ईसाई जिसको मासूम इमाम ने सलाम किया
ईसाई जिसको मासूम इमाम ने सलाम किया
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
नासिख़ुत तवारीख़ के लेखक वहब बिन अब्दुल्लाह के शीर्षक के अंतर्गत तुरैही से वहब बिन वहब का भी नाम लिखा है, लेकिन नोट लगाया है कि इस बारे में जितना भी प्रयत्न किया गया लेकिन हमको एक से अधिक वहब इतिहास में नहीं मिला। (1)
वसीलतुद्दारैन के लेखक का विश्वास है कि वहब बिन वहब वही हैं (2) अल्लामा मजलिसी ने दोनों वहब को करबला के शहीदों में लिखा है और दोनों का विस्तिरित हाल भी लिखा है। (3)
इतिहासकारों ने वहब के पिता का नाम हबाब, जनाब, जनाह (4.5) और लुब लिखा है। (6)
वहब बिन अब्दुल्लाह कल्बी देखने सुंदर, सदाचरण वाले (7) मोमिन और वहादुर थे (8) और आप कूफ़े के रहने वाले थे। (9)
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वहब उनकी पत्नी और माँ ईसाई थे और करबला के रास्ते में सअलबिया नामक स्थान पर उन्होंने इमाम हुसैन (अ) के हाथों इस्लाम स्वीकार किया था। (10,11)
वहब करबला में
आशूरा के दिन वहब की आयु 25 साल थी और आपकी शादी को अभी केवल 17 दिन ही बीते थे। (12,13) और आप बुरैर या फ़िर उमर बिन मोताअ के बाद युद्ध के लिये गए और बेहतरीन जंग की। (14) उसके बाद अपनी माँ क़मर (15) और पत्नी हानिया (16) जो करबला में उनके साथ थीं, वापस पलटे और अपनी मां से कहाः क्या आप मुझ से राज़ी हो गईं? कहाः मैं तुमसे उस समय तक राज़ी नहीं हो सकती जब तक तुम हुसैन (अ) पर अपनी जान न क़ुरबान कर दो। उनकी पत्नी ने कहाः तुम को ख़ुदा की क़सम है मुझे अपनी जुदाई न हो और मेरे दिन को दर्द न दो।
माँ ने कहाः बेटे! पत्नी के बहकावे में न आओं और मैदान में जाओ और अपने पैग़म्बर के बेटी के बेटे के साथ शहीद हो जाओ ताकि क़यामत के दिन उनके नाना की शिफ़ाअत पा सको। (17)
वहब की शहादत
वहब मैदान में वापस पलटे और 12 शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया (18,19) जब आपके दोनों हाथ कट गए तो उनकी पत्नी ने एक लकड़ी हाथ में ली और उनके पास आकर कहने लगीं: मेरे माँ बाप आप पर क़ुरबान पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान वालों की सहायता के लिये युद्ध करो! वहब ने चाहा कि उनको ख़ैमे की तरफ़ पलटा दें लेकिन पत्नी ने कहाः मैं कदापि नहीं जाऊँगी मगर यह कि तुम्हारे साथ ही क़त्ल कर दी जाऊँ।
इमाम हुसैन (अ) ने फ़मायाः
جُزیُتْم مِنْ أَهْلِ بیتٍ خیراً إرْجعی إلی النساء یرحمک اللّه
मेरे अहलेबैत से तुमको जज़ाए ख़ैर हो, अल्लाह तुम पर कृपा करे, औरतों की तरफ़ पलट जाओ, वहब की पत्नी पलट गईं लेकिन वहब मैदान में डटे रहे यहां तक कि आपकी शहादत हो गई। (20,21)
रौज़तुश शोहदा के लेखक कहते हैं कि वहब की पत्नी वहब के साथ इमाम हुसैन (अ) के पास पहुँची और आप के सामने दो माँगें रखीं
1. महशर में वहब उसके बिना स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेंगे।
2. चूँकि वह अकेली और परदेशी हैं इसलिये कनीज़ एवं सेविका के तौर पर इमाम हुसैन (अ) की बेटियों और बहनों के साथ रहेंगी।
इमाम हुसैन (अ) ने उनकी दोनों मांगें स्वीकार कर ली और वहब मैदान की तरफ़ चले गए। (22,23)
वहब ने सत्तर ज़ख़्म खाए और शहीद हो गए उसके बाद शत्रुओं ने आपका गला काट कर उनकी माँ की तरफ़ फेंका, माँ उनके चेहरे से ख़ून साफ़ करती जाती थी और कहती जाती थीः प्रशंसा केवल उस अल्लाह के लिये है जिसने मेरे चेहरे को सफेद और इमाम के साथ मेरे बेटे की शहादत से मेरी आख़ों को रौशन कर दिया... गवाही देती हूँ कि यहूदी, ईसाई और मजूसी अपने चर्चों और बुतख़ानों में तुम से अच्छे हैं। उसके बाद वहब के सर को यज़ीदी फ़ौज की तरफ़ फ़ेंका जो एक सिपाही को लगा और वह नर्क पहुँच गया (24,25,26)
**************
(1) नासिख़ुत तवारीख़, जिल्द 2, पेज 269
(2) नासिख़ुत तवारीख़, जिल्द 2, पेज 203
(3) बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 16
(4) मसीरुल अहज़ान पेज 46
(5) लहूफ़ पेज 63
(6) अकलीलुल मसाएब पेज 117
(7) रौज़तुश शोहदा पेज 289
(8) अंसारुल हुसैन, शमसुद्दीन, मोहम्मद मेहदी, पेज 111
(9) अशरए कामिला पेज 36
(10) रौज़तुश शोहदा पेज 290
(11) वसीलतुद दारैन पेज 201
(12) वसीलतुद दारैन पेज 201
(13) वक़ायउल अय्याम जिल्द 1, पेज 409
(14) अशरए कामिला पेज 366, अबी मख़निफ़ से नक़्ल
(15) मक़तलुल हुसैन, ख़्वारज़मी, जिल्द 2, पेज 12-13
(16) रौज़तुश शोहदा पेज 29
(17) वसीलतुद दारैन पेज 201
(18) मनाक़िब जिल्द 3, पेज 250
(19) बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 16
(20) लहूफ़ पेज 161
(21) मसीरुल अहज़ान पेज 46
(22) रौज़तुश शोहदा पेज 291
(23) नासिख़ुत तवारीख़ जिल्द 2, पेज 270
(24) असरारुश शहादह जिल्द 2, पेज 326
(25) बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 17
(26) अशरए कामिला पेज 366
नई टिप्पणी जोड़ें