इमाम मेहदी (अ) का वुजूद सूरा ए क़द्र में

इमाम मेहदी (अ) का वुजूद सूरा ए क़द्र में

सूरा क़द्र क़ुरआने मजीद का 97वां सूरा है जिसको ख़ुदांवदे आलम ने अपने प्रिय रसूल पर उतारा है। इस सूरे के बारे में बहुत सारी फ़ज़ीलतें और महानता बयान की गई हैं। इस सूरे के बारे में कहा गया है कि मुस्तहेब है कि हर नमाज़ में इस सूरे को पढ़ा जाए। इसी सूरे के बारे में रसूले इस्लाम (स) फ़रमाते हैं जो भी इस सूरे को पढ़े उसका सवाब एवं पुन्य वैसा ही है जैसे उसने रमज़ान में रोज़ा रखा हो और क़द्र की रात्रि में पूरी रात इबादत की हो।
लेकिन हम इस लेख में सूरा क़द्र की फ़ज़ीलतों या उसके पढ़ने के सवाब के बारे में नही बयान करना चाहते हैं बल्कि हम इस लेख में अपने पाठकों को बताना चाह रहे हैं कि किस प्रकार यह सूरा हमारे अन्तिम इमाम, इमामे ज़माना (अ) के अस्तित्व का संकेत दे रहा है और हमको बता रहा है कि इस संसार में कोई ऐसा वजूद है जो इस सूरे का मिस्दाक़ है और जिसके लिए आज भी यह सूरा नाज़िल हो रहा है।
आइये अब हम और आप मिलकर देखते हैं कि इस सूरे में ऐसा क्या है जो इमाम के वजूब पर दलालत कर रहा है।
इस सूरे में ख़ुदा वंदे आलम  सबसे पहले तो क़ुरआन के शबे क़द्र में नाज़िल होने को बता रहा है उसके बाद शबे क़द्र की महानता और उसकी मनज़ेलत को बयान कर रहा है।
इस सूरे के अनुसार क़द्र की रात में तीन चीज़ें होती हैं
1. इस रात में क़ुरआन नाज़िल होता है (انا انزلناہ فی لیلۃ القدر)
2. इस रात रूह और फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं (تنزل الملائکۃ و الروح)
3. हर कार्य (من کل امر)
तो इस सूरे के अनुसार क़द्र की रात में यह तीन चीज़ें नाज़िल होती है एक क़रुआन दूसरे रूह और मलाएका और तीसरे कुल्ले अम्र। कुछ इस्लामी रिवायतों से पता चलता है कि यहा पर सूरे में जो "रूह" कहा गया है उसका तात्पर्य ऐसा फ़रिश्ता है जो दूसरे फ़रिश्तों से बड़ा होता है इसीलिए उसको दूसरों से अलग कर के बयान किया गया है।
तो सबसे पहली चीज़ जो नाज़िल होती है वह है क़ुरआन। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि क़ुरआन दो प्रकार से नाज़िल हुआ है एक बार वह पूरा का पूरा पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ और दूसरी बार आयत आयत कर के नाज़िल हुआ है इस सूरे में "अनज़ला" शब्द का प्रयोग करके ख़ुदा ने इसी तरफ़ इशारा किया है कि हमने क़द्र की रात में पूरा क़ुरआन एक साथ उतार दिया है।
और क़ुरआन के बाद जो चीज़ नाज़िल होती है वह है फ़रिश्ते और क़ुल्ले अम्र।
अब सवाल यह है कि क्या यह शबे क़द्र हर साल आती है? सबका जवाब होगा हाँ। क्या हर साल फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं? सबका उत्तर होगा हाँ।
उसके बाद सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि यह फ़रिश्ते यह रूह यह क़ुरआन किस पर नाज़िल होता है जिसके बारे में क़ुरआन कह रहा है कि हम नाज़िल करते हैं तो अब जब्कि पैग़म्बर (स) इस दुनिया में नही हैं तो आख़िर यह सब किस पर नाज़िल हो रहा है।
यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका सही उत्तर  शियों के अतिरिक्त कोई और नही दे सकता।
यह शिया सम्प्रदाय ही है जो यह कहता है कि यह क़ुरआन यह फ़रिश्ते जिस पर भी नाज़िल होते हैं वह ख़ुदा का वली है वही ख़ुदा का ख़लीफ़ा है और वही हमारा इमाम है जो ग़ैबत में रह कर भी इन सब चीज़ों को ख़ुदा की  तरफ़ से प्राप्त कर रहा है ताकि दुनिया का मार्गदर्शन करता रहे और इस दुनिया के बाक़ी रहने का कारण बना रहे।

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