इमाम हसन की शहादत और पैग़म्बरे इस्लाम की वफ़ात पर विशेष

इमाम हसन की शहादत और पैग़म्बरे इस्लाम की वफ़ात पर विशेष

इन्सान उस उपजाउ धरती के समान है जो दाने को अपने गर्भ में स्थान देकर वृक्ष में परिवर्तित कर देती है। इन्सान भी यदि अच्छे आचरण और चरत्रि की शिक्षा प्राप्त करता है तो उसे विकसित करता है और शिष्टाचार के अनमोल नमूने संसार के सामने पेश करता है। प्रश्न यह है कि यह महान शिक्षाएं उसे दे कौन इसका उत्तर ईश्वरीय धर्मों से मिलता है कि ईश्वर ने इसका प्रबंध कर रखा है। उसने अपने विशेष दूत भेजे हैं जिनका आगमन मानव इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ता है।

आज की तारीख़ बड़ी यादगार तिथि है। इस दिन जहां एक ओर पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना ईश्वरीय अभियान पूरा करने के पश्चात अपने ईश्वर की ओर प्रस्थान किया वहीं दूसरी ओर उनके नाती इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इसी दिन संसार में अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए शहादत को गले लगाया।

पैग़म्बरे इस्लाम ने अनेक अवसरों पर अपने स्वर्गवास की सूचना दी थी और जब वह अंतिम हज यात्रा से लौट रहे थे तो भी उन्होंने, संसार से अपने प्रस्थान का समय निकट होने की सूचना दी थी । पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने स्वर्गवास से एक महीना पहले लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि वियोग का समय आ पहुँचा है ईश्वर की ओर वापसी का समय है अब मेरे बुलावे की घड़ी आ गई है मुझे इस निमंत्रण को स्वीकार करना है। मैं आप लोगों के बीच दो मूल्यवान वस्तुएं छोड़ रहा हूँ एक तो ईश्वरीय ग्रंथ कुरआन है और दूसरे मेरे परिजन हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम को बताया गया कि लोग आपके स्वर्गवास का समय निकट आ जाने की सूचना से दुखी और चिचिंतित हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने यह सुना तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम का सहारा लेकर मस्जिद में गए पहले ईश्वर का गुणगान किया और फिर कहा कि मुझे बताया गया है कि आप लोग मेरे स्वर्गवास के बारे में सुनकर दुखी हैं क्या मुझ से पहले कोई ईश्वरीया दूत ऐसा आया है जो अमर हो? आय लोगों को भी उसीकी ओर लौटना है।

जब पैग़म्बरे इस्लाम का अंतिम समय निकट आया और उनकी स्थिति बिगड़ने लगी तो पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने पास उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे भाई और मित्र को मेरे पास लाया जाए।

पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी उम्मे सल्मा ने कहा कि अली को बुलाओ क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम का तात्पर्य अली अलैहिस्सलाम से है। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम आ गए तो पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें गले लगाया और कुछ ईश्वरीय रहस्य उन्हें बतए। इसी बीच वह अचेत हो गए यह देखकर पैग़म्बरे इस्लाम के चाहने वाले रोने लगे, दोनों नाती इमाम हसन और इमाम हुसैन अपने नाना से लिपट गए। अली अलैहिस्सलाम ने उनको अलग करना चाहा कि इसी बीच पैग़म्बरे इस्लाम को होश आ गया। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है अली ! इन दोनों को मेरे पास रहने दो मुझे उनकी और उन्हें मेरी सुगंध का आभास करन दो।

अंतत:पैग़म्बरे इस्लाम की आत्मा शरीर से प्रस्थान कर गई। उस घड़ी पैग़म्बरे इस्लाम का सिर अली अलैहिस्सलाम की गोदी में था।

पैग़म्बरे इस्लाम ने संसार में सूर्य की भांति ज्ञान,मार्गदर्शन और जागरुकता का प्रकाश बिखेरा पूरी मानव जाति उनकी आभारी है यदि कोई पैग़म्बरे इस्लाम के उपकारों का इंकार करता है तो वह बहुत बड़े धोखे में है, कहीं सूर्य के प्रकाश का इंकार किया जा सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने एक ऐसे क्षेत्र में जहां अज्ञानता का अंधकार फैला हुआ था, लोग सभ्यता से दूर पशुओं की भांति जीवन व्यतीत कर रहे थे, एक नए समाज की नीव रखी जिसमें ज्ञान की छाया थी , शिष्टाचार के महान मूल्य थे और आध्यात्मिकता का पवित्र वातावरण था। इसी अभियान को आगे बढ़ाने के लिए ईश्वर ने अपने अन्य मार्गदर्शक संसार में भेजे जो मानव समाज को सत्य के मार्ग पर ले जाने का दायित्व बारी बारी संभालते रहे।

पैग़म्बरे इस्लाम के बाद हज़रत अली ने पैग़म्बरे इस्लाम के पदचिन्हों पर चलते हुए इस्लमी समाज का मार्गदर्शन किया और फिर उनकी शहादत के बाद यह दायित्व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के कांधों पर आ गया।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम ईश्वरीय तत्वदर्शिता के स्वामी थे। समय के बड़े बड़े ज्ञानी उनकी सेवा में उपस्थित होकर ज्ञान अर्जित करने को अपने लिए बड़े गर्व की बात समझते थे। सत्य प्रेमियों को पता था कि सत्य के मार्ग पर चलना है तो इमाम हसन का अनुसरण करना चाहिए।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के आठ वर्ष अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम की छाया में बिताए और उनकी महान शिक्षाओं से अपने अस्तित्व को संवारा। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें ईश्वरीय ज्ञान सिखाया। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हसन और इसी प्रकार उनके छोटे भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बड़ा प्रेम करते थे। हमेशा कहते थे कि यह मेरी संतानें हैं।    

एक दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने पुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम को लेकर पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में गए। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को देखते ही भाव विभोर हो उठे उन्होंने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को गोद में लिया और फिर ईश्वर से प्रार्थना की कि हे पालनहार मैं इससे सच्चा प्रेम करता हू तो तू हर उस व्यक्ति से प्रेम कर जो इससे प्रेम करे।

अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मानव समाज के मार्गदर्शन का दायित्व संभाला। वह ऐसा समय था कि इस्लामी समाज को अनेक षड़यंत्रों का सामना था उमवी शासकों के हाथ में सत्ता थी और वह धर्म को अपनी इच्छाओं के अनुसार प्रयोग करने और आवश्यकता पड़ने पर धर्म में परिवर्तन कर देने के प्रयास में थे। उन्होंने इसके लिए पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की लोकप्रियता कम करने की योजना बनाई क्योंकि इमाम हसन अलैहिस्सलाम और पैग़म्बरे इस्सलाम के अन्य परिजन ऐसे महान लोग थे जिनके पास इस्लाम धर्म और इस्लामी शिक्षाएं अपने विशुद्ध रुप में मौजूद थीं। वह इस्लामी सिद्धांतों, नियमों और शिक्षाओं को शुद्ध रुप में प्रस्तुत करते थे और यह बात उमवी शासकों को पसंद नहीं थी । हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत हुई तो कूफ़ा नगर के लोगों ने जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की राजधानी थी इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपना शासक और मार्गदर्शक चुना किंतु शाम के सिंहासन पर बैठा मुआविया इस पर तिलमिला गया क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से उसे बड़ी दुशमनी थी । अपने शासन की छोटी सी अवधि में ही इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार गतिविधियों कीं कि लोगों कहने लगे कि इमाम हसन ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शासन शैली में नई जान डाल दी है। मुआविया को इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बढ़ती लोकप्रियता देखकर चिंता होने लगी और वह वह ईर्ष्या और द्वेष की आग में जलने लगा। उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के विरुद्ध चालें चलना और षडयंत्र रचना आरंभ कर दिया। अंतत:ऐसे ही एक षडयंत्र के अंतर्गत इमाम हसन अलैहिस्सलाम को उनकी पथभ्रष्ट पत्नी के हाथों विष दिलवा दिया गया।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इस नश्वर संसार में अमर रहने वाली एकमात्र चीज़ कुरआन है अत: कुरआन को अपना मार्गदर्शक और अगुवा बनाओ ताकि ताकि सत्य के मार्ग के पथिक बन सको। कुरआन पर अधिक अधिकार उसका है जो उसका अधिक पालन करता है चाहे उसकी आयतें उसे याद न भी हों। कुरआन से सबसे दूर वह लोग हैं जो उसकी शिक्षाओं का पालन नहीं करते जबकि उन्हें पूरा कुरआन याद है।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम का एक अन्य कथन है।

चिंतन करना कभी न भूलो क्योंकि चिंतन मनन हृदय को जीवन प्रदान करता है और यह ईश्वरीय कृपा की कुंजी है।

एक अन्य कथन है कि ईश्वर के निकट सबसे श्रेष्ठ स्थान उसका है जो सामान्य जनमानस के अधिकारों से परिचित हो और यह अधिकार उन्हें दिलाने के लिए प्रयासरत रहता हो।

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