इस्लामोफोबिया में पश्चिमी मीडिया का रोल'

इस्लामोफोबिया में पश्चिमी मीडिया का रोल'

पूरे इतिहास में इस्लाम के विस्तार, इस्लाम विरोधी कार्यवाहियों और इस्लाम से डराने या इस्लामोफोबिया की प्रक्रिया मौजूद रहा है। इस्लाम विशेषकर जब पश्चिम में फ़ैलने लगा तो इस्लाम और मुसलमानों की छवि बिगाड़ने के प्रयास भी तेज़ हो गये। समकालीन युग में और लगभग पिछले १०० साल से पश्चिम की ओर में मुसलमानों के पलायन में वृद्धि हुई है। जबकि दूसरी ओर पश्चिमी देशों और योरोप में रहने वालों में इस्लाम धर्म के प्रति रूजहान बढ़ा इस प्रकार इन देशों में मुसलमानों की संख्या बढ़ी! मुसलमान अपनी विशेष जीवनशैली रखते है। इस प्रकार की स्थिति में पश्चिमी संचार माध्यमों ने वास्तविक इस्लाम की छवि को बिगाड़ कर पेश करना आरंभ कर दिया।

इतिहास, इस्लाम और पश्चिम के मध्य लड़ाइयों से भरा पड़ा है। पश्चिम अपने हितों के मार्ग में इस्लाम को सबसे बड़ी रुकावट समझता है और इसीलिए उसने इस्लामोफोबिया की नीति अपना ली है और वह विश्व जनमत को यह दर्शाने की चेष्टा में है कि इस्लाम हिंसा का धर्म है जबकि अमेरिका में ११ सितंबर की घटना के एक महीने बाद अमेरिकी बुद्धिजीवी FUKUYAMA ने ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र गार्डियन के साथ साक्षात्कार में बल देकर कहा कि इस्लाम केवल सांस्कृतिक व्यवस्था है जो पश्चिम की नूतनता व आधुनिकता के लिए ख़तरा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नूतनता के मुकाबले में इस्लामी देशों के प्रतिरोध को समाप्त करने के लिए अमेरिका सैनिक संभानाओं का प्रयोग कर सकता है।

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि इस्लामोफोबिया ऐसी चीज़ है जिसकी जड़ इतिहास में है और इस समय उसे केवल नये रूप में पेश किया गया है। इस्लामोफोबिया की जड़ इस्लाम और पश्चिम के संबंधों में निहित है। शायद मुसलमानों और इसाईयों के मध्य होने वाला सलीबी युद्ध इस्लामोफोबिया की जड़ है जबकि वर्तमान समय में संचार माध्यम इस्लामोफोबिया में भूख्य भूमिका निभा रहे हैं।

पश्चिम के अधिकांश संचार माध्यमों में इस्लाम को पश्चिम की संस्कृति के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बताया जाता है। इसके अलावा पश्चिम के संचार माध्यमों में यह बताया जाता है कि अधिकांश मुसलमान हिंसाप्रेमी और अतिवादी होते हैं और जेहाद के नाम पर वे हिंसात्मक कार्यवाहियां करते हैं और बहु विवाह पर विश्वास रखते हैं। अलबत्ता इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि पश्चिमी सिनेमा विशेषकर हालीवुड ने भी इस्लाम और मुसलमानों की छवि बिगाड़कर पेश करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। जो फिल्में हालिया पचास वर्षों में बनी हैं उनमें इस्लामोफोबिया को वित्रित्र ढंग से फैलाया गया है और इन फिल्मों के दर्शकों के दिमाग़ में ग़ैर वास्तविक चीज़ों को भर दिया गया।

हाल ही में तेहरान में इस्लामी देशों के रेडियो और टीवी चैनलों का आठवां सम्मेलन आयोजित हुआ था। इस सम्मेलन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम के वास्तविक चेहरे को पेश करना था। इस्लामी देशों के रेडियो और टीवी यूनियन का गठन आठ वर्ष पहले उच्च उद्देश्यों के लिए किया गया था और इस समय यह यूनियन संवदेनशील स्थिति में है और उसे चाहिये कि वह इस्लाम के विरुद्ध समस्त दुष्प्रचारों को निष्क्रिय बनाने के लिए अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करे। इन वर्षों में इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इस्लामी देशों के रेडियो और टीवी यूनियन में सक्रिय भूमिका निभाई है और वह इन संचार माध्यमों की एकता व एकजुटता पर बल देता है।

ईरान की रेडियो व टीवी संस्था के प्रमुख डाक्टर मोहम्मद सरफराज़ ने इस यूनियन के आठवें सम्मेलन का समाप्ति पर बोलते हुए कहा कि आज हम आईएसआईएल को देख रहे हैं जो पश्चिमी विशेषकर ब्रिटिश संचार माध्यमों की उपज है क्योंकि अगर अंतरराष्ट्रीय संचार माध्यम उसका प्रचार-प्रसार न करते हो तो आज आईएसआईएल नाम की कोई चीज़ न होती। साथ ही उन्होंने वर्तमान समय में नर्मयुद्ध की ओर संकेत किया। डाक्टर सरफ़राज़ ने इस परिस्थिति में इस्लामी संचार माध्यमों के दायित्वों की ओर संकेत करते हुए कहा कि प्रतिरोध को मज़बूत करना हमारा पहला दायित्व है! उसे बयान करना और उसके आयामों को स्पष्ट करना चाहिये ताकि उसके मुक़ाबले में हम कुछ पेश कर सकें। उन्होंने आगे कहा कि इस्लामोफ़ोबिया से मुक़ाबला, पैग़म्बरे इस्लाम के सही चेहरे व आचरण को पेश करना और आईएसआईएल जैसे तकफीरी गुटों के आक्रमण के मुकाबले में इस्लामी एकता का प्रचार वह दायित्व है जो इस्लामी संचार माध्यमों पर है। इसके अतिरिक्त सामाजिक चैनल्स को चाहिये कि वे एक दूसरे के साथ सहकारिता करके विश्व साम्राज्य के मुक़ाबले में मोर्चा खड़ा कर दें। साथ ही वर्तमान समय के ज्ञान व तकनीक से भी लाभ उठाना समस्त मुसलमानों का भारी दायित्व है।“

पश्चिमी संचार माध्यम मुसलमान राष्ट्रों को अपने संबोधन का पात्र बनाते हैं इसके मुकाबले में ईरान का सुझाव है कि इस्लामी देशों के रेडियो एवं टीवी यूनियन को चाहिये कि वे पश्चिमी संचार माध्यमों के दुष्प्रचार को निष्क्रिय बनाने के लिए विशुद्ध इस्लाम, एकता और इस्लामी संस्कृति को पेश करें। संचार माध्यमों के विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी संचार माध्यमों के विनाशकारी प्रचार से मुक़ाबले का बेहतरीन मार्ग राष्ट्रों, इस्लामी देशों विशेषकर जवानों का सही दिशा निर्देशन है और इस लक्ष्य को संचार माध्यमों  की क्षमता बढ़ाकर प्राप्त किया जा सकता है। स्पष्ट है कि विशुद्ध इस्लाम को पहचनवाने, पश्चिम को वास्तविकता से अवगत कराने और दुश्मन के सांस्कृतिक हमलों को निष्क्रिय करने के लिए इस्लामी देशों की रेडियो और टीवी यूनियन से बेहतर और मज़बूत कोई दूसरा हथियार नहीं है इसलिए तय यह हुआ कि इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संचार माध्यमों से यथासंभव लाठ उठाया जाये और इसी उद्देश्य से इस्लामी देशों के रेडियो और टीवी यूनियन का गठन किया गया और इसका दायित्व पश्चिम के संचार माध्यमों के दुष्प्रचार को निष्क्रिय बनाना और वास्तविकताओं एवं इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को विश्व जनमत के समक्ष पेश करना है।

इस्लामी देशों के रेडियो और टीवी यूनियन के आठवें सम्मेलन की एक महत्वपूर्ण घटना उसमें भाग लेने वालों का ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई से मुलाक़ात थी। वरिष्ठ नेता ने इस सम्मेलन में भाग लेने वालों से भेंट में मूल्यवान बातें कहीं। वरिष्ठ नेता ने कहा आज विश्व साम्राज्य ने बड़ा प्रचारिक साम्राज्य बना दिया है। वह ख़बरों को फेर बदल कर पेश करता है ख़बरों को छिपा देता है और झूठ बयान करता है। अपनी नीति को इसी मार्ग से बयान करता है और लगातार यह बात कहता है कि हम निष्पक्ष हैं। यह ब्रिटिश रेडियो दावा करता है कि हम निष्पक्ष हैं जबकि वह झूठ बोलता है कौन सी निष्पक्षता? ये संचार माध्यम ठीक साम्राज्यवादियों और वर्चस्वादियों की नीति की दिशा में काम करते हैं। चाहे समाचार एजेन्सियां हों चाहे आज अस्तित्व में आने वाले संपर्क साधन सबके सब उनकी सेवा में हैं। वे साम्राज्य की सेवा में हैं जायोनिज़्म की सेवा में हैं उनके लक्ष्यों की सेवा में हैं। इस ख़तरनाक साम्राज्य और भारी संचारिक माफिया के मुकाबले में, जो पूंजीपतियों और अमेरिका तथा जायोनी कंपनियों के अधिकार में है, कुछ करना चाहिये। यह वही कार्य है जिसे आप लोग अंजाम दे रहे हैं एक आंदोलन का आरंभ है। इसे जारी रखा जाना चाहिये। इसे मज़बूत किया जाना चाहिये और उसमें दिन¬- प्रतिदिन गति प्रदान की जानी चाहिये।

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