इमाम रज़ा (अ) की संक्षिप्त जीवनी
इमाम रज़ा (अ) की संक्षिप्त जीवनी
इमामत एक ऐसा ईश्वरीय पद है जो कि रिसालत के समाप्त होने के बाद से आरम्भ होता है और जिस प्रकार हर ज़माने में ईश्वर की तरफ़ से भेजा हुआ कोई ना कोई नबीं लोगों के बीच मौजूद रहता था ताकि वह लोगों का मार्दर्शन कर सके उसी प्रकार हमारे अन्तिम नबी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद से इमामत का सिलसिला आरम्भ हुआ जो आज तक मौजूद है और आपका एक वसी और हमारा इमाम हमारा मार्गदर्शन कर रहा है।
इमामत पर विश्वसा एक ऐसा विश्वास है कि अगर कोई मुसलमान इमामत का इन्कार कर दे तो वह वास्तव में मुसलमान कहलाने का हक़दार नही है।
इमामत का स्थान
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
مَنْ ماتَ وَ لَمْ يَعْرِفْ اِمامَ زَمانِهِ ماتَ مَيْتَهَ الجاهِلِيَّهِ
जो इन्सान मर जाए और वह अपने ज़माने के इमाम को ना पहचानता हो और उसकी वास्तविक मारेफ़त ना रखता हो उसकी मौत जिहालत की मौत है।
तो इमामत एक ऐसा अक़ीदा है जिस पर विश्वास रखना मुसलमान होने के लिए आवश्यक है और यह इमामत रसूल के बाद इमाम अली (अ) से आरम्भ हुई और हमारे ज़माने के इमाम पर समाप्त होती है।
और इमाम रज़ा (अ) इसी इमामत की ज़ंजीर की आठवीं कड़ी है जो पवित्र मां और के पवित्र गर्भ से इस दुनिया में आए आपकी माँ का नाम नजमा था जिसके बारे में कहा जाता है कि आपका यह नाम इमाम रज़ा (अ) के गर्भ के बाद आपको दिया गया आपकी माँ एक दासी थी जिनसे आपकी विलादत हुई है और अब यहीं से जो लोग इस्लाम पर यह एतेराज़ करते हैं कि
इस्लाम दास होने का समर्थन क्यों करता है ?
अहलेबैत ने दास होना का समर्थन इसलिए किया है कि उनको इस उच्च स्थान तक पहुँचा सके जहां तक कोई स्वतंत्र इन्सान नहीं पहुँच सकता है उसको इस श्रेष्ठता तक पहुँचा दें कि एक दासी एक मासूम इमाम की पत्नी और एक मासूम इमाम की माँ होने का सम्मान पा जाए।
और केवल यही कारण नहीं है बल्कि अगर इस्लाम के अहकाम को ध्यान से देखा जाए तो वह जगह जगह पर दासों को स्वतंत्र करने की बात कही है कही कोई गल्ती हो जाए रोज़ा छूट जाए कफ़्फ़ारा देना है तो दास स्वतंत्र करो, ....
इस प्रकार इस्लाम ने समाज से दासिता का रिवाज समाप्त कर दिया।
बहर हाल इमाम रज़ा की माँ का नाम नजमा था आप फ़रमाती है कि जिस समय में इमाम रज़ा उनके गर्भ में थे तो वह सदैव लाइलाहा इल्लललाह की आवाज़े सुना करती थी।
आपका पवित्र नाम
इमाम रज़ा (अ) का नाम अली और आपकी उपाथि रज़ा है।
और आपका एक नाम आलिमे आले मोहम्मद भी है अगरचे आले मोहम्मद में सभी आलिम थे लेकिन आपका मर्तबा अलग था अपने ज़माने में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई जिनके कारण आपको यह नाम दिया गया।
अहले बैत के ज्ञान और उनके इल्म का आलम यह है कि स्वंय क़ुरआन उनके इल्म के बारे में फ़रमाता हैः
وَمَا أُوتِيتُم مِّن الْعِلْمِ إِلاَّ قَلِيلًا
यह एक ऐसी आयत है जिसके बारे में दो प्रकार के द्रष्टिकोण है।
1. कुछ लोग इस आयत की तफ़्सीर करते हुए कहते हैं कि तुम्हे थोड़ा ज्ञान दिया गया है, यानी इस दुनिया के इन्सानों के पास ज्ञान है यह और बात है कि वह ज्ञान अहलेबैत के मुक़ाबले में बहुत थोड़ा है।
2. अहलेबैत की तफ़्सीर यह है कि तुम में से थोड़ों को ज्ञान दिया गया है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें ज्ञान के कम होने के बारे में नहीं कहा जा रहा है बल्कि कहां यह जा रहा है कि ज्ञानी कम हैं तुममें से बहुत कम लोग ज्ञानि हैं और वह अहलेबैत हैं।
तो इमाम रज़ा आलिमे आले मोहम्मद हैं क्योंकि आपके युग में कुछ विशेष हालात पेश आए और उस समय के शासक मामून ने आपको नीचा दिखाने के लिए अपने युग के बड़े बड़े ज्ञानियों से आपका मुक़ाबला करवाया ताकि इमामत को नीचा दिखा सके लेकिन जब जब भी मुक़ाबला हुआ इतिहास गवाह है इमामत के सूर्य का प्रकाश और फैलता गया।
ख़ुदा की मर्ज़ी पर राज़ी हैं
और जब उसने यह देखा कि अब कुछ नहीं किया जा सकता है तो आप से कहा कि सत्ता आप अपने हाथ में ले लें, तो लोग यह ना समझें कि इमाम इससे प्रसन्न हुए बल्कि आपने उसको मुंह तोड़ उत्तर देते हुए कहा कि अगर सत्ता को ईश्वर ने तुम्हें दिया है तो मुझे क्यों दे रहे हो। और अगर यह तुम्हारा अधिकार नहीं है तुम्हरी चीज़ नहीं है तो तुम मुझे कैसे दे सकते हो?
आप ज़ामिन हैं।
हर इन्सान आपके द्वार पर पनाह लेता है, जो भी आपकी तरफ़ हाथ बढ़ाता है आप उसकी मुराद को पूरा करते हैं। किसी को आपके द्वार पर आने के लिए परेशानी नहीं उठानी पड़ती है।
आपका यह द्वार सबसे लिए सदैव खुला हुआ है और यही कारण है कि जब एक तपस्वी ज्ञानी ने यह इरादा किया कि आपके रौज़े पर एक ऐसा द्वार बनाए जिससे केवल वही लोग निकल सकें जिनकी नियत अच्छी हो बुरी नियत वाले ना निकल सके तो आपने उसको ऐसा करने से रोक दिया और बता दिया कि यह द्वार किसी दुनियावी बादशाह का नहीं है जो केवल दोस्तों के लिए खुले बल्कि यह द्वार उस शहंशाह का है जो दिलों पर राज करता है जिसका द्वार दोस्तों के लिए भी खुला है और दुश्मनों के लिए भी।
आप ग़रीबुल ग़ोरबा हैं।
25 साल की आयु में पिता का साया आपके सर से उठ गया।
इमाम रज़ा के युग के बादशाह
आपके ज़माने में तीन बादशाह गुज़रें हैं
1. हारून
2. मोहम्मद अमीन
3. अब्दुल्लाह मामून
जिनमें से अमीन और मामून दोनों हारून के बेटे थे और एक दूसरे के सौतेले भाई थे अमीन एक अरब माँ से था और मामून एक ईरानी दासी से जिसका कारण यह था कि एक बार हारून और उसकी पत्नी में शतरंज का खेल हुए जिसमें उसकी पत्नी जीत गई और उसने शर्त रखी कि हारून अपने महल की सबसे गंदी दासी के साथ सम्बन्ध बनाए और उसके औलाद पैदा हो जिसके फलस्वरूप मामून पैदा हुए।
मामून के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही ज्ञानि और चतुर था लेकिन हारून ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अमीन का चुनाव किया था जिसके कारण बाद में दोनों भाईयों के बीच मतभेद हो गया और यह मतभेद और झड़पें पाँच साल तक चली जिसमें इमाम रज़ा (अ) को ख़ाली समय मिल गया और आपने लोगों के बीच सच्चे इस्लाम को फैलाया।
इमाम रज़ा (अ) की जीवन की सबसे बड़ी घटना के तौर पर आपका मामून का उत्तराधिकारी बनने का नाम लिया जा सकता है, हम सभी जानते हैं कि बनी उम्मया की ही भाति बनी अब्बास भी अहलेबैत से कुछ ख़ास प्रसन्न नहीं थे तो प्रश्न यह उठता है कि आख़िर क्यों मामून ने इमाम रज़ा (अ) को अपना उत्तराधिकारी बनाया?
मामून की समस्याएं
1. मामून के बादशाह होने पर लोग उसका विरोध कर रहे थे क्योंकि वह अरब नहीं था और उसकी माँ ईरानी थी जब्कि अमीन की माँ और पिता दोनों अरब थे।
2. मामून ने अपने भाई अमीन की हत्या की थी और उसके बाद उसकी लाश का अपमान किया था तो लोग यह कह रहे थे कि जो बादशाह अपने भाई की इस प्रकार हत्या और अपमान कर सकता है वह कल को हमारे साथ क्या करेगा।
3. तीसरी सबसे बड़ी समस्या शियों की थी कि वह उसको ख़लीफ़ा के तौर पर स्वीकार करने को तैयार नहीं थे वह कहते थे कि ख़िलाफ़त केवल अहलेबैत का हक़ है।
यह वह समस्याएं थी जिन्होंने मामून को घेर रखा था और उसने इन समस्याओं को हल करने के लिए एक अनोखा तरीक़ा निकाला।
उसने इमाम रज़ा (अ) को अपनी हुकूमत में दाख़िल किया ताकि जो लोग उसके ईरानी होने के विरोधी थे उनका मुंह बंद हो जाए क्योंकि इमाम रज़ा (अ) पूर्ण रूप से अरब थे और मामून के उत्तराधिकारी।
और यहीं से शियों के विरोध की समस्या भी समाप्त हो जाती थी क्योंकि जब शिया यह देखते कि उनका इमाम मामून के साथ है तो वह उसका विरोध ना करते।
और इसी कार्य से मामून जनता को एक और संदेश देना चाहता था कि इमाम भी दुनिया के लोभी हैं वह भी दुनिया चाहते हैं तो अब कोई उसपर एतेराज़ न करे।
और इसीलिए उसने इमाम रज़ा (अ) को ज़बरदस्ती मदीने से ख़ुरासान बुलाया।
उसने सोंचा था कि इस कार्य से लोगों का मुंह बंद कर देगा और इमामत के पद को नीचा दिखा देगा लेकिन इमाम रज़ा (अ) ने जो प्रतिक्रिया की वह उसकी सोंच से भी परे थी और आपने अपने कार्य से उसकी सोंच पर पानी फेर दिया।
मामून के प्रस्ताव के मुक़ाबले में इमाम की प्रतिक्रिया
1. जब इमाम मदीने से ख़ुरासान की तरफ़ चलने लगे तो आप बार बार रसूले इस्लाम (स) के रौजे पर जाते और रोते थे तो लोगों ने कहां कि आप क्यों रो रहे हैं आप तो हुकूमत में शामिल होने के लिए जा रहे हैं तो आप ने उत्तर दिया कि यह वह यात्रा है जिससे पलटना नहीं होगा।
यानी इमाम ने लोगों को बता दिया कि ख़ुश ना हो यह केवल मामून की एक चाल है वरना उसकी नियत अच्छी नहीं है।
2. जब आप अपनी यात्रा के मध्य में नैशापूर पहुँचे और लोगों ने आपका स्वागत किया और आप से हदीस का प्रश्न किया और कहा कि कोई हदीस बयान करें तो आपने वह प्रसिद्ध हदीस बयान की जिसे आज सिलसिलतुज़ ज़हब के नाम से जाना जाता है आपने फ़रमायाः
کلمۃ لا الہ الا اللہ حصنی من دخل حصنی امن من عذابی
उसके बाद आपने अमारी का पर्दा गिरा दिया और चल पड़े कुछ क़दम चलने के बाद आपने पर्दा हटाया और फ़रमायाः
لکن بشرطھا و شروطھا و انا من شروطھا
इसकी कुछ शर्तें हैं और मैं उनमें से एक शर्त हूँ।
यानी ला इलाहा इल्ल्लाह अज़ाब से बचाने का क़िला ज़रूर है लेकिन तब जब तुम इमामत को स्वीकार करों जब तुम अपने ज़माने के इमाम पर अक़ीदा रखों और आज मैं रज़ा (अ) तुम्हारे ज़माने का इमाम हूँ।
मामून की साजि़श
1. मामून ने चाहा था कि लोगों के सामने यह दिखाए कि इमाम रज़ा (अ) दुनिया को चाहने वाले और उसके लोभी हैं और इसीलिए वह हुकूमत में आए हैं।
लेकिन इमाम ने सबसे साथ एक जैसा बर्ताव करके दासों के साथ बैठकर खाना खा के उसकी इस चाल पर पानी फेर दिया और बता दिया कि यह तो हो सकता है कि समय का इमाम किसी मजबूरी के कारण किसी अत्याचारी शासक का उत्तराधिकारी बन जाए लेकिन वह कभी भी दुनिया का लोभी नहीं हो सकता है। (ख़ुद इस उत्तराधिकारी बनने और उसके लिए इमाम ने जो शर्तें मामून के सामने रखी थीं वह ख़ुद यह बयान करती हैं कि इमाम केवल नाम के उत्तराधिकारी थे ना कि वास्तव में, वह शर्तें क्या थी इनको हम किसी और स्थान पर बयान करेंगे।)
2. मामून चाहता था कि इमामत के स्थान को नीचा दिखा दे और इसके लिए उसने विभिन्न ज्ञानियों से आपका मुक़ाबला करवाया जिसमें आपने जीत कर दिखा दिया कि कोई कितना भी ज्ञानी क्यों ना हो समय के इमाम से आगे नहीं जा सकता है और इस प्रकार इमामत के पद और उसके सम्मान को आपने स्थापित कर दिया।
इसके अतिरिक्त जब जब लोगों को समस्या हुई इमाम ने उनकी सहायता की जैसा कि जब एक बार सूखा पड़ गया तो लोग आपके पास आए और कहा कि आप ईश्वर से प्रार्थना करें ताकि बारिश हो जाए तो आप लोगों के साथ मैंदान में गए और प्रार्थना की अभी प्रार्थना समाप्त भी ना हुई थी कि काले काले बादल घुमड़ने लगे आपने सबको बताया कि कौन सा बादल कहां बरसेगा और जब एक बादल आया तो आपने कहा कि अपने अपने घरों में चले जाओ यह बादस यहीं बरसेगा, लोग अभी घरों में दाख़िल ही हुए थे कि मूसलाधार बारिश होने लगी।
इमाम रज़ा (अ) से हमीद बिन मेहरान कहता हैः कि लोग यह समझते हैं कि यह बारिश आपके कारण हुई हैं यह क्या ख़ुराफ़ात हैं, आपने कहा कि निश्चित ही ऐसा है यह बारिश हमारे ही कारण हुई है तो उसने कहा कि अच्छा अगर ऐसा है और आपके कहने पर बादल पानी बरसाते हैं तो वह जो क़ालीन पर शेर बना है उससे कहिए कि वह जीवित हो कर मुझे खा जाए, आपने शेर की तरफ़ इशारा किया वह जीवित हुआ और उसने उस मलऊन को खा लिया और बता दिया कि अगर इमाम हुक्म दे दे तो जीवित चीज़ क्या क़ालीन पर बना हुआ शेर भी जीवित हो जाता है।
यह आपके वह कार्य थे जिसने लोगों के बीच इमाम और इमामत को और अधिक स्थापित कर दिया। और यही कारण था कि मामून को डर महसूस हुआ कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो उसकी सत्ता ख़तरे में पड़ जाएगी और उसने आपको रास्ते से हटाने की सोंचने लगा।
शहादत
मामून ने इमाम को अंगूर में ज़हर दिया जिसके कारण आपकी शहादत हुई।
यहां पर लोग यह प्रश्न करते हैं कि जब इमाम ज्ञानी थे वह हर बात को जानते थे तो उनको यह भी पता होगा कि अंगूर में ज़हर है तो उन्होंने वह अंगूर खाया ही क्यों?
यह बात सही है कि अहलेबैत के पास हर चीज़ का ज्ञान है वह सब जानते हैं लेकिन वह वही कार्य करते हैं जिसमें ईश्वर की मर्ज़ी होती है अगर ईश्वर उनको शहीद देखना चाहता है तो ज़हर वाला अंगूर खा लेते हैं।
यही इमाम जो कल ग़रीब था आज उसका मक़बरा मशहद में शान से खड़ा है और उसकी स्वर्ण गुम्बद के नीचे बड़े बड़े अमीर और ग़रीब पर प्रकार के लोग आते हैं और प्रार्थना करते हैं और अपनी मुराद पाते हैं।
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