अमरीका की बात न सुनो इसमें केवल नुक़सान ही नुक़सान

 

वरिष्ठ नेता ने कहा है कि कुछ लोग अमरीका के साथ बातचीत के विषय में मामले की गहराई को नहीं समझ रहे हैं।

वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रान्ति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान के कमान्डरों से मुलाक़ात में कहा, “हमारे पास अमरीका के साथ बातचीत का विरोध करने के पीछे कारण है। ईरान से अमरीका की बातचीत का अर्थ पैठ है। वे थोपने के लिए रास्ता खोलना चाहते हैं।” उन्होंने बल दिया, “इसी परमाणु बातचीत में जहां मौक़ा मिला, पैठ बनायी। ईश्वर की कृपा से ईरानी पक्ष सचेत था किन्तु फिर भी वे एक रास्ता निकाल ले गए और ईरानी राष्ट्र के हितों के ख़िलाफ़ एक नुक़सानदेह क़दम उठाया।”

वरिष्ठ नेता ने कहा, “अमरीका से बातचीत वर्जित है क्योंकि इसमें अनगिनत नुक़सान और कोई फ़ायदा नहीं है। यह अंतर है उस सरकार से बातचीत में जिसके पास इतनी संभावनाएं न हो और न ही वह इतनी महत्वकांक्षी हो।”

वरिष्ठ नेता ने कहा, “कहते हैं कि अमरीका के साथ बातचीत का क्यों विरोध कर रहे हैं हालांकि अमीरुल मोमेनीन ने ज़ुबैर से और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उमर सअद से बातचीत की। अमीरुल मोमेनीन और इमाम हुसैन ने ज़ुबैर और इब्ने सअद से पूरी दृढ़ता से बातचीत की ओर उन्हें नसीहत की। उस वक़्त की बातचीत, आज की बातचीत जैसी नहीं थी। आज के दौर में बातचीत का अर्थ लेन-देन है। एक चीज़ दीजिए और दूसरी चीज़ लीजिए। क्या अमीरुल मोमेनीन ने ज़ुबैर से और इमाम हुसैन ने उम्र सअद से कोई मामला तय किया था? क्या इतिहास से इस तरह का अर्थ निकाला जाता है और इमामों की जीवनी की इस तरह समीक्षा की जाती है?”

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने ईश्वर की कृपा से न सिर्फ़ यह कि अपने भीतर दुश्मन के पैठ बनाने की योजना को रोक दिया है बल्कि क्षेत्र में भी बड़ी हद तक दुश्मनों के षड्यंत्र को नाकाम बना दिया है। इसलिए उन्होंने अपनी दुश्मनी सबसे ज़्यादा इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ केन्द्रित कर रखी है। उन्होंने कहा कि देश की मौजूदा समस्या, कुछ लापरवाह और कुछ सतही सोच रखने वाले लोगों के कारण है जो इन बिन्दुओं को नहीं समझ रहे हैं। अल्बत्ता इस प्रकार के लोग क्रान्तिकारी, जागुरुक व समझदार लोगों के विशाल समूह के मुक़ाबले में कम हैं किन्तु सक्रिय हैं, लिखते हैं, अपनी बात दोहराते हैं और दुश्मन भी उनकी मदद करता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कहा कि आज दुश्मन की गतिविधियों का बड़ा भाग अधिकारियों के समीकरणों को बदलना तथा जनता की क्रान्तिकारी व धार्मिक सोच को भ्रमित करना है। उन्होंने कहा, “जवानों को बहुत जागरुक होना चाहिए। ईश्वर की कृपा से जागरुक हैं। यूनिवर्सिटी भी और सशस्त्र सेनाएं भी जागुरुक हैं। इस दृष्टि से हमें चिंता नहीं है।”

नई टिप्पणी जोड़ें