सहिष्णुता
सहिष्णुता
आजकल भारत में सहिष्णुता पर कुछ ज़्यादा ही बात हो रही है अब इसकी वजह कुछ भी हो सकती है। यह भी हो सकता है कि कुछ लोगों को यह महसूस हो रहा हो कि भारतीय समाज में सहिष्णुता कम हो रही है या फिर कुछ लोगों को यह लग रहा हो कि भारत में इतनी अधिक सहिष्णुता है जिसके कारण कुछ वर्ग उससे गलत फायदा उठा रहे हैं। वैसै एसे लोग भी हैं जिनका मानना है कि भारत में सहिष्णुता काफी कम है अलबत्ता एसे लोग अपवाद हैं ज़्यादातर लोगों का मानना है कि भारतीय समाज में सहिष्णुता कूट कूट कर भरी हुई है। अब यह कहां तक सही है इस पर हम आगे चर्चा करेंगे किंतु फिलहाल हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि सहिष्णुता क्या होती है?
यह तो सभी को मालूम है कि इन्सान, एक सामाजिक प्राणी है और इसी लिए उसके लिए ज़रूरी है कि वह छोटे बड़े समाज बना कर एक दूसरे से अपनी आवश्यकताएं पूरी करे। एक दूसरे के साथ रहने के लिए एक दूसरे के प्रति सहनशीलता बहुत ज़रूरी होती है, दूसरे के विचारों, दूसरों का रहन सहन जो हमारे रहन सहन हमारी मर्ज़ी और हमारी पसन्द से अलग हो , हमें क्रोधित न करे, हमें हिंसक न बनाए यही सहिष्णुता का व्यवहारिक रूप है। यह सब कुछ प्राचीन काल में ज़रा सरल था, क्योंकि समाज का आकार छोटा था, आवश्यकता, सीमित थीं, विभिन्न समाजों का एक दूसरे से संपर्क कम था इस लिए जटिलताएं भी कम थीं किंतु आज जब धरती, इन्सानों से उबल रही है, आवश्यकताओं की कोई सीमा नहीं, पूरा विश्व एक गांव में बदल चुका है और ग्लोबल विलेज की कल्पना को लोग व्यवहारिक रूप से जी रहे हैं, समाज में जटिलताएं बढ़ी हैं और उसके साथ ही मतभेद भी बढ़ें हैं, लोग नयी तकनीक की मदद से एक दूसरे से जितना क़रीब हुए हैं, व्यवहारिक और आत्मिक रूप से उतने ही एक दूसरे से दूर हुए हैं और हालत यह हो गयी है कि लोगों को अपने पड़ोसी के बजाए दुनिया के दूरस्थ्य क्षेत्रों में घट रही घटनाओं से अधिक रूचि होती है इन परिस्थितियों में यह वास्तविक दूरी, झगड़ों और विवादों में वृद्धि का कारण बनी है किंतु युद्धों ने इन्सानों को यह भी सिखाया है कि, युद्धग्रस्त वातावरण में समाज के लोग, अपनी आवश्यकताओं को सरलता से पूरा नहीं कर सकते और जब ज़रूरतें नहीं पूरी होंगी तो फिर समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। मनुष्य की शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति के महत्व के कारण ही दो विश्व युद्धों के बाद सहिष्णुता की आवश्यकता को समझा गया और राजनीति में इस शब्द का प्रयोग बढ़ गया और अब तो यह आज के समाज की एक ज़रूरत समझा जाता है। विशेषकर भारत जैसे देशों में जहां विभिन्न जातियों, धर्मों और संप्रदाय के लोग रहते हैं किंतु अब जैसे हालात बन रहे हैं उस पर बहुत से लोगों को चिंता हो रही है।
भारत के केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू का कहना है कि आजकल देश में हम नए तरह का ढर्रा देख रहे हैं. वो कहते हैं कि इस देश में सहिष्णुता में कमी आ रही है. भारत दुनिया का इकलौता देश है जहां सहिष्णुता है, अगर यह सौ प्रतिशत नहीं है तो कम से कम 99 प्रतिशत तो है ही.”
उनका कहना था कि अगर आप इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो पाएंगे कि भारत कई विदेशी सरकारों के आक्रमणों का शिकार रहा, लेकिन इस बात का एक भी उदाहरण नहीं है कि भारत ने किसी देश पर हमला किया हो. भारतीयों का व्यवहार भी इस तरह का नहीं है. हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. यही भारत की महानता है. सहिष्णुता तो भारतीयों के ख़ून में है। केन्द्रीय मंत्री का कहना है कि सहिष्णुता भारतीयों के खून में है किंतु अब बहुत से लोगों को महसूस होता है कि भारतीय के खून में सहिष्णुता का रंग फीका पड़ रहा है और शायद यही वजह है कि दस दिनों से भी कम समय में भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने तीन बार, भारत वासियो को, सहिष्णुता की याद दिलायी।
हालिया दिनों में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि हमारी सभ्यता ने हमें सहिष्णुता अपनाने, मतभेदों को स्वीकार करने और असंतोष का सम्मान करना सिखाया है। यही वह भावना है, जिसने हमें एक रखा। हमें इस संदेश को समझना चाहिए और हमारी गतिविधियों, दैनंदिन क्रियाकलापों में यह प्रतिबिंबित होना चाहिए, फिर चाहे वह हमारी सभ्यता और संस्कृति की बात हो, हमारा व्यवहार, हमारा दृष्टिकोण और रवैया हो।’’ भारतीय राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी सभ्यता की भावना है जो हमें जोड़े हुए है और हमें बांधे रखती है और हम अपनी विविधता का जश्न मनाते हैं। यह हमारा हिस्सा है। हमारी सभ्यता ने हमें सहिष्णुता को बढ़ावा देना, मतभेदों को स्वीकार करना और असंतोष का सम्मान करना सिखाया है। इसलिए यही वह भावना है जो हमें जोड़े रखती है।’
भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस संदर्भ अपना विचार प्रकट करते हुए ज़ोर ज़बरदस्ती का सहारा लेकर अपनी मांगें मनवाने वालों का विरोध किया और कहा कि बीते दिनों में कुछ लोगों ने अपनी राय रखने के लिए गुंडागर्दी करनी शुरू कर दी है, जिनकी वजह से काफी समस्याएं आई हैं। मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं है कि कोई किसी बात का विरोध करे, लोकतंत्र में सभी को विरोध और सवाल करने का हक है लेकिन उसके लिए एक निर्धारित और सभ्य तरीका है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि कुछ लोग सामाजिक सौहार्द को बिगाडऩे की कोशिश कर रहे हैं।
वास्तव में हालिया दिनों में भारत में कई एसी घटनाएं हुईं हैं जिनके बाद भारत के विश्व का एकमात्र सहिष्णुता वाला देश होने का दावा करने वाले चौंक जाएं।
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में गाय का मांस खाने की अफ़वाह पर एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया और उसके बेटे को अधमरा कर दिया गया। यह घटना उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा से लगे दादरी नामक क्षेत्र की है जहां 50 साल के मोहम्मद अख़लाक़ और उसके 22 साल के बेटे को कुछ लोगों ने बड़ी बेरहमी से पीटा। बाद में पता चला कि वह मांस बकरे का था। इसी प्रकार भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट अधिकारियों की बात चीत में बाधा डाली गयी, पाकिस्तान के प्रसद्धि गायक गुलाम अली का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। बीफ की शंका में तो कई लोगों के साथ मार पीट की गयी यही कारण था भारतीय राष्ट्रपति चिंतित हुए किंतु भारत के राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख को एसा नहीं लगता। उन्होंने दादरी जैसी घटनाओं पर जारी आक्रोश के बीच कहा कि छोटी छोटी घटनाएं हिंदू संस्कति को नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं। नागपुर में संघ के मुख्यालय में दशहरा पर अपने वार्षिक संबोधन में भागवत ने कहा कि छोटी छोटी घटनाएं होती हैं। उन्हें बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है। छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन ये भारतीय संस्कृति, हिंदू संस्कृति को विकृत नहीं करती। प्राचीन काल से यह विभिन्नता का सम्मान करती है, एकता स्थापित करने के लिए भिन्नताओं के बीच समन्वय करती है। यह हिंदुत्व है। उन्होंने साथ ही देश में उम्मीद और विश्वास का माहौल पैदा करने तथा विदेश में भारत की प्रतिष्ठा मज़बूत करने के लिए मोदी सरकार की सराहना की।
अलबत्ता उनके इस बयान से पहले अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा था कि भारत में वर्ष के दौरान धर्म से प्रेरित हत्याएं, गिरफ्तारियां, दंगे और जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन की घटनाएं हुई हैं जबकि कुछ मामलों में पुलिस सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावी तरीके से निपटने में विफल भी रही है।
अमरीका के विदेश मंत्री जान कैरी द्वारा जारी की गई 'अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आज़ादी 2014' रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में कुछ सरकारी अधिकारियों ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव पूर्ण बयान दिया है। रिपोर्ट में कहा गया, धर्म से प्रेरित हत्याओं, गिरफ्तारियों, बलपूर्वक धर्मांतरण, सांप्रदायिक दंगों और व्यक्ति के धर्म परिवर्तन के अधिकार को रोकने वाली कार्रवाइयों की सूचना मिली है।
स्थानीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एक्ट नाउ फॉर हॉर्मनी एंड डेमोक्रेसी’ के अनुसार 2014 में मई से साल की समाप्ति तक धर्म से प्रेरित हमलों की 800 से अधिक घटनाएं हुईं। यह उस भारत की बात है जिसके वासियों को अपने यहां सहिष्णुता पर गर्व है।
फिलहाल तो वह सहिष्णुता जिस पर बहुत से भारतीयों को गर्व है, भारतीय समाज में बहुत से लोगों को विलुप्त होती महसूस हो रही है इसकी वजह हो भारतीय समाज में कुछ गलियारें काफी चिंताएं हैं।
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