अज़ादारी –ए- हुसैन पर ख़र्च करने का सवाब
अज़ादारी –ए- हुसैन पर ख़र्च करने का सवाब
सकीना बानो अलवी
حَکَی صاحِبُ ذَخائِرِ الأفهامِ عَن عَبدِاللهِ بنِ داودَ، عنِ الثِّقَاتِ، عَنِ ابنِ عَبّاسِ، قالَ: ... وَ إذا بِجَبْرَئِیلَ الْأَمِینِ هَبَطَ مِنَ الرَّبِّ الْجَلِیلِ، وَ قَالَ: یَا مُحَمَّدُ، الْعَلِیُّ الأعلَی یُقْرِؤُکَ السَّلَامُ، وَ یَخُصُّکَ بِالتَّحِیَّهِ وَ الإکرَامِ، وَ یَقُولُ لَکَ: ...، فَوَعِزَّتِی وَ جَلَالِی أَنِّی لَأَخلُقُ لَهَا (فاطمه) شِیعَهً طَاهِرِینَ مُطَهَّرِینَ، یُنْفِقُونَ أَمْوالَهُمْ عَلَی عَزَاءِ الْحُسَیْنِ، وَ أَرْوَاحَهُمْ عَلَی زِیَارَتِهِ، وَ یُقِیمُونَ عَزَاءَهُ فِی مَجَالِسِهِمْ، وَ یَسْبِکُونَ الدُّمُوعَ، وَ یُقَلِّلُونَ الهُجُوعَ، لَیْسَ لَهُمْ مِنْ ذَلِکَ رُجُوعٌ، ... أَلَا وَ مَنْ أَنْفَقَ دِرْهَماً عَلَی عَزَائِهِ وَ زِیَارَتِهِ تَاجَرَتْ لَهُ الْمَلَائِکَهُ إلَی یَوْمِ الْقِیامَهِ فِیما یُنْفِقُهُ، وَ یُعْطِی بِکُلِّ دِرْهَمٍ سَبْعِینَ حَسَنَهً، وَ بَنَی اللَّهُ لَهُ قَصْراً فِی الْجَنَّهِ.[1]
इब्ने अब्बास नक़्ल करते हैं: जिब्रईले अमीन जलील परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुए और कहाः हे मोहम्मद! अली और आला ख़ुदा तुम पर सलाम भेजता है और दुरूद और सम्मान के लिये तुम को मख़सूस करता है और तुमसे फ़रमाता हैः
मुझे मेरी इज़्ज़त और जलाल की सौगंध है, फ़ातेमा के लिये पाक और पवित्र शियों को पैदा करूँगा, यह शिया अपने माल को हुसैन की अज़ादारी में ख़र्च करके हैं और हुसैन की ज़ियारत की राह में जान देते हैं और उसकी अज़ादारी को अपने मजलिसों में बयान करते हैं, ख़ुलूस से उन पर आँसू बहाते हैं, अपनी नीद को कम कर देते हैं और वह अपनी इस रीत से पलटते नहीं है...
जान लो, जो भी हुसैन की अज़ादारी और ज़ियारत में अगर एक दिरहम भर भी ख़र्च करे तो जो उसने ख़र्च किया है फ़रिश्ते उससे क़यामत तक व्यापार करते हैं और हर दिरहम के बदले सत्तर नेकियां उसको देते हैं और ख़ुदा उसके लिये स्वर्ग में एक महल बनाएगा।
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(1) तज़ल्लुमुज़ ज़हरा, (रज़ी बिन बनी क़ज़वीनी, शरीफ़ रज़ी प्रकाशन, कुम ईरान) पेज 73-74
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