वहाबी क़ब्रों की ज़ियारत वाली हदीसों के साथ क्या करते हैं?

वहाबी क़ब्रों की ज़ियारत वाली हदीसों के साथ क्या करते हैं?

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

अहलेसुन्नत की सहीह और सुनन पुस्तकों में जो हदीसें पाई जाती हैं उनसे पता चलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने एक विशेष अवसर पर अल्पावधि के लिये क़ब्रों की जियारत से रोका था लेकिन बाद में आपने इसकी अनुमति दे दी थी।

आपके रोकने का कारण शायद यह था कि उस समय के मुसलमानों के पूर्वज अधिकतर मुशरिक और बुत परस्त थे और इस्लाम ने इस प्रकार उनकी ज़ियारत से रोककर उनको बुतपरस्तों की दोस्ती से दूर रखा था, यह भी संभव है कि रोके जाने का कोई और कारण रहा हो और वह यह कि नए मुसलमान इस्लामी शिक्षा के विरुद्ध चीज़ों को मुर्दो की क़ब्रों पर बोलते हो, लेकिन इस्लामी की तरक़्क़ी और इस्लामी शिक्षाओं के स्थायित्व पा जाने के बाद यह रोक हटा ली गई और पैग़म्बरे इस्लाम ने क़ब्रों की ज़ियारत में पाए जाने वाले प्रशिक्षणिक लाभों के कारण लोगों को उनकी ज़ियारत की अनुमति प्रदान कर दी।

सहीह और सुन्न पुस्तकों के लेखकों ने इस बारे में इस प्रकार लिखा है

زُورُوا القبورَ فإنها تُذَکِّرُکم الآخِرَةَ...»(1)

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क़ब्रों की ज़ियारत करो (क़ब्रों पर जाओ) क्योंकि उनकी ज़ियारत आख़ेरत की याद दिलाती है।

کُنْتُ نَهَيْتُکُمْ عَنْ زِيارَةِ الْقُبُورِ فَزُورُوا، فَاِنَّها تُزَهِّدُ فِي الدُّنْيا وَتُذَکِّرُ الآخِرَةَ»(2).

मैने तुमको क़ब्रों की ज़ियारत से रोका था, आज के बाद से उनकी ज़ियारत को जाओ, क्योंकि क़ब्रों की ज़ियारत तुमको संसारिक लोभ से दूर करता है और आख़ेरत की याद दिलाता है।

और यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपनी माताश्री की क़ब्र पर जाते थे और लोगों को क़ब्रों की ज़ियारत का आदेश दिया करते थे क्योंकि इससे आख़ेरत की याद ताज़ा हो जाती है।

زارَ النّبيّ قَبْرَ اُمِّهِ فَبَکي واَبْکي مَنْ حَولَه... إستأْذَنْتُ رَبِّي في اَنْ أَزُورَ قَبرها، فَاَذِنَ لِي، فَزُورُوا الْقُبُورَ فَإِنَّها تُذَکِّرُکُمُ الْمَوْتَ»(3).

पैग़म्बर (स) ने अपनी माताश्री की क़ब्र की जियारत की औऱ उनकी क़ब्र पर रोए और वह लोग जो आपके साथ थे उनको रुलाया, उसके बाद फ़रमायाः मैंने अपने अल्लाह से अनुमति ली है कि अपनी माँ की क़ब्र की ज़ियारत करूँ, तुम भी क़ब्रों की ज़ियारत पर जाओ क्योंकि उनकी ज़ियारत मौत की याद दिलाती है।
आएशा कहती हैं

«أنَّ رَسُولَ اللَّهِ رَخَّصَ في زِيارَةِ الْقُبُورِ»(4).

अल्लाह के नबी (स) ने क़ब्रों की ज़ियारत की अनुमति दी है।

इसी प्रकार आएशा कहती हैं: पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने क़ब्रों की ज़ियारत का तरीक़ इस प्रकार मुझे बताया हैः

فَأمَرَني رَبِّي آتي الْبقِيعَ فَأَسْتَغْفِرَلَهُمْ، قُلْتُ کَيفَ أقُولُ: يا رسول اللَّهَ، قالَ: قُولي: السلامُ علي أهل الدِّيارِ مِنَ الْمُؤمنينَ والمُسْلِمينَ يَرْحمُ اللَّه المُسْتَقْدِمينَ مِنّا وَالمُسْتأخِرينَ وإنَّا إنْ شاءاللَّه بِکُمْ لاحِقونَ»(5).

मेरे रब ने मुझे आदेश दिया है कि बक़ी जाऊँ और मुर्दों के लिये मग़फ़ेरत (क्षमायाचना) तलब करूँ

(आएशा कहती हैं) मैंने कहा हे अल्लाह के रसूल मैं कैसे कहूँ? आपने फ़रमायाः कहो सलाम हो इस दयार के रहने वालों पर मोमिनीन और मुस्लेमीन में से अल्लाह हमारे पहले जाने वालों और जो बाद में जाने वाले हैं पर रहमत करे हम भी बहुत जल्द तुम से मिल जाएंगे।
एक हदीस में आया है कि पैग़म्बर किन शब्दों के साथ क़ब्रों की ज़ियारत पर जाते थेः

السَّلامُ عَلَيْکُم دارَ قَوْمٍ مُؤمنينَ وإنّا واِيَّاکُمْ مُتواعِدونَ غَداً ومُواکِلُونَ، واِنَّا اِنْ شاءاللَّهُ بِکُم لاحِقُونَ، أللّهمَّ اغْفِر لأِهْلِ بقيع الغَرْقَدِ»(6).

एक दूसरी हदीस में इस प्रकार आया हैः

السَّلامُ عَلَيْکُمْ أهْلَ الدِّيارِ مِنَ الْمُؤْمِنينَ وَالْمُسْلِمِينَ وَإنَّا اِنْ شاءاللَّهُ بِکُمْ لاحِقونَ، اَنتُم لنا فَرَطٌ ونَحْنُ لَکُم تَبَعٌ أسْئَلُ اللَّه الْعافِيةَ لَنا وَلَکُمْ»(7).

हज़रत आएशा की हदीस से पता चलता है कि जब भी रात्रि का अंतिम क्षण आता था पैग़म्बर बक़ी की तरफ़ जाते थे और कहते थेः

السَّلامُ عَلَيْکُمْ دارقَوْمٍ مُؤْمِنينَ وَاَتاکُمْ ما تُوعَدُونَ، غَداً مُؤَجِّلُونَ، وَاِنَّا اِنْ شاءَاللَّهُ بِکُمْ لاحِقُونَ أَللَّهُمَّ اغْفِرْ لِأهْلِ بَقِيعِ الْغَرْقَدِ»(8).

दूसरी हदीस से पता चलता है कि पैग़म्बर सामूहिक तौर पर क़ब्रों की ज़ियारत पर जाते थे और लोगों को बताते थे कि क़ब्रों की किस प्रकार ज़ियारत करें।

کانَ رسوُلُ اللَّهَ يُعَلِّمُهُمْ اِذا خَرَجوا اِلَي الْمَقابِرِ فَکانَ قائِلُهُمْ يَقُول: السَّلامُ عَلَي أهلِ الدِّيارِ (يا) السَّلامُ عَلَيْکُمُ أهْلَ الدِّيارِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُسْلِمِينَ وإنّا إنْ شاءَاللَّهُ لاحِقُونَ أَسْئَلُ اللَّهَ لَنا وَلَکُم الْعافِيَةَ...»(9).

इन सारी हदीसों के बाद भी वहाबी क़ब्रों की ज़ियारत और नबियों, इमामों, सहाबियों, वलियों आदि की क़ब्र पर जाने को शिर्क और अनेकेश्वरवाद मानते हैं, तो प्रश्न यही उठता है कि यह इन हदीसों का क्या करते हैं?

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1.    सहीह इबने माजा 1, 113

2.    सुनने तिरमिज़ी 3, 274

3.    सहीह मुस्लिम 3, 65

4.    सुनने इबने माजा 1, 113

5.    सहीह मुस्लिम 3, 64 और सुनने निसाई 3, 76

6.    सुनने निसाई 4, 76

7.    वही

8.    सहीह मुस्लिम 3, 63

9.    सहीह मुस्लिम 3, 11

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