हज़रत फातेमा मासूमा (स) की जीवनी
हज़रत फातेमा मासूमा (स) की जीवनी
बुशरा अलवी
शियों के सातवें इमाम हज़रत मूसा काजिम (अ) की महान पुत्री का नाम फ़ातेमा मासूमा है जिनको शियों के बीच एक विशेष सम्मान प्राप्त है और आपका रौज़ा ईरान के प्रसिद्ध शहर क़ुम में है।
हज़रत फ़ातेमा मासूम अगरचे पैग़म्बर की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की तरह चौदह मासूमीन में से नहीं है लेकिन आप के नाम के अंत में मासूमा शब्द का जुड़ना आपकी महानता को दर्शाता है विशेषकर तब जब कि यह उपाधि उनको ख़ुद मासूमीन की तरफ़ से मिली हो, आप को सम्मान में मासूमीन की बहुत सी हदीसें वारिद हुई हैं जिसना एक नमूना मात्र हम आपके सामने पेश कर रहे हैं।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) हज़रत फ़ातेमा मासूमा के बारे में फ़रमाते हैं
ان للّه حرماً و هو مکه ألا انَّ لرسول اللّه حرماً و هو المدینة ألا وان لامیرالمؤمنین علیه السلام حرماً و هو الکوفه الا و انَّ قم الکوفة الصغیرة ألا ان للجنة ثمانیه ابواب ثلاثه منها الی قم تقبض فیها امراة من ولدی اسمها فاطمه بنت موسی علیهاالسلام و تدخل بشفاعتها شیعتی الجنة با جمعهم
अल्लाह का एक हरम है जो मक्का है, पैगम्बर का एक हर है और वह मदीना है, हज़रत अमीरुल मोमिनीन का एक हरम है और वह कूफ़ा है और कुम छोटा कूफ़ा है कि जन्नत के आठ दरवाज़ों में से तीन क़ुम में खुलते हैं, हमारी संतान में एक महिला का कुम में स्वर्गवास होगा जिसका नाम फ़ातेमा है और जो मूसा की बेटी है और उसकी शिफ़ाअत से सारे शिया स्वर्ग में जाएंगे। (7)
हज़रत फ़ातेमा मासूमा की सही जन्म तिथि के बारे में बताना कठिन है लेकिन मुस्तदरके सफ़ीनतुल बिहार में आया है कि आप 1 जीकाजा सन 173 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं (2)
ईरान की यात्रा
जब उस समय के ख़लीफ़ा मामून ने आपके भाई और शियों के आठवें इमाम अली बिन मूसा रज़ा को 200 हिजरी में मदीना से मर्व की तरफ़ बुला लिया तो फ़ातेमा मासूमा कुछ अलवियों के साथ 201 हिज़री को ईरान की तरफ़ चलीं जब आप सावा पहुँची तो बीमार हो गईं (3) आपने अपने साथियों से पूछा यहां से क़ुम कितनी दूर है? लोगों ने कहा पास ही है, आपने कहा मुझे क़ुम ले चलो, क्योंकि मैंने अपने पिता से सुना है कि आप फ़रमाते थेः क़ुम हमारे शियों का केन्द्र है।
सअद अशअरी और क़ुम के दूसरे शियों को जब हज़रत मासूमा की क़ुम की तरफ़ आमद के बारे में पता चला तो उन लोगों ने आपका भव्य स्वागत किया। (4) क़ुम पहुँचने के बाद आप मूसा बिन ख़ज़रज बिन सअद अशअरी के घर में ठहरी।
अभी आप को क़ुम आए 17 दिन ही हुए थे कि आप 28 साल की आयु में इस दुनिया से कूच कर गईं, आपके पार्थिव शीरीर को बग़े बुलबुलान नान की जगह पर दफ़्न कर दिया गया जहां पर इस समय आपका भव्य रौज़ा बना हुआ है जो देश और विदेश के शियों और अहलेबैत के चाहने वालों का ज़ियारत स्थल बना हुआ है, और हर दिन लाखों लोग आपके दरबार में हाजिरी देते हैं।
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