इमाम हुसैन (अ) के कथन भाग 2

इमाम हुसैन (अ) के कथन भाग 2

11- قال الحسین علیه السلام:

من کَفَّلَ لنا یتیماً قَطَعَتهُ عَنّا مِحنَتَنا باستِتارِنا فَواساه مِن عُلُومنا التی سَقَطَت إلیه حتی أرشَدَه بهُداهُ، قال له الله عزوجل: یاأیها العبد الکریم المُواسی إنّی أولی بهذا الکرم، اجعلوا له یا ملائکتی فی الجنان بعدد کل حرف عَلَّمَه أخاه ألف ألف قصر، و ضَمُّوا إلیها ما یلیق بها من سائر النعم.

इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः जो भी हमारी (अहलेबैत) ख़ातिर किसी यतीम की सरपरस्ती (देखरेख) करे वह यतीम जिसको परेशानी मुसीबतों और हमारी ग़ैबत ने उसके और हमारे बीच जुदाई डाल दी है, तो अगर उसी ज्ञान से जो हमारी तरफ़ से उस तक पहुँचा है उसका मार्गदर्शन करे और अपनी हिदायत और मार्दर्शन से उसको हक़ीकत और सच्चाई दिखा दे, ख़ुदा उससे फ़रमाता हैः हे महान और करीम बंदे कि तूने (आले मोहम्मद के यतीमों पर) हमदर्दी की मैं इसके लिए ज़्यादा हक़दार हूँ कि तुझे अपने करम और रहम में दाख़िल कर दूँ।

हे मेरे फ़रिश्तों हर अक्षर और बात को बदले जो इसने दूसरों को सिखाया है हज़ार हज़ार महल जन्नत में उसके लिए बनाओ और इन महलों को आरामदेह बनाओ और विभिन्न प्रकार की नेमतें उसमें डालो जो उसको लिए आवश्यक हो।

12- قال رجل للحسین بن علی الحسین علیه السلام:

یا ابن رسول الله أنا من شیعتکم.

قال(علیه السلام): اتق الله! و لا تدعین شیئاً یقول الله لک «کذبت و فَجَرتَ فی دعواک».

إنّ شیعتنا مَن سَلِمَت قلوبهم من کلِّ غِشٍّ و دَغَلٍ ولکن قُل أنا من موالیکم و محبّیکم.

एक आदमी ने इमाम हुसैन (अ) से अर्ज़ कीः हे पैग़म्बर के बेटे मैं आपके शियों में से हूँ, आपने फ़रमायाः ख़ुदा से डरो और उस चीज़ का दावा न करो कि ख़ुदा तुमसे कहे कि झूठ बोल रहे हो और अपने दावे में पाप किया है, जान लो कि हमारे शिया वह लोग हैं कि जिनका दिल हर धोखे और मक्कारी और चालबाज़ी से पाक है, कहो कि मैं आपके चाहने वालों और दोस्तों में से हूँ (यानि हर एक को शिया कहलाने का हक़ नहीं है बल्कि अगर यह गुण पाए जाते हो तो अपने आप को शिया कहों वरना नहीं)

13- فی المناقب مرسلاً: أنَّ عبدالرحمن السَّلمی عَلَّمَ وَلَدَ الحسین علیه السلام الحمدَ، فلَمّا قَرَءَها علی أبیه، أعطاه ألف دینارٍ و ألف حُلَّةٍ و حَشا فاهُ دُرّاً، فقیل له فی ذلک، فقال علیه السلام: و أینَ یَقَعٌ هذا مِن عَطائِهِ یَعنی تعلیمِهِ.

अब्दुल रहमान सुलमा ने इमाम हुसैन (अ) के बेटे को अलहम्द का सूरा सिखाया, जब बच्चे ने अपने पिता के सामने सूरा पढ़ा तो इमाम ने हज़ार दीनार और हज़ार हिल्ले (एक प्रकार की बहुत क़ीमती कपड़ा) टीचर को दिए और उसके मुंह को मोतियों से भर दिया, इमाम के इस कार्य के बारे में लोगों ने प्रश्न किया तो

इमाम ने फ़रमायाः यह भेंट उस चीज़ के मुक़ाबले में जो टीचर ने उसे सिखाया है कहां बराबरी कर सकती हैं? (यानी इन दोनों का कोई मेल ही नहीं है)

14- رُوِىَ أنَّ رجلاً قال للحسين بن علىّ عليهما السّلام:

اجلِس حتّى نتناظر في الدّين. فقال: يا هذا أنا بصير بدينى، مكشوف علىّ هداى، فإن كنت جاهلاً فاذهَب فاطلبه، ما لى و للمماراة؟! و إنّ الشّيطان يوسوس للرّجل و يناجيه، و يقول: ناظر النّاس في الدّين لئلاّ يظنّوا بك العجز و الجهل.

एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन (अ) से कहाः बैठिये ताकि धर्म के बारे में मुनाज़ेरा और बहस करें, हज़रत ने फ़रमायाः हे फ़लां मैं अपने धर्म के बारे में जानता हूँ, और ख़ुदा की हिदायत मेरे लिए रौशन है, अगर तुम जाहिल हो ख़ुद उसको तलाश करो, मुझे जेदाल और बहस से क्या लेना देना? निःसंदेह शैतान आदमी के दिल में वसवसा और शंका डालता है और अपनी आहिस्ता बातों से उसको भटकाता है और कहता हैः लोगों से धर्म के बारे में बहस करो ताकि वह तुम्हारे बारे में यह न सोचें कि तुम जाहिल और शक्तिविहीन हो।

नोटः चूँकि इमाम उस व्यक्ति के दिल के बारे में जानते थे इसलिए आपने बहस से दूरी की और आप चाहते थे कि उसको इस ख़तरे की तरफ़ मुतवज्जेह कर सके।

15- قال الحسین علیه السلام:

کتاب اللّه عزوجل علی أربعة أشیاء: علی العبارة و الاشارة و اللطایف و الحقایق. فالعبارة للعوام و الاشارة للخواص و اللطائف للأولیاء و الحقایق للأنبیاء.

ख़ुदा की किताब (क़ुरआन) चार चीज़ों पर है, इबारत की सूरत में, इशारे की सूरत में सूक्ष्म और दक़ीक़ चीज़ों पर और हक़ीक़त एवं सच्चाई पर, उसका ज़ाहिर और इबारत अवाम और सारे लोगों के लिए है, उसके इशारे और किनाए ख़ास लोगों के लिए हैं, उसके लताएफ़ ख़ुदा के वलियों और हक़ाएक़ पैग़म्बरों के लिए हैं।

इस हदीस में इमाम हुसैन (अ) ने यह बताते हुए कि क़ुरआन में बहुत ही गहरी शिक्षा और अमीक़ मआरिफ़ हैं बताया है कि हर इन्सान इससे लाभ उठा सकता है

"इबारत" से तात्पर्य मफ़हूम को अनुवाद की हद तक पहचानना है और शब्दों का अर्थ समझना है जिसमें हर इन्सान समिलित है

"इशाराते क़ुरआन" से तात्पर्य क़ुरआन को समझना है उसकी तफ़्सीर की हद तक जो विशेष है क़ुरआन के विशेषज्ञों और उन लोगों से जो तफ़्सीर के ज्ञान में माहिर हैं।

"लताएफ़े क़ुरआन" से तात्पर्य क़ुरआन के वह नुक्ते और व्याख़्याएं है जो अधिकतर तफ़्सीर के ज्ञानियों की हद से बाहर हैं, और इसको समझने के लिए विलायते इलाही का होना शर्त है, वह जिन्होंने अपने आप को ख़ुदा के हवाले कर दिया है और ख़ुदा ने उनकी सरपरस्ती को स्वीकारा है, और वह इमामों एवं मासूमों के विशेष साथियों में से हैं यही वह लोग हैं जो क़ुरआन के लताएफ़ सो समझते हैं

"हक़ाएक़ क़ुरआन" से तात्पर्य ख़ुदा की ज़ात और क़ुरआन की छिपी हुई चीज़ें है जो केवल मासूमों के लिए है कोई दूसरा उस तक नहीं पहुँच सकता है (لا‌یَمَسُّـهُ إِلاّ المُطَهَّـرُونَ)

16 - قال الحسین علیه السلام:

إنَّ حَوائِجَ النَّاسِ إلَيْكُم مِنْ نِعَمِ اللهِ عَلَيْكُمْ، فَلا تَمِلّوا النِّعَمَ فتتحوَّل إلی غیرکم.

इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः जान लो कि लोगों का तुम से हाजत रखना तुम पर ख़ुदा की नेमतों में से एक नेमत है, तो नेमतों से थकों नहीं कि वह नेमतें तुम्हारे अतिरिक्त किसी दूसरी की तरफ़ चली जाएं (और तुम से नेमतें छीन ली जाएं)

17- قال الحسین علیه السلام:

دِرَاسَة الْعِلْمِ لِقَاحُ الْمَعْرِفَه. وَ طُولُ التَّجَارِبِ زِيَادَة فِي‌ الْعَقْلِ. وَالشَّرَفُ التَّقْوَي‌. وَالْقُنُوعُ رَاحَة الابْدَانِ. وَ مَنْ أَحَبَّكَ نَهَاكَ؛ وَمَنْ أَبْغَضَكَ أَغْرَاكَ.

ज्ञान का सिखाना और सीखना मारेफ़त और शिनाख़्त (ईश्वर को पहचानने) का माध्यम है, और बड़े बड़े तजुर्बे अक़्ल के बढ़ने का कारण होते हैं, और महानता और श्रेष्ठता तक़वे से है, और क़नाअत जिस्मों के आराम का सबब है, और जो तुम से मोहब्बत करता है वह तुमको (बुराईयों और पापों से) रोकता है, और जो तुम से दुश्मनी रखता है वह तुमको धोखा देता है और तुमको बुराई और पाप का निमंत्रण देता है।

18- قال الحسین علیه السلام:

أیّها الناس! مَن جادَ سادَ و من بَخِلَ رَذِلَ و إنَّ أجْوَدَ النّاسِ مَنْ أعْطي مَنْ لا يَرْجُوهُ، وَ إنَّ أعْفَي النّاسِ مَنْ عَفي عَنْ قُدْرَة، وَ إنَّ أَوْصَلَ النّاسِ مَنْ وَصَلَ مَنْ قَطَعَهُ.

इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः हे लोगों जो सख़ावत करता है वह सरदारी और महानता तक पहुँचता है, और जो कंजूसी करता है वह ज़लील होता है, जान लोग कि सबसे सख़ी इन्सान वह है जो उसको दे जिसको उससे आशा भी न हो, और सबसे अधिक क्षमा करने वाला इन्सान वह है जो शक्ति और कंट्रोल के बाद क्षमा कर दे, और सबसे अधिक सिला रहम (रिश्तेदारों के साथ नेकी करना) करने वाला इन्सान वह है जो उसके साथ संबंध स्थापित करे जिसने उससे संबंध तोड़ लिया हो।

19- قال حسين ابى على عليهما السلام يوماً لابن عباس:

لاتتكلَّمَنَّ فيما لا يَعنيك! فإنّى أخاف عليك الوِزر.

و لا تتكلَّمنَّ فيما يَعنيك! حتى تَرى للكلام موضعاً، فرُبَّ متكلِّم قد تكلَّم بالحق فعيب.

و لا تُماریَنَّ حلیماً و لا سفیهاً، فإنَّ الحلیم یُقلیکَ و السفیهَ یُؤذیکَ،

و لا تقولنَّ فی أخیکَ المؤمنِ إذا تَواری عنک إلاّ ما تُحِبُّ أن یقولَ فیکَ إذا تَواریتَ عنه،

و اعمل عَمَلَ رجلٍ یَعلَمُ أنَّه مأخوذٌ بالأجرامِ مُجزیٌّ بالإحسانِ، و السلام.

इमाम हुसैन (अ) ने एक दिन इबने अब्बास से फ़रमायाः

कभी भी जिस चीज़ में तुम्हारा लाभ न हो बात न करो, मैं डरता हूँ कि पाप और गुनाह तुम्हारे लिए रह जाए,

और जिस चीज़ में तुम्हारे लिए लाभ हैं उसके बारे में भी बात न करो यहां तक कि कहने के लिए सही स्थान और समय पा लो, कितने ऐसे बोलने वाले हैं जो सच बोलते हैं लेकिन उन पर ऍब लगाया जाता है (क्योंकि उन्होंने वहां पर बोला जो उनके बोलने का समय या स्थान नहीं था)

और हलीम (धैर्य रखने वाला) और कम अक़्ल इन्सान से बहस न करो क्योंकि जो धैर्य रखने वाला है वह तुम्हारी बात को दिल पर ले लेगा और जो कम अक़्ल है वह तुमको परेशान करेगा।

और कभी भी अपने मोमिन भाई जो तुम्हारे सामने नहीं है के बारे में कुछ न कहो सिवाय उस बात के जो वह पसंद करता है कि उसकी पीठ पीछे कही जाए।

और अपने कार्य (अमल) को उस व्यक्ति की भाति जो जानता है कि अपने जुर्म पर उसको सज़ा दी जाएगी और नेकी एवं एहसान पर उसको सवाब दिया जाएगा अंजाम दो।

20- قال الحسین علیه السلام:

مَنْ أَرَادَ اللَهَ تَبَارَکَ وَ تَعَالَی‌ بِالصَّنِیعَة إلَی‌ أَخِیهِ کَافَأَهُ بِهَا فِی‌ وَقْتِ حَاجَتِهِ، وَصَرَفَ عَنْهُ مِنْ بَلاَءِ الدُّنْیَا مَا هُوَ أَکْثَرُ مِنْهُ. وَمَنْ نَفَّسَ کُرْبَة مُؤْمِنٍ فَرَّجَ اللَهُ عَنْهُ کُربَ الدُّنْیَا وَالآخِرَة. وَمَنْ أَحْسَنَ أَحْسَنَ اللَهُ إلَیْهِ؛ وَاللَهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِینَ.

इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः जो भी ख़ुदा की ख़ुशी के लिए अपने दीनी भाई के साथ नेकी और उसकी सेवा करे ख़ुदा उसकी आवश्यकता के समय उसको पूरा कर देगा (यानी जब उसको ख़ुद किसी चीज़ की आवश्यकता होगी तो उसको ख़ुदा पूरा करेगा) और उससे जितनी अपने भाई की सेवा की है उससे अधिक दुनिया की बलाओं और कठिनाइयों को उससे दूर कर देगा, और जो भी किसी मोमिन के दुख और दर्द को दूर करे ख़ुदा उससे दुनिया और आख़ेरत के दुख और दर्द को दूर कर देगा, और जो भी एहसान और नेकी करे ख़ुदा उसके साथ भलाई करेगा और ख़ुदा भलाई करने वालों को दोस्त रखता है।

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