अगर आशा ना होती, तो क्या होता?

अगर आशा ना होती, तो क्या होता?

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने आरज़ू के बारे में फ़रमायाः

الامل رحمۃ لامتی و لو لا الامل ما رضعت والدۃ ولدھا ولا غرس غارس شجراً

आरज़ू खुदा की एक नेमत और उसकी अनुकम्पा है मेरी उम्मत पर, क्योंकि अगर यह आरज़ू और आशा ना होती तो कोई भी माँ अपने बच्चे को दूध ना पिलाती, और कोई भी बाग़बान ज़मीन में पेड़ नहीं लगाता

(बिहारुल अनवार जिल्द 74, पेज 173)

और हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं

لو لا الامل لعلم الانسان ما ھو فیہ، و لو علم حسب ما ھو فیہ مات من الھول والوجل

अगर आरज़ू व आशा ना होती तो वह इस दुनिया के जीवन का हिसाब समझता (कि उसने क्या किया है और उसे क्या मिलेगा बिलकुल सही रूप में) और अपने हिसाब की शुद्धता और सटीकता को देखकर डर और भय से अपनी जान दे देता।

(उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 395)

इस आधार पर आवश्यक है कि आरज़ू एवं आशा इतनी मात्रा में अवश्य हो कि इन्सान अपने जीवन को आगे बढ़ा सके और अपने भविष्य के बारे में सोंच कर अपने दिल को प्रसन्न कर सके।

एक दिन हज़रत ईसा (अ) कहीं बैठे हुए थे आपने एक बूढ़े आदमी को देखा जो खेत में हल जोत रहा था, हज़रत ईसा ने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसके दिल से आशा को निकाल दे, ख़ुदा ने आरज़ू उसके दिल से निकाल दी, उसी समय उस बूढ़े ने अपने हल को एक तरफ़ फेंक दिया और ज़मीन पर लेट गया, कुछ घंटे ऐसे ही बीत गए, ईसा ने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसकी आरज़ू को उसके दिल में वापस डाल दे, ख़ुदा ने आरज़ू डाल दी और जैसे ही यह हुआ वह बूढ़ा व्यक्ति ज़मीन से उठा और वापस अपने काम में लग गया। हज़रत ईसा (अ) उस व्यक्ति के पास गए और पूछाः

मैं तुमको देख रहा था, ऐसा क्या हुआ कि तुम जो हल जोत रहे थे और काम कर रहे थे अचानक तुमने हल छोड़ दिया और लेट गए? और कुछ देर के बाद दोबारा कार्य करना शुरू कर दिया?

उसने कहाः कार्य करते समय मैने सोंचाः कब तक मैं काम करूँगा? मैंने स्वंय से कहाः तुम बूढ़े हो चुके हो शायद अभी तुमको मृत्यु आ जाए, तो यह सब पीड़ा और परेशानियां किस लिए उठा रहे हो? जैसे ही मैंने यह सोंचा हाथ खींच लिया और अपनी मृत्यु के लिए तैयार हो गया, और जब मैंने दोबारा कार्य करना शुरू किया तो मैंने स्वंय से कहाः

मैं कब तक लेटा रहूँगा और कब तक मौत की प्रतीक्षा करता रहूँगा, कम से कम अभी तो मैं जीवित हूँ और हर जीवित रहने वाले के लिए जीवन के संसाधन चाहिए, इसलिए मुझे कार्य करना चाहिए और अपने जीवन के लिए पूंजी और आवश्यताओं की चीज़ प्राप्त करना चाहिए, और यही वह समय था कि जब मैं दोबारा उठा और अपना हल उठाया और खेत जोतने में लग गया।

नई टिप्पणी जोड़ें