईजाद करता है जब वह आदेश देता है तो चीज़ ईजाद हो जाती है।

ना वह पैदा करता है और ना किसी चीज़ ने उसको पैदा किया है

प्रश्न किया जाता है कि अगर हर चीज़ के पैदा होने के लिए इल्लत और कारण चाहिए तो ख़ुदा को किसने पैदा किया।

यह प्रश्न  सही नही है क्यों कि हर चीज़ के पैदा होने के लिए इल्लत की आवश्यकता नहीं है बल्कि हर मख़लूख़ ख़ालिक़ की मोहताज है।

क्योंकि अगर मान लिया जाए कि हर चीज़ के लिए इल्लत आवश्यक है तो ख़ुदा की इल्लत क्या है अगर किसी चीज़ को इल्लत बताया जाए तो उसकी इल्लत क्या है इसी प्रकार यह प्रश्न चलता रहेगा और किसी ऐेसे स्थान पर रुकना पड़ेगा जिसकी कोई इल्लत ना हो।

و لم یکن لہ کفوا احد

कोई भी ख़ुदा का हमपल्ला नहीं है।

यह प्रश्न सही नही है कि ख़ुदा का हमपल्ला कौन है।।

क्योंकि ख़ुदा का वजूद ख़ुद उसका अपना है लेकिन दूसरी चीज़ों का वजूद उससे हैं।  

हमारा अक़ीदा यह है कि ख़ुदा ने इस संसार की हर चीज़ को पैदा किया है और वह हर गुण रखता है, हमारा मानना है कि वह अज़ली है अबदी है सरमदी है, हर चीज़ पर उसका कंट्रोल है, ख़ुदा सीमित नहीं है।

इसीलिए है कि

فَأَيْنَمَا تُوَلُّواْ فَثَمَّ وَجْهُ اللّهِ

जिधर भी मुंह करों उधर ख़ुदा है

عَمِیَتْ عَیْنٌ لا تَراكَ عَلَیْها رَقیباً، وَخَسِرَتْ صَفْقَهُ عَبْدٍ لَمْ تَجْعَلْ لَهُ مِنْ حُبِكَ نَصیباً

अंधी है वह आँख जो तुझे ना देख सके

ख़ुदा ने हर स्थान को घेर रखा है केवल देखने वाली आँखें चाहिए।

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