इमाम हुसैन (अ) के कथन
इमाम हुसैन (अ) के कथन
1- قال الحسین علیه السلام:
اَلبَخیلُ مَن بَخِلَ بِالسَّلامِ؛
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः
कंजूस वह व्यक्ति जो सलाम करने में कंजूसी करे (यानी सलाम न करे)
2- قال الحسین علیه السلام:
لِلسَّلامِ سَبعُونَ حَسَنَةً، تِسعٌ وَ سِتُّونَ لِلمُبتَدِءِ وَ واحِدَةٌ لِلرّادِّ؛
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः
सलाम करने में सत्तर सवाब और नेकियाँ हैं उनहत्तर सलाम करने वाले के लिे और एक जवाब देने वाले के लिए (वाबजूद इसके कि सलाम करना मुस्तहेब लेकिन जवाब देना वाजिब है)
3- قال الحسین علیه السلام لرَجُلٍ اغتابَ عندَه رجلاً:
یاهذا کفِّ عن الغیبة فإنّها اِدامُ کِلابِ النّار.
इमाम हुसैन (अ) ने उस व्यक्ति से जिसने आपके सामने दूसरे व्यक्ति की बुराई और ग़ीबत की फ़रमायाः
हे फ़ला, दूसरों की ग़ीबत और बुराई को छोड़ दो क्योंकि ग़ीबत नर्क के कुत्तों का खाना है।
4- قال الحسین علیه السلام:
إنَّ قَوْماً عَبَدُوا اللهَ رَغْبَةً فَتِلْكَ عِبادَةُ التُّجارِ، وَ إنَّ قَوْماً عَبَدُوا اللهَ رَهْبَةً فَتِلْكَ عِبادَةُ الْعَبْیدِ، وَ إنَّ قَوْماً عَبَدُوا اللهَ شُكْراً فَتِلْكَ عِبادَةٌ الْأحْرارِ، وَ هِیَ أفْضَلُ الْعِبادَةِ.
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः
जान लो कि कुछ लोग ख़ुदा की इबादत जन्नत की लालच में करते हैं, यह इबादत व्यापारियों की इबादत जैसी है, और कुछ लोग डर से ख़ुदा की इबादत करते हैं और यह दासों एवं ग़ुलामों की इबादत है, और कुछ लोग ख़ुदा की इबादत करते हैं उसके शुक्र के लिए और यह आज़ाद लोगों की इबादत है और यह बेहतरीन इबादत है।
5- قال الحسین علیه السلام لابنه علیِّ بن الحسین علیهما السلام:
أي بُنَيَّ، إیّاک و ظُلم من لا یجد علیک ناصراً إلاّ الله عزّ و جلّ .
इमाम हुसैन (अ) ने आबने बेटे इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ) से फ़रमायाः
हे मेरे प्यारे बेटे किसी पर अत्याचार करने से बचो जिसका तुम्हारे सामने ख़ुदा के अतिरिक्त कोई और सहायता करने वाला न हो।
6- قال الحسین علیه السلام:
أنا قتیل العَبرَة، لا یَذکُرُنی مؤمنٌ إلاّ استعبر
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमायाः
मैं आँसुओं का मारा हूँ कोई भी मोमिन मुझे याद नहीं करता है मगर यह की उसको रोना आता है।
7- کتب رجلٌ إلی الحسین بن علیّ علیه السلام:
یا سیّدی! أخبِرنی بخیر الدنیا و الآخرة. فکتب إلیه:
بسم الله الرحمن الرحیم، أمّا بعد فإنَّه مَنْ طَلَبَ رِضَي اللهِ بِسَخَطِ النّاسِ كَفاهُ الله اُمُورَ النّاسِ، وَ مَنْ طَلَبَ رِضَي النّاسِ بِسَخَطِ اللهِ وَكَّلَهُ اللهُ إلَي النّاسِ، والسلام.
एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन (अ) को पत्र लिखाः हे मेरे सय्यदो सरदार मुझे दुनिया और आख़ेरत की भलाई से आगाह करें,
आपने उसको लिखाः
बिसमिल्ला हिर रहमानिर्रहीम निःसंदेह जो भी (ख़ुदा की ख़ुशी और लोगों के क्रोध के मुक़ाबले में) ख़ुदा की ख़ुशी को लोगों के क्रोध के बावजूद चाहे ख़ुदा उसके कार्यों को पूरा करेगा और जो ख़ुदा के क्रोध के मुक़ाबले में लोगों की ख़ुशी चाहे ख़ुदा उसको लोगों के रहमो करम पर छोड़ देगा (और उसकी सहायता नहीं करेगा) वस्सलाम।
8- سُئِلَ الحسین بن علیّ علیه السلام فقیل له: کیف أصبحتَ یابن رسول الله؟
قال: أصبحت و لي ربٌّ فوقی، و النار أمامي، و الموت یطلبني، و الحساب محدقٌ بي و أنا مُرتَهِنٌ بعملي، لا أجد ما أحبُّ، و لا أدفع ما أکره، و الأمور بيد غیري فإن شاء عذّبني، و إن شاء عفا عنّي، فأيّ فقیر أفقر مني؟!
इमाम हुसैन (अ) से प्रश्न किया गयाः
हे पैग़म्बर के बेटे आपने किस प्रकार सुबह की और दिन को किस प्रकार आरम्भ किया?
आपने फ़रमायाः
मैने अपने दिन को आरम्भ किया जब्कि ख़ुदा मेरे सर पर है (ख़ुदा मेरे कार्यों को देख रहा है)
और नर्क मेरे सामने है,
और मौत मुझे पुकार रही है और मेरे पीछे हैं,
और मेरे (आमाल) का हिसाब किताब मुझे घेरे हुए है,
और मैं अपने आमाल का मरहूने मिन्नत हूँ,
मैं जो पसन्द करता हूँ उसको प्राप्त नहीं कर पाता हूँ
और जो बुरा लगता है उसको रोक नहीं सकता हूँ,
और मेरे सारे कार्य दूसरे (ख़ुदा) के हाथों में हैं,
अगर वह चाहे तो मुझे अज़ाब करे और अगर चाहे तो क्षमा कर दे,
तो कौन सा फ़क़ीर मुझसे अधिक फ़क़ीर होगा?!
9- قال رجلٌ للحسین علیه السلام:
بنيتُ داراً أحبّ أن تدخلها و تدعو الله، فدخلها فنظر إليها. ثم قال عليه السلام:
أخربتَ دارك ، و عَمَّرتَ دار غيرك، غَرَّكَ مَن في الأرض، و مَقَّتَكَ من في السماء.
एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन (अ) से कहाः
मैंने एक घर बनाया है और मैं चाहता हूँ कि आप उसक घर में प्रवेश करें (उसका उद्घाटन करें) और वहां ख़ुदा को पुकारें (दुआ करें)
तो आप (अ) ने वहां प्रवेश किया और उसको देखा, फिर फ़रमायाः (वास्तव में) तुमने अपने घर (आख़ेरत) को बर्बाद कर दिया और दूसरों के घर को आबाद किया है, जो (लोग) इस ज़मीन पर हैं उन्होंने तुझे धोखा दिया है और जो आसमान (ख़ुदा और फ़रिश्ते) में हैं वह तुझसे क्रोधित हुए हैं (एक चीज़ ते तूने धोखा खाया और उससे दिल लगा लिया और ख़ुदा और फ़रिश्तों को अपने से क्रोधित कर दिया है)
10- قیل للحسین بن علی علیه السلام:
مَنْ أعْظَمُ النّاسِ قَدْراً؟ قالَ: مَنْ لَمْ يُبالِ الدُّنْيا في يَدَيْ مَنْ كانَتْ.
इमाम हुसैन (अ) के कहा गयाः
किस इन्सान की क़द्र और क़ीमत अधिक है?
आपने फ़रमायाः जिसको इस बात की परवाह और डर न हो कि दुनिया किस के पास है (जिसके पास भी उससे उसको निराशा न हो और उसपर अफ़सोस न करे)
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