वहाबियत का काला इतिहास, करबला और नजफ़ पर हमला

वहाबियत का काला इतिहास, करबला और नजफ़ पर हमला

करबला पर हमला

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

अब्दुल वह्हाब के अनुयायी और इब्ने तैमिया व इब्ने क़य्यिम ज़ौज़ी की विचारधारा और अक़ीदों को मानने वालों को वहाबी कहा जाता है। (1)

अब्दुल अज़ीज़ बिन मोहम्मद के आदेश से वहाबियों ने नज्द और रियाज़ पर 1187 शम्सी में कंट्रोल कर लिया और उसी के बाद से इराक़ और दूसरे पवित्र शहरों पर चढ़ाई करते रहे, उनके यह हमले लगभग दस साल चले। (2)

सैय्यद मोहसिन अमीन सैय्यद मोहसिन मुजाहिद की जीवनी पर लिखते हुए कहते हैं कि चूंकि करबला पर वहाबी बहुत अधिक हमला करते थे इसलिये उन्होंने काज़मैन को अपना वतन बना लिया। (3)

तमाम ऐतिहासिक पुस्तकों ने वहाबियों के करबला पर हमले को 1216 हिजरी में लिखा है, वह 18 ज़िलहिज्जा 1216 का दिन था कि जब करबला के लोग इमाम अली (अ) की ज़ियारत के लिये नजफ़ गए हुए थे, वहाबियों ने इस शहर में प्रवेश किया और लोगों की सम्पत्ती को लूटना शुरू किया उन्होंने इमाम हुसैन (अ) के रौज़े के गुंबद को हानि पहुँचाई और उनकी ज़रीह की जाली उखाड़ दी।

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सैय्यद मोहसिन अमीन “आयानुश्शिया” में लिखते हैं वहाबी जबरदस्ती करबला में घुस गए, वहां के लोगों को रक्तरंजित कर दिया, उन थोड़े से लोगों के अतिरिक्त जो भाग या छिप गए थे सभी की या तो हत्या कर दी या घायल कर दिया, इमाम हुसैन की पवित्र क़ब्र को वीरान किया और ज़रीह की जाली को उखाड़ कर वहां की सम्पत्ती को चुरा लिया और जो कुछ भी मिला अपने साथ ले गए, उन्होंने अपने इस कार्य से इमाम हुसैन की क़ब्र पर मुतवक्किल अब्बासी द्वारा किये गए कार्यों को जीवंत कर दिया। (4)

वहाबी लेखक सलाहुद्दीन मुख़्तार इस घटना के बारे में लिखता हैः 1216 में सऊदी बादशाह (अब्दुल अज़ीज़ का बेटा) नज्द, हिजाज़, तहामा और कुछ दूसरे क्षेत्रों के लोगों से बनी सेना के साथ इराक़ की तरफ़ चल पड़ा, ज़िलहिज्जा में करबला पहुँचा और उसका घेराव कर लिया, उसकी सेना ने बलपूर्वक शहर में प्रवेश किया, बहुत से लोगों को गलियों, घरों और बाज़ारों में मौत के घाट उतार दिया और ज़ोहर के समय बहुत से माल के साथ इस शहर से बाहर निकले... सऊद ने सारी सम्पत्ती का पाँचवा भाग स्वंय ले लिया और बाक़ी को पैदल सेना में एक भाग और सवारों को दो भाग में बांट दिया।

वहाबी इतिहासकार उस्मान बिन बशीर करबला पर वहाबियों के हमले के बारे में लिखता हैः क़ब्र (हुसैन) के गुंबद को गिरा दिया और क़ब्र के संदूक़ को जो याक़ूत, पन्ना और ज़ेवरों से भरा था उठा लिया और शहर में जो कुछ भी पैसा, हथियार, कपड़े, सोना चाँदी क़ीमती क़ुरआन... आदि मिले लूट लिया और ज़ोहर के समय शहर से चले गए और तब तक उन्होंने इस शहर के 2000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

इस हमले के अतिरिक्त वहाबियों ने 1225 में करबला का घेराव किया श्रद्धालुओं के वह जत्थे जो 15 शाबान की ज़ियारत के बाद करबला से वापस जा रहे थे पर हमला किया और श्रद्धालुओं की हत्या कर दी, इन श्रद्धालुओं में अधिकतर ईरानी थे। (5)

नजफ़ पर हमला

वहाबियों ने करबला को बरबाद करने के बाद नजफ़ का रुख़ किया, इस घटना को माज़ीयुन्नजफ़ व हाज़ेरोहा के लेखक ने एक प्रत्यक्षदर्शी के कथानुसार इस प्रकार लिखा हैः सऊद ने नजफ़ पर आक्रमण किया और उसका घेराव कर लिया, दोनों तरफ़ से गोलाबारी शुरू हो गई, नजफ़ के पाँच लोग मारे गए.... (6)

जब नजफ़ के लोगों ने देखा कि वहाबी किसी भी प्रकार रुकने वाले नहीं है और नजफ़ पर आक्रमण अवश्य करेंगे तो उन्होंने जो पहला कार्य किया वह यह था कि अमीरुल मोमिनीन (अ) के रौज़े के ख़ज़ाने को बग़दाद स्थानांतरित कर दिया ताकि पैग़म्बर के रौज़े की भाति यह वहाबी उसको न लूट सकें उसके बाद वह वहाबियों का मुक़ाबला करने के लिये तैयार थे। (7)

वहाबियों से इस मुक़ाबले में नजफ़ के लोगों के लीडर महान शिया धर्मगुरु शैख़ जाफ़र काशिफ़ुल ग़ेता थे जिनको दूसरे धर्मगुरुओं का भी समर्थन प्राप्त था, लोगों ने हथियार तैयार कर लिये, इस तैयारी के कुछ दिनों बाद ही वहाबियों की सेना शहर की सीमा पर पहुँच गई और शहर का घेराव कर लिया।

कहा जाता है कि उस समय जो लोग नजफ़ शहर का बचाव कर रहे थे उनकी संख्या 200 से अधिक न थी, क्योंकि शहर के लोगों को जब वहाबियों के आक्रमण का पता चला तो वह शहर छोड़ कर भाग खड़े हुए थे। यह थोड़े से लोग ही उनके मुक़ाबले में डटे हुए थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वहाबियों की सेना जो की रात के समय शहर के द्वार पर खड़ी हुई थी अभी सुबह भी नहीं हुई थी कि भाग खड़ी हुई। (8)

प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार वहाबियों की सेना में 15000 सैनिक थे जिनमें से 700 लोग मार दिये गए थे।

नज्दी लेखक इब्ने बशर नजफ़ पर हमले के बारे में लिखता हैः 1220 में सऊद की एक बड़ी सेना इराक़ में नजफ़ पहुँची, उन्होंने मुसलमानों को शहर से भगा दिया और आदेश दिया कि शहर को वीरान कर दिया जाए, जब उसके सैनिक शहर के पास पहुँचे, तो उन्होंने एक बड़ी और गहरी खाई देखी जिसको बहुत प्रयत्न करने के बाद भी पार न कर सके, और दोनों तरफ़ से होने वाली जंग में कुछ वहाबी मारे गए और विवश होकर उनको पीछे हटना पड़ा और उन्हें केवल शहर के आसपास का माल लूट कर संतोष करना पड़ा। (9)

यह खाई जिसने वहाबियों का रास्ता रोक दिया था कौन सी थी इसके बारे में लेखकों ने कुछ नहीं कहा है केवल सैय्यद मोहम्मद जवाद आमुली जो की स्वंय शहर की सुरक्षा करने वालों में से थे कहते हैं कुछ वहाबी तो शहर की दीवार तक पर चढ़ गए थे और करीब ही था कि शहर को लूट लें लेकिन अमीरुल मोमिनीन की तरफ़ से चमत्कार हुआ और बहुत से हमलावर मारे गए और उनको पीछे हटना पड़ा। (10)

स्वर्गीय आमुली मिफ़्ताहुल करामा के लेखक जो उस समय नजफ़ में थे कहत हैं कि वहाबियों ने तीन बार नजफ़ पर आक्रमण किया, पहली बार 9 सफ़र 1221 में जब वह शहर की दीवारों पर पहुँचने में सफ़ल हुए लेकिन अमीरुल मोमिनीन (अ) के चमत्कार से आगे न बढ़ सके।

दूसरी बार जमादी उस्सानी के 1222 में, इस बार भी वहाबियों के विफलता ही हाथ लगी। और तीसरी बार 1225 में उन्होंने नजफ़ पर आक्रमण किया। (11)

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1.    मश्कूर, मोहम्मद जवाद,फंरहंगे फ़ेरक़े इस्लामी, पेज 457,

2.    मोहद्दिसी, जवाद, फरहंगे आशूरा, पेज 118

3.    आयानुश्शिया, जिल्द 9, पेज 443

4.    आयानुश्शिया, जिल्द 11, पेज 31 और 32

5.    आयानुश्शिया जिल्द 11, पेज 32

6.    दौहतुल वोज़रा, पेज 217, मौसूअतुल अतबतुल मुक़द्दसा, जिल्द 1, पेज 166

7.    दौहतुल वोज़रा, पेज 217, मौसूअतुल अतबतुल मुक़द्दसा, जिल्द 1, पेज 166

8.    वहाबियान, पेज 275-276

9.    वही

10.    मिफ़्ताहुल करामा, जिल्द 7, पेज 653

11.    आयानुश्शिया जिल्द 11, पेज 31 और 32

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