इस्लामी अक़ीदे भाग 1
इस्लामी अक़ीदे भाग 1
हुज्जतुल इस्लामः बहरामी
अनुवादकः सैय्यद ताजतार हुसैन ज़ैदी
قَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ
तमाम वह लोग जो लज्जित होंगे चाहे वह दुनिया में हो या आख़ेरत में और वह नर्क की अग्नि या मासूयी और दुख में गिरफ़्तार होंगे, इस इस मुश्किल में क्यों पड़े?
इसका कारण यह है कि इन्होने एक अक़्ली क़ानून का पालन नहीं किया पहला तो यह कि किसी दूसरे से मशविरा नहीं किया ताकि उनको बेहतर रास्ता और सही चुनाव के लिए राह मिल जाती और दूसरे यह कि इन्होंने अपनी बुद्धि और अक़्ल का प्रयोग नहीं किया
हर वह कार्य जो इन्सान करना चाहता है उसके लिए आवश्यक है कि उस कार्य के बारे में जानकारी रखता हो, क्योंकि इन्सान कोई भी कार्य करता है वह उसकी सोंच के आधार पर होता है।
इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे कार्यों का आधार हमारा वह विश्वास, वह सोंच और वह अक़ीदा है जो हम रखते हैं।
यह एक ऐसा युग हैं जिसमें जानकारियां बहुत तीव्रता के साथ एक दूसरे तक पहुँचती हैं और हर इन्सान जो भी विश्वास या अक़ीदा रखता है उसके बारे में लोगों को पता होता है।
इस युग की एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिन लोगों के पास मीडिया और प्रचार के अधिक साधन मौजूद हैं वह संभव है कि शैतानी विश्वासों और झूठ को लोगों के सामने प्रस्तुत करें।
अहलेबैत, का पवित्र मकतब, रसूले इस्लाम का वास्तविक इस्लाम जो कि क़ुरआन और अहलेबैत और बारह इमाम, जिनको ख़ुदा ने अपने रसूल के माध्यम से लोगों को पहचनवाया है के स्तंभ पर टिका हुआ है।
यह वही अक़ीदा और सोंच है जो कि अक़्ल और इन्सान की प्रकृति से पूर्ण रूप से मेल खाता है , हम इस लेख में उन अक़ीदों और विश्वासों को संक्षिप्त रूप में बयान करेंगे जिस पर वास्तविक मुसलमान रसूल के सच्चे मानने वाले यानी शिया विश्वास रखते हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि इस युग में सदैव शियों के बारे में ऐसे ऐसे आरोप लगाए जाते हैं और ऐसी चीज़ों के बारे में कहा जाता है कि शिया विश्वास रखते हैं कि जिसे वास्तम में हम नहीं मानते हैं। वह हमारा अक़ीदा नहीं हैं।
एक स्थान पर मैंने पढ़ा कि वहां लिखा था कि शिया अक़ीदा रखते हैं कि जिब्रईले अमीन ने ख़ुदा की तरफ़ से वही (आकाशवाणी) लाने में गल्ती की इसलिए शिया उनसे नाराज़ हैं और शिया जिब्रईल को कहते हैं खाना अलअमीन (यानी जिब्रईल ने ख़यानत की) जिब्रईल को वही हज़रत अली (अ) तक पहुँचानी थी लेकिन वह रसूल तक ले गए, इसलिए कहते है कि ख़ुदा चाहता था कि हज़रत अली (अ) पैग़म्बर हों लेकिन जिब्रईल ने शियों के अक़ीदे के अनुसार ख़यानत की।
यह शियों पर यह आरोप लगाया जाता है कि शिया मुर्दों की पूजा करते हैं और अहलेबैत (अ) जो कि मर चुके हैं उनकी आराधना करते हैं।
यह शियों पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनका विश्वास है कि बहुत से लोग हरामज़ादे हैं।
या यह आरोप लगाया जाता है कि वह क़ुरआन जो पैग़म्बर पर नाज़िल हुआ उसमें 18000 आयते थीं।
यह यह कि शिया प्रतीक्षा कर रहे हैं कि इमाम ज़माना (अ) एक कुएं से प्रकट होंगे और ज़ोहूर करेंगे।
तो यह युग वह युग है कि जब दूसरों पर झूठे आरोप लगाए जाते हैं और लोग भी उसपर विश्वास कर लेते हैं, यह यह कि संभव है कि किसी स्थान पर थोड़े से शिया किसी चीज़ का विश्वास रखते हों और यह आते हैं और छोटी सी बात को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं और कहते हैं कि सारे शिया इस पर अक़ीदा रखते हैं।
यह यह कि शिया जिन कुछ चीज़ों का विश्वास रखते हैं उनको इतना बड़ा कर दिया जाता है कि ऐसा लगता है कि सारा दीन केवल यही विश्वास है और कुछ नहीं।
हां हम अक़ीदा रखते हैं कि अहलेबैत के लिए अजा़दारी की जानी चाहिए। लेकिन हमारा पूरा दीन केवल अज़ादारी नहीं है।
यह लोग अज़ादारी को इतना बड़ा कर देते हैं कि वह इन्सान जो कि शियों के बीच नहीं रहता है वह यह समझता है कि इनका सारा दीन यानी अज़ादारी, यानी रोना, यानी मातम करना है और यह लोग दूसरा कोई कार्य नहीं करते हैं ।
तो यह लोग या तो शियों के विरुद्ध झूठ बोलते हैं या किसी विशेष गुट के द्वारा किए जाने वाले कार्य को सबका कार्य कहते हैं या एक चीज़ को बहुत बढ़ा चढ़ा कर दिखाते हैं।
इसलिए हम इन लेखों में उन चीज़ों के बारे में जिसका हम अक़ीदा रखते हैं उनको संक्षिप्त और कुल्ली तौर पर बयान करेंगे और क़ुरआन भी हमको इसका निमंत्रण दे रहा है
الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ
सूरा जोमर आयात 18
हे पैग़म्बर मेरे बंदों को शुभ सूचना दो यह बंदे वह लोग हैं कि सही बात को सुनते हैं और (जो अक़्ल, प्रकृति और नबियों के कथन के अनुसार है) उसको स्वीकार करते हैं।
क़ुरआन इस अक़्ली बात को इस प्रकार बयान कर रहा है और आगे फ़रमाता है कि जो लोग अलग अलग बातों को सुनते हैं और जिसका आधार मज़बूत होता है उसको स्वीकार करते हैं वह
أُوْلَئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ وَأُوْلَئِكَ هُمْ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ
यह वह लोग है कि ईश्वर ने जिनका मार्गदर्शन किया है और यह अक्लवाले और समझने वाले हैं।
सूराए आले इमरान आयत 64 में भी ख़ुदा वंदे आलम सारे इन्सानों को जो कि अक्ल रखते हैं, क्योंकि एक वह चीज़ जिसको सभी स्वीकार करते हैं वह अक़्ल है उनको सम्बोधित करने हुए फ़रमाता हैः
قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْاْ إِلَى كَلَمَةٍ سَوَاء بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ
अगर तुम वास्तव में अहले किताब हो (ईसाई और यहूदी और मुसलमान) आओ और वह बात जिसकों हम और तुम स्वीकार करते हैं देखें कि कौन सी बात सही हैं कौन सी बात अक़्ल के आधार पर।
सूरा मुल्क आयत 10 में ख़ुदा फ़रमाता हैः
قَالُوا لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ مَا كُنَّا فِي أَصْحَابِ السَّعِيرِ
यह आयतें बिलकुल वही बातें कह रही हैं जो हमारी अक़्ल कहती है
नर्क वाले, वह लोग जो लज्जित हुए वह लोग जो दुनिया और आख़ेरत में लज्जित हुए उनके लज्जित होने का कारण यह है कि अगर इन लोगों ने बात सुनी होती और सही बात को स्वीकार किया होता नर्क की अग्नि में नहीं होते।
लेकिन अफ़सोस है कि अधितकर लोग एक प्रकार का पक्षपात करते हैं, पक्षपात इस बात का कि हमारे माता और पिता का क्या अक़ीदा है, इस बात का पक्षपात कि हमारी क़ौम और क़बीले वाले क्या विश्वास रखते हैं।
यह इस्लाम की निगाह में सही नहीं है और इसकी निंदा की गई है
क़ुरआन सूरा हज आयत 8 में फ़रमाता हैः
وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلا هُدًى وَلا كِتَابٍ مُّنِيرٍ.
यह लोग ईश्वर के रास्ते में यह लोग ईश्वरीय और ख़ुदा बातों में बिना किसी इल्म और जानकारी के केवल अपनी इच्छाओं और हवा हवस के आधार पर बात करते हैं
وَلا هُدًى وَلا كِتَابٍ مُّنِيرٍ
बिना इसके कि कोई इल्म प्राप्त किया हो या उनके पास कोई ज्ञान हो।
यह बात स्पष्ट रहे कि इस्लाम में अक़ीदों में कभी भी तक़लीद नहीं होती है, और इसके लिए आवश्यक है कि इन्सान स्वंय तहक़ीक़ करें और अगर कोई चाहता है कि किसी चीज़ किसी मसले के बारे में अक़ीद रखे उसके लिए आवश्यक है कि वह उसपर यक़ीन रखता हो और अगर उसको यक़ीन ना हो तो क़यामत के दिन उसके प्रश्न किया जाएगा कि यक़ीन ना होने के बावजूद तुम ने इस पर अक़ीदा क्यों रखा।
ख़ुदावंद सूरा लुक़मान आयत 21 में फ़रमाता हैः
وَإِذَا قِيلَ لَھُمُ اتﱠبِعُوا مَا أَنزَلَ ﷲّ ُ
और जब इन लोगों से कहा जाता है कि अनुसरण करों उस चीज़ का जिसे ईश्वर ने नाज़िल किया है
आइये देखें कि हमारे और आपके ईश्वर ने क्या कहा है वह ईश्वर जिसने इस धरती को पैदा किया जिसने हमको और आपको पैदा किया वह क्या कह रहा है।
जब इन लोगों से क़ुरआन का अनुसरण करने को कहा जाता है तो वह कहते हैं
قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءنَا
हम उस रास्ते पर जाएंगे कि जिस पर हमारे मां बाप गए हैं।
इसके बाद ख़ुदा ऐसे लोगों के लिए एक दलील और तर्क लाता है और फ़रमाता हैः
أَوَلَوْ كَانَ الشَّيْطَانُ يَدْعُوهُمْ إِلَى عَذَابِ السَّعِيرِ
अगर उन्होंने अपना रास्ता चुनने में ग़ल्ती की हो तो क्या होगा? क्या तुम भी यही चाहते हो कि अपने पूर्वजों की ग़ल्तियों को दोहराओं?
इसीलिए हम इन लेखों में इस बात को बयान करेंगे कि हमारा विश्वास और अक़ीदा क्या है यह और बात है कि इनको केवल संक्षिप्त रूप में बयान किया जाएगा। हम बयान करेंगे कि क्या हमारा अक़ीदा है कि क़ुरआन में 18000 आयतें थी? और यह क़ुरआन जो आज हमारे हाथों में है वह तहरीफ़ हो चुका है और उसमें दस्तकारी की जा चुकी है? नहीं हमारा ऐसा कोई भी विश्वास और अक़ीदा नहीं है।
हमारा इस प्रकार का अक़ीदा नहीं है लेकिन विरोधी लगातार अपने देखने और सुनने वालों को यह समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हमारा इस प्रकार का विश्वास है।
अब अक़्ल तो यही कहती है कि अगर किसी के बारे में किसी प्रकार की बात सुनी जाए तो स्वंय उसी से उसके बारे में पूछा जाए ना कि उसके विरोधियों से, और हम डंके की चोट पर यह कहते हैं कि हमारा इस प्रकार का कोई विश्वास नहीं है।
नई टिप्पणी जोड़ें