पुले सिरात की वास्तविक्ता क्या है
पुले सिरात की वास्तविक्ता क्या है
लेखक आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी
अनुवादक सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
अगरचे मरने के बाद की दुनिया और क़यामत के बारे में विस्तार से जानना इस संसार के लोगों के लिए संभव नही है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हमें थोड़ी या संक्षिप्त जानकारी भी प्राप्त न हो सके।
आयतों और रिवायतों का अध्ययन करने से पता चलता है कि सिरात का पुल स्वर्ग के रास्ते में नर्क के ऊपर एक पुल है जिससे सभी अच्छे और बुरे लोगों को गुज़रना होगा, अच्छे लोग बहुत तीव्र गति से उसे पार कर जाएंगे और ख़ुदा की असंख्य नेमतों तक पहुँच जाएंगे, लेकिन बुरे लोग उस पुल से नर्क में गिर जाएंगे!
यहां तक कि कुछ रिवायतों से पता चलता है कि सिरात के पुल से गुज़रने की गति लोगों के ईमान और अच्छे कार्यों के आधार पर होगी (यानी जिसका अमल और ईमान अधिक अच्छा होगा वह अधिक तीव्रता से पार कर जाएगा)
हज़रत इमाम सादिक़ (अ) से एक रिवायत में हम पढ़ते हैं:
''فَمِنْھُم مَن یمرّ مثل البُراق، وَمِنْہُم مَن یَمرّ مثل عدوالفرس ،وَمِنْہُم مَن یمرحبواً،وَمِنْہُم مَن یَمرّمشیاً،وَمِنْہُم مَن یمرّمتعلقاً،قد تأخذ النَّار منہ شیئاً وتترک شیئاً''
अमाली शेख़ सदूक़, मजलिस 33
सिरात के पुल से कुछ लोग बिजली की गति से निकल जाएंगे, और कुछ लोग तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़ों की तरह कुछ लोग पैदल, कुछ लोग रेंगते हुए और कुछ लोग धीरे धीरे गुज़रेंगे, और कुछ लोग होंगे जो सिरात को पकड़े हुए चलेंगे जब्कि पैर इधर उधर डगमगाते होंगे, नर्क की आग उनमें से कुछ को अपने अंदर घसीट लेगी और कुछ को छोड़ देगी
लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि स्वर्ग में जाने के लिए नर्क के ऊपर से क्यों गुज़रना पड़ेगा?
इसके उत्तर में हम कुछ महत्वपूर्ण नुक्ते बयान करते हैं
इससे एक तरफ़ तो स्वर्ग जाने वाले नर्क को देख कर स्वर्ग की सलामती और महत्व को समझ सकेंगे, और दूसरी तरफ़ सिरात का पुल हमारे एक नमूना है ताकि हम दुनिया में वासना के भड़के हुए नर्क से गुज़र कर तक़वे के स्वर्ग तक पहुँच सकें, और तीसरी तरफ़ यह मुजरिमों और पापियों के लिए एक चैलेंज है कि अंत में उनको एक बारीक और भयानक एवं ख़तरनाक रास्ते से जाना होगा।
इसी कारण “मुफ़ज़्ज़ बिन उमर” से बयान हुए एक हदीस में आया है कि जब इमाम (अ) से “सिरात” के बारे में प्रश्न किया तो आपने फ़रमायाः सिरात ख़ुदा की मारेफ़त का रास्ता है।
उसके बाद इमाम (अ) ने आगे फ़रमायाः सिरात दो हैं एक सिरात दुनिया में और एक सिरात आख़ेरत में, दुनिया के सिरात से तात्पर्य इमाम है जिसके आदेशों का पालन करना वाजिब है। जो व्यक्ति अपने इमाम को पहचान ले, उसका अनुसरण करे, और उनके पदचिन्हों पर चले तो नर्क पर बने सिरात के पुल से पार हो जाएगा, लेकिन जो व्यक्ति दुनिया में अपने इमाम को न पहचाने तो वह आख़ेरत में सिरात के पुल पर डगमगाते हुए नर्क में गिर जाएगा।
मआनियुल अख़बार पेज 32 पहली हदीस
तफ़्सीरे इमाम हसन अस्करी (अ) में इन दो सिरात (दुनिया और आख़ेरत का सिरात) से तात्पर्य सिराते मुस्तक़ीम (यानी ग़ुलू और कम करने के बजाए बीच के रास्ते का चुनाव) और सिराते आख़ेरत है।
बिहारुल अनवार जिल्द 8 पेज 96 हदीस 18
यह नुक्ता भी ध्यान दिए जाने योग्य है कि इस्लामी रिवायतों में सिरात के पुल से गुज़रने को बहुत कठिन कार्य बताया गया है।
पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत में बयान हुआ है
''انَّ عَلیٰ جھنّم جَسْراً أدقّ مِنَ الشَّعْر وأحدّ مِنَ السَّیْفِ
मीज़ानुल हिक्मा जिल्द 5 पेज 348, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की हदीस में انَّ عَلیٰ جھنّم جَسْراً के स्थान पर ''الصراط '' आया है। बिहारुल अनवार जिल्द 8 पेज 64 हदीस 1
इस दुनिया में सिराते मुस्तक़ीम और विलायत और अदालत भी इसी तरह है, बाल से अधिक बारीक और तलवार से अधिक तेज़ क्योंकि रेखाएं बारीक ही होती है और उसके अतिरिक्त दाएं बाएं भटकाने वाली रेखाएं होती है।
स्पष्ट है कि आख़ेरत का सिरात भी इसी तरह है।
लेकिन, जैसा कि पहले भी इशारा हो चुका है कि कुछ लोग अपने ईमान और नेक कार्यों के कारण इस ख़तरनाक रास्ते से बहुत तीव्रता से निकल जाएंगे।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पैग़म्बरे अकरम (स) और अपके पवित्र अहलेबैत से मोहम्मद इस ख़तरनाक रास्तों को आसान बना देती है, जैसा कि पैग़म्बरे अकरम (स) से रिवायत है
''ذَا کَانَ یَومَ القیامَةِ وَنُصِبَ الصّراط عَلیٰ جَھنّم لَم یجزْ عَلَیہ لا مَن کَانَ مَعَہُ جَوازُ فِیہِ وِلایةُ عَلِّ ابن أب طالب''
बिहारुल अनवार जिल्द 8 पेज 68 हदीस 11
क़यामत के दिन जिस समय नर्क पर पुल लगाया जाएगा उस से केवल वही व्यक्ति पार हो सकेगा जिसके पास अनुमति पत्र होगा और वह अनुमति पत्र अली बिन अबी तालिब की विलायत होगी, इस तरह के शब्द जनाब फ़ातेमा ज़हरा (स) के बारे में भी बयान हुए हैं
स्पाष्ट सी बात है कि हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की विलायत पैग़म्बर की विलायत और क़ुरआन एवं इस्लाम और दूसरे मासूमों के भिन्न नहीं है, वास्तव में जब तक ईमान और विश्वास, सदाचार और नेक कार्यों के माध्मय से मासूमीन से सम्बन्ध मज़बूत ना हो जाए, उस समय तक सिरात के पुल को पार करना संभव नहीं है, इस बार में बहुत सी रिवायतें आई हैं
(अधिक जानकारी के लिए बिहारुल अनवार जिल्द 8 फ़स्ल सिरात हदीस नंबर 12, 13, 14, 15, 16, को देखें)
इस सिरात के पुल के अक़ीदे पर विश्वास रखने का एक प्रभाव यह है कि यह ख़तरनाक, भयानक और बाल से अधिक बारीक और तलवाल की धार से अधिक तेज़ रास्ता है जिसमें बहुत से स्थानों पर रोका जाएगा और हर स्थान पर कुछ प्रश्न पूछे जाएगें। एक स्थान पर नमाज़ के बारे में प्रश्न होगा, तो दूसरे स्थान पर अमानत और रिश्तेदारों के साथ सम्बन्ध के बारे में पूछा जाएगा, और आगे बढ़ेंगे तो अदालत न्याय और विलायत के बारे में सवाल होगा, यह एक ऐसा रास्ता है जिसे बिना पैग़म्बरे इस्लाम (स) और हज़रत अली (अ) की विलायत के पार करना सम्भव नहीं है, और हमारे अंत में एक ऐसा रास्ता है कि हर व्यक्ति अपने ईमान और नेक कार्यों के प्रकाश की रौशनी में तेज़ी के पार कर सकता है, और अगर कोई इन्सान इस पुल से सही सलामत नहीं गुज़र पाया तो वह नर्क में गिर जाएगा और सदैव के लिए स्वर्ग से दूर हो जाएगा।
इसलिए इस अर्थ पर विश्वास रखना इन्सान के कार्यों पर बहुत प्रभाव डालता है और इन्सान को रास्ते के चुनाव और हक़ व बातिल में जुदाई करने इसी प्रकार वलियों के आचरण को अपनाने में सहायता करता है।
तफ़्सीरे पयामे क़ुरआन जिल्द 6 पेज 191
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