ईरान से मुक़ाबले में सऊदी अरब की बढ़ती निराशा
सऊदी अरब के दो दोस्त मिस्र और तुर्की के बीच बढ़ती दूरियों ने सऊदी अरब के अधिकारियों को इन दो देशों को ईरान के विरुद्ध इस्तेमाल करने के मामले में निराश कर दिया
टीवी शिया वाल स्ट्रीट ने अपनी एक रिपोर्ट में सऊदी अरब द्वारा तुर्की और मिस्र के बीच बढ़ती दूरियों को समाप्त करके उनमें दोस्ती कराने की रुकावटों के बारे में लिखा कि इन दो देशों के आपसी टकराव ने सऊदी अरब को ईरान के विरुद्ध इन देशों के इस्तेमाल के प्रति निराश कर दिया है।
सऊदी अरब ने ईरान के विरुद्ध मुक़ाबले के लिये इन दो देशों पर भरोसा कर रखा था क्योंकि यह दो देश मध्यपूर्व में ईरान के बराबर शक्ति और रुतबे वाले हैं।
तुर्की ने सीरिया संकट में सऊदी अरब का साथ दिया और सीरियाई सरकार के विरुद्ध लड़ने वाले आतंकवादियों को हथियार और संसाधन देने में सऊदी अरब की सहायता की और दूसरी तरफ़ मिस्र ने यमन में अंसारुल्लाह के विरुद्ध सऊदी गठबंधन का साथ देते हुए हौसी कंट्रोल वाली बंदरगाहों को घेरने में सऊदी अरब का साथ दिया है।
लेकिन सऊदी अरब की समस्या यह है कि इन दो देशों के आपसी संबंध अच्छे नहीं है और मिस्र में मोहम्मद मुर्सी की सरकार गिराए जाने के बाद से इन दोनों देशों की संबंधों में और दूरी आई है और यह दोनों देश ईरान के मुक़ाबले में सऊदी अरब के रुख़ को लेकर भी एकमत नहीं है।
और यही कारण है कि जब ईरान में सऊदी अरब के दूतावास पर हमला किया गया और उसके बाद सऊदी अरब ने ईरान से सारे संबंध तोड़ लिये तब भी सऊदी अरब के दोस्त तुर्की ने ईरान से संबंध नहीं तोड़े।
और दूसरी तरफ़ मिस्र भी सीरिया में सऊदी अरब के विरुद्ध बश्शार असद की सरकार गिराए जाने के विरुद्ध है और वह सीरियाई सरकार को बचाए रखना चाहता है।
जनरल अब्दुल फ़त्ताह सीसी के अनुसार मिस्र में राजनीतिक इस्लाम की सोंच रखने वालों और अख़वानुल मुस्लेमीन गुट पर कंट्रोल करना मिस्र की प्राथमिकता है जिससे पता चलता है कि मिस्र की नज़र में ईरान का मामला बहुत गंभीर और प्राथमिकता वाला नहीं है।
मिस्र के पूर्व विदेशमंत्री नबील फ़हमी ने कहाः हम सीरिया के मामले में सऊदी अरब के रुख़ से सहमत नहीं है और बश्शार असद की सरकार का गिराया जाना बहुत ज़रूरी नहीं है हमारा पूरा प्रयत्न यही है कि सीरिया का अस्तित्व बाक़ी रहे ताकि बाद में आने वाली नस्लें उसके बारे में फैसला लें।
लेकिन मिस्र में मुस्री का तख़्ता पलट और उनको कैद किये जाने के बाद से तुर्की और मिस्र के संबंधों में दरार आ गई जिसके बाद तुर्की के नए प्रधानमंत्री ने मिस्र के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किये जाने की वकालत की लेकिन साथ साथ यह भी कहा कि आंकारा डेमोक्रेसी के विरुद्ध तख़्ता पलट को जो मिस्र में 2013 में हुआ कभी स्वीकार नहीं करेगा।
उन्होंने आगे कहाः तुर्की के ईरान के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण रुख से बचना चाहिये, इस समय तेहरान और आंकारा के संबंधों में खटास आ गई है लेकिन यह बाद में बहुत बड़ा ख़तरा हो सकता है क्योंकि रियाज़ के साथ संबंध हमेशा बाक़ी नहीं रहेंगे।
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