शेख़ निम्र की अपने परिवार से आख़िरी मुलाक़ात की पूरी कहानी
आयतुल्लाह शेख़ निम्र के भाई ने इस शहीद मुजाहिद के साथ अपनी अंतिम मुलाक़ात की बारे में लिखा हैः
मोहम्मद अन्निम्र शेख़ निम्र के साथ अंतिम मुलाक़ात के बारे में कहते हैं: मैं, मेरी माँ, हमारे भाई और मेरी बहन शेख़ निम्र की बेटी सकीना के साथ सुबह ही रियाज़ की जेल हाएर पहुँच गए, लेकिन उन्होंने हमको 12 बजे दिन तक मिलने नहीं दिया मेरी माँ और भाई अबू मूसा पर स्ट्रेस हावी होता जा रहा था।
शेख़ निम्र के भाई अपने ट्वीटर पेज पर लिखते हैं: शेख़ से मिलने के लिये हम हमेशा की तरह हम मुलाक़ात वाले कमरे में गए लेकिन इस बार शेख़ निम्र को हमले पहले ही उस कमरे में पहुँचा दिया गया था।
उन्होंने आगे लिखाः शेख़ निम्र ने अपनी माँ को सलाम किया और उनकी ख़ैरियत पूछी, वह मां को देखकर बहुत प्रसन्न थे, उन्होंने कहाः अलहमदो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन। यह उनका वह कलाम था जो कि वह घायल होने के समय से गिरफ़्तार होने के समय तक बार-बार दोहराते रहते थे, एक दूसरा वाक्य जो वह लगातार दोहराते थे वह शहादत की उनकी तमन्ना थी, वह शहीद होकर ईश्वर के सामने जाना चाहते थे और उनकी यह आरजू इनती तीव्र थी कि आख़िर कार वह शहीद ही हुए।
मोहम्मद अन्निम्र लिखते हैं: जब हमने उनकी ख़ैरियत पूछी तो कहने लगेः “अलहमदो लिल्लाह मैं अच्चा हूँ मेरी चिंता न करें” उन्होंने अपने लकवा मार चुके पैर के बारे में भी हमको इत्मीनान दिलाया। अपने उनके समर्थकों का सलाम और दुआएं उन तक पहुँचाई और उन्होंने भी दोस्तों को नाम के साथ याद किया उनकी ख़ैरियत पूछी और सलाम पहुँचाने के बारे में कहा।
शेख़ निम्र ने मौत की सज़ा सुनाए गए तीन दूसरे नागरिकों का भी नाम ले कर ख़ैरियत पूछी और उनके लिये प्रार्थना की। जिनके बारे में शेख़ निम्र ने प्रार्थना की वह यह थे, अलमरहून, अलशुयूख़, अलरिब्ह, अलसुवैमिल और उनके बेटे अली।
मोहम्मद निम्र ने शेख़ निम्र की परिवार से मुलाक़ात से एक सप्ताह पहले कुछ दूसरे लोगों की आपसे मुलाक़ात के बारे में लिखते हैं: इन लोगों ने मुसलमानों के बीच भाईचारे और सहिष्णुता के बारे में उनके प्रश्न किया तो उन्होंने उत्तर में कहाः सहिष्णुता आवश्यक है और हमारे क्षेत्र में हमेशा से भाईचारा पाया जाता था यहां तक कि मीडिया और शिक्षा व्यवस्था में कुछ गलत बारे कहीं गईं (और हालात बदल गए)
मोहम्मद निम्र कहते हैं कि हमारी यह मुलाक़ात दो घंटे चली जिसमें शेख़ निम्र ने क़ुरआन में चिंतन, हिफ़्ज़ और तिलावत के बारे में ताकीद की, उन्होंने स्वयं लगभग पूरे क़ुरआन को हिफ़्ज़ कर लिया था और ऐसा लगता है कि अपने अंतिम समय तक पूरा क़ुरआन हिफ़्ज़ कर चुके थे।
मोहम्मद निम्र कहते हैं कि मैंने कमरे से निकलने से पहले उनके कान में धीरे से कहा कि मौत की सज़ा सुनाए गए लोगों के बारे में दोबारा गौर करने की बाते सुनाई दे रहा है, उन्होंने उत्तर में कहाः मुझे छोड़कर दूसरे लोगों की फ़ाइल पर तुम लोग ध्यान दो, तुम और डाक्टर मोहम्मद अलजबरान हर चीज़ में मेरे वकील हो सिवाय मेरे सम्मान और इज्ज़त के, मेरी इज़्ज़त मेरे जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है इस बात का ध्यान रखना।
मोहम्मद निम्र अंत में लिखते हैं कि हमारी यह मुलाक़ात लगभाग 13:30 तक चली उसके बाद हम बाहर आए और हमने कहा कि आशा है कि हम दोबारा उनको देख सकें, लेकिन मेरे भाई जाफर ने धीरे से कहा कि यह हमारी अंतिम मुलाकात थी, हमने दो बजे हमने शेख़ निम्र से अगली मुलाक़ात के लिये 14 रबीउस्सानी की तारीख़ लेकिन शेख़ की ख़ुदा से मुलाक़ात हमारी मुलाकात से पहले लिखी थी।
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