इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर से क़यामत तक/ अहलेबैत (अ) का पलट कर आना

इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर से क़यामत तक/ अहलेबैत (अ) का पलट कर आना

हे ईश्वर इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर को क़रीब कर दे और हमारी आँखों को उनकी अदालत से भरी हुई हुकूमत से ठंडा कर दे

اللّهمّ إنّا نشکو إلیک فقد نبیّنا؛ .

हे ख़ुदा हम शिकायत करते हैं कि पैग़म्बर (स) हमारे बीच नहीं है।

و غیبة ولیّنا؛.

दूसरे इस मुसीबत की शिकायत करते हैं कि हमारे ज़माने का इमाम अद्रर्श्य है और हमारी आँखे उसे देख नहीं सकती।

आज हम अपने इमाम को देखते तो हैं लेकिन पहचानते नहीं हैं, हम अपने इमाम से उसी प्रकार अनजान हैं जिस प्रकार हज़रत यूसुफ़ (अ) के भाई उनसे अनजान थे।

و کثرة عدوّنا؛ .

हे ईश्वर हमारी तीसरी शिकायत यह है कि हमारे शत्रु बहुत अधिक हैं।

و قلّة عددنا؛ .

और हमारी संख्या कम है।

اللّهمّ إنّا نرغب إلیک فی دولة کریمة؛.

हे ईश्वर हम चाहते हैं कि हमारी आँखें उस पवित्र हुकूमत, वह हुकूमत जो इन्सानों की दुनिया और आख़ेरत की सारी आवश्यकताओं को पूरा करने वाली है, यहां तक कि वह स्वंय इन आवश्यकताओं का ज्ञान भी नहीं रखते हैं या वह इनके लिए दुआ करें,के प्रकाश से रौशन हो जाए, वह पवित्र हुकूमत जो उनके सम्मान को बचाए रखती है और बिना मांगे देती है।

 اللّهمّ إنّا نرغب إلیک فی دولة کریمة تعزّ بها الإسلام و أهله؛ .

वह पवित्र हुकूमत हो अल्लाह वालों को इज़्ज़त देती है, केवल मुसलमानों को नहीं केवल शियों को नही, क्योंकि सम्भव है कि कुछ लोग ऐसे भी हों जिनके कानों तक हक़ बात पहुँची ही ना हो।

हर वह इन्सान जो फ़ितरत और अपने ज़मीर की आवाज़ को सुनता है, इमामे ज़माना (अ) उसको ऊपर लाएँगे, उसको इज़्ज़त और सम्मान देंगे, सब एक हो जाएंगे, विचार सही हो जाएंगे, कार्य सही हो जाएंगे, हुकूमत सही हो जाएगी।

और दूसरी तरफ़ निफ़ाक़, शिर्क और शैतान को ज़लील और अपमानित कर देगी वह पवित्र सरकार।

अन्तिम युग का अर्थ

इससे पहले कि हम इन प्रश्नों का उत्तर दें, अन्तिम युग के बारे में बता दें। अन्तिम युग का क्या अर्थ हैं? जिसके बारे में चैनलों पर भी बात की जाती है जिस पर फ़िल्म भी बनाई गई है।

अगर आप हमारा वह लेख जिसका शीर्षक इमामे ज़माना के ज़ोहूर की सामान्य निशानियां हैं देखें तो उन निशानियों से पता चलता है कि एसका एक अर्थ तो यह हो सकता है अन्तिम युग यानी वह युग जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) आए। और दूसरा अर्थ यह हो सकता है इमामे ज़माना (अ) की ग़ैबत से क़यामत तक का समय अन्तिम युग हो।

लेकिन हम जो अन्तिम युग के बारे में कह रहे हैं उसका तात्पर्य वह युग है जो इमामे ज़माना (अ) के ज़ोहूर से पहले का युग है।
इस युग की विशेषताओं में से एक विशेषता यह है कि कार्य अपने पथ से हट जाएंगे, चीज़ों का सही प्रयोग नही किया जाएगा, आप आज की हालत को देखिए कि इन्सान की सोंच और कार्य कहां जा रहे है, हमने अपनी धरती को भी नही छोड़ा है यह भी अपने पथ से हट चुकी है।

यह कहा जा सकता है कि अगर वह "मुन्जी" न आए तो तमाम इन्सान मारे जाएगे और शायद इसी लिए इमामे ज़माना (अ) को "मुन्जी" कहा जाता है।

अगर यह ख़ुदा का दूत ना आए तो समाज समाप्त हो जाएगा लोग आरज़ू करेंगे कि काश यह युग समाप्त हो जाए और दूसरा युग आरम्भ हो जाए।

इमामे ज़माना (अ) की हुकूमत के गुण और विशेषताएँ

क्यों कि यह एक महत्वपूर्ण मसला है कि जिसके बारे सारे धर्मों ने कहा है कि मुन्जी आएगा तो प्रश्न यह है कि आख़िर ऐसा क्या होगा कि आपकी हुकूमत हो जाएगी? और आपकी हुकूमत के बाद क्या होगा? और उसके कितने दिनों के बाद क़यामत आएगी?

आप फ़र्ज़ करें कि जब इमाम प्रकट होंगे और कुछ सालों के बाद आपकी हुकूमत मज़बूत हो जाएगी, तो उसके बाद इमाम क्या करेंगे? और इमामे ज़माना (अ) के बाद क्या होगा? और कितने दिनों बाद क़यामत आएगी?

वह बात जो मैंने अपने उस्तादों से सीखी है, आप यह ना सोंचे कि जैसे हम कहते हैं कि इमामे ज़माना (अ) आएँगे और दुनिया को अद्ल व न्याय से भर देंगे, चलो मान लेते हैं इमामे ज़माना (अ) आए और आपने दुनिया पर न्याय का राज कर दिया, कितने साल के लिए? हमको नहीं पता कि कितने साल 100. 200, 3000 कितने भी साल क्यों ना हो लेकिन उसके बाद फिर यह प्रश्न है कि उसके बाद क्या होगा?

यह और बात है कि हम इमाम ज़माना (अ) की विशेष दुआ में कहते हैं

  اللّهمّ کن لولیک الحجة بن الحسن فی هذه الساعة و فی کل ساعة ولیا و حافظا و قاعدا و ناصرا و دلیلاً و عینا حتی تسکنه أرضک طوعاً و تمتعه فیها طویلاً.  

उसके बाद कहते हैं कि हे ईश्वर आपको (अ) इन तमाम विशेषताओं के साथ सुरक्षित रख, और उसके बाद कहते हैं, उनके युग को लंबा कर दे।

लोग इस बात को समझें कि एक ईश्वरीय दूत की हुकूमत बहुत अलग है एक अत्याचारी की हुकूमत से।

तो इमामे ज़माना (अ) बहुत लंबी अवधि तक हुकूमत करेंगे। लेकिन सवाल फिर वही है कि उसके बाद क्या होगा? क्या उसके बाद क़यामत आ जाएगी?

इतने पैग़म्बर आए उन्होंने शुभ समाचार दिया कि अन्तिम युग के लिए दुआ करो। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इमाम ज़माना की हुकूमत का शुभ समाचार दिया।

हज़रत हूद (अ) कई हज़ार साल पहले यह आरज़ू कर रहे हैं, (لَوْ أَنَّ لِي بِكُمْ قُوَّةً أَوْ آوِي إِلى رُكْنٍ شَدِيدٍ) (هود/80)؛  वह आरज़ू कर रहे थे कि इमाम ज़माना (अ) के साथियों में से हो, वह आरज़ू करते हैं इमाम ज़माना (अ) की हुकूमत की और कहते हैं (أَلَيْسَ الصُّبْحُ بِقَرِيبٍ) (هود/81) क्या ज़ोहूर की सुबह क़रीब नही है?

इस प्रकार कहते हैं क्या इमाम ज़माना (अ) आएँगे और एक निश्चित समय सीमा में हुकूमत करेंगे न्याय को फैलाएंगे और सब समाप्त हो जाएगा?

इन्सान की अक़्ल इस बात को स्वीकार नहीं करती है। हज़ार साल हो गए शिया दुआ कर रहें है कि मेहदी (अ) की ज़ोहूर हो जाए, तो उसके बाद क्या होगा? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है,

एक ऐसा अक़ीद जो सही इस्लाम में है और जिसको केवल शियों ने बयान किया है वह है रजअत (पलट कर आने) का अक़ीदा
इमामों की रजअत (पलटकर आने) का युग

जब इमामे ज़माना (अ) का ज़ोहूर हो गया और धरती पर कमज़ोरों की हुकूमत हो गई और इमाम जो कि मासूम है वह ख़ुदा की अनुमति से अपने युग को समाप्त कर देंगे, उसके बाद अहलेबैत के वापस आने का युग आरम्भ होगा।

हे वह लोग जो यज़ीद के युग में थे जिसमें इमाम हुसैन (अ) को इनता समय नहीं दिया गया कि वह तुमको ऊपर उठा सकें तुम्हारे दर्जे को बुलंद कर सके, अब आओ और अफ़सोस करो कि अगर हुसैन (अ) के साथ होते, अगर हुसैन (अ) को कार्य करने की अनुमति दी होती तो क्या होता। आओ और देखों कि हुसैन (अ) क्या करते।

 इमाम हुसैन (अ) का पलटकर आना

रिवायत में है कि केवल इमाम हुसैन (अ) 40 हज़ार साल तक हुकूमत करेंगे, और आप तमाम लोगों को उनके वास्तविक स्थान तक पहुँचाएगें।

इमाम ज़माना (अ) शहीद होंगे या....

प्रश्न यह है कि इमाम ज़माना (अ) शहीद होंगे या आपका स्वर्गवास होगा?

इसके बारे में दो प्रकार के विचार पाए जाते हैं

1. आप शहीद होंगे।

2. आपका स्वर्गवास होगा।

जिस चीज़ को मैं सही समझता हूँ वह यह है कि आप शहीद नहीं होगे, और आपके शहीद होने के कथन को (जिस प्रकार हम दूसरे इमामों के बारे में कहते हैं) स्वीकार नहीं किया जा सकता है (हमने इससे पहले के अपने लेखों में इस कथन के समर्थक और विरोधी दोनों के तर्कों को विस्तार से बयान किया है) क्योंकि उस ज़माने में ज़ुल्म और अत्याचार समाप्त हो जाएगा, तब कोई ज़ालिम नहीं होगा जो इमाम को शहीद कर सके।

इमामे ज़माना (अ) की शहादत को स्वीकार करना यानी यह कहना है कि आपके ज़माने में ज़ुल्म और अत्याचार का ख़ातेमा नहीं हुआ है, और जब हमने यह मान लिया है कि इमाम हर प्रकार के अत्याचार को समाप्त कर देंगे तो आपकी शहादत को स्वीकार नहीं कर सकते हैं।

अब अगर हम इस्लामी पुस्तकों को देखें जिनमें यह कहा गया है कि इमामे ज़माना को एक औरत जिसकी दाढ़ी होगी, उसके यह गुण होंगे आदि शहीद करेगी, उन्होने बहुत ही चालाकी से यह बताने की कोशिश की है कि तुम चाहे जो कुछ कर लो यह ज़ुल्म और अत्याचार समाप्त होने वाला नही है, अगर तुम्हारे इमाम भी आ जाए तो वह भी समाप्त ना कर सकेंगे, हम उनको भी शहीद कर देंगे, उनको एक बुढ़िया से क़त्ल करा देंगे, और जब तुम्हारे इमाम का यह हाल होगा तो तुम अपने बारे में ख़ुद ही सोच लो कि क्या होने वाला है

अहलेबैत (अ) द्वारा तरबियत का युग

इमामे ज़माना (अ) का युग कि जिसमें आप न्याय को स्थापित करेंगे, वह युग जिसकी हर नबी को तमन्ना थी कि काश आपके युग में वह होते और अपने स्थान को देखते

इस युग के बाद अहलेबैत (अ) का युग आरम्भ होगा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) इमाम अली (अ) इमाम हसन (अ) हुसैन (अ) का युग आरम्भ होगा, और बहुत से रहस्य इस युग में फ़ाश होंगे, हां लेकिन जो अध्ययन करने वाला है वह कुछ रहस्यों की तह तक पहुँच सकता है।

यह (अहलेबैत) सब के सब एक ही नूर से हैं। हमारा विश्वास है कि इस दुनिया में एक दिन अहलेबैत पलट कर आएंगे, और यह उनकी रजअत का युग आरम्भ होगा। इस युग में संसार के लोगों को पता चलेगा कि अगर इमाम अली (अ) की हुकूमत को स्वीकार कर लिया होता तो वह कहां पहुँच गए होते, और आज वह किस पस्ती में है।

ज़ोहूर के बाद से क़यामत तक का समय

वह चीज़ जो मैंने अपने उस्तादों से सुनी है, और वह संभव है कि सही भी हो, वह यह है कि अगर मह हज़रत आदम (अ) के पैदा होने से लेकर इमाम ज़माना (अ) के ज़ोहूर तक को एक युग मानें तो ज़ोहूर के बाद 9 और युग हैं।

प्रश्न यह है कि हम यह कहां से कह सकते हैं कि अभी 9 युग बाक़ी है?

आप रिवायत को देखें कि जिसमें कहा जा रहा है कि इमाम हुसैन (अ) 40 हज़ार साल इस दुनिया में जीवित रहेंगे, और आपकी शिक्षा से इन्सान उच्च स्थान और बुलंद मर्तबे को प्राप्त करेंगे, आप सोचिए कि हम इमामे ज़माना (अ) के बाद केवल एक हुकूमत की बात कर रहे हैं.....

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ज़माने से अब तक 1400 साल बीत चुके हैं, और हुसैन (अ) 40 हज़ार साल इमाम ज़माना (अ) के बाद हुकूमत करेंगे, और इमाम अली (अ) के बारे में हैं कि वह तीन से अधिक बार आएंगे आर हुकूमत करेंगे, इमाम हुसैन (अ) के चालीस हज़ार साला युग में इमाम अली (अ) की कई रजअतें होंगी

सादे शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है कि आपने फ़िल्में देखी होंगी उसका एक ट्रेलर होता है और एक फ़िल्म इसी प्रकार यह संसार एक फ़िल्म की तरह है हज़रत आदम (अ) से लेकर इमाम ज़माना (अ) तक का युग केवल एक ट्रेलर है, पिक्चर तो अभी बाक़ी है मेरे दोस्त।

हम अभी इन्सानी इतिहास की पुस्तक के पहले पन्ने पर हैं अभी किताब तो आरम्भ भी नही हुई है।

और ऐसा हो भी क्यों ना? अगर कमालात और गुण समाप्त होने वाले नहीं हैं और इन्सान समाप्त ना होने वाली चीज़ को पसंद करता है, अगर किसी को एक हज़ार साल की आयु दे दी जाए तब भी वह और जीना चाहता है, क्योंकि बहुत सी चीज़ें अभी हैं जिनके बारे में नही जानता है या उसके पास नहीं हैं, तो आख़िर क्यों इन्सान की आयु पचास हज़ार या एक लाख साल की ना हो?
क्या ख़ुदा इन्सान की आयु को बढ़ा नहीं सकता है? क्या हम नहीं चाहते हैं कि हमारी आयु आधिक हो और हम बहुत से कमालात को प्राप्त कर सकें?

जब इमाम हुसैन (अ) 40 हज़ार साल तक जीवित रहेंगे तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उस युग की सामान्य आयु होगी।

अन्तिम युग और पतन

इन्सान अन्तिम युग में एक प्रकार की पस्ती और गिरावट में होगा, अन्तिम युग गिरावट का युग होगा, उस बॉल की तरह जो एक रबड़ से बंधी होती है जब उसको छोड़ा जाता है तो एक निश्चिंत सीमा तक जाने के बाद वापस लौटना आरम्भ कर देती है और ऊपर उठने लगती है

इमामे ज़माना (अ) और हज़रत सुलैमान (अ) की हुकूमत का अंतर

अन्तिम युग गिरावट, पस्ती और कार्यों के अपनी प्रकृतिक अवस्था से निकल जाने का युग है, और इमाम के ज़ोहूर और आपकी हुकूमत के स्थिर होने के साथ, कमज़ोरों की हुकूमत, ईश्वरीय दूत (ख़लीफ़ा ए ख़ुदा) का युग आरम्भ होगा, यह वह युग होगा जब हज़रत सुलैमान (अ) की हुकूमत को कम समझा जाएगा, हज़रत सुलैमान (अ) की हुकूमत जिसको क़ुरआन ने बयान किया है इमाम ज़माना (अ) के मुक़ाबले में हुकूमत नहीं होगी।

तब लोगों को समझ में आएगा कि इमामे जमाना (अ) और एक ईश्वरीय दूत की हुकूमत में जीवन व्यतीत करने और एक अत्याचारी की हुकूमत में जीने में कितना अंतर है, या इमामे जम़ाना की हुकूमत और नबियों की हुकूमत में कितना अंतर है, एक ज़मीन है तो दूसरा आसमान

वह लोग जो हज़रत सुलैमान (अ) के ज़माने के थे अगर वह इमाम ज़माना (अ) की हुकूमत को देख लेते तो उनकी निगाह में सुलैमान की हुकूमत कुछ ना रह जाती

हां, इस गिरावट के युग के बाद, ज़ोहूर की बहस और इमाम ज़माना (अ) की हुकूमत के स्थिर होने की बहस, और दूसरे ईश्वरीय दूत जो कि इमाम हुसैन (अ) हैं उन तक में कितना समय है और उसके बाद क़यामत में कितना समय है उसके बारे में अल्लाह ने चाहा तो इमामे ज़माना (अ) के गुण और विशेषताओं के भाग में बयान करुँगा

اللّهمّ عجّل لولیک الفرج.

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