इस्लामी जीवनशैली

इस्लामी जीवनशैली

सामाजिक जीवन का एक सिद्धांत, जिस पर इस्लाम में बहुत बल दिया गया है, लोगों के साथ अच्छा व्यवहार है। इस्लाम धर्म ने सदैव अपने अनुयाइयों का आह्वान किया है कि वे दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें और उनके साथ कभी दुर्व्यवहार न करें। पवित्र कुरआन जब पैग़म्बरे इस्लाम की प्रशंसा करता है तो उनके सुशील, सभ्य एवं विनम्र व्यवहार की ओर संकेत करता है। लोगों के साथ खुले मन से पेश आना वह विशेषता है जो सामाजिक जीवन में प्रेम का कारण बनती है और बात के प्रभावी होने में आश्चर्यजनक असर रखती है। इसी कारण महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने अपने दूतों को मृदुभाषी बनाकर भेजा है ताकि उनकी बातें लोगों में प्रभावी हो सकें और वे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। ये महान हस्तियां लोगों से इस प्रकार मिलती थीं कि वास्तविकता प्रेमी लोग उनसे वशीभूत हो जाते थे यही नहीं ईश्वरीय दूत लोगों से इस प्रकार उदारतापूर्ण व्यवहार करते थे कि कभी- कभी उनके शत्रु भी शर्मिन्दा होकर परिवर्तित हो जाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अच्छे, सभ्य और सुशील व्यवहार के प्रतिमूर्ति थे। ऐसा बहुत होता था कि उनके शत्रु उन्हें कष्ट पहुंचाने के उद्देश्य से उनके पास जाते थे परंतु जब वे पैग़म्बरे इस्लाम के पास से लौटकर आते थे तो ज्ञात होता था कि उन्होंने न केवल पैग़म्बरे इस्लाम का कोई अपमान नहीं किया बल्कि दिल व जान से इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया और उसके बाद से वे पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाई बन गये और उनसे अगाध प्रेम करने लगे।

स्पष्ट है कि हर इंसान प्राकृतिक व स्वाभाविक रूप से अच्छे व्यवहार को पसंद करता है। इसी कारण जो दिल ईश्वर के बंदों की शत्रुता से दूषित हैं वे अपनी अस्ल प्रवृत्ति से दूर हो गये हैं। अगर कोई व्यक्ति महान ईश्वर से प्रेम करने का दावा करता है तो उसे चाहिये कि वह उसकी सृष्टि से भी प्रेम करे और उसकी सृष्टि से प्रेम करने के लिए आवश्यक है कि लोगों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाये। इस बात को ध्यान में रखे बिना कि अच्छा व्यवहार सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। अगर लोगों के साथ अच्छा व्यवहार न किया जाये तो इस बात की संभावना मौजूद रहती है कि कुछ लोग वास्तविकता से दूर हो जायें। इसी कारण इस्लाम धर्म की शिक्षाओं में बहुत बल दिया गया है कि अत्याचारी एवं दिग्भ्रमित लोगों को सत्य की ओर आमंत्रित करते समय उनके साथ भी प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिये। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने जब हज़रत मूसा और उनके भाई हज़रत हारून को फिरऔन के पास भेजा तो उनसे कहा कि वे फिरऔन से अच्छा व्यवहार करें। क्योंकि अच्छा व्यवहार करने की स्थिति में ही दिग्भ्रमित व पथभ्रष्ट व्यक्ति को सीधे रास्ते पर लाने की संभावना होती है। इस संबंध में महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे ताहा की ४३वीं और ४४वीं आयत में हज़रत मूसा और हारून को संबोधित करते हुए कहता है। तुम दोनों फिरऔन के पास जाओ कि वह उद्दंडी हो गया है और उसके साथ नर्मी से बात करना कि शायद उसकी समझ में जाये यानी वह शायद ईश्वरीय दंड से डरे”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने बेटे मोहम्मद हनफिया से इस प्रकार फरमाते हैं” जान लो कि ईश्वर पर ईमान लाने के बाद सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता का चिन्ह, लोगों के साथ अच्छा व्यवहार है”

यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि लोगों के साथ अच्छा व्यवहार और उनसे खुले मन से मिलना उनसे प्रेम का कारण है। इसी कारण लोग अच्छे व्यवहार और मृदुभाषी लोगों के साथ संबंध रखने को अधिक पसंद करते हैं।

अलबत्ता इस्लाम में जो यह कहा गया है कि सामाजिक जीवन में लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिये उसका यह अर्थ नहीं है कि जब इंसान का सामना अन्याय व अत्याचार से हो तब उसके समक्ष मौन धारण करना चाहिये और लोगों से मुस्करा कर मिलना चाहिये और दूसरों के समक्ष कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखानी चाहिये बल्कि जब भी समाज में ग़लत व अप्रिय कार्य होता दिखाई दे उसके मुकाबले में प्रतिक्रिया दिखानी चाहिये अगर ऐसा न हो तो इसका मतलब धार्मिक व मानवीय मूल्यों के प्रति उपेक्षा है और यह वह चीज़ है जो इंसान और समाज की सुरक्षा के लिए ख़तरा है।

कुल मिलाकर कहना चाहिये कि इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर सामाजिक जीवन में लोगों के साथ अच्छा व्यवहार दोस्ती के मज़बूत होने का कारण बनता है। इसी तरह लोगों के साथ अच्छा व्यवहार क्षेत्रों के आबाद होने, उम्र में वृद्धि और आजीविका के अधिक होने  का कारण बनता है। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं जिसका व्यवहार अच्छा होगा जीवन के रास्ते उसके लिए बेहतर होगें”

सामाजिक संबंध का एक सिद्धांत लोगों की जान, माल और प्रतिष्ठा का सम्मान है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम में विशेष कानून बनाये गये हैं और अगर कोई इन कानूनों का उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही की जानी चाहिये। इस्लाम ने उस समय से इंसान की जान का सम्मान किया है जब वह खून के लोथड़े से अधिक कुछ नहीं था और जो दूसरों की जानों को खतरे में डालता है उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही किये जाने का आदेश देता है। पवित्र कुरआन सूरे माएदा की ३२वीं आयत में कहता है” जिसने किसी एक व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो उसने मानो समस्त इंसानों की हत्या कर डाली और जिसने उसे जीवन प्रदान किया मानो उसने सारे इंसानों को जीवन प्रदान कर दिया”

लोगों के धन का भी सम्मान किया जाना चाहिये। इस आधार पर इस्लाम धर्म की शिक्षाओं में लोगों की जानों की सुरक्षा व सम्मान पर बल दिये जाने के साथ लोगों के धन का भी सम्मान किये जाने की सिफारिश की गयी है। जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम ने ईदे अज़हा के अवसर पर लोगों के समूह में फरमाया था” निःसंदेह  तुम्हारी जान और माल की प्रतिष्ठा एक दूसरे पर आज के दिन, इस महीने में और इस भूमि की भांति है यहां तक कि तुम अपने पालनहार से भेंट करो और वह तुम्हारे कर्म के बारे में तुमसे हिसाब ले”

लोगों के धन के सम्मान में अमानत, अनावश्यक एवं अवैध तथा मालिक की अनुमति के बिना खर्च शामिल है। इसी प्रकार दूसरों के धन को वापस करना भी धन- सम्मान में शामिल है। यह सीमाएं इसलिए निर्धारित की गयी हैं ताकि धन नष्ट न हों, इंसानों की हत्या न की जाये, समाज में द्वेष व शत्रुता न फैले, परिश्रम खत्म न किया जाये और लोग

अपने धन को दूसरे की सहायता के लिए किसी प्रकार के संकोच व चिंता के बिना दे दें।
सामाजिक संबंध का एक सिद्धांत यह है कि लोगों की प्रतिष्ठा, मान -सम्मान का ध्यान रखा जाना चाहिये। हर मोमिन का दूसरे मोमिन के प्रति दो ज़िम्मेदारियां हैं। एक मोमिन की प्रतिष्ठा का सम्मान और दूसरे उसका बचाव। मोमिन की प्रतिष्ठा के बचाव का सबसे बेहतरीन तरीक़ा यह है कि उसकी कमियों व दोषों पर पर्दा डाला जाये। इस आधार पर महान व सर्वसमर्थ ईश्वर समस्त लोगों के हर प्रकार की कमी से भलिभांति अवगत होने के बावजूद उन पर पर्दा डालता है। रोचक बात यह है कि महान ईश्वर हर प्रकार की कमी व दोष से पवित्र होने के बावजूद इंसान की कमियों व दोषों पर पर्दा डालता है तो इंसान को उत्तम तरीक़े से दूसरे इंसानों के दोषों व कमियों पर पर्दा डालना चाहिये क्योंकि ईश्वरीय दूतों के अतिरिक्त हर इंसान में कुछ न कुछ दोष पाये जाते हैं। मोमिन अर्थात महान ईश्वर पर गहरी आस्था रखने वाले का उपहास उड़ाना, उसकी कमियों को उजागर करना, जाने -अनजाने में की जाने वाली ग़लतियों के कारण उसकी निंदा करना, इसी प्रकार उसे गिरी हुई दृष्टि से देखने को, विशेषकर उस समय जब वह लोगों के मध्य हो, उसका अपमान समझा जाता है। संक्षेप में यह कि इस्लाम में हर प्रकार की बात या उस व्यवहार की आलोचना की गयी है जिससे उसकी प्रतिष्ठा को आघात पहुंचता हो। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फरमाते हैं” जो व्यक्ति किसी मोमिन को दूसरों की नज़र से गिराने के लिए कोई बात कहे तो ईश्वर उसे अपनी अभिभावकता से बाहर निकाल देता है और उसे शैतान की अभिभावकता में देता है परंतु शैतान भी उसे स्वीकार नहीं करता है”

इस्लामी रिवायत में आया है कि एक व्यक्ति ने पैग़म्बरे की उपस्थिति में एक व्यक्ति बुराई की वहीं पर दूसरा व्यक्ति उसके बचाव में खड़ा हो गया। उस समय पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया” जो अपने मोमिन भाई को अपमानित होने से बचा ले वह नरक की आग से सुरक्षित है” इस आधार पर हर इंसान का दायित्व है कि सामाजिक संबंध में अपनी क्षमता भर वह किसी को अपमानित न होने दे।

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