सदक़ा मनहूसियत को दूर करता है

सदक़ा मनहूसियत को दूर करता है

इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने फ़रमायाः एक व्यक्ति के साथ मेरा एक ज़मीन में साझा था, मैंने उससे कहा कि हम अपनी अपनी ज़मीन अलग कर लें। वह व्यक्ति इल्मे नुजूम जानता था, वह जानबूझ कर बटवारे में टाल मटोल कर रहा था ताकि उसके अनुसार मुहूरत आ सके।

अख़िरकार एक दिन वह बटवारे के लिए राज़ी हो गया और ज़मीन की तरफ़ चल पड़ा, वह ऐसा समय था कि जब मुहूरत उसके अनुसार और मेरे ख़िलाफ़ था।

ज़मीन का बटवारा किया गया और हमने पर्ची डाली तो जो ज़मीन उर्वरक थी वह मेरे हिस्से में आई और बंजर ज़मीन उसके हिस्से में।

यह देख कर उसने ठंडी सांस खींची और कहाः इस दिन के जैसा मनहूस दिन मैं ने नहीं देखा।

मैने पूछा क्या हुआ?

उसने कहाः मैंने बटवारे के लिए उस समय को चुना था जो मेरे लिए अच्छा और आपके लिए मनहूस हो लेकिन इस बटवारे में मुझे ही हानि हुई है।

मैने कहा अगर चाहो तो मैं तुमको वह हदीस सुनाऊँ जो मेरे मासूम पिता ने मुझे सुनाई थी?

उसने कहाः अवश्य।

मैने कहाः पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः जो व्यक्ति यह चाहता है कि दिन की मनहूसियत उससे दूर हो जाए तो सदक़ा दे कर दिन आरम्भ करे और जो चाहता है कि रात की मनहूसियत उससे दूर रहे तो रात का आरम्भ सदक़े से करे।

और आज सुबह जब मैं बटवारे के लिए चला तो मैंने सदक़ा दिया था।

याद रखो इल्मे नुजूम पर विश्वास रखने से सदक़े पर विश्वास रखना अधिक अच्छा है

(अलकाफ़ी जिल्द 2 पेज 7)

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