आज ही के दिन सैकड़ों हाजियों को सऊदी अरब ने मौत के घाट उतार दिया था + तस्वीरें
सऊदी पुलिस ने आज ही के दिन 29 साल पहले हाजियों पर हथियारों के साथ हमला कर दिया था जिसमें सैकड़ों ईरानी और ग़ैर ईरानी हाजियों को बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया था।
31 जुलाई 1987 (6 ज़िलहिज) जिसको मुशरेकीन से दूर का दिन कहा गया था को हाजियों ने मक्के में पदयात्रा शुरू की शाम को 6 बजे हाजी अमरीका मुर्दाबाद इस्राईल मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए क़ब्रिस्तान अबूतालिब तक पहुँचने और जब पुले हजून पर प्रोग्राम समाप्त हुआ तो यही वह समय था कि जब हाजियों पर आले सऊद की क़ायमत टूट पड़ी।
आस पास की सड़कों पर सैन्य ड्रेस पहले सैनिकों ने लोगों पर डंडों से हमला कर दिया सैनिकों के बीच कुछ लोग थे जो कीलदार और लोहे के डंडों से हाजियों को मार रहे थे, आसपास की छतों पर कुछ लोग बैठे हुए थे जो बेकुसूर हाजियों पर पत्थर, शीशे, सीमेंट की बोरियां, गैस सिलेंडर और इसी प्रकार की चीज़ें फेंक रहे थे जिसके कारण बहुत से हाजियों का सर फट गया और वह वहीं शहीद हो गए, आस पास के सारे होटलों के दरवाज़ों को बंद कर दिया गया था ताकि कोई हाजी किसी होटल में न घुस सके, हाजियों में मची भगदड़ के बाद जो जहां गिरा वहीं मर गया।
भगदड़ के बीच ही सेना ने गोरीबारी शुरु कर दी पहले आँसू गैसे के गोले और ज़हरीली गैस छोड़ गई जिससे सड़क पर घायल पड़ी कुछ महिलाओं को ग़ैस सूखने से मौत हो गई, उसके बाद निहत्थे हाजियों पर सीधे गोली चलानी शुरू कर दी गई कुछ हाजियों को सीधे सर में गोली मारी गई आस पास की बिल्डिंगों और पुलों पर बैठे स्नाइपर हाजियों को सीधे निशाना बना रहे थे।
पहले से ही यह तै किया जा चुका था कि घटना के दिन कोई भी अस्पताल घायलों को भर्ती न करे एंबुलेंस को घटना स्थल पर पहुँचने से रोका जा रहा था जो भी एंबुलेंस पहुँचती उसपर सैनिक डंडे लेकर टूट पड़ते और शीशों को तोड़ देते और डाक्टरों और नर्सों की पिटाई करते थे, कुछ एंबुलेंस इन सबके बावजूद घायलों तक पहुँचने में कामयाब रही लेकिन जब वह घायलों को लेकर पलट रही थी तो पुलिस ने रास्ता बंद कर दिया और घायलों को एंबुलेंस से खींच कर निकाल लिया और पिटाई की गई, बहुत से घायलों की वहीं मौत हो गई, घायलों को उपचार न मिल पाने के कारण मौत की नींद आ गई, गोलीबारी समाप्त होने के बाद भी रात ग्यारह बजे तक नाकाबंदी जारी रही, लोग ज़मीन पर बैठे थे जो भी उठता उसके सर पर डंडा मारा जाता था।
रात में घर में घुस घुस कर छिपे हुए लोगों को गिरफ्तार किया जाता रहा, ग्यारह बजे नाकाबंदी समाप्त होने के बाद भी किसी को मृतकों या घायलों के पास जाने की अनुमति नहीं थी, सड़क की बिजली काट दी गई थी, टूटी फूटी एंबुलेंस सड़कों के बीच खड़ी थी, कोई भी शरीर सही सालिम नहीं था, सभी को कुचल दिया गया था और औरतों की ख़ून से सनी फटी चादरों से उनको सड़क पर ठक दिया गया था, पूरी सड़क पर चप्पल जूते, टूटे शीशे, पत्थर और हाजियों का सामान बिखरा पड़ा था, वातावरण में बारूद और गैस की बू फैली हुई थी, सड़क खून से सनी थी।
घायलों का उपचार भी अजीब था एक प्रत्यक्षदर्शी का कहना है कि एक ईरानी हाजी की हथेली में गोली लगी थी और डाक्टर उसका हाथ काटना चाह रहे थे जब उसने इनकार किया तो डाक्टरों ने जबरदस्ती पुलिस की सहायता से उसका हाथ काट दिया!
इस घटना के बाद सऊदी अरब हमेशा यही कहता रहा कि उसके सैनिकों ने गोली नहीं चलाई थी और उसने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश कर डाली और यही कारण था कि जब राजनयिक मिशनों ने घटना स्थल का मुआएना करना चाहा तो कई दिनों तक उनको इसकी अनुमति नहीं दी गई।
बाद में जब हाजियों की मौत के सिलसिले में पहचान विभाग और अंतर्राष्ट्रीय पुलिस ने जाँच की तो सऊदी अधिकारियों के दावे के उलट उसमे पता चला की हाजियों पर विभिन्न प्रकार के हथियारों से गोली चलाई गई थी जिसमें कुछ हाजियों के सीधे सर पर गोली मारी गई थी।
जाँच में जो बाते सामने आईं वह कुछ इस प्रकार थीं
1. अलग अलग दूरी से हाजियों पर गोली चलाई गई जिसमें से अधिकतर 20 मीटर की दूरी से गोलियाँ चलाई गईं।
2. मारे गए लोगों के शरीर पर घावों से पता चला कि उनपर पिस्तौल मशीनगन और राइफल जैसे हथियारों का प्रयोग किया गया था।
3. अधिकतर गोलिया शरीर के पार हो गई थीं।
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