पैग़म्बरे इस्लाम की ज़ियारत हिन्दी अनुवाद के साथ

पैग़म्बरे इस्लाम की ज़ियारत हिन्दी अनुवाद के साथ

हम अपने सारे प्रिय पाठकों को पैग़म्बरे इस्लाम की शहादत के अवसर पर खेद प्रकट करते हैं और ख़ुदा से शिकायत करते हैं اللھم نشکو الیک فقد نبینا و غیبۃ ولینا जैसा कि हस सब जानते हैं कि 28 सफ़र की तारीख़ इन्सानी इतिहास की वह तारीख़ है जब इस धरती से सबसे महान और ग़रीबों का मसीहा लोगों को सीधा रास्ता दिखाने वाला, ईश्वर का महबूब सबसे सच्चा और अमानतदार हमारा नबी इस दुनिया से चला गया।

यह वह तारीख़ है जिसमें इन्सान जितना भी रोए जितना भी आँसू बहाए उतना कम है क्योंकि यह हम पर कितनी बड़ी मुसीबत है कि एक तरफ़ तो हमारा रसूल हमारे बीच से चला गया और दूसरी तरफ़ उसका वसी यानी हमारे ज़माने का इमाम होते हुए भी हमारी आख़ों के सामने नहीं है।

हम इस दर्दनाक तारीख़ पर सारे मुसलमानों विशेष कर आपके वसी और हमारे ज़माने के इमाम की ख़िदमत में खेद प्रकट करते हैं।

हम आज के दिन इस ज़ियारत के पढ़ के उस सभी लोगों को जो यह कहते हैं कि रसूल इस दुनिया से चले गए हैं और अब कुछ बाक़ी नहीं बचा है उनकी मज़ार केवल एक मिट्टी का ढेर हैं और कुछ नही, हम ऐसे लोगों को बताना चाहते हैं कि यह ज़रूर है कि रसूल का पवित्र शरीर हमारे बीच में नहीं है लेकिन वह मरे नहीं हैं वह आज भी हमको देख रहे हैं हमारे सलाम का जवाब दे रहे हैं हमारी दुआओं को सुन रहे हैं और इसी लिए हम रसूल को इस प्रकार इर ज़ियारत में संभोधित करते हैं जैसे कि वह हमारे बीच ही हो।

ٲَشْھَدُ ٲَنْ لاَ إلہَ إلاَّ اﷲُ وَحْدَھُ لاَ شَرِیکَ لَہُ، وَٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ رَسُولُہُ 

मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई ईश्वर नहीं है, जो एकेला है उसके कोई साथी (शरीक) नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि आप उसके रसूल हैं

وَٲَنَّکَ مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ اﷲِ، وَٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ قَدْ بَلَّغْتَ رِسالاتِ رَبِّکَ، وَنَصَحْتَ لاِمَّتِکَ

और आप अबदुल्लाह के बेटे मोहम्मद हैं और मैं गवाही देता हूँ कि आपने अपने ईश्वर के अहकाम पहुँचा दिए, और अपनी उम्मत को नसीहत की

وَجَاھَدْتَ فِی سَبِیلِ اﷲِ بِالْحِکْمَۃِ وَالمَوْعِظَۃِ الْحَسَنَۃِ وَٲَدَّیْتَ الَّذِی عَلَیْکَ مِنَ الْحَقِّ

और आपने हिकमत और नेक नसीहत के साथ ख़ुदा की राह में जिहाद किया और हक़ एवं वास्तविक्ता के बारे में आपना दायित्व पूरा कर दिया है

وَٲَ نَّکَ قَدْ رَؤُفْتَ بِالْمُؤْمِنِینَ، وَغَلَظْتَ عَلَی الْکَافِرِینَ، وَعَبَدْتَ اﷲَ مُخْلِصاً 

और निःसंदेह आप मोमिनों के लिए दयालू और काफ़िरों के लिए सख़्त थे, आपने अल्लाह की सच्चे दिल से अराधना की 

حَتَّی ٲَتیکَ الْیَقِینُ، فَبَلَغَ اﷲُ بِکَ ٲَشْرَفَ مَحَلِّ الْمُکَرَّمِینَ، الْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِی

यहां तक कि आपकी मृत्यु का समय आ गया तो ईश्वर ने आपको महान लोगों में सबसे श्रेष्ठ स्थान पर पहुँचा दिया, प्रशंसा है उस ईश्वर के लिए जिसने आपके माध्यम से

اسْتَنْقَذَنا بِکَ مِنَ الشِّرْکِ وَالضَّلالِ اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَ آلِہِ وَاجْعَلْ صَلَوَاتِکَ

हमको शिर्क और पथभ्रष्ठता के बचा लिया, हे ईश्वर हज़रत मोहम्मद और उनके अहलेबैत (परिवार वालों) पर रहमत और दुरूद भेज और अपना दुरुद

وَصَلَوَاتِ مَلائِکَتِکَ وَٲَنْبِیائِکَ وَالْمُرْسَلِینَ وَعِبَادِکَ الصَّالِحِینَ وَٲَھْلِ السَّمَاوَاتِ

और अपने फ़रिश्तों, अपने नबियों और रसूलों और अपने नेक बंदों और आसमान एवं ज़मीन में रहने वालों

وَالْاَرَضِینَ وَمَنْ سَبَّحَ لَکَ یَا رَبَّ الْعَالَمِینَ مِنَ الْاَوَّلِینَ وَالاَْخِرِینَ 

और जो भी आलमीन (सारे संसार में) पहले वालों और आख़िरी वालों में सो जो भी तेरी तस्बीह करने वाला है उन सबका दुरूद मोहम्मद के लिए क़रार दे

وَرَسُولِکَ وَنَبِیِّکَ وَٲَمِینِکَ وَنَجِیبِکَ وَحَبِیبِکَ وَصَفِیِّکَ وَصِفْوَتِکَ وَخَاصَّتِکَ

जो तेरे बंदे, और तेरे रसूल और तेरे नबी और तेरे अमानतदार और तेरे नजीब और तेरे दोस्त और तेरे चुने हुए और तेरे पवित्र किए हुए और तेरे विशेष

وَخَالِصَتِکَ، وَخِیَرَتِکَ مِنْ خَلْقِکَ، وَٲَعْطِہِ الْفَضْلَ وَالْفَضِیلَۃَ وَالْوَسِیلَۃَ وَالدَّرَجَۃَ الرَّفِیعَۃَ،

और तेरे शुद्ध और तेरे स्रष्टि में सबसे बेहतरीन हैं, हे ईश्वर उनको सम्मान और फज़ीलत और वसीला अता कर और उनको उच्च स्थान दे

وَابْعَثْہُ مَقاماً مَحْمُوداً یَغْبِطُہُ بِہِ الْاَوَّلُونَ وَالاَْخِرُونَ اَللّٰھُمَّ إنَّکَ قُلْتَ 

और उन्हें प्रशंसा किए गए स्थान पर पहुँचा कि जिसके लिए अगले और पिछले सभी उनसे ईर्ष्या करें, हे ईश्वर निःसंदेह तूने फ़रमाया है कि

وَلَوْ ٲَنَّھُمْ إذْ ظَلَمُوا ٲَنْفُسَھُمْ جَائُوکَ فَاسْتَغْفَرُوا اﷲَ وَاسْتَغْفَرَ لَھُمُ الرَّسُولُ

(हे रसूल) अगर यह लोग उस समय कि जब उन्होंने स्वंय पर अत्याचार किया था हमारे पास आते और अल्लाह से क्षमा मांगते और उसका रसूल भी उनके लिए इस्तिग़्फ़ार करता

لَوَجَدُوا اﷲَ تَوَّاباً رَحِیماً، إلھِی فَقَدْ ٲَتَیْتُ نَبِیَّکَ مُسْتَغْفِراً تَائِباً مِنْ ذُ نُوبِی،

तो निःसंदेह यह ख़ुदा को तौबा स्वीकार करने वाला और दयालू पाते। हे ईश्वर मैं अपने पापों की क्षमा मांगते और तौबा करते हुए तेरे नबी के द्वार पर आया हूँ

فَصَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَ آلِہِ وَاغْفِرْہا لِی،

तो तू, मोहम्मद और उनकी आल पर रहमत फ़रमा और मेरे पापों को क्षमा कर दे,

یَا سَیِّدَنا ٲَتَوَجَّہُ بِکَ وَبِٲَھْلِ بَیْتِکَ إلَی اﷲِ تَعَالی رَبِّکَ وَرَبِّی لِیَغْفِرَ لِی۔

हे मेरे आक़ा मैं आपके और आपके अहलेबैत के माध्यम से ईश्वर की तरफ़ आया हूँ जो आपका और मेरा ख़ुदा है ताकि मुझे क्षमा कर दे

उसके बाद तीन बार कहे

 إنَّا لِلّٰہِ وَ إنَّا إلَیْہِ رَاجِعُونَ

निःसंदेह हम ईश्वर के लिए और यक़ीनन हमको उसकी तरफ़ पलट कर जाना है।

(यहां पर ऐसा लगता है कि इन्सान अपने दिल का दर्द अपने रसूल से बयान कर रहा है और वह इसमें इतना खो जाता है कि उसे ऐसा लगता है कि वह स्वंय रसूल के सामने हैं और अपनी बात को कह रहा है, लेकिन अचानक उसको ध्यान आता है कि अरे यह क्या हुआ हमारा रसूल तो हमारे सामने है ही नहीं उसका पवित्र शरीर तो जा चुका है, यह केवल उसकी आत्मा है जो हमारे बीच में है और आज भी हमारी बातों को सुन रही है और हमारी दुआओं को स्वीकार कर रही है, और जब इन्सान को यह ध्यान आता है तो उसका दिल शोक में डूब जाता है फिर वह उससे उभरने के लिए कहता है  إنَّا لِلّٰہِ وَ إنَّا إلَیْہِ رَاجِعُونَ )

ٲُصِبْنا بِکَ یَا حَبِیبَ قُلُوبِنا، فَمَا ٲَعْظَمَ الْمُصِیبَۃَ بِکَ حَیْثُ انْقَطَعَ عَنَّا الْوَحْیُ

शोक में हैं हम आपके लिए हे हमारे दिलों के महबूब, इससे बड़ी और क्या मुसीबत हो सकती है कि हमसे वही का सिलसिल कट गया

وَحَیْثُ فَقَدْنَاکَ فَ إنَّا لِلّٰہِ وَ إنَّا إلَیْہِ راجِعُونَ۔ یَا سَیِّدَنا یَا رَسُولَ اﷲِ

और आप हमारे बीच से चले गए, और निःसंदेह हम अल्लाह के लिए हैं और हमको उसी की तरफ़ पलट कर जाना है, हे हमारे सरदार हे अल्लाह के रसूल

صَلَوَاتُ اﷲِ عَلَیْکَ وَعَلَی آلِ بَیْتِکَ الطَّاھِرِینَ، ہذَا یَوْمُ السَّبْتِ وَھُوَ یَوْمُکَ، 

आप पर ख़ुदा की रहमतें हों और आपके पवित्र परिवार पर, आज शनिवार का दिन है और यही आपका दिन है

وَٲَ نَا فِیہِ ضَیْفُکَ وَجَارُکَ، فَٲَضِفْنِی وَٲَجِرْنِی، فَ إنَّکَ کَرِیمٌ تُحِبُّ الضِّیَافَۃَ، 

और मैं आज आपका मेहमान और आपकी पनाह में हूँ, मेरे मेज़बानी कीजिए और पनाह दीजिए, निःसंदेह आप कृपालु और मेहमान नवाज़ी करने वाले हैं

وَمَٲمُورٌ بِالْاِجارَۃِ، فَٲَضِفْنِی وَٲَحْسِنْ ضِیَافَتِی، وَٲَجِرْنا وَٲَحْسِنْ إجَارَتَنا، بِمَنْزِلَۃِ اﷲِ عِنْدَکَ وَعِنْدَ آلِ بَیْتِکَ،

और पनाह देने पर मामूर हैं, तो मुझे अपना मेहमान बनाइये और बेहतरीन मेहमान नवाज़ी कीजिए, और मुझे पनाह दीजिए जो बेहतरीन पनाह हो आपको वास्ता है ईश्वर के उस सम्मान का जो आपके और आपके अहलेबैत के नज़दीक रखता है

وَبِمَنْزِلَتِھِمْ عِنْدَھُ، وَبِمَا اسْتَوْدَعَکُمْ مِنْ عِلْمِہِ

और जो सम्मान उनका ईश्वर के यहां है, और उस ज्ञान का वास्ता है जो उसने आपको दिया है

فَإنَّہُ ٲَکْرَمُ الْاَکْرَمِینَ۔

कि वह कृपा करने वालों में सबसे बड़ा कृपालु है।

इस पुस्तक (मफ़ातीहुल जनान) के संकलन कर्ता अब्बास क़ुमी कहते हैं कि जब मैं रसूले इस्लाम (स) की ज़ियारत पढ़ना चाहता हूँ तो पहले आपकी वह ज़ियारत पढ़ता हूँ जो इमाम रज़ा (अ) ने बज़नती को तलीम दी थी, उसके बाद यह ज़ियारत पढ़ता हूँ और उसका तरीक़ा यह है कि सहीस सनद केसाथ रिवायत हुई है कि इब्ने अबी नस्र बज़नती ने इमाम रज़ा (अ) से कहाः नमाज़ के बाद मैं रसूले इस्लाम (स) पर सलवात कैसे भेजूँ? आपने फ़रमाया कि यूँ कहा करोः

اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا رَسُولَ اﷲِ وَرَحْمَۃُ اﷲِ وَبَرَکَاتُہُ اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا مُحَمَّدُ بْنَ عَبْدِاللہ

आप पर सलाम हो हे अल्लाह के रसूल और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें हो, आप पर सलाम हो हे अबदुल्लाह के बेटे मोहम्मद

(हमे रसूल को सलाम करते समय यह याद रखना चाहिए कि हमारे रसूल की यह शैली थी उनके जीवन में कोई भी उनको पहले सलाम नहीं कर पाया यानी जिसने भी चाहा कि रसूल के सलाम करे रसूल उससे पहले ही उसके सलाम कर दिया करते थे, तो अगर हम यहां पर अपने रसूल को सलाम कर रहे हैं तो यह न समझें कि हम रसूल को पहले सलाम कर रहे हैं बल्कि रसूल हमको पहले ही सलाम कर चुके हैं यह तो हमारे कानों पर पड़ा हुआ पर्दा है जो हमें उनकी आवाज़ को सुनने से रोक रहा है)

اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا خِیَرَۃَ اﷲِ، اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا حَبِیبَ اﷲِ، اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا صِفْوَۃَ اﷲِ،

आप पर सलाम हो हे ख़ुदा के पसंदीदा, आप पर सलाम हो हे ख़ुदा के महबूब, आप पर सलाम हो हे अल्लाह के चुने हुए

اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا ٲَمِینَ اﷲِ ، ٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ رَسُولُ اﷲِ، 

आप पर सलाम हो हे अल्लाह के अमानतदार, मैं गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह के रसूल हैं और गवाही देता हूँ आप अबदुल्लाह के बेटे मोहम्मद हैं

وَٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِاﷲِ، وَٲَشْھَدُ ٲَنَّکَ قَدْ نَصَحْتَ لاَُِمَّتِکَ، وَجَاھَدْتَ فِی سَبِیلِ رَبِّکَ

और मैं गवाही देता हूँ कि आप अपनी क़ौम के शुभचिंतक रहे और अपने ईश्वर के लिए जिहाद किया

وَعَبَدْتَہُ حَتَّی ٲَتَاکَ الْیَقِینُ، فَجَزَاکَ اﷲُ یَا رَسُولَ اﷲِ ٲَ فْضَلَ ما جَزی نَبِیّاً عَنْ ٲُمَّتِہِ۔

और उसकी आराधना करते रहे यहां तक कि मृत्यु आ गई, तो अल्लाह आपको अज्र दे हे अल्लाह के रसूल वह बेहतरीन अज्र जो नबी को उम्मत से मिल सकता है

(और इसी लिए जब मक्के के लोगों ने आपको अज्र देना चाहा तो आपने केवल यही फ़रमाया कि मेरा अज्र केवल यही है कि तुम लोग मेरे परिवार वालों से मोहब्बत करना, लेकिन हुआ ठी इसके उलट जिस परिवार से मोहब्बत के लिए कहा गया था उसकी परिवार की बेटी को बाप पर रोने से रोका गया, उसके पति के गले में फंदा डाला गया, नवासे की लाश पर तीर बरसाए गए, और हद तो कर्बला में हो गई कि जब छोटे छोटे बच्चे प्यास प्यास चिल्लाते रहे लेकिन कोई पानी देने वाला न था और एक भरी दोपहर में रसूल का पूरा परिवार उजाड़ दिया गया सब मार दिए गए।

क्या यही अज्र था जो मुसलमानों ने अपने रसूल को दिया)

اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ ٲَ فْضَلَ ما صَلَّیْتَ عَلی إبْراھِیمَ وَآلِ إبْراھِیمَ

हे ईश्वर मोहम्मद और उनकी आल पर रहमत फ़रमा बेरतरीन रहमत जो तूने इब्राहीम और आले इब्राहीम पर फ़रमाई है

إنَّکَ حَمِیدٌ مَجِیدٌ ۔

निःसंदेह तू प्रशंसा के योग्य और शान वाला है।

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