टक टक ही परिश्रमिक है
टक टक ही परिश्रमिक है
لیس للانسان الا ما سعی
एक बार की बात है कि एक लकड़हारा जंगल से लकड़ियां काट कर लाता था और इस प्रकार अपने परिवार का भरण पोषण करता था।
एक दिन वह जंगल में गया और लकड़ियां काटने लगा, इतने में एक दूसरा व्यक्ति वहां आया और पेड़ के सामने बैठ गया, लकड़हारा जैसे ही पेड़ की जड़ पर कुलहाड़ी मारता तो वह व्यक्ति बैठे बैठ कहता "हुंह"
लकड़हारा दोपहर कर कुलहाड़ी चलाता रहा और वह व्यक्ति उसके सामने बैठा बैठा अपने मुंह से कहता रहा "हुंह" "हुंह"। लकड़हारा लकड़ियां काटकर बाज़ार में लाया और उनको बेच दिया, जैसे ही लकड़ियों कै पासा उसके हाथ में आया "हुंह" की आवाज़ निकालने वाला व्यक्ति आया और कहने लगा कि मेरा हिस्सा मुझे दो।
लकड़हारे ने कहाः तुम्हारा हिस्सा कैसे?
उसने कहाः सारा दिन तुम कुल्हाड़ी मारते रहे और मैं मुंह से "हुंह" की आवाज़ निकालता रहा, आख़िर मुझे उसकी क़ीमत मिलनी चाहिए।
इस बात पर उन दोनों में झगड़ा इतना बढ़ा कि उनको क़ाज़ी की अदालत में जाना पड़ा।
क़ाज़ी ने दोनों की बातों सुनीं और अपना फ़ैसला सुनाया और लकड़हारे से कहाः उसे जो पैसे मिले हैं वह उन्हें ज़मीन पर फ़ेंके और उससे जो ध्वनि पैदा हो दूसरा व्यक्ति उस आवाज़ को सुने, क्योंकि वह कार्य में समिलित नहीं हुआ है और केवल "हुंह" कहता रहा है तो उसका बदला यह है कि वह दिरहमों की आवाज़ सुन ले क्यों का परिश्रमिक टक टक होता है।
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