पड़ोसी हज़रत फातमा की द्रण्टि में

पड़ोसी हज़रत फ़ातमा की द्रण्टि में
ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद (स)की प्रिय पुत्री हज़रत फ़ातमा ज़हरा (स) का पूर्ण जीवन सभी मनुश्यों तथा जन जाति के लिए आदर्श है और उनका कर्म कथन तथा रूपरेखा पूर्ण रूप से मार्गदर्शक है। एसी महान नारी जिसे ईश्वर ने मानव अथवा नारी जाति के लिए आदर्श बना कर इस संसार मे भेजा है।
हज़रत फ़ातमा ज़हरा (स) रात्रि को ईश्वर की श्रद्धा तथा इबादत के लिए अपना ओढ़ना बिछौना छोड़ देती थीं और अपनी प्रार्थना मे सभी के लिए दुआ करती । एक दिन उनके पुत्र इमाम हसन(अ)ने उनके पड़ोसी के हक़ के संदर्भ मे पूछा तो उन्हों ने उत्तर दियाः
الجار ثم الدار
बेटा, सर्वप्रथम पड़ोसी का हक़ है फ़िर घर वालो का। हज़रत फ़ातमा ज़हरा (स)का यह कथन उनके बलिदान को स्पष्ट करता है।वह अपनी समस्याओं से पूर्व तथा उससे अथिक मानव जाति की समस्ताओं के संदर्भ में चिंतित रहती थीं और अन्य लोगों के दुख दर्द को अपने दुख दर्द से उच्च समझती थीं और अपनी कामनाओं से अधिक दूसरो की कामनाओं की पूर्ति के लिए सदैव कोशिश करती थीं।
मानव स्वंय समस्याओं मे घिरा रहने के पश्चात दूसरों की समस्याओं के समाधान के लिए उस समय सोच सकता है जब वह मानवता की उच्चतम सीमा पर बिराजमान हो। यह उच्च तथा श्रेण्ठ कामना रखने वाले उन सभी व्यक्तियों का मामला है जो अपने आप को मानवता अर्थात इन्सानियत की सेवा के लिए समर्पित कर दे । एक श्रेण्ठ उद्देश्य अर्थात महान आदर्श के लिए खुद को तज देना कठिन (मुश्किल)कार्य है क्योकि इतिहास के महान लोगों ने जब अपने कर्तव्य और संदेश को स्वार्थ की चादर मे लपेट दिया तो सही मार्ग से पथहीन होकर पथभ्रण्टता के अन्धकार मे लुप्त हो गये।
इसका अर्थ यह है कि मनुश्य यदि उच्च आदर्शों को जातिवाद, तथा धर्मवाद तथा स्वार्थ की ऐनक से देखने लगे तो उसकी महानता पथ भ्रण्ठता के दलदल मे अपना अस्तितव खो देती है। इसलिए यदि हम अपने जीवन को इम महान उद्देश्य के लिए तज न दें तथा ऐसे श्रेण्ठ (फ़ज़ा) वातावरण से बाहर निकल गये हैं।
इस स्थान तक पहुँचने के लिए सर्वप्रथम हमें जनता से प्रेम करना चाहिए। ऐसा व्यक्ति जो अपने दिल मे लोगों के लिए धृणा, कुटि तथा शत्रुता रखता है वह उनके दिलों मे स्थान ग्रहण नही कर सकता क्योकि लोगों के दिल के ताले को प्रेम, दयालुता की कुंजी से ही खोला जा सकता है जैसा कि हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली(अ0)का कथन हैः
"احصد الشر من صدر غیرک بقلعۃ من صدرک"
अपने ह्रदय से अवगुण निकाल दो ताकि उसे दूसरों के दिल से निकाल सको"
अतः इस प्रकार बुरे गुणों के अन्त का प्रथम पग यह है कि वह उसे अपने ह्रदय से निकाल दे । वास्तव मे मानविक शैली की महानता हमें सदैव दूसरे के दुख, दर्द बाँटने के लिए आमन्त्रित करती है जैसा कि एक पवित्र आदर्शवादी कथन हैः
عامل الناس بما یحب ان یعاملوک""
लोगों से उस प्रकार व्यवहार करो जैसा व्यवहार तुम उपने लिए पसंद करते हो।
दूसरे स्थान पर उल्लेख है किः
""احبب لاخیک ما تحب لنفسک و اکرہ لہ ما تکرہ لھا
जो अपने लिए पसंद करते हो उसे अपने भाई के लिए पसंद करो और जो अपने लिए नापसंद करते हो उसे अपने भाई के लिए भी ना पसंद करो।
لا یومن احدکم حتی یحب لاخیہ ما یحب لنفسہ""
तुम उस समय तक ईमानदार और सत्यवादी नही हो सकते जब तक जो वस्तु अपने लिए पसंद करते हो उसे दूसरों के लिए पसंद न करो।
इसके उपरान्त इसलाम आपसी व्यवहार तथा मेल जोल मे श्रेण्ठ व्यवहार अपनाने की अर्थात पालन करने की निरन्तर तकीद करता है और वह यह है कि हम सदैव दूसरे व्यक्तियों को अपने ऊपर मोकद्दम रखे। यह कर्म की श्रेण्ठता तथा व्यवहार की महानता है कि वह दूसरों के दुख, दर्द को देखकर अपना दुख, दर्द भूल जाये और उसके दुख,दर्द को हर करने का प्रयास करे।इसी गुण ने अहलेबैत (ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद (स0) के घर वाले) को मानव जाति मे सर्वश्रेण्ठ बना दिया जैसा कि इसलाम की पवित्र पुस्तक क़ुरआन मजीद का कथन हैः
وَيُؤْثِرُونَ عَلَى أَنفُسِهِمْ وَلَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ......
और स्व्यम पर अन्य लोगों को मोक़द्दम रखते है चाहे उन्हे कितनी ही अवश्यकता हो...
وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَى حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا إِنَّمَا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللَّهِ لَا نُرِيدُ مِنكُمْ جَزَاء وَلَا شُكُورًا
यह लोग ईश्वर से प्रेम मे अनाथ, फ़कीर तथा असीर को भोजन कराते हैं और हम तुम से कोई बदला अर्थात धन्यवाद नही चाहते।
यह लोग केवल ईश्वर की इक्षा तथा उसकी दया प्राप्त करने हेतु स्वंयम को भूलकर अनाथ, फ़कीर तथा असीर की सहायता करते हैं। यह ईश्वरीय दूत के घरवालों (पैग़म्बर के अहले बैत) की कथा है जो ईश्वर के लिए जीवन यापन करते हैं और बलिदान देते हैं। हज़रत अली (अ0) ने जब इसलाम के ईश्वरीय दूत तथा संस्थापक से अपने शहीद होने के संदर्भ मे सुना तो पूछाः
و فی سلامۃ من دینی؟
क्या उस समय मेरा धर्म तथा ईमान सलामत रहेगा?
فاجابہ النبی:بلیٰ
पैग़म्बर (स0) ने उत्तर दिया हाँ!
पैग़म्बर (स0) से साकारात्मक उत्तर पाकर कहाः
اذلا ابالی اوقعت علی الموت او وقع الموت علی
अगर ऐसा है तो मुझे कोई चिन्ता नही है कि मैं मौत पर जा पड़ूँ या मौत मुझपर आ पड़े।
इसी कारण जब इबने मुलजिम की तलवार उनके सिर पर पड़ी तो प्रसन्न हो कर अर्थात ख़ुशी से लीन आवाज़ ईश्वर के दरबार मे पहुची।
بسم اللہ و باللہ و علی ملۃ رسول اللہ فزت و طب الکعبۃ
ईश्वर के नाम से तथा ईश्वर की याद के साथ और उसके दूत के आदर्शो का पालन करते हुए ईश्वर की क़सम मैं सफ़ल हो गया।
यह कथन उस समय का था जब शरीर दर्द की तीव्रता तथा ज़ख़्म की गहराई व्याकुल थे। यह हौसला, प्रतिक्षा, तथा निण्ठा का कारण यह था कि ईश्वर के पथ पर चलने वाले दुख अर्थात दर्द के सामने घुटने नही टेकते अर्थात कम साहसी प्रकट नही करते और ईश्वर के दरबार मे उपस्थित की प्रसन्नता दुख का आभास नही होने देती।
हज़रत फातमा ज़हरा (स) भी अपने आदर्शों से बलिदान का पाठ पढ़ाती हैं। यह अपने पूर्ण जीवन काल मे स्वंयम से पूर्व दूसरों की चिन्ता करती थी और पड़ोसी के घरवालो पर मोकद्दम करती थी ताकि मानव जाति को पाठ पढ़ा सके कि वह आत्मा विभोर होने से पूर्व आत्मा को क़ैद से मुक्ति कर स्वतंत्र वातावरण जीवन व्यतीत करे।
वरिण्ठ शीआ ज्ञानी तथा अहले बैत के आदर्शो का पालन करने वाले इब्ने ताऊस अपनी पुस्तक इक़बालुल आमाल मे उल्लेख करते हैं कि मैं रमज़ान महीने की तेईसवी रात्रि को आमाले शबे क़दर से संदर्भ मे चेतन शील था। यह कर्म मुझे अधिक आभास हो रहे थे इस कारण मैं चिन्तिन मे था कि इनमे से आवश्यक तथा श्रेण्ठ कर्मो का चुनाव कर लूँ और मै ने उन सभी कर्मो मे प्राथना को चुना अतः मैने सोचा अपने माता पिता के लिए प्राथना करूँ परन्तु ध्यान आया कि वह दोनो मुसलमान, उत्तम व्यवहार वाले तथा ईश्वर की श्रद्धा वाले थे इस कारण उनके यह गुण ईश्वर के दरबार मे उनकी सिफ़ारिश कर देंगे। फ़िर मै ने सोचा सभी मुसलमानो के लिए प्राथना करूं परन्तु फिर इन्हे भी ईश्वर की दया, नेजात, शेफ़ाअत, मग़फ़रत का भागीदार आभास किया क्योकि यदि यह लोग पापी, दुण्ट हुए तब भी उनकी श्रद्धा, ईमान, तथा इस्लाम उनकी सिफ़ारिश के लिए आकर उसे ईश्वर की बख़्शिश का भागीदार बना देंगे जैसा कि क़ुरआन का कथन हैः
وَآخَرُونَ اعْتَرَفُواْ بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُواْ عَمَلاً صَالِحًا وَآخَرَ سَيِّئًا عَسَى اللّهُ أَن يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
और दूसरे वह लोग जिन्होने अपने पापो को स्वीकार किया कि उन्हो ने पाप एवं पुन्न को मिश्रित कर दिया है जल्दी ही ईश्वर उनकी पश्चाताप को स्वीकार करेगा कि वह महान क्षमा करने वाला एवं दयालू है।
इस कारण मैने मुनासिब समझा कि काफ़िरो, ना शुकरों तथा पापियों के संदर्भ मे प्राथना करूं क्योकि इन लोगो का ईश्वर तथा उसके आदर्शो से कोई सम्बन्ध नही है जो इनकी बख़शीश के लिए सिफ़ारिश कर सके अतः मुझे उन पर दया आया और मैने उनके संदर्भ मे प्रार्थना किया। प्रारम्भ मे मैने पथ भ्रण्टों के निर्देशन हेतु प्रार्थना किया और ईश्वर के कामना किया कि वह उनकी बुद्धि को वास्तविकता की ओर मोड़ दे और उनके पग को सत्य पथ की ओर फेर दे क्योकि वह ईश्वर की एकेशवर वाद की विरोध का दोष ईश्वर की पहचान रखने वाले के जुर्म है और ईश्वर से उनका सम्बन्ध बिलकुल टूटा हुआ है। इसके पश्चात मैने मुसलमानो के संदर्भ मे और उसके पश्चात अपनी दशा और अपनी प्रार्थना के स्वीकारता के लिए दुआ किया।
पूर्ण मानवता से प्रेम करने वाले ही वास्तव मे आदर्श वादी ईश्वरीय दूत और उनके घर वालो (अहले बैत) के आदर्शों का पालन करने वाले हैं।

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