ख़ुदा क्या चाहता है?

ख़ुदा क्या चाहता है?

शेख़ तूसी इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के सम्बंध में लिखते हैं कि आपने फ़रमायाः

अल्लाह ने एक शहर का विनाश करने के लिए दो फ़रिश्तों को भेजा।

जब फ़रिश्ते उस शहर में उतरे तो उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति आधी रात के समय अल्लाह की इबादत कर रहा है और रो- रो कर अपने पापों के लिए क्षमा मांग रहा है।

उनमें से एक फ़रिश्ते ने कहाः हमे इस शहर का विनाश करने से पहले इस व्यक्ति के बारे में अल्लाह से पूछ लेना चाहिए कि क्या इसे भी दूसरों के साथ मार देना चाहिए या इसको चोड़ देना चाहिए?

दूसरे फ़रिश्ते ने कहाः हमे इसके सन्बंध में पूछने की आवश्यकता नहीं है, अल्लाह ने हमे जो आदेश दिया है हमारा काम उसको पूरा करना है।

जिस फ़रिश्ते ने प्रश्न करने से मना किया था अल्लाह ने उसपर वही (आकाशवाणी) कीः

इस व्यक्ति को भी दूसरे लोगों के साथ मौत के घाट उतार दो ।

فقد حل بہ معھم سخطی ان ھذا لم یتغیر وجھہ قط غضا

मैं दूसरे पापियों की भाति इससे भी क्रोधित हूं क्योंकि यह व्यक्ति अपनी आँखों से पाप होते हुए देखता रहा लेकिन आज तक इसने अपने चेहरे पर क्रोध के भाव भी प्रकट नहीं किए।

जिस फ़रिश्ते ने इस व्यक्ति के बारे में अल्लाह से प्रश्न करने के बारे में कहा था अल्लाह ने उससे क्रोधित होकर उसको एक टापू पर डाल दिया और वह अभी तक जीवित हैं और उस पर ख़ुदा का क्रोध नाज़िल हो रहा है।

(अलकुनिया वल अलक़ाब जिल्द 1 पेज 310)

शेख़ कुलैनी इमाम बाक़िर (अ) से रिवायत बयान करते हैं कि अल्लाह ने हज़रत शुऍब पर वही की कि मैं तुम्हारी क़ौम में से एक लाख़ लोगों को मारूँगा उनमें से चालीस हज़ार पापी हैं और साठ हज़ार अच्छे लोग हैं।

हज़रत शुऍब ने प्रार्थना कीः हे ईश्वर पापी दो अपने पापों के कारण मारे गए लेकिन साठ हज़ार बेगुनाह लोग क्यों मारे जाएंगे?
अल्लाह ने फ़रमायाः

داھنوا اھل المعاصی و لم یغضبوا لغضبی

उन्होंने पापियों के साथ नर्मी दिखाई हैं और जिनसे मैं क्रोधित हूँ उन पर यह क्रोधित नहीं हुए हैं।

(फ़ुरूए काफ़ी जिल्द 5 पेज 56)

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