चेहलुम के दिन का महत्व और ज़ियारत

चेहलुम के दिन का महत्व और ज़ियारत

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

यह इमाम हुसैन के चेहलुम का दिन है और शेख़ैन के कथानुसार इमाम हुसैन के अहले हरम इसी दिन शाम से मदीने की तरफ़ चले थे, इसी दिन जाबिर बिन अबदुल्लाहे अंसारी इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए कर्बला पहुँचे और आप ही इमाम के पहले ज़ाएर हैं, आज के दिन इमाम हुसैन की ज़ियारत करना मुस्तहेब है।

इमाम हसन अस्करी (अ) से रिवायत हुआ है कि मोमिन की पाँच निशानियाँ है जिनमें से एक अरबईन की ज़ियारत पढ़ना है।

ज़ियारत

सफ़र महीने की बीसवी तारीख़ को इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए दो तरीक़े बयान किए गए हैं पहला तरीक़ा वह है जिसे शेख़ तूसी ने तहज़ीब और मिस्बाह नामक किताबों में सफ़वान जम्माल से रिवायत की है कि उसने कहा कि मुझको मेरे आक़ा इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने चेहलुम की ज़ियारत के बारे में फ़रमाया कि जब सूरज चढ़ जाए तो हज़रत (हुसैन) की ज़ियारत करों और कहोंः

السَّلامُ عَلَى وَلِيِّ اللَّهِ وَ حَبِيبِهِ السَّلامُ عَلَى خَلِيلِ اللَّهِ وَ نَجِيبِهِ السَّلامُ عَلَى صَفِيِّ اللَّهِ وَ ابْنِ صَفِيِّهِ السَّلامُ عَلَى الْحُسَيْنِ الْمَظْلُومِ الشَّهِيدِ السَّلامُ عَلَى أَسِيرِ الْكُرُبَاتِ وَ قَتِيلِ الْعَبَرَاتِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَشْهَدُ أَنَّهُ وَلِيُّكَ وَ ابْنُ وَلِيِّكَ وَ صَفِيُّكَ وَ ابْنُ صَفِيِّكَ الْفَائِزُ بِكَرَامَتِكَ أَكْرَمْتَهُ بِالشَّهَادَةِ وَ حَبَوْتَهُ بِالسَّعَادَةِ وَ اجْتَبَيْتَهُ بِطِيبِ الْوِلادَةِ وَ جَعَلْتَهُ سَيِّدا مِنَ السَّادَةِ وَ قَائِدا مِنَ الْقَادَةِ وَ ذَائِدا مِنَ الذَّادَةِ وَ أَعْطَيْتَهُ مَوَارِيثَ الْأَنْبِيَاءِ وَ جَعَلْتَهُ حُجَّةً عَلَى خَلْقِكَ مِنَ الْأَوْصِيَاءِ فَأَعْذَرَ فِي الدُّعَاءِ وَ مَنَحَ النُّصْحَ وَ بَذَلَ مُهْجَتَهُ فِيكَ لِيَسْتَنْقِذَ عِبَادَكَ مِنَ الْجَهَالَةِ وَ حَيْرَةِ الضَّلالَةِ وَ قَدْ تَوَازَرَ عَلَيْهِ مَنْ غَرَّتْهُ الدُّنْيَا وَ بَاعَ حَظَّهُ بِالْأَرْذَلِ الْأَدْنَى وَ شَرَى آخِرَتَهُ بِالثَّمَنِ الْأَوْكَسِ وَ تَغَطْرَسَ وَ تَرَدَّى فِي هَوَاهُ وَ أَسْخَطَكَ وَ أَسْخَطَ نَبِيَّكَ ،

सलाम हो ख़ुदा के वली पर और उसके प्यारे पर सलाम हो ख़ुदा के सच्चे दोस्त और चुने हुए पर, सलाम हो ख़ुदे के पसंदीदी और उसके चहेते के बेटे पर, सलाम हो हुसैन (अ) पर जो मज़लूम (पीड़ित) शहीद हैं, सलाम हो हुसैन (अ) पर जो मुश्किलों में पड़े और उनकी शहादत पर आँसू बहे, हे मेरे ईश्वर मैं गवाही देता हूँ कि वह तेरे वली और तेरे वली के बेटे तेरे चुने हुए और तेरे चुने हुए के बेटे हैं, जिन्होंने तुझसे सम्मान पाया, तू ने उन्हें शहादत  से सम्मान दिया, और उनको सौभाग्य प्रदान किया, और उन्हें पवित्र घराने में पैदा किया, तूने उन्हें सरदारों में सरदार बनाया पेशवाओं में पेशवा (इमाम) बनाया, मुजाहिदों में मुजाहिद और उन्हें नबियों की विरासत दी, तू ने क़रार दिया उनको वसियों में से अपनी स्रष्टि पर हुज्जत, तो उन्होंने तबलीग़ (निमंत्रण) का हक़ अदा किया, बेहतरीन हितैषी रहे और तेरे लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी ताकि तेरे बंदों को नजात दिलाएं अज्ञानता और पथभ्रष्टता के अंधकार से जब्कि उन पर उन लोगों ने अत्याचार किया जिन्हें दुनिया ने धोखा दिया था, जिन्होंने अपनी जानें मामूली चीज़ के बदले बेंच दीं और अपनी आख़ेरत के लिए घाटे का सौदा किया, उन्होंने सरकशी की और लालच के पीछे चल पड़े, उन्होंने तुझे क्रोधित और तेरे नबी को नाराज़ किया

وَ أَطَاعَ مِنْ عِبَادِكَ أَهْلَ الشِّقَاقِ وَ النِّفَاقِ وَ حَمَلَةَ الْأَوْزَارِ الْمُسْتَوْجِبِينَ النَّارَ [لِلنَّارِ] فَجَاهَدَهُمْ فِيكَ صَابِرا مُحْتَسِبا حَتَّى سُفِكَ فِي طَاعَتِكَ دَمُهُ وَ اسْتُبِيحَ حَرِيمُهُ اللَّهُمَّ فَالْعَنْهُمْ لَعْنا وَبِيلا وَ عَذِّبْهُمْ عَذَابا أَلِيما السَّلامُ عَلَيْكَ يَا ابْنَ رَسُولِ اللَّهِ السَّلامُ عَلَيْكَ يَا ابْنَ سَيِّدِ الْأَوْصِيَاءِ أَشْهَدُ أَنَّكَ أَمِينُ اللَّهِ وَ ابْنُ أَمِينِهِ عِشْتَ سَعِيدا وَ مَضَيْتَ حَمِيدا وَ مُتَّ فَقِيدا مَظْلُوما شَهِيدا وَ أَشْهَدُ أَنَّ اللَّهَ مُنْجِزٌ مَا وَعَدَكَ وَ مُهْلِكٌ مَنْ خَذَلَكَ وَ مُعَذِّبٌ مَنْ قَتَلَكَ وَ أَشْهَدُ أَنَّكَ وَفَيْتَ بِعَهْدِ اللَّهِ وَ جَاهَدْتَ فِي سَبِيلِهِ حَتَّى أَتَاكَ الْيَقِينُ فَلَعَنَ اللَّهُ مَنْ قَتَلَكَ وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ ظَلَمَكَ وَ لَعَنَ اللَّهُ أُمَّةً سَمِعَتْ بِذَلِكَ فَرَضِيَتْ بِهِ،

उन्होंने तेरे बंदों में से उनकी बात मानी जो ज़िद्दी और बेईमान थे कि अपने पापों का बोझ ले कर नर्क की तरफ़ चले गए तो हुसैन (अ) उनसे तेरे लिए लड़े जमकर होश के साथ यहां तक कि तेरे आदेशों का पालन करने पर उनका रक्त बहाया गया और उनके अहले हरम को लूटा गया,

हे ईश्वर लानत कर उन अत्याचारियों पर सख़्ती के साथ और अज़ाब दे उनको दर्दनाक अज़ाब, आप पर सलाम हो हे रसूल के बेटे,

आप पर सलाम हो हे वसियों के सरदार के बेटे, मैं गवाही देता हूँ कि आप ख़ुदा के अमानतदार और उसके अमानतदार के बेटे हैं, आप सौभाग्य में जिए और प्रशंसात्मक हाल में चले गए और निधन हुआ वतन  से दूर, आप पीड़ित शहीद है, मैं गवाही देता हूँ कि ख़ुदा आप को अज्र देगा जिसका उसने वादा किया है, और उसको बरबाद करेगा वह जिसने आपका साथ छोड़ दिया, और उसको अज़ाब (सज़ा) देगा जिसने आपकी हत्या की,

मैं गवाही देता हूँ कि आपने ख़ुदा का दिया हुआ दायित्व पूरा किया, आपने उसके लिए जिहाद किया यहां तक कि शहीद हो गए, तो ख़ुदा लानत करे उसपर जिसने आपको क़त्ल किया

ख़ुदा लानत करे जिसने आप पर अत्याचार किया और ख़ुदा लानत करे उस क़ौम पर जिसने इसके बारे में सुना तो उस पर प्रसंन्ता प्रकट की

اللَّهُمَّ إِنِّي أُشْهِدُكَ أَنِّي وَلِيٌّ لِمَنْ وَالاهُ وَ عَدُوٌّ لِمَنْ عَادَاهُ بِأَبِي أَنْتَ وَ أُمِّي يَا ابْنَ رَسُولِ اللَّهِ أَشْهَدُ أَنَّكَ كُنْتَ نُورا فِي الْأَصْلابِ الشَّامِخَةِ وَ الْأَرْحَامِ الْمُطَهَّرَةِ [الطَّاهِرَةِ] لَمْ تُنَجِّسْكَ الْجَاهِلِيَّةُ بِأَنْجَاسِهَا وَ لَمْ تُلْبِسْكَ الْمُدْلَهِمَّاتُ مِنْ ثِيَابِهَا وَ أَشْهَدُ أَنَّكَ مِنْ دَعَائِمِ الدِّينِ وَ أَرْكَانِ الْمُسْلِمِينَ وَ مَعْقِلِ الْمُؤْمِنِينَ وَ أَشْهَدُ أَنَّكَ الْإِمَامُ الْبَرُّ التَّقِيُّ الرَّضِيُّ الزَّكِيُّ الْهَادِي الْمَهْدِيُّ وَ أَشْهَدُ أَنَّ الْأَئِمَّةَ مِنْ وُلْدِكَ كَلِمَةُ التَّقْوَى وَ أَعْلامُ الْهُدَى وَ الْعُرْوَةُ الْوُثْقَى وَ الْحُجَّةُ عَلَى أَهْلِ الدُّنْيَا وَ أَشْهَدُ أَنِّي بِكُمْ مُؤْمِنٌ وَ بِإِيَابِكُمْ مُوقِنٌ بِشَرَائِعِ دِينِي وَ خَوَاتِيمِ عَمَلِي وَ قَلْبِي لِقَلْبِكُمْ سِلْمٌ وَ أَمْرِي لِأَمْرِكُمْ مُتَّبِعٌ وَ نُصْرَتِي لَكُمْ مُعَدَّةٌ حَتَّى يَأْذَنَ اللَّهُ لَكُمْ فَمَعَكُمْ مَعَكُمْ لا مَعَ عَدُوِّكُمْ صَلَوَاتُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَ عَلَى أَرْوَاحِكُمْ وَ أَجْسَادِكُمْ [أَجْسَامِكُمْ‏] وَ شَاهِدِكُمْ وَ غَائِبِكُمْ وَ ظَاهِرِكُمْ وَ بَاطِنِكُمْ آمِينَ رَبَّ الْعَالَمِينَ.

हे ईश्वर मैं तुझे गवाह बनाता हूँ कि उनके मित्रों का मित्र और उसके शत्रुओं का शत्रु हूँ, मेरे माता पिता आप पर फ़िदा हे अल्लाह के रसूल के बेटे

मैं गवाही देता हूँ कि आप नूर की सूरत में रहे, आप सम्मानित पीढ़ियों (सुलब) में और पवित्र गर्भों में जिन्हें जिहालत की अपवित्रता ने अपवित्र नहीं किया और न ही उसने अपने बेतुके वस्त्र को आपको पहनाया है, मैं गवाबी देता हूँ कि आप धर्म के स्तंभ हैं और मुसलमानों के सरदार हैं और मोमिनों की पनाहगाह (आश्रय) हैं, मैं गवाही देता हूँ कि आप इमाम हैं, नेक और परहेज़गार पसंदीदा,पवित्र, मार्गदर्शित मार्गदर्शक हैं,

और मैं गवाही देता हूँ कि जो इमाम आपकी औलाद में से हैं वह पहरेज़गारी के निशान (तक़वा का कलमा) और हिदायत के निशान और मज़बूत सिलसिया और दुनिया वालों पर ख़ुदा की हुज्जत हैं, मैं गवाही देता हूँ कि मैं आप पर विश्वास रखता हूँ और आपके पलटकर आने का मुझे विश्वास है अपने धार्मिक आदेशों और कार्यों के फल पर यक़ीन रखता हूँ, मेरा दिल आपके दिल के साथ मिला हुआ है, मेरा मामला आपके अम्र के अधीन है और मेरी सहायता आपके लिए हाज़िर है यहां तक कि ख़ुदा आपको क़याम की अनुमति दे, तो आपके साथ हूँ आपके साथ, न कि आपके शत्रुओं के साथ,

ख़ुदा की रहमत हों आप पर और आप की पवित्र आत्मा पर आपके शरीर पर आप के उपस्थित और अनुपस्थित पर आपके ज़ाहिर और बातिन पर, आमीन, संसार के ईश्वर

इसके बाद दो रकअत नमाज़ पढ़े फिर जो चाहे वह दुआ करे।

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