औरत का स्थान इमाम ख़ुमैनी की निगाह में
औरत का स्थान इमाम ख़ुमैनी की निगाह में
किसी समय उसे जूतों से रौंदा गया तो कभी मूर्तियां बना कर उसकी पूजा-आराधना की गई, यहां तक कि एक दिन उसे मुक्ति मिली और विश्व में उसे सत्य की पहचान और ईश्वर की महानता व कृपा का चिन्ह माना जाने लगा। वही अर्थ जिसकी ओर इमाम खुमैनी इशारा करते हैं, महिलाओं में मानवता होनी ही चाहिए उन में ईश्वर का भय होना चाहिए। महिलाओं का स्थान बहुत महान है, महिलाओं को अधिकार प्राप्त है जैसे पुरूषों को अधिकार प्राप्त है। (हे महिलाओ) आपको ईश्वर ने महान बनाया है, स्वतंत्र बनाया है।
ईश्वर ने जिस प्रकार पुरूषों को सीमित करने के लिये कानून व नियम बनाए हैं ताकि भ्रष्टाचार उनकी सीमा में प्रविष्ट न होसके, उसी प्रकार महिलाओं के लिए भी है---------महिला दो अवसरों पर अत्याचार ग्रस्त थी एक अज्ञनता के काल में---------और अज्ञानता का चरण वह चरण था कि जब स्त्री को पशुओं जैसा बल्कि उस से भी गिरा हुआ समझते थे । एक अन्य अवसर पर हमारे ईरान में महिला अत्याचार ग्रस्त हुई और वह समय पूर्व शाह ,असत्यवादी शाह का काल था। इस नाम पर कि चाहते हैं महिला को स्वतंत्र करें कितने ही अत्याचार कर डाले। महिला को उसकी शालीनता एवं सम्मान वाले स्थान से नीचे खींच लिया, महिला को उसके आध्यात्मिक स्थान से एक वस्तु के रूप में ले आए। स्वतंत्रता के नाम पर महिलाओं और पुरूषों से स्वतंत्रता छीन ली गई और हमारी महिलाओं एवं हमारे युवकों को भ्रष्ट कर दिया।
औरत एक माँ के रूप मेः
माँ का आंचल एक महान पाठशाला है जिसमें बच्चे का प्रशिक्षण होता है। बच्चा जो कुछ मां से सुनता है वह उससे पूर्णतयः भिन्न है जो वह शिक्षक से सुनता है। बच्चा शिक्षिका के मुक़ाबिले में मां से ज़्यादा अच्छी तरह सुनता है। वह पिता के मुक़ाबिले में भी माँ के आंचल में बेहतर प्रशिक्षण पाता है। आपके घरों को सन्तान का प्रशिक्षण केन्द्र होना चाहिए। धार्मिक प्रशिक्षण, चारित्रक प्रशिक्षण। इनके भविष्य पर ध्यान देना माँ का उत्तरदायित्व है। माँओं की ज़िम्मेदारी अधिक है। माँओं का स्थान ज़्यादा महान है, माँ की महानता पिता की महानता से अधिक होती है। बच्चों की भावनाओं पर भी माँ का प्रभाव पिता से अधिक होता है। वह माँ कि बच्चा जिसकी गोदी में पलता है, उसकी ज़िम्मेदारी बहुत बङी होती है, उसका व्यवसाय सब से महान है। बच्चों का पालन पोषण ,संसार का सर्वोत्तम व्यवसाय है तथा समाज को एक इन्सान प्रदान करना है। यह वही काम है जिसके लिये ईश्वर ने पूरे इतिहास में पैगम्बर भेजे। पूरे इतिहास में आदम से अन्तिम पैगम्बर (हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ) तक अनेक पैगम्बर आये ताकि इन्सान बनाएं। माँओं के अधिकार इतने अधिक हैं कि उनको गिना नहीं जासकता और उनका बदला भी उतारा नहीं जासकता।
बच्चे के लिये माँ की एक रात एक निष्ठावान पिता की वर्षों लम्बी आयु से अधिक मूल्यवान होती है। माँ के प्रकाशमयी नेत्रों में भरी कृपा व प्रेम ईश्वरीय कृपा व प्रेम की झलक होता है। महान ईश्वर ने अपनी ईश्वरीय कृपा के प्रकाश को इस प्रकार माँओं के हृदय व आत्मा में मिला दिया है कि उसको शब्दों में उतारा नहीं जासकता, और माँओं के अतिरिक्त उसे कोई समझ भी नहीं सकता।-----------पैगम्बरे इस्लाम(स) का कथन है कि स्वर्ग माँओं के पैरों तले है, यह एक वास्तविकता है, इतने सुन्दर शब्दों में उसका बयान महानता को दर्शाने के लिये है, और सन्तान को चेतित करने के लिये है कि अपनी सफलता और स्वर्ग को उनके पैरों के नीचे , उनके पांव की धूल में खोजें तथा ईश्वर की प्रसन्नता को माँओं की प्रसन्नता में ढूंढें।
औरत और समाज में उसकी भूमिका
इमाम ख़ुमैनी का मानना था कि महिला समाज में किनारे पर नहीं होती बल्कि वह समाज का केन्द्र है। इस बात में संदेह नहीं है कि महिला भी पुरूष के ही समान अपने भाग्य एवं भविष्य की स्वयं ही मालिक और अपने कर्म की उत्तरदायी होती है। कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारी के ध्रुव होने का अर्थ एक ओर संकल्प, अधिकार तथा कर्म की स्वतंत्रता है तो दूसरी ओर बुद्धि व ज्ञान होता है, और हर इन्सान ,महिला हो या पुरूष, अपने अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम के प्रति उत्तरदायी होता है। हमें इस बात पर गर्व है कि महिलाएं, बूढ़ी और जवान, छोटी,बड़ी सब संस्कृति, अर्थ व्यवस्था और सैन्य क्षेत्रों में उपस्थित रही हैं और पुरूषों के साथ या उनसे उत्तम रूप में इस्लाम की परिपूर्णता तथा क़ुरआन के लक्ष्यों की राह में सक्रिय हैं।
महिला की अपने भाग्य एवं भविष्य में भूमिका होनी चाहिये। इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाओं को मत देना चाहिये वैसे ही जैसे पुरूषों को मताधिकार है महिलाओं को भी मताधिकार है। जिस प्रकार पुरूषों की राजनैतिक विषयों में भूमिका होती है और वे अपने समाज की रक्षा करते हैं ,महिलाओं को भी भूमिका निभानी चाहिये तथा समाज की रक्षा करनी चाहिये। महिलाएं भी सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधयां पुरूषों के साथ-2 अंजाम दें।
औरत रचनात्मकता के मैदान मेः
समस्त ईरानी राष्टृ चाहे वह महिलाएं हों या पुरूष हमारे लिए (देश की) यह दुर्दशा जो छोङी गयी है उसे ठीक करें। यह केवल पुरूषों के हाथों ठीक नहीं होसकता। पुरूष एवं महिलाएं साथ मिल कर इन ख़राबियों को ठीक करें। साहसी एवं निष्ठावान महिलायें हमारे प्रिये पुरूषों के साथ महान ईरान को बनाने में उसी तरह लग जाएं जिस तरह उन्होंने स्वयं को ज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में बनाने के लिये प्रयास किये थे और आपको कोई भी नगर और गांव
संस्कृति एवं ज्ञान के क्षेत्र में औरत की उपस्थितिः
आप जानते हैं कि इस्लामी संस्कृति इस अवधि में अत्याचार ग्रस्त रही है, इन कई सौ वर्षों की अवधि में ,बल्कि आरम्भ से ही पैगम्बरे इस्लाम के बाद से अब तक,इस्लामी संस्कृति अत्याचार ग्रस्त रही है, इस्लामी नियम अत्याचार ग्रस्त रहे हैं, इस संस्कृति को जीवित करना होगा और आप महिलाएं जिस प्रकार परूष संलग्न हैं ,जिस प्रकार ज्ञान व संस्कृति के क्षेत्र में पुरूष लगे हुए हैं आप भी संलग्न हो जाएं।
औरतों की निरीक्षक भूमिकाः
इमाम खुमैनी का मानना था कि महिलाओं को कामों का निरीक्षण की ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। सभी महिलाओं एवं सभी पुरूषों को चाहिये कि सामाजिक विषयों एवं राजनैतिक विषयों में सम्मिलित रहें तथा उनका निरीक्षण करते रहें। संसद पर दृष्टि रखें, सरकार पर दृष्टि रखें और अपना दृष्टि कोण व्यक्त करें।
औरत और प्रशिक्षण में उसकी भूमिकाः
जो बच्चे अपनी मां से अलग रहे हैं और अनाथालयों में उनका पालन पोषण हुआ है उनमें एक प्रकार के द्वेष की भावना उत्पन्न हो जाती है जो हर प्रकार की या अधिकतर बुराईयों की जो मनुष्य़ में पाइ जाती हैं ,जड़ है। ---ये युद्ध---येचोरियां---ये विश्वासघात।बच्चा जब माँ के निकट होता है तो देखता है कि माँ चरित्रवान है,उसके कर्म उचित हैं, अच्छी बातें करती है----बच्चा बस वहीं से अपने कर्मों, अपनी बातों में माँ का अनुसरण करते हुए जो सर्वोत्तम अनुसरण है प्रशिक्षित होने लगता है। बच्चों के कान और आंखें पूरी तरह आप माँओं के कथनों एवं कर्मों पर लगे होते हैं। आप से झूठ न सुने तो झूठा नहीं निकलेगा, यदि उसने देखा कि माँ झूठ बोलती है, फिर पिता को भी झूठ बोलते देखता है तो स्वयं भी झूठ बोलने लगता है। अगर देखता है कि माँ भली प्रवृत्ति वाली है, पिता भी भला मनुष्य है तो बच्चा भी नेक इन्सान बनता है। अच्छी मां बच्चे को अच्छा प्रशिक्षण देती है और यदि, ईश्वर न करे , माँ पथभ्रष्ट हो तो बच्चा उसकी गोदी से ही पथभ्रष्ट निकलेगा।
औरत और समाज में उसका रोल
इमाम ख़ुमैनी का मानना था कि महिला समाज में किनारे पर नहीं होती बल्कि वह समाज का केन्द्र है। इस बात में संदेह नहीं है कि महिला भी पुरूष के ही समान अपने भाग्य एवं भविष्य की स्वयं ही मालिक और अपने कर्म की उत्तरदायी होती है। कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारी के ध्रुव होने का अर्थ एक ओर संकल्प, अधिकार तथा कर्म की स्वतंत्रता है तो दूसरी ओर बुद्धि व ज्ञान होता है, और हर इन्सान ,महिला हो या पुरूष, अपने अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम के प्रति उत्तरदायी होता है। हमें इस बात पर गर्व है कि महिलाएं, बूढ़ी और जवान, छोटी,बड़ी सब संस्कृति, अर्थ व्यवस्था और सैन्य क्षेत्रों में उपस्थित रही हैं और पुरूषों के साथ या उनसे उत्तम रूप में इस्लाम की परिपूर्णता तथा क़ुरआन के लक्ष्यों की राह में सक्रिय हैं।
महिला की अपने भाग्य एवं भविष्य में भूमिका होनी चाहिये। इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाओं को मत देना चाहिये वैसे ही जैसे पुरूषों को मताधिकार है महिलाओं को भी मताधिकार है। जिस प्रकार पुरूषों की राजनैतिक विषयों में भूमिका होती है और वे अपने समाज की रक्षा करते हैं ,महिलाओं को भी भूमिका निभानी चाहिये तथा समाज की रक्षा करनी चाहिये। महिलाएं भी सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधयां पुरूषों के साथ-2 अंजाम दें।
नई टिप्पणी जोड़ें