बेहतरीन लीडर इमाम रज़ा (अ) की निगाह में

बेहतरीन लीडर इमाम रज़ा (अ) की निगाह में

इस वर्ष पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके दो परिजनों की शहादत तथा ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ की तिथियां लगभग साथ-साथ पड़ रही हैं। ईरानियों में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के प्रति विशेष लगाव पाया जाता है और ईरानी जनता का महान आन्दोलन, जो फरवरी १९७९ में सफल हुआ, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों की शिक्षाओं से प्रेरित था। जिस विषय ने ईरानियों को तानाशाही पहलवी शासन के विरुद्ध आन्दोलन के लिए प्रेरित किया वह इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की विचारधारा से उस शासन की शत्रुता थी।आज पैग़म्बरे इस्लाम के एक पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है। एक एसे महान व्यक्ति का शहादत दिवस जिसने शताब्दियों पूर्व ईरान की भूमि पर पैर रखा।

शताब्दियां व्यतीत हो जाने के बावजूद आज भी पवित्र नगर मशहद में उनके मज़ार पर प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होकर अपने मन व आत्मा को शुद्ध करते हैं तथा वहां के आध्यात्मिक वातावरण से लाभान्वित होते हैं। इमाम अली इब्ने मूसा रज़ा का जन्म १४८ हिजरी क़मरी को पवित्र नगर मदीना में हुआ था। अपने पिता इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात ईश्वरीय मार्गदर्शन का दायित्व आपके कांधों पर आ गया। उन्होंने वर्षों तक मदीने में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पुष्ट प्रमाणों और तर्कों के आधार पर अब्बासी सरकार को इस्लाम विरोधी सरकार मानते थे। इमाम द्वारा लोगों के उचित मार्गदर्शन के कारण अब्बासी शासक मामून को अपनी सत्ता ख़तरे में पड़ती दिखाई देने लगी।

यही कारण था कि उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से अपनी सरकार के केन्द्र मर्व आने पर विवश किया। इस कार्य से उसका उद्देश्य एक तो यह था कि उनको वहि की भूमि से दूर करे और दूसरे उनको अपना उत्तराधिकारी बनाने का निमंत्रण देकर अपनी सरकार को वैधता प्रदान कर सके। किंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने बड़ी ही दूरदर्शिता से मामून की योजना को विफल बना दिया।इमाम द्वारा अपनाई गई युक्तियों में से एक, नैशापूर नगर में उनका भाषण था। मदीने से मरव की यात्रा के दौरान वे जिस नगर या बस्ती में पहुंचते वहां पर जनता द्वारा उनका भव्य स्वागत किया जाता था। इन नगरों में से एक नेशापूर था। नेशापूर में बड़ी संख्या में लोग इमाम रज़ा के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब इमाम रज़ा अपने चाहने वाले लोगों के बीच पहुंचे तो ईश्वर की प्रशंसा के पश्चात उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन प्रस्तुत किया।

यह कथन, सिलसिलतुज़्ज़हब के नाम से विख्यात है। इस कथन का उल्लेख करते हुए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरे पिता ने अपने पिता से और उन्होंने अपने पूर्वजों से और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से तथा पैग़म्बरे इस्लाम ने जिब्रईल से और उन्होंने ईश्वर से सुना है कि ला इलाहा इल्लल्लाह अर्थात अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है, यह वाक्य, मेरा सुदृढ़ दुर्ग है और जो भी इस दुर्ग में प्रविष्ट होगा वह मेरे कोप से सुरक्षित रहेगा।इस हदीस के वर्णन के पश्चात इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपना महत्वपूर्ण कथन सुनने के लिए लोगों को तैयार करते हुए कहाः- इसकी कुछ शर्ते हैं और उन शर्तों में से एक मैं हूं। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने एकेश्वरवाद को जीवन का आधार और ईश्वरीय मार्गदर्शक होने के नाते स्वयं को इसकी शर्त बताया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने इस वाक्य के साथ, ईश्वरीय विचारधारा तथा समाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में ईश्वरीय नेतृत्व पर भलीभांति प्रकाश डाला।

निःसन्देह, किसी भी समाज में राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना से उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है। किसी भी समाज के संचालन के लिए सरकार के गठन की आवश्यकता जैसी अटल वास्तविकता का उल्लेख जहां इस्लामी शिक्षाओं में मिलता है वहीं पर यह विषय इमाम रज़ा सहित पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की विचारधारा में स्पष्ट रूप से पाया जाता है। यह विषय धर्म और राजनीति के एक दूसरे से अभिन्न होने को सिद्ध करता है।इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम समाज में अन्याय को दूर करने के लिए एक योग्य मार्गदर्शक के अस्तित्व को आवश्यक मानते हैं। वे इस आवश्यकता को व्यापक स्तर पर प्रस्तुत करते हुए कहते हैं, शासक की आवश्यकता के कारणों में से एक कारण यह है कि हम संसार में कोई भी ऐसा राष्ट्र नहीं दिखाई देता जो शासक और उचित कार्यक्रम के बिना बाक़ी रहा हो क्योंकि अपने भौतिक एवं आध्यात्मिक कार्यों के लिए जनता को किसी शासन की आवश्यकता होती है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अब्दुल अज़ीज़ बिन मुस्लिम को इस्लाम में नेतृत्व का महत्व बताते हुए कहते हैं- इमामत अर्थात मुसलमानों का नेतृत्व, धर्म के मूल सिद्धांतों में से है। ईश्वर ने अपने धर्म को परिपूर्ण बनाने और पवित्र क़ुरआन को भेजने से पूर्व, जिसमें हर प्रकार के ईश्वरीय आदेश और निर्देश हैं, पैग़म्बरे को इस संसार से नहीं उठाया। ईश्वर अपने दूत को किसी अन्य संसार में नहीं ले गया। संसार ने अभी तक किसी व्याख्याकार के बिना कोई पुस्तक, विचारक के बिना कोई विचारधारा तथा कार्यक्रम बनाने वाले के बिना कोई कार्यक्रम न तो देखा है और न ही सुना है। विशेषकर ऐसा नियम जो लोक-परलोक में मानव के कल्याण को सुनिश्चित करता हो। यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संसार से विदा लेने से पूर्व मुसलमानों को धर्म का सही मार्ग दिखाया।इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इसके पश्चात अपने भाषण में पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा अपने पश्चात इमाम अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने की ओर संकेत करते हुए ईश्वरीय मार्गदर्शकों को समाज की सुदृढ़ता का कारण बताते हैं।

इमाम रज़ा के मतानुसार योग्य नेता जनता के समस्त मामलों पर गहरी दृष्टि रखता है और पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अनुसरण करते हुए पवित्र क़ुरआन के नियमों को लागू करता है जो समाजिक स्थिति में सुधार का कारण है। इमाम रज़ा के वक्तव्यों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस्लामी मार्गदर्शन, व्यापक इस्लामी समाज के गठन, धार्मिक सुधार और ईमान वालों के सम्मान का कारण है। निर्धनता से संघर्ष, आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाना और आर्थिक भ्रष्टाचार से मुक़ाबला, इस्लामी नेतृत्व के महत्वपूर्ण दायित्वों में से है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही साथ जनता की आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति को योग्य नेता का दायित्व बताते हैं। इमाम धार्मिक नेता और मुस्लिम शासन व्यवस्था का कारक है। इमामा से ही मोमिनों की सांसारिक भलाई है और उनका मान-सम्मान इमाम से ही है। इमाम ही इस्लाम का आधार है। वह है जो ईश्वरीय नियमों को जानता है और उनको लागू करता है। वह उचित उपदेशों और सशक्त तर्कों के आधार पर लोगों को न्याय तथा वास्तविक मार्ग का निमंत्रण देता है।

एक दिन अब्बासी शासक मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने अपनी सैनिक उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए उनपर प्रसन्नता जताई। इसके उत्तर में इमाम रज़ा ने कहा कि क्या गावों पर विजय ने तुझको प्रसन्न कर दिया? मामून ने कहा कि क्या यह प्रसन्नता का कारण नहीं है? इमाम ने कहा, मुहम्मद के अनुयाइयों के बारे में और उसपर जो तुम राज कर रहे हो उससे डरो। तुमने मुसलमानों के मामलों को नष्ट कर दिया है। तुनमे कामों को एसों के हवाले कर दिया है जो ईश्वरीय आदेश के आधार पर निर्णय नहीं करते। अत्याचारग्रस्तों का जीवन बड़ी कठिनाइयों में व्यतीत हो रहा है। जीवन व्यतीत करने के लिए उनके पास धन नहीं है। वे किसी एसे को नहीं पाते जिससे शिकायत कर सकें। क्या तुमको पता नहीं है कि मुसलमानों के नेता को एक एसे स्तंभ की भांति होना चाहिए जिस तक सबकी पहुंच सरल हो।

यहां पर इमाम ने मुसलमानों के बारे में ढिलाई के कारण अब्बासी शासक मामून की आलोचना की। उन्होंने उसे याद दिलाया कि इस्लामी शासक को भौतिक सुविधाओं से दूर तथा जनता की पहुंच में होना चाहिए। उसको जन सेवक होना चाहिए न कि वह जनता की पहुंच से दूर महलों में विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करे। अपने एक अन्य उपदेश में इमाम रज़ा कहते हैं कि ईश्वरीय नियमों के प्रसार के लिए शक्तिशाली, सक्षम और अमानतदार व्यक्ति का होना आवश्यक है जो दूसरों के अधिकारों का हनन न होने दे। अपने इस उपदेश में इमाम रज़ा योग्य शासक की विशेषताओं में से एक शक्ति एवं क्षमता को बताते हैं। उनका मानना है कि इस्लामी शासन में इस शक्ति का प्रयोग जनता की सेवा और उचित प्रबन्धन में किया जाना चाहिए ताकि जनता पर शासन हर प्रकार के अत्याचार और तानाशाही से दूर हो। यह उसी स्थिति में संभव है कि जब योग्य शासक की दृष्टि में सत्ता, स्थान तथा सरकार की समस्त संभावनाओं को ईश्वरीय देन समझा जाए।

इमाम मानते हैं कि एसी स्थिति में शासक लोगों का हितैषी होगा और अपनी शक्ति को अत्याचार के विरुद्ध प्रयोग करेगा। वे सत्ता को सुदृढ़ बनाने के लिए न्याय को सबसे सशक्त तत्व मानते हैं। इस संदर्भ में वे कहते हैं कि जब भी बादशाह, राजा या शासक अत्याचार करे तो उसकी सरकार कमज़ोर और अविश्वसनीय हो जाती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम योग्य शासक उसे मानते हैं जो ज्ञान, ईश्वरीय भय और अपनी दूरदर्शिता से लोगों के लोक-परलोक के कल्याण उनके मान-सम्मान और समाज में न्याय की स्थापना के लिए प्रयासरत रहे।

इस प्रकार की विशेषताएं ईरानी जनता ने अपनी इस्लामी क्रांति के दौरान स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के भीतर देखीं और आज भी उन्ही तर्कों के आधार पर वे वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई का समर्थन करती है। इमाम रज़ा ने अपने जीवन के अन्तिम दो वर्ष मर्व नगर में व्यतीत किये। वर्षों तक इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के बाद तत्काल अब्बासी शासक मामून के घिनौने षडयंत्र के अन्तर्गत वर्ष २०३ हिजरी क़मरी में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को विष देकर शहीद कर दिया गया।

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