आतंकवादियों की हार से बौखलाया सऊदी अरब :दि इन्डिपेन्डन्ट


रॉबर्ट फिस्क ने ब्रिटेन के The independent में सीरिया की हालिया स्थिति के बारे में लिखते हैं: रूस की सहायता से सीरियाई सेना के हलब में पहुँचने के बाद शायद अब रिक़्क़ा का नंबर है।

वह लिखते हैं हबल में अलनुस्रा फ्रंट औऱ दूसरे आतंकवादियों को किनारे लगाने के बाद सीरियाई सेना ने एक बड़ी विजय प्राप्त की है, आतंकवादियों के लिये तुर्की की तरफ़ से सप्लाई लाइन कट चुकी है लेकिन यही कहानी का अंत नहीं है।

उन्होंने लिखाः अब हालात बदल चुके हैं, (वही आतंकवादी जो कल तक ख़ून की होली खेल रहे थे) अब ख़ुद को चारों तरफ़ से घिरा पा रहे हैं, नुबुल व अज़्ज़हरा जो शिया शहर जो सालों से आतंकवादियों से घिरो हुए थे अब आज़ाद हो चुके हैं।

रॉबर्ट फिस्क ने आगे लिखाः शिया गई गाँवों में आतंकवादियों द्वारा घेरे गए और उनकी दुर्दशा हुई लेकिन मीडिया ने उसको कैप्चर नहीं किया।

वह हलब (अलेप्पो) की स्थिति के बारे में लिखते हैं इस समय हलब के (आतंकवादी) वही घिरे होने की स्थिति का सामना कर रहे हैं।

वह लिखते हैं अब ऐसा लग रहा है कि सीरिया के बड़े शहर दोबारा केन्द्रीय सरकार के हाथ में आ रही है हलब के बाद क्या होगा क्या पालमीरा शहर की आज़ादी? दरआ के आसपास से आतंकवादियों का सफ़ाया? क्या बहुत जल्द सीरियाई सेना, उसके हिज़्बुल्लाह साथी और रूस की वायु सेना आईएस की राजधानी रिक़्क़ा का रुख करेंगे?

वह लिखते हैं पालमीरा शहर दाइश के क़ब्ज़े में है इस समय की घटनाओं से सीखना चाहिये सीरिया में सुन्नी ख़िलाफ़ जिसको पहले अविजयी माना जा रहा था अब ऐसा नहीं रह गया है, और क्या यही कारण है कि सुन्नी (वहाबी तकफ़ीरी) सऊदी अरब ने सीरिया में ज़मीनी सेना भेजे जाने की सुझाव दिया है? आख़िर क्यों तुर्क इतना घबराए हुए और परेशान हैं? मुझे संदेह है कि (तुर्की और सऊदी अरब के विरुद्ध) ईरान में कोई आतंकवादियों की लगातार हार पर आँसू बहा रहा होगा।

उन्होंने आगे लिखाः अगरचे सऊदी अरब की सेना की यमन की रेतीली जंग ने ही हालत पतली कर रखी है, तुर्की के बारे में भी कहना पड़ेगा कि उसकी सेना पर रूस के हमले के ख़तरे को देखते हुए ज़मीनी सेना भेजे जाने की संभावना कम ही दिखती है और अगर ऐसा न हुआ तो हमको एक बार फिर 1914 जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

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