रमज़ान व इंसान 3

रमज़ान व इंसान 3

इंसान भौतिक व शारीरिक आयाम रखने के अतिरिक्त आध्यात्मिक आयाम भी रखता है। इनमें से हर एक आयाम को वांछित परिपूर्णता तक पहुंचने के लिए विशेष कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक पहलू को मज़बूत बनाने और उसमें प्रगति का एक कार्यक्रम तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदाचारिता है। ईश्वरीय भय व सदाचारिता वह चीज़ है जो इंसान को पापों से रोकती है और महान ईश्वर के आदेश पालन के लिए प्रेरित करती है। इस आधार पर अगर इंसान यह चाहता है कि आध्यात्मिक आयाम में वह प्रगति करे और वांछित पवित्रता व परिपूर्णता तक पहुंच जाये तो उसे चाहिये कि वह अपनी आंतरिक इच्छा को नियंत्रित करे और विकास व प्रगति की रुकावटों को एक एक करके समाप्त कर दे। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण चीज़ रोज़ा रखना है। जैसाकि इससे पहले कहा कि महान ईश्वर ने इस बात की ओर संकेत किया कि रोज़ा रखने का वास्तविक उद्देश्य तक़वा उत्पन्न करना है। महान व सर्व समर्थ ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की १८३वीं आयत में कहता है कि रोज़े का वास्तविक उद्देश्य तक़वा प्राप्त करना है। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की १८३वीं आयत में लअल्ला अर्थात शायद शब्द का प्रयोग किया है और उसका कारण यह है कि रोज़े का अर्थ केवल तक़वा नहीं है बल्कि तक़वा उत्पन्न करने का एक अभ्यास व कारण है।

इस आधार पर आसमानी शिक्षाओं में में तक़वा प्राप्त करने का एक मार्ग रोज़े का अभ्यास है। यद्पि रोज़े के दौरान विदित रूप से इंसान खाने पीने और अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने आदि से दूरी करता है ताकि रोजे के समय इंसान अपनी ग़लत व अवैध इच्छाओं को रोकने का अभ्यास करे।

तीस दिन का रोज़ा वास्तव में वे दिन हैं जिसमें इंसान स्वयं को उन चीज़ों से भी रोकता है जो वैध होती हैं और वह इंसान को पसंद भी होती हैं। रोज़े की हालत में इंसान हर वह कार्य करने का प्रयास करता है जिससे इंसान तक़वे तक पहुंचता है। जैसे सामूहिक रूप से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में भाग लेना, मुस्तहेब व ग़ैर अनिवार्य नमाज़ें पढ़ना, पवित्र कुरआन की तिलावत करना और रातों को जाग कर महान ईश्वर की उपासना करना।

पवित्र कुरआन ने परिपूर्णता और स्वर्ग प्राप्त करने को तक़वे पर निर्भर बताया है और स्वर्ग की असंख्य नेअमतों को मुत्तक़ीन अर्थात तक़वा रखने वालों को देने का वादा किया है। सावधान रहने वाले हर उस चीज़ से दूरी करते हैं जिससे दूरी करने के लिए बुद्धि और धर्म दोनों कहते हैं और इस मार्ग से वे मानवीय परिपूर्णता का मार्ग तय करते हैं।

महान ईश्वर सूरे हिज्र की ४५ से ४८ तक कि आयतों में स्वर्ग की नेअमतों के बारे में कहता है” निश्चित रूप से सदाचारी स्वर्ग के हरे- भरे बागों और सोतों के किनारे होंगे। फ़रिश्ते उनसे कहेंगे कि इन बागों में सलामती और सुरक्षा के साथ प्रविष्ट हो जाओ! और हम हर प्रकार की ईर्ष्या, द्वेष और दुश्मनी को उनके दिलों से समाप्त कर देंगे और वे भाई भाई एक दूसरे के आमने सामने तख्तों पर रहेंगे और वहां उनको न कोई थकान होगी और न तकलीफ होगी और वे कभी भी वहां से नहीं निकाले जायेंगे।

रमज़ान के पवित्र महीने में इंसान ईश्वरीय आदेशों पर अमल करके स्वयं के भीतर तक़वे की भावना को जीवित करता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इंसान के अंदर खाने पीने, स्वयं को पसंद करने और धन से प्रेम जैसी विभिन्न चीज़ें पाइ जाती हैं जो जीवन के लिए आवश्यक हैं परंतु महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि कभी कभी इंसान की यह इच्छाएं प्राकृतिक सीमा को पार कर जाती हैं और इंसान के पूरे अस्तित्व पर यही चीज़ें छा जाती हैं। रोज़ेदार व्यक्ति भूख और प्यास जैसी चीज़ों को सहन करके अपनी भावनाओं व इच्छाओं को नियंत्रित करता है। इस प्रकार है कि केवल खाने पीने से हाथ रोक लेना ही रोज़ा नहीं है बल्कि रोज़ेदार पापों से से भी दूरी करता है। एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पूछा  रमज़ान के महीने में सबसे अच्छा कार्य क्या है? इसके जवाब में पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों को संबोधित करते हुए फरमाया पापों से दूरी।

तक़वा और सदाचारिता ऐसी चीज़ नहीं है जिसे प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि इंसान अपने जीवन में जो भी अच्छा कार्य अंजाम देता है और हर बुरे कार्य से दूरी करता है वास्तव में तक़वा है जिसे इंसान अपने जीवन में व्यवहारिक बनाता है। रमज़ान का पवित्र महीना ईश्वरीय आदेशों के पालन का बेहतरीन महीना है। दूसरों की समस्याओं का समाधान करना, दूसरों की सेवा, अवैध धन से परहेज़ और उपासना आदि सब के सब तक़वा के नमूने हैं। रोज़ेदार इंसान इन चीज़ों का अभ्यास करके स्वयं को इनका आदी बनाता है और इस प्रकार अपने दिल को प्रकाशमयी बनाता है।

स्वयं को उस चीज़ से बचाना तक़वा है जिसे महान ईश्वर पसंद नहीं करता है। जो इंसान महान ईश्वर के प्रेम में अप्रिय चीज़ों से मुंह मोड़ लेता है और उसकी प्रसन्नता के मार्ग में हर कठिनाई को सहन कर लेता है तो महान ईश्वर भी उस पर अपनी विशेष कृपा दृष्टि करता है। पैग़म्बरे इस्लाम अपने एक वफादार अनुयाई अबूज़र से कहते हैं” हे अबूज़र! सदैव ईश्वर और उसकी प्रसन्नता को दृष्टि में रखो ताकि वह भी तुम्हें अपनी दृष्टि में रखे।“

शैख़ अत्तार नैशापुरी की परिज्ञान की किताब तज़केरुतुल औलिया में लिखा है” एक परिज्ञानी ने स्वयं से शर्त की थी कि वह व्यापार व कारोबार में पांच प्रतिशत से अधिक मुनाफा नहीं कमायेगा। एक दिन ६० दीनार का उसने थोड़ा बादाम खरीदा। संयोग से बाज़ार में बादाम की क़ीमत बढ़ गयी। जो दलाल बादाम ख़रीदने के लिए उसकी दुकान पर आया उसने परिज्ञानी से बादाम की कीमत पूछी। परिज्ञानी ने जवाब दिया ६३ दीनार। दलाल ने कहा तुम्हारे बादाम की क़ीमत ९० दीनार है! परिज्ञानी ने कहा ठीक है परंतु मैंने शर्त कर रखा है कि पांच प्रतिशत से अधिक मुनाफा नहीं कमाऊंगा। मैं बाज़ार की क़ीमत तोड़ दूंगा लेकिन अपने इरादे को नहीं तोड़ूंगा। थोड़ी देर के बाद बाज़ार में आग लग गयी और सारी दुकानें तथा उसमें जो कुछ था सब जल गया परंतु परिज्ञानी की दुकान नहीं जली और वह सुरक्षित बच गयी।

इसके बाद उसने ईश्वरीय भय और तक़वे को अपनी जीवन शैली बना ली और महान ईश्वर ने भी उसकी सुरक्षा की।        

रमज़ान का पवित्र महीना चल रहा है। महान ईश्वर पर आस्था रखने वाले पूरे प्रेम एवं निष्ठा से उपासना करके उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने के प्रयास में हैं। रोज़ा और रोज़ेदारों की स्थिति बहुत से गैर मुसलमानों के लिए सदैव प्रश्न रहा है। ग़ैर मुसलमान केवल यह जानते हैं कि रोज़ेदार इंसान केवल खाता पीता नहीं है और वह यह कठिनाई सहन करता है। कभी कभी कुछ ग़ैर मुसलमान यह सोचते हैं कि वे स्वयं रोज़ा रखकर पवित्र रमज़ान महीने का अनुभव करें ताकि निकट से देखें कि मुसलमान पवित्र रमज़ान के प्रति इतनी श्रृद्धा क्यों रखते हैं। रातों को जागकर महान ईश्वर की उपासना क्यों करते हैं? पवित्र कुरआन की तिलावत क्यों करते हैं?

राऊल एक भारतीय जवान हैं। वह उन लोगों में से एक है जिन्होंने रमज़ान के पवित्र महीने को देखकर उत्सुक हो गये और उसके भी मन में रमज़ान महीने को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई और रमज़ान का यही पवित्र महीना इस बात का कारण बना कि वास्तविकताओं को जानने के बाद उसने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया।  

राऊल अपने मुसलमान होने के संबंध में कहता है “मुझे इस्लाम धर्म को स्वीकार किये हुए कई महीने हो रहे हैं। मैं ऐसे परिवार में पैदा हुआ जो हिन्दु धर्म का अनुयाई था उनमें से कुछ मूर्ति पूजा करते थे जबकि कुछ अन्य गाय और सूरज जैसे चीज़ों की उपासना करते थे। मैं भी इस प्रकार के वातावरण में बड़ा हुआ था और इस प्रकार के विश्वास कारण बने थे कि मैं भी कुफ्र और अज्ञानता के वातावरण में जीवन व्यतीत करूं यहां तक  कि मैं ईश्वर की कृपा से काम करने के लिए एक इस्लामी देश ओमान गया। वहां पर मैंने मुसलमानों को देखा और उनसे परिचित हो गया। वहां पर मैं तीन वर्षों तक रहा और इस दौरान मैंने इस्लाम के बारे में बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली और बहुत सारी वास्तविकताएं स्पष्ट हो गयीं। वास्तविकताओं को समझने और विचारों व आस्थाओं को परिवर्तित करने के लिए यह तीन वर्ष का समय बहुत प्रभावी रहा है”।

राऊल के मन में पहला प्रश्न मुसलमानों के रोज़ा रखने से उत्पन्न हुआ था। वह इस बारे में जांच पड़ताल करने और देखने का निर्णय करता है कि कि रोज़ा और रोज़ा रखने का रहस्य क्या है? इस संबंध में उसने जो अध्ययन किया था और उसके दोस्तों ने जो उत्तर दिया था उसका उसके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा था। इस प्रकार से कि उसने अपने दोस्तों की भांति रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने का निर्णय किया ताकि उस आभास को प्राप्त करे जो रोज़ा रखने से एक मुसलमान प्राप्त करता है।

वह रोज़ा रखने के संबंध में कहता है जब मैं मुसलमान होने से पहले रोज़े रखता था तो केवल जिज्ञासा के कारण था और मैं केवल खाना नहीं खाता था किन्तु अब जबकि मैं रोज़ा रखता हूं तो महान ईश्वर के प्रति बंदगी का आभास करता हूं मेरे अंदर महान ईश्वर के मुकाबले में श्रृद्धा व निष्ठा जीवित हो जाती है बल्कि इस महीने में मैं दुआ करता हूं, नमाज़ पढ़ता हूं दान देता हूं रातों को जागता हूं और कुरआन की तिलावत करता हूं।

राऊल ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेने के बाद अपना नाम रय्यान रख लिया। पवित्र महीने का रोज़ा रखने के कारण ही राऊल के लिए बहुत सी वास्तविकताएं स्पष्ट हुई थीं और महान ईश्वर ने वादा किया है कि रोज़ा रखने वालों को बाबुर्रय्यान नाम के द्वार से स्वर्ग में प्रविष्ट करेगा इसलिए राऊल ने ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार कर लेने के बाद अपना नाम रय्यान रख लिया।

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