मिना त्रासदी के विभिन्न आयाम

मिना त्रासदी के विभिन्न आयाम

इस साल हज के संस्कार में दो हृदय विदारक त्रासदियां सामने आईं। इस्लाम का सबसे बड़ा जमावड़ा कि जो इस्लामी जगत की एकता व एकजुटता का प्रतीक है, शोक समारोह में बदल गया। हज के संस्कार शुरू होने से दो सप्ताह पहले मस्जिदुल हराम में एक बड़ी क्रेन गिर गई। इस दुर्घटना में सैकड़ों व्यक्ति हताहत व घायल हुए। दो ही हफ़्ते बाद मिना में हज के संस्कार के दौरान एक अधिक बड़ी और अविश्वसनीय त्रासदी सामने आई और कुप्रबंध एवं उचित कार्यक्रम के अभाव के चलते मची भगदड़ में बड़ी संख्या में हाजी हताहत हुए। अब तक की रिपोर्टों के अनुसार मिना की त्रासदी में लगभग पांच हज़ार हाजी मारे गए हैं और हज़ारों अन्य घायल हैं।

आले सऊद लगभग अस्सी साल से हज की मेज़बानी कर रहा है। यह परिवार स्वयं को ख़ादिमुल हरमैने शरीफ़ैन अर्थात मक्के और मदीने के पवित्र स्थलों का सेवक कहता है। प्रतिवर्ष करोड़ों लोग ईश्वर के घर अर्थात काबे के दर्शन और हज के संस्कार अदा करने के लिए सऊदी अरब जाते हैं। सऊदी प्रशासन के लिए यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि उसके सामने एक अत्यंत संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। विशेष कर इस लिए कि पिछले कुछ वर्षों में वर्तमान त्रासदी जैसी तो नहीं किंतु इससे कम स्तर की कई त्रासदियां हज के संस्कारों के दौरान हो चुकी हैं। पिछले चालीस साल में हज के दौरान तेरह भयानक घटनाएं हुई हैं जिनमें से प्रत्येक में दसियों हाजी हताहत और घायल हुए हैं।
दस दिसम्बर 1975 को मिना में हाजियों के लिए बनाए गए तम्बुओं में गैस का सिलेंडर फटने और तम्बुओं में आग लग जाने से दो सौ से अधिक हाजी जल गए थे। बीस नवम्बर 1979 को मस्जिदुल हराम में बंधक बनाए जाने की घटना में सऊदी अरब के सुरक्षाकर्मियों के हस्तक्षेप के कारण डेढ़ सौ लोग मारे गए और पांच सौ से अधिक घायल हो गए थे। 31 जुलाई 1987 को ईरानी हाजियों पर सऊदी पुलिस के हमले में चार सौ से अधिक हाजी मारे गए जिनमें अधिकतर ईरानी थे। ये हाजी बराअत अज़ मुशरेकीन या अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता जताने संबंधी हज के एक संस्कार में शामिल थे। अगले वर्षों में भी विशेष रूप से मिना में अनेक भयानक दुर्घटनाएं हुईं किंतु इनमें से कोई भी दुर्घटना इस साल की मिना त्रासदी जितनी भयंकर नहीं थी।

मिना की त्रासदी की दो आयामों से समीक्षा की जा सकती है। प्रथम यह कि यह दुर्घटना कैसे और क्यों हुई? और दूसरे यह कि इस बड़ी त्रासदी पर सऊदी अरब के अधिकारियों की प्रतिक्रिया क्या थी? खेद की बात है कि इस त्रासदी के संबंध में सऊदी अरब के अधिकारियों की प्रतिक्रिया ज़िम्मेदारीपूर्ण और समझ-बूझ भरी नहीं थी। इसके विपरीत आले सऊद, इस घटना की ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल कर इससे पल्ला झाड़ने की कोशिश में है। मिना की त्रासदी के बाद सऊदी अरब की सरकार ने, इस दुर्घटना में हताहत और घायल होने वालों की पहचान के लिए विभिन्न देशों के हज अधिकारियों से सहयोग करने के बजाए इस संबंध में अन्य देशों विशेष रूप से ईरान की ओर से किए जाने वाले आग्रहों को ठुकरा दिया। मिना की त्रासदी में मरने वालों में नाइजीरिया के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान के हाजियों की संख्या सबसे अधिक है।

हाजियों को बचाने के लिए सऊदी अरब के सुरक्षा बलों और राहत कर्मियों का व्यवहार और ढिलाई इस प्रकार की है कि मानो उनके लिए इंसानों की जान और मरे हुए लोगों के सम्मान का कोई महत्व ही नहीं है। अगर सुरक्षाकर्मी अन्य देशों विशेष कर ईरान के राहत कर्मियों को काम करने की अनुमति देते तो मरने वालों की संख्या बहुत कम होती। खेद की बात है कि सऊदी अरब के राहत व सुरक्षाकर्मियों में दुर्घटना के प्रभावितों की मदद करने और मरने वालों के शव एकत्रित करने के लिए आवश्यक गति नहीं थी और वे अन्य देशों के राहतकर्मियों और चिकित्सकों को भी मदद की अनुमति नहीं दे रहे थे। सऊदी अरब की सरकार ने पूरी तरह से ग़ैर ज़िम्मेदारी का सुबूत देते हुए घटना के प्रभावितों, लापता हो जाने वालों यहां तक मर जाने वालों की पहचान के बारे में आवश्यक सहयोग नहीं किया है। उसका यह व्यवहार न तो इस्लामी शिक्षाओं के अनुकूल है, न मेज़बान के रूप में हाजियों की सुरक्षा सुनिश्चित बनाने की ज़िम्मेदारी के अनुसार है और न ही अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के परिप्रेक्ष्य में है।

सऊदी अरब के अधिकारियों ने हज के संस्कारों के दौरान हाजियों को आवश्यक सहूलतें प्रदान करने में अपनी ढिलाई और अक्षमता पर पर्दा डालने के लिए पहले तो मिना की घटना को ईश्वर की इच्छा बताया और फिर इस बड़ी दुर्घटना के लिए अफ़्रीक़ी हाजियों की अनुशासनहीनता को ज़िम्मेदार ठहराया। इसके बाद उन्होंने इस त्रासदी के राजनीतिकरण का प्रयास किया और ईरान के हाजियों को इसके लिए ज़िम्मेदार बताया और विभिन्न संचार माध्यमों और सोशल नेटवर्किंग साट्स पर अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए अविश्वस्त दलीलें पेश कीं।

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान ने भी मिना की दुर्घटना के संबंध में सऊदी अरब का बचाव किया और कहा कि इस मामले में इस देश को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। तुर्की के राष्ट्रपति भी ऐसी स्थिति में कि जब सैकड़ों परिवार मक्के में, जो ईश्वर की ओर से अमन का नगर घोषित है, अपने प्रियजनों की मौत पर दुखी हैं, इस त्रासदी से राजनैतिक व प्रचारिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि सऊदी अरब की सरकार तुर्की के साथ मिल कर इराक़, यमन व सीरिया में अपनी हस्तक्षेपपूर्ण नीतियों को आगे बढ़ाने में विफलता का बदला लेना चाहती है। श्री अर्दोग़ान से यह पूछा जाना चाहिए कि अगर सऊदी अरब की सरकार हाजियों की जान की रक्षा की ज़िम्मेदार नहीं है तो फिर किसे इस मामले में दोषी मानना चाहिए? क्यों सऊदी अरब की सरकार ने इस त्रासदी के बाद भी ज़िम्मेदार रवैया नहीं अपनाया?

मिना त्रासदी के बाद से सोशल मीडिया में जो चित्र और वीडियो क्लिप्स सामने आई हैं उन्होंने हाजियों को सही मार्ग दिखाने में सऊदी अरब के अधिकारियों की ढिलाई और कुप्रबंधन को स्पष्ट कर दिया है। एक तस्वीर में दिखाया गया है और प्रत्यक्ष दर्शियों ने भी कहा है कि सऊदी अरब के शासक के पुत्र मुहम्मद बिन सलमान के कारवां के आने के बाद सुरक्षाकर्मियों ने सड़क नंबर 204 के दो प्रवेश द्वारों को बंद कर दिया। यही बात लगभग पचास डिग्री सेंटी ग्रेड की गर्मी में एक ही स्थान पर बड़ी संख्या में हाजियों के इकट्ठा हो जाने का कारण बनी। परिणाम स्वरूप सैकड़ों हाजी, गर्मी, प्यास और बहुत अधिक दबाव के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठे। मिना की दुर्घटना के सामने आने का यह एक कारण है।

ऐसा प्रतीत होता है कि मिना की त्रासदी की बड़ी गहराई के साथ जांच की जानी चाहिए। सऊदी अरब के शासक ने अपने बच्चों का, जिन पर हज के संस्कारों के आयोजन का दायित्व है, आभार प्रकट किया है और उनकी सराहना की है। उन्होंने मिना की घटना के बाद अपने पहले साक्षात्कार में इस घटना पर खेद जताते हए कहा है कि राजशाही परिवार के पुत्रों ने, जिन पर हज के आयोजन की ज़िम्मेदारी है, भली भांति अपने दायित्वों का निर्वाह किया है। किसी ने उनसे यह प्रश्न नहीं पूछा कि सऊदी अरब के अधिकारी, बिना दुर्घटना के हज के आयोजन में अक्षम हैं? यह कुप्रबंधन अब ऐसे तथ्य में बदल चुका है जिस पर हर दुर्घटना के बाद अधिकांश इस्लामी देशों में आपत्ति जताई जाती है। खेद की बात है कि इस्लामी देश हर दुर्घटना पर खेद जताने के कुछ ही समय बाद उसे भूल जाते हैं जबकि सऊदी अरब की सरकार हाजियों के आराम के उद्देश्य से लिए गए पैसों को प्रोपेगंडों पर ख़र्च करती है।

हज के संस्कारों के दौरान घटने वाली दुर्घटनाओं के बाद सऊदी अरब की सरकार के अहंपूर्ण व्यवहार को, मनुष्यों के प्रति सऊदी राजशाही घराने के दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। किसी मुसलमान की मौत सऊदी अधिकारियों के लिए इतनी साधारण है कि वे इस संबंध में तनिक भी दायित्व का आभास नहीं करते। यमन ही को लीजिए। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार हराम अर्थात युद्ध के लिए वर्जित महीनों में से एक में सऊदी सरकार ने इस ग़रीब मुस्लिम देश पर हमला किया और वह प्रतिदिन इस देश के दसियों लोगों को मौत की नींद सुला रही है। आले सऊद की वहाबी विचारधारा में अन्य इस्लामी मत ग़लत हैं और विशेष रूप से शियों का तो ख़ून बहाने में भी कोई हरज नहीं है।

मिना में मानव त्रासदी और हज़ारों हाजियों की मौत पर सऊदी अधिकारियों की प्रतिक्रिया की जड़ें उनकी वहाबी विचारधारा में खोजी जानी चाहिए। आले सऊद के वहाबियों में अगर ताक़त होती तो वे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पवित्र रौज़े को भी ध्वस्त कर देते, जैसा कि वे कई बार अपनी इस इच्छा को प्रकट कर चुके हैं और हज के अनेक संस्कारों को अनेकेश्वरवाद का नाम देते हैं। इस आधार पर मिना की घटना पर उन्हें कोई अधिक चिंता नहीं है।

मिना त्रासदी और हज के दौरान होने वाली अन्य दुर्घटनाओं में एक और बड़ा अंतर है और वह है संचार माध्यमों और साइबर स्पेस की शक्ति। सऊदी शासन, इस त्रासदी को जिस प्रकार अपनी नीतियों के अनुसार पेश करना चाहता था, उसमें विफल रहा। संसार के लोगों ने मिना के क्षेत्र में ईश्वर के अतिथियों की खेदजनक एंव हृदय विदारक स्थिति को निकट से देखा। विश्व जनमत और मुसलमानों में आले सऊद की जो छवि बाक़ी रहेगी, वह एक ऐसे शासन की छवि है जो सबसे पवित्र इस्लामी धरती पर मुसलमानों के सबसे बड़े संस्कार के आयोजन में अपने दायित्वों का तनिक भी निर्वाह नहीं करता। आवश्यक है कि इस्लामी देश, मिना त्रासदी की जांच के संबंध में गंभीर राजनैतिक कार्यवाहियां करें और हाजियों की जान की रक्षा के संबंध में आले सऊद की ज़िम्मेदारियों से उसे पुनः अवगत कराएं।

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