नमाज़ और जीवन साथी का चुनाव
नमाज़ और जीवन साथी का चुनाव
इस्लाम मे इस बात की तरफ़ विशेष ध्यान दिलाया गया है कि अगर कोई इंसान मस्जिद मे नही जाता और जमाअत से नमाज़ नही पढ़ता या उज़्रे शरई (किसी शरई मजबूरे) के बिना इबादत और उम्मत की एकता को नज़र अंदाज़ करता है। तो ऐसे इंसान का बाय काट करना चाहिए और एक अच्छे जीवन साथी के तौर पर उसका चुनाव नही करना चाहिए। अगर इस्लाम के केवल इसी आदेश पर अमल कर लिया जाये तो मस्जिदें नमाज़ियों से भर जायेंगीं। क्योंकि जब जवान यह समझ जायेंगें कि मस्जिद और मुसलमानों को छोड़ने पर उनका बायकाट कर दिया जाएगा और उनको समाज मे अकेले जीवन व्यतीत करना पड़ेगा तो वह कभी भी मस्जिद को फ़रामोश नही करेंगें।
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