मैं आँसुओं का मारा हूँ!

मैं आँसुओं का मारा हूँ!

     अब कुछ ही दिन रह गए हैं जब इस्लामी दुनिया के सबसे दुखद दिन आरम्भ होने वाले हैं हमारा तातपर्य मोहर्रम से हैं यह वह दिन हैं जब ना केवल इस्लामी दुनिया बल्कि इस संसार का रहने वाला हर इन्सान दुखी होता है, जो भी अपने आप को इन्सान कहता है उसका दिल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कहानी और उनपर किए जाने वाले अत्याचार को जब भी सुनता है बेचैन हो उठता है और उसकी आखों से आसुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।

क्योंकि स्वंय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया हैः

انا قتیل العبرۃ لا یذکرنی مومن الا استعبر

     मैं इबरत से शहीद किया गया हूँ और कोई भी मोमिन मुझे याद नहीं करता है मगर यह कि वह नसीहत प्राप्त करता है।

कहा जाता है कि यहां पर जो العبرۃ शब्द हैं उसका अर्थ हैं उबूर या गुज़र जाना।

     यानी अब जो कोई भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम तक पहुँचता है वह केवल वहीं तक सीमित नहीं रह जाता है बल्कि वह वहां से गुज़र कर ख़ुदा तक पहुँच जाता है यानी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक पुल की भाति हैं ख़ुदा तक पहुँचने के लिए जो भी इस पुल को पार करेगा वह ख़ुदा तक पहुँच जाएगा जो भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला की घटना को देखेगा जो भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत का अद्यय्य करेगा जो भी उसको सही निगाह से देखेगा वह नसीहत प्राप्त करेगा और समझेगा कि किस प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ख़ुदा तक पहुँचने के लिए अपनी और अपने परिवार की बलि दे दी और इस्लाम को बचा लिया।

     कुछ जानकारी ना रखने वाले लोग इस स्थान पर प्रश्न करते हैं कि जब इमाम हुसैन को पता था कि अगर वह कर्बला जाएंगे तो शहीद कर दिए जाएगें उन पर पानी बंद कर दिया जाएगा उनका बच्चा अली असग़र प्यासा शहीद कर दिया जाएगा तो वह क्यों कर्बला गए? अक़्ल तो यह कहती है कि जब उनको पता था तो जाना ही नहीं चाहिए था।

     ऐसे लोगों के प्रश्न के उत्तर में मैं उनसे प्रश्न करूँगा कि आख़िर इमाम हुसैन कर्बला क्यों ना जाते? जब उनको पता था कि शहादत के बाद उनको इतना श्रेष्ठ स्थान मिलेगा, जब उनको पता था कि उनकी शहादत और बच्चों की प्यास के बाद इस्लाम बच जाएगा तो वह क्यों ना जाते, जब उनको पता था कि उनकी शहादत के बाद इस्लाम सदैव के लिए बीमा हो जाएगा तो वह क्यों ना जाते, जब उनको पता था कि उनकी शहादत के बात कोई भी इस्लाम को बदल ना सकेगा तो वह क्यों ना जाते, जब उनको पता था कि.......

हम सूरा आले इमरान की तीसरी आयत के अंतरगत पढ़ते हैं

     عبرۃ (इबरत) उबूर से लिया गया है जिसका अर्थ एक हालत से दूसरे हालत में जाना या एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना है। और आँसू को भी इबरत कहा जाता है क्यों कि वह आँखों से गुज़रते हैं और वह वाक्य जो ज़बान या कानों से ग़ुज़रते हैं उनको इबारत कहा जाता है।

     और हादसों और घटनाओं से इबरत हासिल करना भी इसीलिए कहा जाता है कि इन्सान जो देखता है या उसपर जो बीतती है उसने छिपी पुई वास्तविकताओं का ज्ञान प्राप्त करता है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इस हदीस को इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि इमाम ने फ़रमायाः

मैं क़त्ल किया गया ताकि लोगों के लिए इबरत बनूँ और...

     मैं आँसूओं का मारा हूँ और कोई भी मोमिन नहीं है कि वह मुझे याद करे मगर यह कि उसकी आँखों से आँसू जारी हो जाएं।

     याद रखिए कि ख़ुदा मोमिनों को पसंद करता है और उसने उनको बेहतरीन बहाना दिया है वह कहता है कि अगर तुमको रोना ही है तो हुसैन अलैहिस्सलाम पर रो लो अगर तुम दुनिया की मुश्किलात पर रोना चाहते हो तो कर्बला की मुसीबत को याद करके रो लो अगर किसी को मौत पर रोना चाहते हो तो कर्बला के शहीदों को याद कर के आँसू बहा लो, अगर तुम किसी की जुदाई पर रोना चाहते हो तो अहलेहरम से हुसैन अलैहिस्सलाम की जुदाई पर आँसू बहा लो अगर तुम.....

     रिवायत में है कि जिस दिन इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से सामने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाता था उस दिन आप मुस्कुराते नहीं थे।

शूशतरी फ़रमाते हैं कि हर वह चीज़ जो कर्बला से संबंधित है उसमें ग़म और आँसू हैं,

ज़ुलजनाह.....

कर्बला.....

प्यास......

कत्लगाह.....

शिशमाहा.....

तीर.......

नैज़े....

     तारीख़  बताती है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमामे ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम को मुस्कुराते हुए नहीं देखा गया। आप इतना अधिक रोते थे कि वुज़ू के लिए लाया गया पानी मुज़ाफ़ हो जाया करता था।

     एक दिन आपके पास आपका एक दास आया और कहने लगाः आप इतना अधिक क्यों रोते हैं?

     आपने फ़रमायाः चुप रहो ख़ुदा क़ुरआन में जनाबे याक़ूब अलैहिस्सलाम के बारे में फ़रमाता है कि जब वह यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से दूर हो गए तो उनके ग़म में इतना रोए कि उनकी आँखों की रौशनी चली गई

 وَابْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ الْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌ

     अरे याक़ूब का केवल एक यूसुफ़ उनसे बिछड़ गया था उनको पता था कि उनका यूसुफ़ जीवित है फिर भी वह इतना रोए लोकिन हाय मेरे बहत्तर यूसुफ़ कर्बला के मैदान में शहीद कर दिए गए और फिर भी तू कहता है कि मैं ना रोऊँ?

     तो हर कोई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ग़म के बारे में जब भी सुनता है उसकी आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं कोई भी ऐसा नहीं है कि जिसके सीने में दिल हो और वह इमाम हुसैन के ग़म में आँसू ना बहाता हो लेकिन क्या इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इसलिए शहीद हुए थे कि हम केवल उन पर आँसू बहाएं और रोए, या इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत का मक़सद कुछ और था

इमाम हुसैन के आंदोलन का मक़सद

1. इस संसार में मौजूद और बाद में आने वाले सारे इन्सानों का मार्गदर्शन।

     आप चाहते थे कि आपकी शहादत के बाद से रहती दुनिया तक हर एक को यह पता चल जाए कि हक़ीक़त क्या है और यज़ीद कौन था ताकि जो कोई भी वास्तविकता तक पहुँचना चाहता है उसके लिए रास्ता चुनना आसान हो

2. रोना और सवाब

     इसका मतलब यह नहीं है कि इमाम इसलिए शहीद हुए ताकि लोग उनपर रोएं और सवाब प्राप्त करें बल्कि क़तीलुल अबरा होना उसने प्रभाव को बयान करता है यानी रोना तो हर दर्दमंद दिल की ज़रूरत है लेकिन वास्तविक मक़सद को ज़ियारते अरबईन में इस प्रकार बयान किया गया है

و بذل مھجتہ فیک عبادک من الجھالۃ و حیرۃ الضلالۃ و قد توازر علیہ من غرتہ الدنیا

     अपनी जान को तेरी राह में दे दिया ताकि तेरे बंदो को जिहालत अज्ञानता और नादानी के भंवर और गुमराही में भटकने से नजात दे और इस प्रकार दुनिया चाहने वाले उसके विरुद्ध एक साथ हो गए।

सलाम हो उस हुसैन पर जो क़तीलुल अबरा है जो मुश्किलों में गिरफ़्तार है।

इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

یا عبرۃ کل مومن

हे वह हो हर मोमिन की आँख से आँसू को जारी करने वाला है।

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः

ما ضرب عبد بعقوبۃ اعظم من قسوۃ القلب

     कोई भी इन्सान संगदिली से बड़ी किसी सज़ा में गिरफ़्तार नहीं हुआ है (यानी सबसे बड़ी सज़ा इन्सान का पत्थर दिल होना है)

عن الریان بن شبیب عن الرضا علیہ السلام فی حدیث انہ قال لہ:

یا شبیب ان کنت باکیا لشئی فابک علی الحسین علیہ السلام فانہ ذبح کما یذبح الکبش و قتل معہ من اھل بیتہ ثمانیۃ عشر رجلا ما لھم فی الارض شبیھون و لقد بکت السماوات السبع و الارضون لقتلہ۔۔۔

یا ابن شبیب ان بکیت علی الحسین علیہ السلام حتی تصیر دموعک علی خدیک غفر اللہ لک کل ذنب اذنبتی صغیرا کان او کبیرا قیلا کان او کثیرا۔

یا ابن شبیب ان سرک ان تلقی اللہ عزوجل ولا ذنب علیک فزر الحسین علیہ السلام۔

یا ابن شبیب ان سرک ان تسکن الغرف المبنیۃ فی الجنۃ مع النبی و آلہ صلی اللہ علیھم فالعن قتلہ الحسین علیہ السلام۔

یا ابن شبیب ان سرک ان یکون لک من الثواب مثل ما لمن استشھد مع الحسین علیہ السلام فقل متی ذکرتہ یا لیتنی کنت معھم فافوز فوزا عظیم۔

یا ابن شبیب ان سرک ان تکون معنا فی الدرجات العلی من الجنان فاحزن لحزننا و افرح لفرحنا و علیک بولایتنا فلو ان رجلا احب حجرا لحشرہ اللہ معہ یوم القیامۃ۔

     रय्यान बिन शबीब इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः

     हे शबीब अगर तुम किसी चीज़ के लिए रोना चाहते हो तो हुसैन बिन अली अलैहिस्सलाम पर रोओ, क्योंकि उसको उस प्रकार मारा गया जिस प्रकार भेड़ को मारा जाता है (यानी जिस प्रकार किसी भेड़ को ज़िबह करते समय कोई यह नहीं कहता है कि इसको ना मारों सब यही कहते हैं कि जल्दी ज़िबह करों हमे इसका गोश्त चाहिए..... इसी प्रकार जब हुसैन को क़त्ल किया जा रहा था तो कोई भी बचाने वाला नहीं था कोई भी ज़लिमों को रोकने वाला नहीं था सभी यही कह रहे थे हुसैन की जल्दी क़त्ल करो हमें बादशाह से इनआम लेना है) और उसके साथ अहलेबैत अलैहिस्सलाम के अठ्ठारह आदमी मार दिए गए जिनकी तरह इस धरती पर कोई दूसरा नहीं था और उसके क़त्ल पर ज़मीन और आसमान ने आँसू बहाए थे......

यहा तक कि आपने फ़रमायाः

     हे शबीब अगर तुम हुसैन पर गिरया करो यहां तक कि तुम्हारे आँसू तुम्हारे गालों तक पहुँच जाए तो ख़ुदा तुम्हारे सारे पापों को क्षमा कर देगा चाहे वह बड़े हों या छोटे कम हों या अधिक।

     हे शबीब अगर तुम चाहते हो कि ख़ुदा से मुलाक़ात करों और तुम पर कोई पाप ना हो तो तुम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत करो।

     हे शबीब अगर तुम चाहते हो कि जन्नत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ कमरे में रहो तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़ातिलों पर लानत करो।

    हे शबीब अगर तुम चाहते हो कि तुम वह सवाब पाओ जैसा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ शहीद होने वालों को मिला तो जब भी उनका ज़िक्र किया जाए तो कहो "काश मैं उनके साथ होता तो मैं भी सबसे बड़ी कामियाबी को प्राप्त करता।"

     हे शबीब अगर तुम चाहते हो जन्नत में हमारे दर्जे और श्रेणी के हो तो हमारे दुख में दुखी हो और हमारी ख़ुशी में प्रसन्न, और हमारी इमामत को मानो क्योंकि अगर कोई इन्सान किसी पत्थर से मोहब्बत करे तो क़यामत के दिन ख़ुदा उसको उसी पत्थर के साथ उठाएगा

(वसाएलुश्शिया जिल्द 13, पेज 503)

     तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर रोने और उन पर आँसू बहाने का वह सवाब और प्रभाव है जिसको हम सोंच भी नहीं सकते हैं और शायत इसी लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि मैं आँसू का मारा हुआ हूँ, कौन से आँसू?

     अंतिम विदा के आँसूः जब सकीना कह रही थीं बाबा मुझे मेरे वतन पहुँचा दीजिए तो जाइये बाबा मुझे मदीना पहुँचा दीजिए जो जाइये बाबा मुझे....

     प्यास के आँसूः जब अहले हरम और छोटे छोटे बच्चे हाथों में ख़ाली कूज़ा लिए आवाज़ दे रहे थे अल अतश अल अतश हाय प्यास हाय प्यास...

     शाम के आँसूः कि जब क़ैदख़ाने में हुसैन का कटा हुआ सर लाया गया तो बच्ची ने कहा मैंने खाना नहीं मांगा है बस मुझे अपने बाबा से मिला दो, लेकिन जब तबक़ को खोला गया तो ....... कटा सर...... हाय बाब.......ख़ून दाढ़ी.........यतीम
बाज़ारे शाम के आँसूः कि जब कोई पूछता कि यह कौन हैं तो आवाज़ दी जाती यह ज़ैनब हैं यह उम्मे कुलसूम हैं यह..... कोई बालों से अपना मुंह छिपा रहा था तो कोई.......

आँसू.........               

आँसू.........                   

आँसू.........                 

आँसू.........

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