“मोहम्मद रसूलुल्लाह” वहाबी विचारधारा के विरुद्ध

“मोहम्मद रसूलुल्लाह” वहाबी विचारधारा के विरुद्ध

मजीद मजीदी ने “मोहम्मद रसूलुल्लाह” नाम की एक फिल्म बनाई है जो कुछ समय से ईरान और दूसरे देशों में दिखाई जा रही है और उसने देश-विदेश के बहुत से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। इस फिल्म की पटकथा को संयुक्त रूप से मजीद मजीदी, काम्बूज़िया परतूये और हमीद अमजद ने तैय्यार किया है और इसी पटकथा के आधार पर इस फिल्म को बनाया गया है। इस फिल्म में पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म से १२ वर्ष पहले और जन्म के बाद की घटनाओं को दिखाया गया है।

“मोहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म में पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण को विश्व वासियों को दिखाने का प्रयास किया गया है और इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस फिल्म में पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण के बारे में जो कुछ बयान किया व दिखाया गया है वह राष्ट्रों के मस्तिष्क में बाकी रह जायेगा। यह ईरानी सिनेमा की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और वह पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन और उनके सदाचरण को विश्व वासियों के समक्ष पेश करने में सफल रही है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर “मोहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म के स्वागत किये जाने के बावजूद सऊदी अरब और कुछ देशों के धर्म प्रचारकों और मुफ्तियों ने इस फिल्म के दिखाये जाने से महीनों पहले उसके संबंध में शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण अपना लिया। यह प्रक्रिया वहाबियों की ओर से आरंभ हुई और बहुत से अरबी संचार माध्यम भी आंख मूंदकर इस प्रक्रिया में शामिल हो गये।

मिस्र का अलअज़हर विश्व विद्यालय इस फिल्म के विरोधियों में से है और उसने कहा है कि उसके विरोध का कारण यह है कि इस फिल्म में पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे को दिखाया गया है परंतु पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि इस विरोध का कोई मज़बूत तर्क नहीं है क्योंकि इस फिल्म में पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे को दिखाया ही नहीं गया है। परंतु अस्ली विरोध सऊदी अरब के वह्हाबियों की ओर से किया गया यहां तक कि एक अतिवादी सऊदी वह्हाबी अब्दुर्रहमान सुदैस ने इस फिल्म को देखने को हराम बताते हुए कहा कि ईरान के साथ हमारी लड़ाई धर्म, पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा, ईमान और एकेश्वरवाद की है और पहले चरण में यह सांप्रदायिकता की लड़ाई है। हमारा शीयों के साथ मतभेद उस समय तक जारी रहेगा जब तक शीया समाप्त नहीं हो जाते।“

सऊदी अरब के वरिष्ठतम वह्हाबी धर्मगुरू शेख अब्दुल अज़ीज़ आले शेख ने दावा किया कि “मोहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म पैग़म्बरे इस्लाम की ग़ैर वास्तविक छवि पेश करती है और वह पैग़म्बरे इस्लाम के स्थान को कम करने का कारण है। इस आधार पर यह फिल्म बनाने का अर्थ इस्लाम की छवि को बिगाड़ना है!!!

लक्ष्यपूर्ण इन समस्त दृष्टिकोणों के विपरीत वास्तविकता इस बात की सूचक है कि यह फिल्म पैग़म्बरे इस्लाम की शांति प्रेमी छवि और यहूदी तथा ईसाई धर्म के मानने वालों के साथ उनके व्यवहार को पेश करती है। वास्तव में यह फिल्म आतंकवादी गुट आईएसआईएल और वह्हाबियों के विचारों व कार्यों पर पानी फेर देती है जो पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा के अनुसरण का दावा करते हैं और उन्होंने हिंसा को अपने जीवन का प्रतीक बना रखा है।

दूसरी ओर इस फिल्म को इस्लामोफिबिया और विश्व एवं पश्चिमी जगत में आईएसआईएल से मुकाबले की दिशा में एक प्रभावी कार्य समझा जा रहा है। इस आधार पर वह्हाबियों और आईएसआईएल की ओर से इस फिल्म का विरोध अपेक्षा से परे नहीं है।

प्रश्न यह है कि इस फिल्म के विरोध का मूल कारण क्या है? इसके जवाब में कहना चाहिये कि जब हम इन देशों के अतीत और इसी प्रकार उन संचार माध्यमों के क्रिया-कलापों की समीक्षा करते हैं, जो इस विरोध को खूब बढ़ा- चढ़ा कर पेश करते हैं, तो हम देखते हैं कि इन देशों के विरोध का मूल कारण यह है कि वे पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण की ग़ैर वास्तविक छवि पेश करते हैं जबकि  “मोहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म पैग़म्बरे इस्लाम की दया, प्रेम, मानवता और कृपा एवं उनके सदाचरण की कुछ दूसरी तस्वीर पेश करती है। दूसरे शब्दों में यह फिल्म दया, न्याय और प्रेम के प्रतिमूर्ति पैग़म्बरे की जो छवि पेश करती है उससे उनकी छवि को ग़लत ढंग से पेश करने वाले देशों व संचार माध्यमों के कुप्रयासों पर पानी फिर जाता है।

इस समय हालीवुड और समस्त पश्चिमी संचार माध्यमों का प्रयास इस्लाम की छवि को बिगाड़कर और हिंसात्मक रूप दर्शाकर उसे पेश करना है। हालीवुड की फिल्मों और पश्चिमी संचार माध्यमों का प्रयास यह बताने में रहा है कि आतंकवाद, आत्मघाती कार्यवाहियों, मानवाधिकार का हनन और अपहरण जैसे कार्यों का संबंध इस्लाम से है और जो कुछ हालीवुड की फिल्मों में दिखाया जाता है उसे वास्तविक व सच्चा बताने में वे किसी प्रकार के झूठ में संकोच से काम नहीं लेते हैं और जायोनियों के समर्थन से दुनिया के लोगों का ध्यान वास्तिवक इस्लाम से भटकाने की चेष्टा में रहते हैं। इस स्थिति में वे जानते हैं कि मुहम्मद रसूलुल्लाह फिल्म इस्लामी गणतंत्र ईरान का बेहतरीन कार्य है और इस फिल्म से इस्लामोफोबिया हेतु आईएसआईएल और तकफीरियों के कृत्यों पर पानी फिर जायेगा और इस फिल्म के माध्यम से किसी सीमा तक वास्तविक इस्लाम को पहचाना जा सकता है।

ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि केवल सऊदी अरब और मिस्र के वह्हाबी धर्मगुरूओं ने ही इस फिल्म का विरोध किया है जबकि इस्लामी जगत में दिन- प्रतिदिन इस फिल्म की लोकप्रियता और उसे देखने के लिए लोगों की रुचि में वृद्धि हो रही है और मुसलमान इस फिल्म को अपने- अपने देशों में दिखाये जाने की मांग कर रहे हैं।

उदाहरण स्वरूप कुवैती समाचार पत्र “अलवक़्त” ने वह्हाबी धर्मगुरूओं की ओर से “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म दिखाये जाने के संबंध में विरोध को राजनीति से प्रेरित बताया और लिखा कि इस फिल्म को बनाने में मजीद मजीदी ने हर उस चीज़ को बयान करने से दूरी की है जो इस्लामी जगत में मतभेद व फूट का कारण बने किन्तु जब ईरान में इस फिल्म के दिखाये जाने की घोषणा की गयी तो अलअज़हर और सऊदी अरब के कुछ वह्हाबी धर्मगुरूओं ने इस फिल्म के दिखाये जाने के प्रति हो हल्ला मचाना आरंभ कर दिया।

मिस्री पत्रकार यासिर अब्दुल अज़ीज़ ”मोहम्मद फिल्म को दिखाये जाने में बाधा न बनो” शीर्षक के अंतर्गत लिखता है कि इस फिल्म को न दिखाये जाने के संबंध में मिस्र के अलअज़हर और सऊदी अरब में फतवों की कमेटी के विरोध में पुनर्विचार किया जाना चाहिये।

मिस्री उपन्यासकार इब्राहीम अब्दुल मजीद “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म को देखने के लिए इस्लामी जगत में पाई जाने वाली उत्सुकता के बारे में लिखता है मिस्र के पूर्व संस्कृति मंत्री डाक्टर जाबिर उस्फूर ने भी अलअज़हर और सऊदी अरब के वह्हाबी मुफ्तियों द्वारा “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म को दिखाये जाने के प्रति विरोध को रूढिवादी बताया है।   

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि वह्हाबी ब्रिटेन की दुष्टता की सोच की उपज हैं और वे अतीत की भांति आज भी मुसलमानों के मध्य फूट डालने की चेष्ट में हैं। “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म के संबंध में वह्हाबी मुफ्तियों का फतवा एवं दृष्टिकोण इस बात का सूचक है कि उनका मूल लक्ष्य शिया-सुन्नी मुसलमानों के मध्य फूट डालना है और वे अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए हर कार्य अंजाम दे रहे हैं। उन्हें इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं से समस्या है और वे पश्चिम के दृष्टिगत इस्लामोफोबिया को इस्लामी समाजों में भी फैलाना चाहते हैं। वह्हाबी इस बात को दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि आईएसआईएल अर्थात दाइश इस्लाम का प्रतिनिधि है और साथ ही वे न केवल बड़ों को बल्कि दाइश के बच्चों को भी हिंसा के लिए उकसा व प्रेरित कर रहे हैं और संचार माध्यमों में इंसानों के हत्यारों को मुसलमानों के रूप में दिखा रहे हैं जबकि “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म में पैग़म्बरे इस्लाम के बचपने और जवानी को दिखाया गया है और इस फिल्म में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम बचपने में भी नैतिक सदगुणों से सुसज्जित थे और हिंसा से उनका किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं था। तो वह्हाबी और पश्चिमी संचार माध्यमों में आईएसआईएल दाइश और दूसरे तकफीरी गुटों की जो तस्वीरें पेश की जाती हैं वह पैग़म्बरे इस्लाम की वास्तविक तस्वीर से पूर्णतः भिन्न हैं और इसी कारण वे “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म दिखाये जाने का विरोध कर रहे हैं।

सऊदी अरब के प्रसिद्ध लेखक दाऊद अश्शरिया ने “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म के प्रति विरोध को राजनीति से प्रेरित बताया और सलफी एवं वह्हाबी संगठनों व संस्थाओं को भावी पीढ़ी तक इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के स्थानांतरण के मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट बताया। उन्होंने समाचार पत्र अलहयात में एक लेख प्रकाशित किया और बल देकर कहा कि “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म पैग़म्बरे इस्लाम का परिचय कृपा और प्रेम के ईश्वरीय दूत के रूप में कराती है और इस फिल्म को शीया-सुन्नी मुसलमानों की विश्वस्त रवायतों के आधार पर बनाया गया है। यह सऊदी लेखक बल देकर कहता है चूंकि “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म का बनाने वाला ईरानी है इसलिए कुछ अतिवादी संगठन व संस्थाएं राजनीतिक दृष्टि से उसका विश्लेषण करती हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ये अतिवादी संस्थाएं अपनी सलफी विचार धारा से इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं और इस्लाम की समृद्ध संस्कृति को भावी पीढ़ी तक पहुंचने के मार्ग में बाधा बनने की चेष्टा में हैं। इन समस्त बातों के साथ यह नहीं भूलना चाहिये कि शीयों और ईरानियों के साथ सऊदी मुफ्तियों की शत्रुता बहुत पुरानी है और यह उनकी शत्रुता का एक छोटा सा उदाहरण है और उन्होंने “मुहम्मद रसूलुल्लाह” फिल्म को न देखने का फतवा देकर अपनी शत्रुता का परिचय दिया है।

इस फिल्म के निर्माण का उद्देश्य विश्व वासियों को पैग़म्बरे इस्लाम के महान व्यक्तित्व का परिचय कराना है और ईश्वरीय धर्म इस्लाम के प्रति ग़ैर मुसलमानों के दृष्टिकोणों को परिवर्तित कर सकती है। अब वह्हाबियों और मुफ्तियों की शत्रुता को सिद्ध करने के लिए प्रमाण व तर्क देने की कोई आवश्यकता नहीं है। हज प्रबंधन में सऊदी अधिकारियों की लापरवाही और हज विशेषकर मिना त्रासदी में हज़ारों हाजियों के मारे जाने की ख़बर बहुत ही पीड़ादायक थी परंतु इस त्रासदी के बाद सऊदी अधिकारियों के व्यवहार इस बात के सूचक हैं कि प्रेम और कृपा के पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद और उनकी शिक्षाओं से उनका कोई लेना- देना नहीं है।

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